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तमिलनाडु चुनाव: बीजेपी के सामने स्याह तस्वीर, उल्टे असर के डर से राष्ट्रीय नेताओं का ज़िक्र नहीं कर रहे प्रत्याशी

मतदाताओं के एक प्रतिबद्ध समूह की उपस्थिति न होने के चलते बीजेपी प्रत्याशी एआईएडीएमके के मतों के हस्तांतरण पर निर्भर हैं। लेकिन दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच ज़मीन पर जुड़ाव नहीं बन पा रहा है, यह साफ़ लक्षित भी हो रहा है, जिससे चुनावों में बीजेपी के अच्छे प्रदर्शन की संभावना कमज़ोर हो रही है।
तमिलनाडु चुनाव: बीजेपी के सामने स्याह तस्वीर, उल्टे असर के डर से राष्ट्रीय नेताओं का ज़िक्र नहीं कर रहे प्रत्याशी

तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी, एआईएडीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा है और 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। लेकिन राज्य में बीजेपी विरोधी भावनाओं के चलते पार्टी की एक भी सीट जीत पाने की संभावना बेहद कमज़ोर है।

मतदाताओं के एक प्रतिबद्ध समूह की उपस्थिति ना होने के चलते बीजेपी प्रत्याशी एआईएडीएमके के मतों के हस्तांतरण पर निर्भर हैं। लेकिन दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच ज़मीन पर जुड़ाव नहीं बन पा रहा है, यह साफ़ लक्षित भी हो रहा है, जिससे चुनावों में बीजेपी के अच्छे प्रदर्शन की संभावना कमज़ोर हो रही है।

बीजेपी ने कई अहम चेहरों को प्रत्याशी बनाया है। इसके अलावा दूसरे दलों से शामिल हुए चार लोगों को भी टिकट दिया है। AIADMK और बीजेपी चुनाव प्रचार के दौरान अपने राष्ट्रीय नेताओं के बारे में जिक्र करने से बच रही हैं, उन्हें डर है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियों के चलते उनके चुनाव अभियान पर बुरा असर पड़ सकता है।

ऊपर से बीजेपी के प्रत्याशियों की सूची अंग्रेजी और हिंदी में प्रकाशित की गई। तमिल को नज़रंदाज करने के कदम की खूब आलोचना भी हुई। राज्य के लोगों के लिए यह एक संवेदनशील मुद्दा है।

कमज़ोर रहा है इतिहास

बीजेपी के लिए तमिलनाडु में खुद को खड़ा कर पाना अब तक मुश्किल ही रहा है। पिछला विधानसभा चुनाव इसकी पुष्टि भी करता है। अब तक सिर्फ़ दो बार के विधानसभा चुनावों में ही बीजेपी प्रत्याशी जीत दर्ज कर पाए हैं। पहली बार बीजेपी अपने दम पर 1996 में एक प्रत्याशी को जीत दर्ज कराने में कामयाब रही थी। दूसरी बार 2001 में डीएमके के साथ गठबंधन कर बीजेपी अपने 4 प्रत्याशियों को जीत दिलाने में कामयाब हो गई थी। 

1991 से लेकर अब तक पार्टी 880 विधानसभा सीटों पर अपनी किस्मत आजमा चुकी है, इनमें से 831 पर बीजेपी प्रत्याशियों की ज़मानत जब़्त हुई है। सिर्फ़ 2001 में ही ऐसा हुआ था, जब बीजेपी के सभी प्रत्याशी अपनी ज़मानत बचाने में कामयाब रहे थे। उस चुनाव में बीजेपी ने डीएमके के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। 

फिर बीजेपी की मत हिस्सेदारी भी बहुत खास दिखाई नहीं पड़ती। 1991 से अब तक लड़े चुनावों में पार्टी की हिस्सेदारी 3.2 फ़ीसदी से नीचे ही रही है। 2001 में जिन सीटों पर बीजेपी ने चुनाव लड़ा, उनमें पार्टी के मतों की हिस्सेदारी बढ़कर 38 फ़ीसदी तक हो गई, लेकिन ऐसा सिर्फ़ गठबंधन में रहकर चुनाव लड़ने की वज़ह से हुआ था। 

फ्रंटलाइन के संपादक आर विजयशंकर कहते हैं, "विचारधारा के स्तर पर बीजेपी पूरी तरह से कंगाल है, उनकी नीतियां तमिलनाडु के मतदाताओं को नहीं लुभातीं। संघ परिवार से जुड़े संगठन पूजास्थलों के ज़रिए संगठन को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं, पर निकट भविष्य में इसका बहुत लाभ मिलने की गुंजाइश कम ही है।"

बीजेपी की तरफ़ से चुनाव में खड़े लोग कौन हैं?

बीजेपी ने जिन 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उनमें दक्षिण के जिलों में 8 और पश्चिमी जिलों की 5 सीटों पर खड़े किए गए प्रत्याशी शामिल हैं। इस सूची से पता चलता है कि पार्टी ने चुनाव में जातिगत समीकरण को संतुलित करने की कोशिश की है।

इसके अलावा बीजेपी ने कुछ ऐसी सीटों पर भी प्रत्याशी खड़े किए हैं, जहां धार्मिक समीकरण ज़्यादा मायने रखते हैं। उदाहरण के लिए रामनाथपुरम, कोयंबटूर (दक्षिण), कोलाशेल, थुरुवन्नामलाई, विरुधुनगर, विल्वांकोड औ नागरकोइल में अल्पसंख्यकों की बड़ी संख्या है, बीजेपी इसी का फायदा उठाना चाहती है। लेकिन अब तक ध्रुवीकरण कराने की बीजेपी की तमाम कोशिशों का फायदा नहीं हुआ है।

प्रदेशाध्यक्ष एल मुरुगन धारापुरम (आरक्षित) सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष वनाथी श्रीनिवासन कोयंबटूर (दक्षिण), पूर्व राष्ट्रीय सचिव एच राजा कराईकुडी और पूर्व IPS अधिकारी के अन्नामलाई अरावाकुरिची से चुनाव लड़ने वाले अहम चेहरों में शामिल हैं। कोयंबटूर (दक्षिण) विधानसभा हाल में चर्चा में रही हैं, क्योंकि यहां से मक्कल नीथि मैयम (एमएनएम) से अभिनेता कमल हासन ने पर्चा भरा है।

इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोग भी चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी ने तय किया है कि दल बदलकर उनके पाले में आए लोगों को भी टिकट दिया जाए। मौजूदा विधायक पी सरवानन के बीजेपी में शामिल होने के कुछ ही घंटों के भीतर उन्हें टिकट दे दिया गया। कांग्रेस की पूर्व नेता खुशबू सुंदर, जो पहले डीएमके के साथ थीं, उन्हें भी टिकट दिया गया है।

एआईएडीएमके के कोटे से मंत्री रहे नैनार नागेंद्रन भी थिरुनेलवेली से मैदान में हैं। बीजेपी से प्रत्याशी बनाए जाने की घोषणा से दो दिन पहले ही उन्होंने अपना नामांकन भर दिया था। VAT कालिवरथन, पट्टाली मक्कल काट्ची (पीएमके) से विधायक रह चुके हैं, उन्हें भी अब बीजेपी ने टिकट दिया है। 

बीजेपी-एआईएडीएमके मोदी-शाह को प्रचार में आगे रखना नहीं चाहतीं?

बीजेपी और एआईएडीएमके की राजनीतिक विचारधारा में भयावह विरोधाभास है, लेकिन इसके अलावा दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं का मैदान में एकजुट होना अभी बाकी है। एआईएडीएमके के कार्यकर्ताओं में ज़्यादा असंतोष है, उन्हें डर है कि बीजेपी उनकी पार्टी को धोखा देगी। इसके चलते एक पार्टी के मतदाताओं का दूसरी साथी पार्टी के पक्ष में हस्तांतरण पर चिंता बनी हुई है।

अनवर राजा एआईएडीएमके से सांसद रह चुके हैं। उन्होंने एक टीवी कार्यक्रम में टिप्पणी करते हुए कहा था कि जयललिता के निधन के बाद पार्टी सत्ता में रहने में कामयाब रही, इसकी वज़ह पार्टी का त्याग है। "नहीं तो तमिलनाडु में भी वही देखने को मिलता, जो पुदुचेरी और दूसरे उत्तर भारतीय राज्यों में देखने को मिला, जहां बीजेपी ने चुनी हुई सरकारों को गिरा दिया।"

यहां एक और दिलचस्प बात यह देखने को मिल रही है कि बीजेपी और एआईएडीएमके के प्रत्याशी अपने चुनाव अभियान में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नाम का इस्तेमाल करने से बच रहे हैं। दीवारों पर बनने वाले राजनीतिक चित्रों से भी यह दो नेता गायब हैं, इससे बीजेपी के खिलाफ़ मौजूद भारी एंटी-इंकमबेंसी के बारे में पता चलता है।

बीजेपी के प्रत्याशी तक ऐसा करने पर मजबूर हो रहे हैं। विवादित नेता और बीजेपी के कराईकुडी से प्रत्याशी एच राजा ने अपनी फ़ेसबुक प्रोफाइल में खुद को "AIADMK गठबंधन का प्रत्याशी बताया है।"

एक जगह बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में दीवार पर बनाए चित्र में नरेंद्र मोदी के नाम का जिक्र कर दिया गया था, जिसे बाद में मतदाताओं की विपरीत प्रतिक्रिया के डर से साफ़ कर दिया गया। 

आजीविका का मुद्दा सबसे आगे आया

केंद्र सरकार की किसी भी कामयाबी को मतदाताओं के सामने पेश ना कर पाना बीजेपी के चुनावी अभियान के लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है। बीजेपी के लोग और स्टार कैंपेनर, हिंदुओं की डीएमके से रक्षा को अपने भाषण का आधार बना रहे हैं।

इस बीच आजीविका का मुद्दा, ख़ासकर जरूरी चीजों की बढ़ती कीमतों का मु्द्दा मैदान पर असर डाल रहा है। फिर बीजेपी के खिलाफ़ चुनाव लड़ रही पार्टियों ने हिंदी को थोपे जाने, NEET लागू करवाने, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, CAA, NRC, NPR और 'एक देश एक राशन नीति' जैसे मुद्दों को बीजेपी के खिलाफ़ पेश किया है, जिन्हें मतदाता सकारात्मक ढंग से ले रहे हैं।

आखिर में, केंद्र में अपने दूसरे कार्यकाल में मौजूद पार्टी के बारे में टिप्पणी करते हुए विजयशंकर कहते हैं, "बीजेपी की एक भी सीट जीत पाने की संभावना नहीं है। यह तमिलनाडु की मैदानी स्थिति है।"

(यह ग्राफ़ प्रकाश आर ने बनाए हैं।)

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

TN Elections: BJP Faces Bleak Prospects, Candidates Avoid Mention of National Leaders Fearing Backlash

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