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इतवार की कविता: ...लगातार गुर्राता है तेंदुआ

कवि-कहानीकार उषा राय ने तेंदुआ को रूपक बनाकर सात खंडों में यह कविता रची है, जिसमें तेंदुआ के माध्यम से मनुष्य के लालच, चतुराई/मौकापरस्ती, शिकारीपन और बर्बरता के विविध आयामों को दर्शाया है। इतवार की कविता में पढ़िए उनकी यह नई और ख़ास कविता जो आज की राजनीति पर भी तीखा कमेंट करती है।  
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार दैनिक ट्रिब्यून

 

तेंदुआ

1-

 

घुस आया है तेंदुआ

वे मुग्ध हैं उसके हिंसक अंदाज पर

गर्व करते हैं फूल माला से लाद देते हैं

पर लोग हैरान हैं कि यह तो तेंदुआ है!

 

कुछ ने उसके खून सने

दाँत देखें कुछ ने तीखे नाखून भी

आमजन लेखक पत्रकार संस्कृतिकर्मी

और स्त्रियां चीख -चीख कर बताती हैं

कि यह वह नहीं यह तो इतिहास के गलियारों में

कथा बिम्बों में कुंडली मारे चुपचाप बैठा ही रहता है

हिंदुत्व का वरद हस्त और नफरत की आंच पाते ही

इसके हाथ पाँव लेने लगते हैं आकार

चमक उठती हैं आँखें खुलते हैं दाँत

कसमसाने लगता है करने को वार,

 

गलत सही कुछ नहीं मानता

भारत भूमि पर जन्म लेता है बार-बार

यह आदिकाल का महाशिकारी।

                       

2-

 

जब हम बेखबर रहते  तेंदुआ दूर तक की चालें सोचता

शिकार को आंखों में रखता और सदा ही विलोम रचता है

मसलन

कहता है अच्छे दिन     बुरे दिन हो जाते हैं

नारा बेटी बचाओ        यौन शोषण का लाइसेंस बन जाता है

कहता है सहमति        असहमति को दिखाता जेल का रास्ता

कहता है विकास         विनाश हो जाता है

कहता है शिक्षा            बच्चे छोड़ देते परीक्षा

कहता है सबका साथ     दंगा करा दिया जाता है

रोजगार                     बेरोजगारी में

खरीदना                     बेचने में और

व्यवस्था                     वोट की गणित में बदल जाती है

अब की है उसने शांति की बात   

चाकू खंजर भाला त्रिशूल की बात चल निकली है

जब-जब वह खतरों की बात उठाता है तब समझ लेना चाहिए

कि कोई नाव खतरे में नहीं  पूरी नदी खतरे में है।

 

3-

 

अँधेरी सुनसान रातों में

दौड़ता है तेंदुआ एक निरंकुश दौड़

 

पूँजी दौड़ती है टाई की फांस लिए

सरमाएदारों के हंटर के इशारे पर

निर्मम घूमती ढूंढती पैसों का स्रोत

उसकी नजर से कुछ नहीं बचता

धरती आसमान

पानी पेड़-पौधे पहाड़ जंगल

अनाज पुआल बबूल नीम

बाँसों की झाड़ियां जड़ी बूटियां।

 

अपराध बेलगाम

महंगाई संगिनी

औचक पैंतरे बदलती

कानों कान खबर न पहुंचे

इंसान को स्वार्थी बनाती

प्रतिभाओं को चंगुल में रखती

साधनहीन जनों को खारिज करती

और चमकते चेहरों को खुदकुशी

के दरवाजे पर ला खड़ा करती है

आवारा पूँजी की दौड़ तेंदुए को मात देती है।

 

4-

 

युद्ध की तैयारी में

हथियारों के साथ ही

घरों में हमले आतंक घेराव हत्याएँ और

बलात्कारों के तकनीक का रिवाज बना

ताकि कुचली जा सके औरतों की उपज

अमानवीय पशुता से तोड़ा जा सके मनोबल

 

युद्ध खतम हुआ सन्धि हुई

पराजित देश ने भी बदले अपने मुद्दे

विस्थापन आवागमन व्यापार पर हुई बात

लेकिन उन स्त्रियों पर बर्बरता की बाबत

कोई बात नहीं युद्ध के इतिहास में आज तक

किसी सैनिक किसी राष्ट्रनायक ने नहीं मांगी माफी

 

तेंदुए की तरह ताकत की अकड़ में चूर

कुछ लोगों का आज भी मानना है कि

स्त्री पति की, देश की, राजा की, संपत्ति है

उसका बलत्कृत होना देश के काम आना है।

 

5-

 

घर में टहलता रहता है तेंदुआ

झाडू पोछा डास्टिंग कूड़ा डालना कब

सफाई नहीं हुई पूजा घर नहीं धुला

अभी तक चाय नहीं बनी खाना कब

सीढ़ियां धोने पोछनें में इतनी देर

नाश्ता का पता नहीं टिफिन कब

 

लगातार गुर्राता है तेंदुआ

पोछा लगाते पीछे लात न मारे

बच के रहती थर-थर काँपती है स्त्री

कहीं ठाँव-कुठाँव चोट न लग जाए

कहीं बच्चों पर ही हाथ उठा न दे

 

उसकी लम्बी उम्र ...कामना रखती

सारे त्योहार व्रत पूजा पाठ करती

एक तेंदुए के साथ रहती है एक स्त्री।

 

6-

 

कोई पकड़ नहीं सकता

कि उनके भीतर किधर

बसता है एक ज्ञानी तेंदुआ

 

ज़ब आप राजनीति की बात करें

वे धर्म की बात करते हैं

जब आप धर्म की बात करेंगे

तब वे सम्भोग से समाधि की बात करेंगे

सबकी बात काटकर अपनी ही बात रखते हैं

 

किसी पुरातन उक्ति की

चमत्कार से भरी व्याख्या करते

कठिन काव्य के प्रेतों की बात चबाते

इतना घुलाते हैं कि

आपको अपने ही ऊपर शक हो जाए

अपराध बोध में गोते खाने लगें दुनिया भर के

प्रतीकों मिथकों के जंगल में भटकने लगें

 

केवल दिल दिमाग पर कब्जा करता है

यह तेंदुआ साहित्य का कॉकटेली

आसव पीकर अमर होना चाहता है।

 

7-

 

वह प्यासा है

पानी के लिए भागता

नदी की ओर

 छलांग लगाता पानी पीता है

 

उसका चौकन्नापन

बताता है कि

कहीं न कहीं से  है

उस पर तेज नज़र

 

उसकी गदबदी मांसल देह पर

फिसल रही है जीभ

किसी की भूख की तुष्टि

बावजूद इसके वह पानी पीता है।

 

दुनिया के सबसे

सभ्य प्राणियों का लाभ

उसकी सुनहरी भूरी

फर जैसी धब्बे वाली खाल

शहद सी आँखें दाँतों पर भी सधता है

 

अब उसे जरूरत है

अपनी चालाकी फुर्तीलेपन

मौकापरस्ती और बर्बरता की

 

तेंदुआ अपने भूख के पक्ष में

और मारे जाने के खिलाफ

पूरी ताकत से तन कर खड़ा हो जाता है

 

-    उषा राय

कवि-कहानीकार

लखनऊ

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