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मोहम्मद ज़ुबैर का हिरासत से ज़मानत तक का सफ़र

जुबैर के विपक्षी वकीलों की ये दलीलें थीं कि उन्हें ट्वीट करने से रोका जाए, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उनके ट्वीट करने पर रोक लगाने से इंकार कर दिया।
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ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर बुधवार को नई दिल्ली में तिहाड़ से रिहा हुए। (एएनआई फोटो)

पत्रकारों की आवाज़ दबाना और उनकी क़लम में ख़ुद की स्याही भर देना जैसे भारतीय जनता पार्टी की पहचान बन गया है। इस तानाशाह रवैये को दोहराते हुए भाजपा ने फैक्ट चेकर और ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक मोहम्मद जुबैर को भी कई दिनों तक जेल में रखा, लेकिन आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कई शर्तों के साथ रिहा कर दिया।

आपको बता दें कि मोहम्मद जुबैर तिहाड़ जेल में थे, उन्हें रिहा करने के लिए विपक्षी वकीलों की ये दलीलें थी कि उन्हें ट्वीट करने से रोका जाए, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उनके ट्वीट करने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

दरअसल जुबैर के ट्वीट करने पर रोक लगाने की मांग यूपी सरकार की ओर से पेश हुईं एएजी गरिमा प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के वक्त की थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक पत्रकार को लिखने से कैसे रोका जा सकता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि "ये कुछ ऐसा है कि एक वकील को कहा जाए कि वह बहस न करे। हम एक पत्रकार को ये कैसे कह सकते हैं कि वह लिखे नहीं और एक शब्द न कहें।"

जिसके बाद गरिमा प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट की वेकेशन ब्रांच का हवाला दिया और कहा कि 8 जुलाई को सीतापुर मामले में अंतरिम जमानत देते हुए ट्वीट न करने की शर्त रखी थी। जिस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर ज़ुबैर कोई आपत्तिजनक ट्वीट करते हैं तो वे उसके लिए जवाबदेह होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि आवाज़ उठाने के लिए किसी के खिलाफ अग्रिम कार्रवाई कैसे की जा सकती है? बता दें कि मोहम्मद जुबैर को दिल्ली पुलिस ने ट्वीट के जरिए धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में 20 जून को गिरफ्तार किया था। शीर्ष अदालत ने ज़ुबैर को जमानत देते हुए कहा था कि उन्हें आजादी से वंचित रखने का कोई औचित्य उसे नजर नहीं आता।

गौरतलब है कि धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में जुबेर के खिलाफ उत्तर प्रदेश में कई शिकायतें दर्ज हैं। इनमें से दो हाथरस में जबकि सीतापुर, लखीमपुर खीरी, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद और चंदौली में एक-एक एफआईआर दर्ज है।

जुबैर के लिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद जुबैर को अंतरिम जमानत देते वक्त कहा था कि गिरफ्तारी की शक्ति का इस्तेमाल बहुत ही संयम के साथ किया जाना चाहिए। मोहम्मद जुबेर को उसकी आजादी से वंचित रखने का कोई औचित्य उसे नजर नहीं आता। इसके अलावा उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा गठित विशेष जांच दल यानी एसआईटी को खत्म करने का भी आदेश दिया। सिर्फ इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर के ट्वीट करने पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह तो ऐसा होगा किसी वकील से कहा जाए कि वह बहस न करें।

सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर की रिहाई के लिए 20 हज़ार रुपये का बांड तय किया है, जो उन्हें देना होगा। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर से कहा है कि वो उनके खिलाफ दर्ज किसी भी तरह की एफआईआर को रद्द करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख कर सकते हैं।

जुबैर के वकील ने क्या-क्या कहा…

मोहम्मद जुबैर की ओर से वृंदा ग्रोवर जिरह कर रही थीं , ग्रोवर ने सुदर्शन टीवी की ओर से दर्ज कराए गए मामले का ज़िक्र किया था, बतौर फ़ैक्ट चेकर उन्होंने सुदर्शन टीवी की एक ग्राफ़िक्स में ग़लत मस्जिद की तस्वीर दिखाने के मामले को उठाया था। बतौर फ़ैक्ट चेकर गज़ा बम धमाके में उन्होंने असल मस्जिद की तस्वीरें पेश की।

इस मामले को देखने से साफ़ है कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया, आपको बता दें कि सुदर्शन चैनल ने उन पर 153ए, 295ए के तहत केस दर्ज कराया था 

ज़ुबैर पर कब, कहां और किन धाराओं में मामले दर्ज़

दिल्ली पुलिस ने मोहम्मद ज़ुबैर के खिलाफ 2018 में किए गए एक ट्वीट के आधार पर एफआईआर दर्ज की थी, इस एफआईआर में पहले आईपीसी की धाराएं 153ए और 295 लगाई गई थीं। आपराधिक साजिश 120-बी, सबूत मिटाना 201 और फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट यानी एफसीआरए की धारा 35 भी जोड़ी गई, दिल्ली पुलिस ने उन्हें 27 जून को गिरफ्तार किया था। दिल्ली पुलिस ने अगस्त 2020 में मोहम्मद ज़ुबैर पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए बने क़ानून यानी पॉक्सो एक्ट के तहत भी एक केस दर्ज किया था, ये केस नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स की NCPCR  प्रमुख प्रियंका कानूनगो की शिकायत पर दर्ज किया गया था।

दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए सितंबर 2020 में मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाने पर रोक लगा दी थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने फरवरी में पुलिस से अब तक हुई जांच पर स्टेटस रिपोर्ट दायर करने को कहा। इसके बाद मई में दिल्ली पुलिस ने अदालत को बताया था कि मोहम्मद ज़ुबैर का ट्वीट अपराध की श्रेणी में नहीं आता। उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में एक जून को मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ 'हिंदू शेर सेना' के जिलाध्यक्ष भगवान शरण की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया, शिकायतकर्ता ने कहा है कि "हिंदू शेर सेना के राष्ट्रीय संरक्षक पूजनीय प्रबंधक महंत बजरंग मुनि जी को हेट मॉन्गर्स जैसे अपशब्द से संबोधित किया गया। उसी ट्वीट में मोहम्मद जुबैर ने यति नरसिंहानंद सरस्वती और स्वामी आनंद स्वरूप को भी अपमानित किया।

मोहम्मद ज़ुबैर के ख़िलाफ़ लखीमपुर खीरी में 18 सितंबर 2021 को सुदर्शन टीवी न्यूज़ चैनल के स्थानीय पत्रकार आशीष कटियार ने रिपोर्ट दर्ज कराई, सुदर्शन टीवी के पत्रकार ने कहा कि मोहम्मद ज़ुबैर "देश विरोधी ट्वीट करने में माहिर हैं जिस पर कार्यवाही किया जाना न्यायहित में आवश्यक है।"

यह भी शिकायत की गई है कि ज़ुबैर ने "पूरे विश्व के मुसलमानों से अपील की है कि एकजुट होकर अराजकता फैलाएं और देश का माहौल ख़राब करते हुए न्यूज़ चैनल के विरोध में सांप्रदायिकता फैले ताकि देश के अंदर गृह युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो सके।"

मुजफ्फरनगर के थाना चरथावल में 24 जुलाई 2021 को अंकुर राणा ने शिकायत की थी कि "ज़ुबैर ने एक फोन वार्ता के दौरान उन्हें जान से मारने की धमकी दी।" ये मामला भी सुदर्शन न्यूज़ की उस ख़बर से जुड़ा है जिसे आपत्तिजनक बताते हुए मोहम्मद ज़ुबैर ने कार्रवाई की मांग की थी।

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने जुबैर को पूरे सम्मान के साथ ज़मानत दे दी है, जिसके बाद सवाल ये भी उठता है इतने दिनों तक उनके जेल में रहने के कारण जो परेशानियां उनके संस्थान, उनके संस्थान में काम करने वाले कर्मचारियों को आई, उसका ज़िम्मेदार कौन है, और उसकी भरपाई कौन करेगा?

ये भी देखें: पत्रकार मो ज़ुबैर के मामले में अब तक क्या क्या हुआ?

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