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तब्लीग़ी जमात के सदस्यों को ‘हिरासत’ जैसा लगता है क्वारंटाइन

उन लोगों में से कुछ की जांच नेगेटिव आई है या फिर वे ठीक हो गए हैं और यहां तक कि उन्होंने प्लाज़्मा भी दान कर दिया है, लेकिन उनकी शिकायत है कि उन्हें 30 दिनों के बाद भी घर नहीं भेजा जा रहा है। 
tablighi jamat

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी के विभिन्न क्वारंटाईन केंद्रों में 30 दिन पूरे करने के बावजूद तब्लीग़ी जमात के प्रचारकों को छुट्टी नहीं दी जा रही है। उनमें जांच किए गए लोगों में अधिकांश की रिपोर्ट नेगेटिव आई है, और उन्हें  कोरोना वायरस के लिए 14 दिनों के ज़रूरी आइसोलेशन की अवधि से दोगुना वक़्त यानी 30 दिन से अधिक समय तक रखा जा रहा है जो एक गैर-कानूनी हिरासत से कम नहीं है, ऐसा उनमें से कुछ का कहना है, उन्होंने यह भी सवाल दागा कि क्या सरकार उन्हें कोविड-19 के प्रति उदासीनता और इलाज़ के लिए कोई  दृष्टि न होने की सज़ा दे रही है।

न्यूज़क्लिक ने इस मामले में के कुछ लोगों से बात की तो उन्हौने प्रशासन पर आरोप लगाया कि उनकी "उचित" देखभाल नहीं की जा रही है और रवैया काफी ‘लापरवाह’ है, क्योंकि उन्हे समय पर भोजन, पानी और दवाइयाँ उपलब्ध कराए बिना जैसे "कैद" में रखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि एक तरफ  सरकार बड़ी "खुशी से" दुसर्रे रोगियों के इलाज़ के लिए उनका प्लाज्मा ले रही है, दूसरी तरफ उन्हे किन्ही ‘कट्टर अपराधियों" की तरह बंद रखा जा रहा है।

सैयद शाहवेज़, जो मध्य प्रदेश के भोपाल से ताल्लुक रखते हैं, उन्हें 30 मार्च को निजामुद्दीन मरकज़ से 450 लोगों के साथ, उत्तर भारत के सबसे बड़े क्वारंटाईन सेंटर नरेला में लाया गया था। उन्हे और उनके 250 तब्लीग़ी साथियों को जांच में नेगेटिव पाया गया है। फिर भी, उन्हे सेंटर में बंद रखा गया हैं जहां 625 दिल्ली विकास प्राधिकरण के फ्लैटों में 1,170 लोगों को समायोजित किया गया है।

नरेला सेंटर में लाए गए 450 तबलीगियों में से, 120 को अस्पताल में भर्ती कर दिया गया और जांच में पाए गए अन्य पॉज़िटिव केसों में 65 लोगों को पास की ही एक इमारत में अलग रखा गया है। ये लोग की गई जांच में दो बार नेगेटिव आए हैं और इन लोगों ने प्लाज्मा भी दान दिया है, लेकिन ये सब अभी सेंटर में ही हैं। बाकी 265 जमाती, जो पहले से ही नेगेटिव थे, अभी भी क्वारंटाईन सेंटर में हैं। उनमें से अधिकांश मध्य प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र से हैं।

शाहवेज ने न्यूज़क्लिक को बताया कि जब उन्होंने इस मामले को ज़िला अधिकारियों के सामने उठाया, तो उनसे वादा किया गया था कि उनकी रिहाई पर फैसला 3 मई (यानी तालाबंदी के बाद) के बाद लिया जाएगा। उन्होंने कहा, “हमें बिना किसी वजह के अमानवीय परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है। हम यहां 30 दिन पूरे कर चुके हैं, जो कोविड-19 संदिग्धों के आइसोलेशन में रहने की आवश्यक अवधि से दोगुना है। हम में से कई लोग जो अब संक्रमण से बाहर हैं और जांच में दो बार नेगेटिव आ चुके हैं। हमने दूसरों के इलाज के लिए प्लाज्मा भी दान किया है। इतने लंबे समय तक क्वारंटाईन कोई हिरासत से कम नहीं है।” 

रमज़ान के महीने में भी उन्हें जो भोजन परोसा जा रहा है उसके बारे में शिकायत करते हुए कहा कि जब मुसलमान उपवास करते हैं तो उन्हें स्वस्थ भोजन की आवश्यकता होती है, इस पर उन्होंने कहा कि सभी लोगों को मिलने वाला भोजन कम गुणवत्ता वाला तो है ही साथ ही उसकी मात्रा भी अपर्याप्त है।

“हमें बाहर से भोजन हासिल करने की अनुमति देने के बाद स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है। कुछ संगठन अब हमें ’इफ्तार’ के लिए भोजन, दूध और फल (शाम का भोजन जिसके साथ मुसलमान सूर्यास्त पर अपना दैनिक उपवास समाप्त करते हैं), रात का खाना और सेहरी ’(रमज़ान में सुबह से पहले खाया जाने वाला भोजन) की आपूर्ति कर रहे हैं।” उन्होंने शिकायत की कि यहाँ स्वच्छता का भी कोई नियमित रखरखाव नहीं है, चिकित्सा कर्मचारियों और उपकरणों की अनुपलब्धता है और क्वारंटाईन रोगियों के लिए सुविधाओं की सामान्य कमी है।

तमिलनाडु के निवासी नासर बाशा, जो वज़ीराबाद पुलिस ट्रेनिंग कैंप में क्वारंटाईन सेंटर में हैं, ने कहा कि वे भी कुछ इसी तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 150 जामातियों के साथ, उन्होंने क्वारंटाईन के 29 दिन पूरे कर लिए हैं, लेकिन उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा हैं। 150 लोगों में, जिनमें से अधिकांश विदेशी नागरिक थे, 88 कोविड-19 रोग के लिए पॉज़िटिव पाए गए थे, जबकि बाकी 62 नेगेटिव थे। यहां तक कि जो पहले पॉज़िटिव थे, अब वे भी ठीक हो गए हैं और जांच में दो बार नेगेटिव पाए गए है।

उन्होंने कहा, “हम बहुत संपन्न तबके से नहीं हैं। हमारे परिवारों के पास जितनी राशि थी, उसे खर्च कर दिया है। उन्हें अब मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। उन्हौने कहा कि, हमने बार-बार अधिकारियों से हमारी यात्रा की व्यवस्था करने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने बताया कि उनके पास इस बाबत कोई आदेश नहीं हैं। हमारे साथ अपराधियों जैसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है? हमारे परिवारों को क्यों परेशान किया जा रहा है?”

बाशा ने कहा कि उन्हें बाहर खाना हासिल करने की अनुमति के बाद भोजन और अन्य आवश्यक चीजें प्राप्त हो रही हैं। उन्होंने कहा कि, "जमायत उलमा-ए-हिंद भोजन को और अन्य जरूरी सामान मुहैया कराने की अनुमति मिलने के बाद हालात सुधर गए हैं।"

अन्य क्वारंटाईन सेंटर के निवासियों को भी इसी तरह की शिकायतें हैं। भोजन के अलावा, यहां पीने का पानी भी आसानी से उपलब्ध नहीं है और रोगियों को पानी की सीमित मात्रा में पूरा दिन बिताना पड़ता है, जिससे इस गर्म मौसम में शरीर में पानी की कमी होने की संभावना बढ़ जाती है। कुछ ने कहा कि, वहां तैनात गार्डों को बार-बार अनुरोध करने के बावजूद, मरीजों को पानी की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई है। 

उन्होंने शिकायत की, उनमें से कई ने कहा कि उन्हे भी नहीं दिए गए हैं, बिस्तर के नाम पर केवल एक पतला गद्दा दिया गया है। यह देखते हुए कि कुछ व्यक्ति वृद्ध और कमजोर हैं, खराब बिस्तर की सुविधा उनकी स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा सकती है।

सीलमपुर के रहने वाले मोहम्मद शोएब ने कहा, “बदरपुर के आवासों क्वारंटाईन सेंटर में ज्यादातर वरिष्ठ नागरिक हैं जिन्हें मार्काज़ से यहाँ लाया गया था। हम 160 व्यक्ति थे, जिनमें से 26 की जांच पॉज़िटिव आई थी। वे सभी जो पहले दिन से नेगेटिव थे, उन्होंने आइसोलेशन की अनिवार्य अवधि का दोगुना समय पूरा कर लिया है। यहां तक कि जो लोग कोविड-19 में पॉजिटिव थे, वे अब ठीक हो गए हैं और अपना प्लाज्मा दान कर रहे हैं। अब हमें बंधक बनाए रखने का कोई मतलब नहीं है।”

शोएब ने शुरू में कहा था, कि अधिकारी, डॉक्टर, पैरामेडिक्स और अन्य कर्मचारी जामातियों के प्रति बेहद शत्रुतापूर्ण और अनैतिक व्यवहार कर आढ़े हैं, जैसे कि वे ही इस बीमारी के प्रकोप के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके मोबाइल फोन छीन लिए गए, और विरोध करने के बाद ही वापस नहीं लोटाए हैं।

उन्हौने कहा कि अब “चीजें बदल गई हैं अब हम खुद भोजन और सफाई की जिम्मेदारी ले रहे हैं। कर्मचारी अब खुश हैं क्योंकि हम उनका बोझ साझा करते हैं। हमारे सामुदायिक संगठन हमें भोजन प्रदान कर रहे हैं। और, इसलिए, अब हम सरकार पर निर्भर नहीं हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब हमारे परिवार हमारे लिए इंतजार कर रहे हैं तो हमें यहां क्यों रखा जा रहा है?”

संयोग से, सुल्तानपुरी क्वारंटाईन सेंटर में कथित तौर पर भोजन के साथ-साथ चिकित्सा पर ध्यान नहीं दिए जाने के कारण दो जमातीयों की मौत हो गई है।

मोहम्मद मुस्तफा, जिनकी उम्र 60 थी, उनकी 22 अप्रैल को सुल्तानपुरी सेंटर में मृत्यु हो गई थी, कथित तौर पर उन्हौने पहले से ग्रस्त बीमारी के कारण दम तोड़ दिया, जो कथित तौर पर क्वारंटाईन सेंटर में आने से बढ़ गई थी।

वह मधुमेह रोगी था और बीमार पड़ने पर उसकी सहायता करने के लिए कोई उचित चिकित्सा सुविधा न थी, इसलिए कथित तौर पर उसकी मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु के चार दिन पहले, राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल से उन्हें इस क्वारंटाईन सेंटर में स्थानांतरित कर दिया गया था, और विशेष रूप से, और यह सब कोरोनोवायरस की जांच के अंतिम परिणाम के आने से पहले हुआ।

दस दिन पहले, एक अन्य डायबिटिक, हाजी रिजवान की मौत भी कथित तौर पर शिविरों की देखरेख करने वाले अधिकारियों और डॉक्टरों की "बेहूदा" और "असहयोगी" प्रकृति के कारण हुई, जो "भोजन की अनियमित आपूर्ति" का सामना कर रहे थे।

दोनों मृतक तमिलनाडु से थे और फरवरी में दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में धार्मिक मण्डली में शामिल हुए थे, जो बाद में एक संक्रमण स्थल के रूप में उभरा था।

मंगोलपुरी के रहने वाले मोहम्मद इब्राहिम, जिनको उसी सेंटर में रखा गया है, ने आरोप लगाया कि मुस्तफा को “डायबिटीज थी और उनकी हालत काफी खराब हो गई थी। हम डॉक्टरों और अन्य कर्मचारियों को बुलाते रहे लेकिन किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया। उसे अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस मंगाने के हमारे बार-बार किए गए अनुरोध व्यर्थ गए। एम्बुलेंस केवल उनके शव को लेने आई।”

इब्राहिम ने सवाल किया कि 30 दिन बाद भी उन्हें क्यों क्वारंटाईन में रखा जा रहा है। जब उनसे पूंछा गया कि अगर सरकार उन्हें जाने भी देती है, तो वे इस तालाबन्दी में कहाँ जाएंगे, तो उन्होंने कहा: मेरा घर सुल्तानपुरी सेंटर के करीब है, जहां मैं ठहरा हुआ हूं। मेरी तरह, दिल्ली से  20 से अधिक तबलीगि है, जिन्हें घर जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है।”

मंडोली सेंटर की स्थिति, जिसे जेल में स्थापित किया गया है, अधिक दयनीय है। यह स्पष्ट है कि इन केन्द्रों को चलाने के लिए केंद्र स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा हैं।

ज़िला मजिस्ट्रेट, जिनके पास उन क्षेत्रों का अधिकार है, जहां ये केंद्र स्थापित किए गए हैं, वे टिप्पणियों के लिए उपलब्ध नहीं थे, क्योंकि उनमें से किसी ने भी न्यूज़क्लिक से बार-बार कॉल करने पर भी बात नहीं की। 

लेकिन दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस समस्या को स्वीकार किया है।

उन्होंने कहा, “समस्याएं हैं और हम इससे इनकार नहीं करते हैं। लेकिन इन लोगों को क्वारंटाईन सेंटर में रखने के अलावा कोई चारा नहीं था क्योंकि हमें वायरस के प्रसार को रोकना था। अब, जब वे ठीक हो रहे हैं और पहले ही आइसोलेशन की अवधि पूरी कर चुके हैं, तो सरकार उन्हें रिहा करने पर विचार कर रही है, लेकिन लॉकडाउन के कारण उनका परिवहन एक बड़ा मुद्दा है। 3 मई के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जा सकता है। हमें केंद्र से दिशानिर्देशों का इंतजार है।”

दिल्ली के एक वकील, एडवोकेट सादुज़मन ने भी दिल्ली सरकार को लिखा है, और इन क्वारंटाईन केंद्रों की खराब स्थिति का वर्णन किया है। पत्र उनके परिवार के सदस्यों के अनुभव पर आधारित है जो विभिन्न केंद्रों में क्वारंटाईन में हैं।

दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने उनके पत्र को कथित तौर पर ज़िला अधिकारियों को भेज दिया है, जिन्हें उठाई गई चिंताओं को दूर करने के लिए कहा गया है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।

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