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ऑनलाइन शिक्षा में विभिन्न समस्याओं से जूझते विद्यार्थियों का बयान

मध्यप्रदेश के विद्यार्थियों और शिक्षकों की प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट ज्ञात हो रहा है कि इस वक्त ऑनलाइन शिक्षा एक औपचारिकता के रूप में विद्यमान है। सरकार ने धरातलीय हकीकत जाने बगैर ऑनलाइन शिक्षा कोरोना के चलते बेबसी में लागू की है।
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वर्तमान समय में समूचा विश्व कोरोना महामारी की चपेट में है, जिसका कहर भारत में भी लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में 32 करोड़ से अधिक विद्यार्थियों के लिए शिक्षा हासिल करना चुनौतीपूर्ण बन चुका है क्योंकि देश में अधिकतर शैक्षणिक संस्थानों के कपाट विद्यार्थियों के लिए बंद कर दिये गये हैं और ऐसे में विद्यार्थियों को शिक्षा से जोड़े रखने के लिए ऑनलाइन शिक्षा का रास्ता अपनाया गया है। लेकिन क्या वाकई ऑनलाइन शिक्षा मुफ़ीद प्रमाणित हो रही है, कहीं ऐसा तो नहीं कि विद्यार्थियों के लिए शिक्षा हासिल करने का जज़्बा खतरे में है? क्योंकि अगर एक भी विद्यार्थी ऑनलाइन शिक्षा से महरूम रह जाता है तब पढ़ाई का यह माध्यम अनुचित माना जायेगा।

कोरोना संकट के वक्त में ऑनलाइन शिक्षा की स्थिति का जायज़ा लेने जब हम मध्यप्रदेश के सागर जिले पहुंचे तब वहाँ सबसे पहले डॉ हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुछ विद्यार्थियों से मिले जो होटल के पास चाय की चुस्कियों के साथ ऑनलाइन क्लास ले रहे थे।

जब हमनें उनसे पूछा कि ऐसे बाहर के महौल में चाय पीते हुए आप ऑनलाइन क्लास कैसे ज्वाइन कर लेते हैं क्या आपके टीचर्स इसकी अनुमति प्रदान करते हैं? तब वहाँ मौजूद विद्यार्थियों ने जवाब दिया कि ऑनलाइन शिक्षा में फॉर्मेलिटी जैसा माहौल बना हुआ है, जिससे स्टूडेंट्स और टीचर्स को ज्यादा फर्क नहीं पड़ता।

जब हमने अगला सवाल किया कि ऑफलाइन शिक्षा के मुकाबले ऑनलाइन शिक्षा से विद्यार्थियों का बौद्धिक स्तर कितना प्रभावित हो रहा है? तब वहां मौजूद (एमएससी) के विद्यार्थी रिषभ ने उत्तर देते हुए कहा कि ऑनलाइन क्लास से विद्यार्थियों का बौद्धिक स्तर डाउन हो रहा है। टीचर्स और स्टूडेंट के बीच जो ऑफलाइन क्लास में समझ होती थी वह ऑनलाइन क्लास में नहीं है इसके अलावा स्टूडेंट्स-टीचर्स का तालमेल व्यवस्थित नहीं हो पा रहा है जिससे ऑनलाइन शिक्षा अरुचिकर है।

इसी सवाल का जवाब देते हुए फॉरेंसिक साइंस से मास्टर्स कर रही प्रगति खुद पर बीती सुनाती है वे कहती है कि ऑनलाइन शिक्षा में प्रैक्टिकल की कमी से बौद्धिक लेवेल वाकई घट रहा है जब मैं एक नौकरी के लिए साक्षात्कार देने गयी है तब वहां अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायी, वहीं कोविड का बैच कहकर मेरी उपेक्षा भी की गयी।

आगे हमने सवाल पूछा कि प्रैक्टिकल विषयों पर ऑनलाइन एजुकेशन में कितना जोर दिया जा रहा है? तब इसका जवाब देते हुए रिषभ कहते हैं कि 2 साल से कोविड के चलते प्रैक्टिकल विषयों में प्रयोगशालाओं और फील्ड वर्क से विद्यार्थियों को दूर रखा गया है जिससे वह प्रेक्टिकल में जीरो है।

आगे जब हमने यह सवाल पूछा कि आपको ऑनलाइन शिक्षा और परीक्षा में क्या-क्या समस्याएं आती है? तब रिषभ कहते है कि हमारी प्रैक्टिकल परीक्षाओं में थ्योरी से संबंधित प्रश्न पूछे जा रहे हैं जो प्रावधान के मुताबिक ठीक नहीं। वहीं ऑनलाइन परीक्षा में मेरे 2 सहपाठियों के तकनीकी खामी के चलते एग्जाम जमा नहीं हो पाये जिससे उन्हें 0 अंक दिए गए उन्होंने इसकी परीक्षा विभाग से शिकायत की तब भी कोई कार्यवाई नहीं हुई।

आगे प्रगति कहती है कि जब परीक्षा ऑनलाइन करवायी जा रही है तब परीक्षा संबंधी समस्याओं के लिए शिकायतें ऑफलाइन क्यों करनी पड़ रही है क्या शिकायतें ऑनलाइन नहीं की जा सकती?

इसी सवाल का जवाब (एमजे) की छात्रा मुस्कान अपना अनुभव साझा करते हुए देती हैं वह कहती है कि खुरई तहसील से सटे हमारे गांव धामौनी में विद्यार्थी ऑनलाइन शिक्षा के दौरान कई तरह की समस्याएं से जूझ रहे है जैसे कभी- कभार बिजली नहीं आती, नेटवर्क, इंटरनेट की समस्या बनी रहती है जिससे ऑनलाइन क्लास ज्वाइन करने में असुविधा हो रही है। आगे वह कहती मैं स्वयं गांव में नेटवर्क की समस्या के चलते ऑनलाइन क्लास ज्वाइन नहीं कर पाती हूँ। वहीं एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन की रिपोर्ट से मालूम होता है कि देश में 50 फीसदी से कम परिवारों के पास इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है।

आगे हमने प्रश्न पूछा कि क्या ऑनलाइन शिक्षा महंगी होती जा रही है? तब (एमसीए) के विद्यार्थी अंकित कहते हैं कि ऑनलाइन शिक्षा में भी विद्यार्थियों की पूरी फीस जमा की जा रही है और परीक्षा के दौरान उत्तरपुस्तिका खरीदने जैसे खर्च भी विद्यार्थी उठा रहे हैं। इसी सवाल के जवाब में 12 वीं के विद्यार्थी ऋषि कहते हैं कि मेरे पिता जी की मासिक आय 5 हजार रुपये है जिसमें से पहले हम मोबाईल में 150 रुपये का रिचार्ज करवाते थे और अब लगभग 5 विषयों की ऑनलाइन क्लास के लिए 300 रुपये से ज्यादा का रिचार्ज करवाना पड़ता है इससे स्पष्ट है कि ऑनलाइन शिक्षा महंगी है।

इसके बाद हमने डॉ हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ नागेश दुबे से ऑनलाइन शिक्षा के प्रभाव को लेकर बातचीत की और पूछा कि ऑनलाइन शिक्षा से विद्यार्थियों के अनुशासन पर क्या असर देखने मिल रहा है? तब इसका उत्तर देते हुए डॉ नागेश दुबे कहते हैं कि दिशानिर्देश दिये जाने के बाद भी  ज्यादातर विद्यार्थी ऑनलाइन शिक्षा के दौरान अन्य कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं जिससे उनका ध्यान भटकना स्वभाविक है ऐसे में क्लास का अनुशासन निश्चित रूप से प्रभावित होता है।

आगे हमने सवाल किया कि क्या ऑनलाइन शिक्षा बेबसी में लागू की गयी है?

तब उन्होंने इसका जवाब हां में देते हुए कहा कि ऑनलाइन शिक्षा के लिए देश में पूरी तरह व्यवस्थाएं नहीं है और इसके लिए देश तैयार भी नहीं था कोविड संकट में शिक्षा सत्र को आगे बढ़ाने के लिए मजबूरी में ऑनलाइन शिक्षा का माध्यम अपनाया गया है।

अगला सवाल हमनें किया कि  लगभग 3 से 5 घंटे यदि  ऑनलाइन क्लास चलती है तब क्या इससे स्वास्थ्य संबंधी गंभीर संकट पैदा हो सकता है?

तब इसके जवाब में विभागाध्यक्ष कहते हैं कि इस अवधि में उच्च शिक्षा के विद्यार्थियों को स्वास्थ्य संबंधी ज्यादा परेशानी नहीं हो सकती लेकिन स्कूली शिक्षा के विद्यार्थियों में खासतौर पर छोटे बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा नुकसानदायक है इससे बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास दोनों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। वहीं एक स्टडी के मुताबिक कक्षा 4 से लेकर कक्षा 12 तक के 55 प्रतिशत विद्यार्थियों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं आयीं है।

इसके बाद हमने सवाल किया कि जिस तरह चुनावी रैलियां ऑफलाइन हो रही है क्या उसी तरह शैक्षणिक संस्थान ऑफलाइन नहीं हो सकते?

तब डॉ नागेश दुबे कहते हैं कि कोरोना से बचाव के नियम सभी के लिए समान तरीके से लागू होना चाहिए चुनावी रैलियों के लिए न्यायालय को सख्त दिशा निर्देश जारी करने की दरकार है। वहीं इसी सवाल के जवाब में विद्यार्थियों का कहना है कि चुनावी रैलियों पर प्रतिबंध नहीं है, आवाजाही पर रोक नहीं है, उद्योग जगत से लेकर अन्य कई क्षेत्र खुले है तब ऐसे में सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षणिक संस्थानों को 50 प्रतिशत उपस्थिति के साथ खोलना चाहिए जिससे शिक्षा हासिल करने का जज्बा बरकरार रहे।

आगे जब हम सागर से निकलकर 25 किमी दूर स्थित हिलगन गांव की ओर पहुंचे तब वहां मौजूद कुछ पढ़ने-लिखने वाले युवाओं से मुलाकात की और जब गाँव के बारे में पूछा? तब शिवम (बीए पास बेरोजगार) बताते हैं कि गाँव की आबादी 7-8 हजार के करीब है और यहाँ 12 वीं तक स्कूल है जिससे पढ़े लिखे युवाओं की तादाद ज्यादा है।

आगे हमने सवाल किया गांव में ऑनलाइन शिक्षा कैसी चल रही है और ऑनलाइन शिक्षा के लिए किन-किन साधनों की उपयुक्त व्यवस्था है?

तब वहां मौजूद (बीए) के विद्यार्थी जय कहते हैं कि हमारी ऑनलाइन क्लास कभी-कभार ही लगती है और शिक्षा का माहौल ऐसा हो गया है कि टीचर्स चाहते हैं कि हमें पढ़ाना ना पड़े और स्टूडेंट्स चाहते हैं कि हमें पढ़ना ना पड़े।

आगे शिवम बताते हैं कि गाँव में विद्यार्थियों की बड़ी आबादी होने के बाद भी केवल 5 विद्यार्थियों के पास कम्प्यूटर हैं 30 प्रतिशत विद्यार्थियों के पास मोबाइल नहीं है कुछ ने किश्तों पर मोबाइल लिए है।

इसी संबंध में हिलगन से सटे छोटे से गांव खांड के प्राथमिक स्कूल के प्राचार्य कहते हैं कि हमारे विद्यालय में 64 विद्यार्थीयों में से लगभग 15-20 विद्यार्थीयों के पास ही मोबाइल उपलब्ध है जिसके कारण 4 से 5 बच्चे सामूहिक रूप में ऑनलाइन क्लास ज्वाइन करते हैं। ऐसे में आंकड़ों को देखें तब एक सर्वे से ज्ञात होता है कि 18 हजार विद्यार्थियों में 80 फीसदी के पास लेपटाॅप नहीं है और 20 फीसदी विद्यार्थियों के पास मोबाइल सुविधा उपलब्ध नहीं है।

फिर जब हम हिलगन से आगे की ओर गये तब वहाँ सड़क के समीप दो परिवारों की महिलाएं और बच्चे दिखे तब हमने पास जाकर उनका हाल जानते हुए सवाल पूछा कि आपके बच्चों पर आनलाइन शिक्षा का कैसा असर पड़ रहा है?

तब वहां मौजूद शेरऊनबी ने बताया कि हमारे 4 बच्चे हैं जिनमें सबसे बड़ी लड़की नूरजहां 14 साल की है उससे छोटी 2 लड़की 1 लड़का है मगर हम किसी का भी स्कूल में दाखिला नहीं करवा पाए। ऐसे ही वहां मौजूद सकीला ने कहा हमारे 2 बच्चे हैं बेटी शबाना 9 साल की है बेटा साहिल 7 साल का है लेकिन स्कूल की शक्ल देखना दोनों की किश्मत में नहीं है। जब हमने इन बच्चों से पढ़ाई को लेकर बातचीत की तब वह शांत रहे उन्होंने कुछ नहीं कहा।

इसके पश्चात हमने सवाल किया कि सरकार ने तो फ्री शिक्षा की व्यवस्था की हैं फिर भी आपने स्कूल में बच्चों का दाखिला क्यों नहीं करवाया?

तब इसके जवाब में शेरऊनबी और सकीला कहती है कि हमारे शहर विदिशा में हमें रोजगार नहीं मिलता इसलिए हम दूसरे शहरों और गांवों की ओर काम की तलाश में आ जाते हैं जहाँ महिने गुजर जाते हैं ऐसे में बच्चों की देखभाल के लिए घर पर कोई नहीं रहता इसलिए हम जहां जाते हैं बच्चों को साथ ले जाते है इसी वजह से बच्चों का स्कूल में दाखिला नहीं करवा पाते है जिससे वह अनपढ़ रह गये है।

फिर हमने सवाल किया कि बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकार आपकी किस तरह मदद कर सकती है?

तब उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि सरकार हमें हमारे शहर में रोजगार देने की मदद कर सकती है जिससे हम वहाँ स्थायी रहकर अपने बच्चों का स्कूल में दाखिला भी करवाएंगे और पढ़ाएंगे भी ताकि बच्चों का भविष्य सुधर सके।

विचारणीय है कि कोरोना संकट के इस दौर में तमाम क्षेत्रों सहित शिक्षा के क्षेत्र को भी काफी क्षति पहुंची है इस दौरान शैक्षणिक संस्थान बंद हो गये और शिक्षा सत्र को जारी रखने के लिए एक ओर ऑनलाइन शिक्षा का सहारा लिया जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर बेरोजगारी के आलम में भटकते गरीब लोग अपने बच्चों का स्कूल में एडमिशन नहीं करवा पा रहे हैं। वहीं भारत में आईसीएआई के अनुसार 130 करोड़ जनसंख्या में 45 करोड़ के पास स्मार्ट फोन उपलब्ध हैं इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली, नेटवर्क सहित अन्य समस्याएं भी बरकरार हैं ऐसे में शिक्षा हासिल करने का अधिकार ऑनलाइन शिक्षा तक सीमित नहीं रह सकता हैं।

(सतीश भारतीय स्वतंत्र पत्रकार है) 

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