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सुनो... पहाड़ सिर्फ़ सैर के लिए नहीं होते

यह कविता 2011 में लिखी गई थी, लेकिन इसे आज जोशीमठ के संकट के संदर्भ में एक बार फिर पढ़ा और समझा जाना चाहिए।
joshimath
प्रतीकात्मक तस्वीर। सोशल मीडिया से साभार

 

पहाड़ सिर्फ़ सैर के लिए नहीं होते

 

सुनो....

मैं यह नहीं कहता

कि ‘तुम ’ अपना सारा दुख-सुख

गंगा में बहा देना

या

झील में डुबो देना

बल्कि चाहता हूं

कि उन्हें उगा देना

अपने सीढ़ीदार खेतों में

अपने जंगलों में

 

नक़्श कर देना

घुमावदार सड़कों पर

ठंडी पहाड़ियों पर

 

टांग देना हर अंधे मोड़ पर

चेतावनी की तरह

ताकि हर आता सैलानी

दूर से ही पढ़ सके

 

ताकि

प्रकृति प्रेमी

भू—गर्भ शास्त्री

भू—गोल के विद्यार्थी

जान सकें

पहाड़ का धधकता—खौलता इतिहास

 

ताकि इतिहास के अन्वेषक

जान सकें

पहाड़ का भू—गोल

 

ताकि कवि लेखक कला प्रेमी जान सकें

कि पहाड़ सिर्फ़ एक तस्वीर, एक पेंटिंग,

कविता या पत्रिका का नाम नहीं है

 

देश के संचालक/सलाहकार/योजनाकार

जान सकें

पहाड़ का वर्तमान

पहाड़ का भविष्य

 

जान सकें

कैसे उगते हैं पहाड़

कैसे टूटते हैं पहाड़

कैसे टकराती हैं चट्टानें

कैसे बनते हैं ज्वालामुखी

क्यों आते हैं ज़लज़ले

 

जान सकें

कैसा होता है

पहाड़—का दुख

पहाड़—सा दुख

दुख का पहाड़

 

ताकि विजय अभियान पर निकले

‘पर्वतारोही’ खोज सकें

कोई नयी राह

तलहटी में लौटने की

 

ताकि तुम फिर रच सको

पहाड़ और नदियों की

प्रेम कहानियां

नई कविताएं

 

ताकि मैं सबको बता सकूं कि

पहाड़ सिर्फ़ सैर के लिए नहीं होते

 

ताकि आते मौसम में

हम खोज पाएं खोए हुए पहाड़ों को

 

ताकि जाते मौसम में

तुम भी आ सको मैदान की यात्रा पर

 

मुकुल सरल

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