दलित छात्र इंद्र मेघवाल को याद करते हुए: “याद रखो एक बच्चे की हत्या... सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन”
एक तरफ़ हम आज़ादी की 75वीं सालगिरह और हमारी सरकार अमृत महोत्सव मना रही है और उसी बीच राजस्थान में दलित बच्चे इंद्र मेघवाल की मौत की ख़बर एक व्यक्ति और एक राष्ट्र के तौर पर हमें शर्मसार कर देती है। इसी सिलसिले में याद आती है हिंदी के प्रसिद्ध कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता “देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता”, जिसमें वह कहते हैं— “याद रखो एक बच्चे की हत्या/ एक औरत की मौत/ एक आदमी का गोलियों से चिथड़ा तन/ किसी शासन का ही नहीं/ सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन”।
तो आज ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं यही कविता और ख़ुद से और अपने देश के हुक्मरानों से करते हैं कुछ ज़रूरी सवाल।
देश कागज पर बना नक्शा नहीं होता
यदि तुम्हारे घर के
एक कमरे में आग लगी हो
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में सो सकते हो?
यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में
लाशें सड़ रहीं हों
तो क्या तुम
दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?
यदि हाँ
तो मुझे तुम से
कुछ नहीं कहना है।
देश कागज पर बना
नक्शा नहीं होता
कि एक हिस्से के फट जाने पर
बाकी हिस्से उसी तरह साबुत बने रहें
और नदियां, पर्वत, शहर, गांव
वैसे ही अपनी-अपनी जगह दिखें
अनमने रहें।
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे तुम्हारे साथ
नहीं रहना है।
इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा
कुछ भी नहीं है
न ईश्वर
न ज्ञान
न चुनाव
कागज पर लिखी कोई भी इबारत
फाड़ी जा सकती है
और जमीन की सात परतों के भीतर
गाड़ी जा सकती है।
जो विवेक
खड़ा हो लाशों को टेक
वह अंधा है
जो शासन
चल रहा हो बंदूक की नली से
हत्यारों का धंधा है
यदि तुम यह नहीं मानते
तो मुझे
अब एक क्षण भी
तुम्हें नहीं सहना है।
याद रखो
एक बच्चे की हत्या
एक औरत की मौत
एक आदमी का
गोलियों से चिथड़ा तन
किसी शासन का ही नहीं
सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन।
ऐसा खून बहकर
धरती में जज्ब नहीं होता
आकाश में फहराते झंडों को
काला करता है।
जिस धरती पर
फौजी बूटों के निशान हों
और उन पर
लाशें गिर रही हों
वह धरती
यदि तुम्हारे खून में
आग बन कर नहीं दौड़ती
तो समझ लो
तुम बंजर हो गये हो-
तुम्हें यहां सांस लेने तक का नहीं है अधिकार
तुम्हारे लिए नहीं रहा अब यह संसार।
आखिरी बात
बिल्कुल साफ
किसी हत्यारे को
कभी मत करो माफ
चाहे हो वह तुम्हारा यार
धर्म का ठेकेदार,
चाहे लोकतंत्र का
स्वनामधन्य पहरेदार।
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
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