इतवार की कविता: दोस्त आए भी तो मौसम की सुनाने आए
ये कहां की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
- मिर्ज़ा ग़ालिब
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूं मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूं मैं
- जिगर मुरादाबादी
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर, ऐ दोस्त
सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया
- साहिर लुधियानवी
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
- अब्दुल हमीद अदम
तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
- अहमद फ़राज़
हम को यारों ने याद भी न रखा
'जौन' यारों के यार थे हम तो
- जौन एलिया
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए
- ख़ुमार बाराबंकवी
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों
- बशीर बद्र
दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए
- राहत इंदौरी
हाल घर का न कोई पूछने वाला आया
दोस्त आए भी तो मौसम की सुनाने आए
- निश्तर ख़ानक़ाही
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