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सुभाष चंद्र बोस जयंती : "नेताजी ने महिलाओं के लिए बराबरी की बात की”

महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के मौ़क़े पर श्री सीताराम ट्रस्ट की ओर से कार्यक्रम का आयोजन किया गया। वक्ताओं ने उन्हें याद करते हुए कहा, नेताजी ने महिलाओं के लिए बराबरी की बात की और उन्हें युद्ध के मैदान में उतारा।
Subhas Chandra Bose

बिहटा : 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती के मौके पर पटना से 35 किमी दूर पश्चिम बिहटा के राघवपुर स्थित 'श्री सीताराम आश्रम' में विमर्श का आयोजन किया गया। ज्ञात हो एक समय पर क्रांतिकारी किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती के नेतृत्व में चले किसान आंदोलन का संचालन इसी सीताराम आश्रम से हुआ करता था।

सुभाषचंद्र बोस पर केंद्रित यह आयोजन 'श्री सीताराम ट्रस्ट' की ओर से किया गया था। इस विमर्श का विषय था,"भारत का स्वाधीनता संग्राम और सुभाष चंद्र बोस।" इस मौके पर भारी संख्या में बिहटा के आसपास के गाxवों के ग्रामीण, सामाजिक कार्यकर्ता तथा आम लोग इकट्ठा हुए।

स्वागत भाषण देते हुए श्री सीताराम आश्रम ट्रस्ट के सचिव डॉ. सत्यजीत सिंह ने कहा, "हम लोग पहली बार इस आश्रम में सुभाष चंद्र बोस जयंती मना रहे हैं। सुभाष चंद्र बोस का स्वामी सहजानंद सरस्वती के साथ गहरा जुड़ाव था। इन दोनों ने साथ मिलकर आज़ादी के आंदोलन के दौरान काम किया। हमलोग आगे भी सुभाष चंद्र बोस की स्मृति में कार्यक्रम करते रहेंगे।"

इस कार्यक्रम में सबसे पहले सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व पर केंद्रित एक फोटो प्रदर्शनी लगाई गई। सुमन द्वारा संयोजित इस प्रदर्शनी में सुभाष चंद्र बोस और स्वामी सहजानंद सरस्वती के उद्धरणों पर आधारित कई सुंदर प्लेकार्डस बनाये गए थे।

कार्यक्रम के विषय पर बोलते हुए अनिल कुमार राय ने अपने संबोधन में कहा, "सुभाष चंद्र बोस ने रानी लक्ष्मीबाई रेजीमंट की स्थापना की। इस प्रकार उन्होंने महिलाओं के लिए बराबरी की बात की। महात्मा गांधी ने सिर्फ सामाजिक क्षेत्र में महिलाओं की बराबरी की बात की जबकि सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें युद्ध के मैदान में उतारा। जिस योजना आयोग को आज समाप्त कर दिया गया, सुभाष चंद्र बोस ने पहली बार योजना आयोग का गठन नेहरू के नेतृत्व में किया था। गांधी जी व सुभाष चंद्र बोस के मतभेद को देखते समय इतिहास को लेकर हमें सेलेक्टिव होने से बचना चाहिए। इतिहास का निर्माण संपूर्णता में होता है।"

माकपा नेता सर्वोदय शर्मा ने सभा को संबोधित करते हुए कहा, "शासक वर्ग कभी भी दान में आज़ादी नहीं देता है। लेकिन आज जिस आज़ादी को हमने हासिल किया वह खतरे में है और इसे बचाने के लिए जिस बलिदान की ज़रूरत है उसमें कमी आ गई है। आज़ादी की लड़ाई ने हमें जो सिद्धांत दिए गए उसके अनुसार काम करने की ज़रूरत है।"

शिक्षाविद कुमार सर्वेश ने चर्चा में शामिल होते हुए कहा, "सुभाष चंद्र बोस को गांधी के विरोधी के तौर पर देखने से परहेज़ करना चाहिए। गांधी ने बोस की राष्ट्रीय प्रतिबद्धता पर कभी उंगली नहीं उठाई। दोनों का एक-दूसरे के प्रति काफी स्नेह था। सुभाष और नेहरू एक प्लेटफॉर्म पर एक ही जगह थे। सुभाष में लोगों का इमोशन अधिक प्रभावी था जिसे आधार बनाकर दक्षिणपंथी ताकतें उनका इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही हैं। सत्ता परिवर्तन की लड़ाई में नेहरू के साथ-साथ सुभाष की भूमिका बेहद निर्णायक थी। दोनों धर्म व राजनीति को लेकर गांधी से भिन्न धरातल पर थे। आज हम जिन चुनौतियों से लड़ना चाहते हैं उसके लिए हमें सुभाष चंद्र बोस को बेहतर तरीके से समझना होगा।"

बिहार बंगाली समिति के अध्यक्ष डॉ. (कैप्टन) दिलीप कुमार सिन्हा ने कहा, "मेरे लिए इस आश्रम में आना सौभाग्य की बात है। कांग्रेस से अलग हटने के बाद 27 अगस्त 1939 को बोस पटना आए और सुबह दानापुर में एक सभा की, फिर पटना सिटी गए वहां 'गो बैक सुभाष' का नारा लगा जिस कारण सभा को स्थगित कर दिया गया। तब सुभाष चंद्र बोस ने स्वामी सहजानंद सरस्वती से संपर्क किया। इसके बाद अगले दिन बांकीपुर (वर्तमान में गांधी मैदान) में सभा हुई तो मुंगेर आदि जगहों से लाठी से लैस जवानों ने सुभाष चंद्र बोस को सुरक्षा दी। आज इन सब बातों को हमें याद रखना चाहिए।"

सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल कृष्ण ने कहा, "सारा इतिहास समकालीन होता है। सुभाष चंद्र बोस द्वारा 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के रूप में दिए गए भाषण की गूंज भारत के संविधान में दिखाई पड़ती है। बोस 1921 से ही योजना आयोग की गंभीरता पर बात कर रहे रहे थे। हालांकि साल 2014 में योजना आयोग की उस चिंतनधारा को पलट दिया गया। आज के समय मे विपक्षी पार्टियों को यह वादा करना चाहिए कि जब वे सत्ता में आएंगे तो योजना आयोग को वापस बहाल करेंगे। हमें नेता जी के साल 1938 के साथ- साथ, 1944 में दिए गए भाषण को भी देखना चाहिए। सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रतीक रहे लार्ड वेवल का स्मारक ध्वस्त कर दिया था। नेता जी द्वैतवादी थे और उनकी सबसे बड़ी चिंता गरीबी व बेरोज़गारी को लेकर थी। जब साक्षरता मात्र 13 प्रतिशत थी तब वे भारत को जागृत करना चाहते थे। यदि आज कहीं नरसंहारों को जस्टिफाई किया जाता है तो इसका मतलब हमारी शिक्षा नीति में ही गड़बड़ी है। आज बिहार की सोन नदी में बिहार की निजी कंपनियों द्वारा जो कचरा डाला जा रहा है। वह कचरा जब जलाया जाएगा तो उससे वही गैस निकलेगी जिसका इस्तेमाल कर अमेरिका ने वियतनाम में लाखों लोगों की हत्या की थी।"

एस.यू.सी.आई के राज्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने कहा, "साल 1938 में कांग्रेस के गांधीवादी नेतृत्व ने समझा था कि सुभाष चंद्र बोस भी नेहरू की तरह ही गांधी के रास्ते पर ही चलेंगे लेकिन बोस ने उस रास्ते पर चलने से इनकार कर दिया। जब गांधी के उम्मीदवार को बोस ने हराया तब गोविंद वल्लभ पंत ने एक प्रस्ताव पेश किया। यह गांधी जी के नियंत्रण के लिए लाया गया प्रस्ताव था। मजबूरन नेता जी को इस्तीफा देना पड़ा। कलकत्ता के वेलिंगटन स्क्वायर में जब नेता जी इस्तीफा दे रहे थे तब बाहर मौजूद जनता तत्कालीन कांग्रेसी नेतृत्व को धिक्कार रही थी। नेता जी रूस जाना चाहते थे लेकिन यह मौका उन्हें नहीं मिला। हिटलर के बारे में सुभाष चंद्र बोस की जो समझ थी उसे छिपाया गया है। जब हिटलर ने रूस पर हमला किया तो आज़ाद हिंद फौज को कहा गया था कि वह रूस पर हमले में शामिल न हो। फौज के सत्तर लोगों को हिटलर ने गोली मार दी थी। आज़ाद हिंद फौज में कभी भी जाति व धर्म के आधार पर विभाजन नहीं था। नेता जी की आज़ाद हिंद फौज में हमेशा सेक्युलर राजनीति को बढ़ावा दिया गया।"

रंगकर्मी व नाटककार हसन इमाम ने अपने संबोधन में कहा, "सुभाष चंद्र बोस ने कहा था कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद इतना कमज़ोर हो जाएगा कि दुनिया पर शासन करने लायक नहीं रहेगा। नेता जी का यह मूल्यांकन सही साबित हुआ। आज़ाद हिंद फौज में बोस ने गांधी ब्रिगेड, मौलाना आज़ाद ब्रिगेड, नेहरू ब्रिगेड आदि बनाया। जब देश में सांप्रदायिक राजनीति ज़ोरों पर थी और लालकिले पर फौज का ट्रायल शुरू किया गया उसमें ढिल्लों, सहगल, और शाहनवाज़ थे जिसमें एक हिंदू, एक मुस्लिम तथा एक सिख थे। नवंबर 1945 में ट्रायल शुरू हुआ तो उसके खिलाफ जुलूस निकला। इससे जो आंदोलन फैला उसने नौसेना विद्रोह को जन्म दिया। इस विद्रोह ने अंग्रेज़ अफसरों को जय हिंद कहने पर मजबूर किया। नेता जी खिलाफत कमेटी में गांधी के स्टैंड के विरुद्ध गए। वे पूरी तरह से सेक्युलर थे। बोस ने हिंदू -मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया था। यहां तक तत्कालीन अंग्रेज़ी प्रधानमंत्री ने कहा था कि सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज के कारण हमें भारत छोड़ना पड़ा।"

श्री सीताराम आश्रम ट्रस्ट के सदस्य कैलाशचंद्र झा ने अपने संबोधन में कहा, “1940 में बोस के जाने के बाद स्वामी जी को ज़रूर धक्का लगा होगा। वैसे ऐसा उन्होंने कहीं लिखा नहीं है लेकिन इसके बाद स्वामी जी काफी अकेले हो गए थे।"

पटना कॉलेज के पूर्व प्रचार्य प्रो. नवल किशोर चौधरी ने सुभाष चंद्र बोस के बारे में विचार प्रकट करते हुए कहा, "सुभाष चंद्र बोस का फिर से मूल्यांकन किया जा रहा है। उनपर बहसें ज़रूर होनी चाहिए, ये एक अच्छी बात है लेकिन बातें तथ्यों पर आधारित और तर्कसंगत होनी चाहिए। जब हम छोटे थे तो नेताजी को पढ़कर शरीर रोमांचित हो जाता था।"

इसके अलावा कवि व व्यंग्यकार अरुण शाद्वल ने भी सभा को संबोधित किया। सभा का संचालन जयप्रकाश जबकि धन्यवाद ज्ञापन गोपाल शर्मा ने किया।

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