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सुप्रीम कोर्ट जज का बंधुआ मज़दूरों को बंधुआ मानने से इंकार, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने किया विरोध

बंधुआ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष स्वर्गीय स्वामी अग्निवेश ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका फाइल की थी। इसी जनहित याचिका में जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अचानक बंधुआ मजदूरों को बंधुआ न मानते हुए असामाजिक तत्वों के द्वारा चलाए गए गिरोह का हिस्सा बता डाला। जज ने कहा, "बंधुआ मजदूरी के बहाने देश में रैकेट चल रहा है और ऐसे लोग इस बंधुआ मजदूरी का फायदा उठाकर पैसे खा रहे हैं।"
Hemant Gupta

दस साल पहले बंधुआ मज़दूरी से मुक्त कराए गए मज़दूरों को सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने बंधुआ मज़दूर मानने से ही इंकार कर किया। सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने बुधवार को स्वामी अग्निवेश बनाम भारत सरकार के मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि बंधुआ मजदूरी के बहाने देश में रैकेट चल रहा है और ऐसे लोग इस बंधुआ मजदूरी का फायदा उठाकर पैसे खा रहे हैं। हालांकि इस फैसले के बाद से ही मानवाधिकार कार्यकर्ता और मज़दूरों के हकों के लिए लड़ने वाले लोग इसका विरोध कर रहे हैं और जज के इस फ़ैसले को मजदूर विरोधी बताकर कड़ा विरोध जता रहे हैं।

क्या है पूरा मामला?

वर्ष 2012 में निर्मल गोराना को जम्मू के ईंट भट्टों में बंधुआ मजदूरों की जानकारी मिली, जिसके बाद बंधुआ मुक्ति मोर्चा के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर होने के नाते तत्काल ही पीड़ित राजकुमारी के पति के साथ जम्मू पहुंचे जहां निर्मल गोराना ने 51 बंधुआ मजदूरों को राजकुमारी सहित मुक्त करवाया। जम्मू के उपायुक्त ने 51 बंधुआ मजदूरों को मुक्ति प्रमाण पत्र देकर जम्मू से छत्तीसगढ़ जिला जांजगीर चांपा भेजा। घर वापसी में निर्मल गोराना ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के साथ बंधुआ मजदूरों की बैठक करवाई और उस बैठक के दौरान स्वयं रमन सिंह ने बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास के लिए पूर्ण आश्वासन दिया किंतु बंधुआ मुक्ति का प्रमाण पत्र पाकर भी मजदूर आज भी पूर्ण पुनर्वास की आस लगाए बैठे हैं।

इधर बंधुआ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष स्वर्गीय स्वामी अग्निवेश ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका फाइल की थी। इसी जनहित याचिका में जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अचानक बंधुआ मजदूरों को बंधुआ न मानते हुए असामाजिक तत्वों के द्वारा चलाए गए गिरोह का हिस्सा बता डाला।

कोर्ट ने क्या कहा?

जम्मू-कश्मीर से 2010 मे बंधुआ मजदूरों को छुड़ाया गया था। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में प्रस्तुत किया कि उनमें से कई यौन उत्पीड़न के शिकार थे और उन्हें 10 साल बाद भी कोई मुआवजा नहीं दिया गया था।

इसी मामले को जस्टिस हेमंत गुप्ता सुन रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि बंधुआ मजदूर असल में बंधुआ नहीं होते, बल्कि उन्हें काम के बदले पैसे दिए जाते हैं और फिर इस्तीफा दे दिया जाता है।

कोर्ट से जुड़े मामलों पर नज़र रखने वाली वेबसाइट बार एण्ड बेंच के मुताबिक जस्टिस गुप्ता ने कहा "क्या आप जानते हैं कि बंधुआ मजदूर कौन हैं। वे बंधुआ नहीं हैं। वे पैसे लेते हैं और वहां आते हैं और ईंट भट्टों से जुड़े होते हैं। वे पिछड़े इलाकों से आते हैं। वे पैसे लेते हैं और पैसे खाते हैं और फिर इस्तीफा देते हैं। यह एक रैकेट है। ये मजदूर ही इस बंधुआ मजदूर की चीज का फायदा उठाते हैं।"

कोर्ट ने हालांकि कहा कि सरकार ने कई पहलुओं का हवाला देते हुए विस्तृत जवाब दाखिल किया है। पीठ ने ये भी कहा, "कानून के तहत यदि कोई आवश्यक होगा तो राज्य उपचारात्मक कदम उठाएगा ।"
 
क्या यह फैसला गरीब से न्याय की उम्मीद को ही खत्म नहीं कर देगा?

देशभर में हजारों ऐसे मामले हैं जहां पर मजदूरों को नियोक्ता द्वारा काम की एवज में उचित दाम नहीं दिया जाता है। बंधुआ मजदूरी की प्रथा बहुत सदियों पुरानी है। प्राचीन काल में जमीदारों के घर एवं खेत खलिहानों से शुरू हुई बंधुआ मजदूरी की प्रथा गुलामी का एक प्रकार है जो आजादी के 75 वर्ष बाद भी समाज में व्याप्त है।

नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ बॉन्डेड लेबर ने अपने बयान मे कहा कि बंधुआ मजदूरी के खात्मे हेतु 1976 में बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम भारत में पारित किया गया। इसके पश्चात सुप्रीम कोर्ट ने बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत सरकार एवं पीयूडीआर बनाम भारत सरकार के मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया जिसमें नाम मात्र की मजदूरी अर्थात न्यूनतम मजदूरी की दर से कम रेट पर काम करने वाले मजदूर को बंधुआ मजदूर माना गया। यह फैसला जस्टिस पीएन भगवती ने 1982 में दिया। आज उसी फैसले के ऊपर सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश हेमंत गुप्ता ने इसे असंवैधानिक, महिला बंधुआ मजदूर विरोधी फैसला देकर गरीब से न्याय की उम्मीद को ही खत्म करने की पहल की है।

मानवाधिकार कार्यकर्ता ने जताया कड़ा विरोध, कहा- चीफ जस्टिस एवं यूएन को लिखेंगे पत्र

मानवाधिकार कार्यकर्ता निर्मल गोराना ने बताया कि इस मामले में न केवल बंधुआ मजदूरी का बल्कि महिला के साथ लैंगिक अपराध एवं मानव तस्करी का मामला भी जुड़ा हुआ है साथ ही स्टेट बंधुआ मजदूरों को मुक्ति प्रमाण पत्र जारी करके बंधुआ होने का प्रमाण दे चुका है। न ही कोर्ट के पास ऐसा कोई प्रमाण है जिससे पैसा बनाने के गिरोह की बात सत्यापित हो।

वर्ष 2016 में बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास हेतु योजना बनाई गई जिसमें करोड़ों रुपए का अनुदान निहित हैं, फिर देश में बंधुआ न होने की बात पर संदेह नहीं किया जा सकता है। जबकि जस्टिस हेमंत गुप्ता ने बंधुआ मजदूरों के अधिकार पर हमला बोला है। ये फैसला सामाजिक न्याय का अंत करेगा, वो भी ऐसे समय में देश में गुलामी के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। जस्टिस हेमंत गुप्ता के इस फैसले का कड़ा विरोध जताते हुए नैशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ बॉन्डेड लेबर के कन्वेनर निर्मल गोराना अब चीफ जस्टिस ऑफ इण्डिया एवं यूनाइटेड नेशन को यह फैसला वापस लेने हेतू पत्र लिखेंगे।

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