मर्केल के अमेरिकी दौरे से रूस, भारत के लिए क्या है ख़ास

नाटो के पहले महासचिव और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान विंस्टन चर्चिल के मुख्य सैन्य सहायक, लार्ड हेस्टिंग्स लिओनेल के द्वारा कही गई थी एक मशहूर पंक्ति के साथ एक चेतावनी अवश्य जोड़ी जानी चाहिए कि गठबंधन का मकसद “सोवियत संघ को बाहर रखने, अमेरिकियों को अंदर रखने और जर्मन को नीचे बनाये रखने” की थी।
गठबंधन अब चीर-फाड़ वाली मेज पर जर्मनी को “नीचे” बनाये रखने के लिए पर्याप्त नहीं है। विश्व राजनीति में बहु-ध्रुवीयता वाले पहलू ने फिर से एकीकृत जर्मनी जैसी महाशक्ति के लिए शक्तिशाली राजनीति की मुंडेर से अपना सिर उठाने के लिए जगह मुहैय्या करा दिया है। जर्मनी ने एक उभरती विश्व शक्ति के रूप में नाटो को पीछे छोड़ दिया है।
ऐसे में स्पष्ट रूप से, नाटो के पूर्व की ओर विस्तार के प्रति जर्मनी के उत्साह में शिथिलता ने वाशिंगटन के लिए यूक्रेन और जार्जिया को गठबंधन के भीतर पूर्ण सदस्य के तौर पर शामिल कराने के एजेंडे को अवरुद्ध कर डाला है। बर्लिन रूस के साथ यूरोप के रिश्तों को जटिल नहीं बनाना चाहता। यही वजह है कि 2008 के बुखारेस्ट शिखर सम्मेलन में उनकी सदस्यता के बारे में औपचारिक फैसला ले लेने के बावजूद यूक्रेन और जार्जिया को हाल ही में ब्रसेल्स में हुए शिखर सम्मेलन में ‘पर्यवेक्षकों’ के तौर पर भी नहीं आमंत्रित किया गया था।
कुलमिलाकर, जर्मनी ने बाईडेन प्रशासन की गठबंधन को एशिया-प्रशांत में क्षेत्र में खींचने की कोशिश को भी कमोबेश कमजोर कर दिया है। मजे की बात यह है कि, पिछले सोमवार को अमेरिका और नाटो और जी7 शिखर सम्मेलनों के साथ यूरोपीय शिखर वार्ता के 3 हफ्ते के भीतर, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने फ़्रांसिसी राष्ट्रपति इम्मानुएल मैक्रॉन और जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल के साथ तीन-तरफा वीडियो वार्ता की, जिसमें उन्होंने आशा व्यक्त की कि वैश्विक चुनौतियों से बेहतर तरीके से निपटने के लिए चीन और यूरोप आपसी सहयोग को विस्तारित करेंगे।
पिछले 3 महीनों के भीतर यह तीसरी ऐसी ‘शिखर वार्ता’ रही है जो बीजिंग के इस विश्वास को पुष्ट करता है कि यूरोपीय देशों ने अब खुद को अमेरिकी रथ से नहीं बाँध रखा है, और चाहे भले ही मूल्यों एवं प्रणालियों के सन्दर्भ में अमेरिका और यूरोपीय संघ के देशों के बीच में कई समानताएं हो सकती हैं, किंतु उत्तरार्ध वाला सामरिक स्वायतता को कहीं अधिक तरजीह देने लगा है। अधिक पढ़ें
वास्तव में देखें तो, मर्केल और फ़्रांस के राष्ट्रपति इम्मानुएल मैक्रॉन के द्वारा और यूरोपीय संघ-रूस शिखर वार्ता आयोजित करने की हालिया कोशिशों ने भी वाशिंगटन में चिढ़ को पैदा किया होगा। अधिक पढ़ें
इसलिए, मर्केल की आगामी बृहस्पतिवार को होने वाली वाशिंगटन यात्रा को लेकर बड़ा सवाल यह उठता है कि अमेरिकी आधिपत्य में रखने के लिए जर्मनी को आत्म-बलिदान के लिए बाध्य करने की वाशिंगटन अब किस हद तक ताकत रखता है। यात्रा का मुख्य आकर्षण यह रहने वाला है कि यह वैश्विक मुद्दों पर जर्मनी के विचारों की विविधता और लचीलेपन पर प्रकाश डालने वाला साबित होने जा रहा है।
मर्केल की 15 जुलाई की व्हाईट हाउस की यात्रा बाईडेन के वाशिंगटन में राष्ट्रपति बनने के बाद से किसी विदेशी नेता की यह मात्र तीसरी बार मुलाक़ात के तौर पर चिन्हित होने जा रही है – और ऐसा करने वाली वे पहली यूरोपीय नेता हैं। शुक्रवार को व्हाईट हाउस की प्रवक्ता जेन प्साकी ने कहा कि बाईडेन नाटो मित्र देशों के बीच “गहरे एवं स्थायी” संबंधों की पुष्टि करने की उम्मीद करते हैं, और साथ ही असहमति के कुछ क्षेत्रों को भी हल करने के पक्ष में हैं।
नोर्ड स्ट्रीम 2 पर कोई सौदा?
प्साकी ने इसे “आधिकारिक कामकाजी यात्रा” बताया है, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच की साझेदारी को मजबूत बनाना और आपसी सहयोग को और मजबूती देने के लिए तरीकों की पहचान करना है, जबकि बर्लिन में एक अधिकारी ने इसे “जर्मन दृष्टिकोण से, एक कामकाजी यात्रा” बताया है।
धुलाई के लिए रखे कपड़ों की सूची काफी लंबी है – जिसमें बाईडेन के अंतहीन अफगान युद्ध, कोविड-19, व्यापारिक मुद्दों, नोर्ड स्ट्रीम 2 इत्यादि को समाप्त करने के फैसले शामिल हैं। व्याहारिक अर्थों में देखें तो, नोर्ड स्ट्रीम 2 आने वाले कई दशकों के लिए जर्मन-रुसी रिश्तों पर इसके व्यापक प्रभाव को देखते हुए एक भारी-भरकम मुद्दा होने जा रहा है, जिसमें यूरोप की उर्जा सुरक्षा, यूरोपीय संघ के साथ मास्को के हालिया तनाव और स्वंय अमेरिका के उत्तर-अटलांटिक नेतृत्वशाली भूमिका तक के लिए यह मुद्दा बेहद अहम है।
रविवार को, नोर्ड स्ट्रीम 2 एजी के प्रबंध निदेशक, जो इस पाइपलाइन प्रोजेक्ट का प्रबंधन देख रहे हैं, और इसके जर्मन मुख्य कार्यकारी मैथियास वार्निग ने हंदेल्सब्लाट समाचार पत्र को दिए एक साक्षात्कार में खुलासा किया है कि अभी तक 98% निर्माण कार्य पूरा हो चुका है और इसके अगस्त में पहले ही पूरा हो जाने की उम्मीद है।
वार्निग के मुताबिक, विभिन्न प्रमाणपत्रों को हासिल करने में और जारी परीक्षणों से गुजरने के लिए तीन महीने और लग जायेंगे। पाइपलाइन की पहली लाइन के संबंध में प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है, जो कि पहले ही पूरी हो चुकी है। उन्होंने बताया कि हमारा लक्ष्य “इस साल के अंत से पहले ही [परियोजना] को चालू करने का है।”
महत्वपूर्ण रूप से, वार्निग ने कहा कि वे आश्वस्त हैं कि रूस से यूक्रेन के जरिये आने वाली गैस 2024 के बाद भी जारी रहेगी। उन्होंने जोर देकर कहा “यूक्रेन के जरिये पारगमन अभी भी 2024 के बाद भी यूरोप में रुसी गैस परिवहन का हिस्सा रहने वाला है। मुझे इस बारे में तनिक भी संदेह नहीं है।” [महत्वपूर्ण रूप से, मर्केल ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की को अपनी अमेरिकी यात्रा के सन्दर्भ में आज बर्लिन में आमंत्रित किया है।]
मई में, बाईडेन प्रशासन ने स्विस-आधारित नोर्ड स्ट्रीम 2 एजी और इसके जर्मन सीईओ के खिलाफ लगाये गए प्रतिबंधों को माफ़ करने के लिए एक सूक्ष्म कदम उठाया था। इस छूट ने बर्लिन और वाशिंगटन को नोर्ड स्ट्रीम 2 पर अगस्त के मध्य तक एक समझौते पर पहुँचने के लिए तीन और महीनों का वक्त दे दिया है। आगे पढ़ें
पिछले महीने एक टेलीविजन साक्षात्कार में राष्ट्रपति पुतिन ने विश्वास व्यक्त किया जब उन्होंने कहा कि “पाइपलाइन के निर्माण कार्य को रोकने और प्रतिबंधों को थोपने की बात पहले ही निरर्थक साबित हो चुकी है। क्योंकि हमने इसे पहले ही पूरा कर लिया है, पहली शाखा बनकर तैयार है। ऐसा लगता है कि [अमेरिका ने] इन प्रतिबंधों को ठन्डे बस्ते में डाल दिया है।”
पाइपलाइन के साथ क्या करना है शायद अगली जर्मन सरकार के लिए पहला बड़ा सरदर्द साबित हो सकता है। मर्केल ने इस परियोजना को रद्द करने के भारी अमेरिकी दबाव को पीछे धकेल दिया था, लेकिन वे सितंबर में सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने जा रही हैं। सर्वेक्षणों से इस बात के संकेत मिलते हैं कि सितंबर में बुँदेस्टाग में होने जा रहे चुनावों में ग्रीन पार्टी को भारी बढ़त मिलने की संभावना है, जो नोर्ड स्ट्रीम 2 परियोजना के विरोध में है। अधिक पढ़ें
संक्षेप में कहें तो बाईडेन-मर्केल बैठक नोर्ड स्ट्रीम 2 पर एक समझौते तक पहुँचने के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण साबित हो सकता है। बर्लिन को उम्मीद है कि अगस्त तक इस मुद्दे को हल कर लिया जायेगा, और बिडेन भी जर्मनी के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए उत्सुक हैं, जो जलवायु परिवर्तन, महामारी के बाद के आर्थिक सुधार और ईरान एवं चीन के साथ संबंधों जैसे प्रमुख वैश्विक मुद्दों से निपटने के लिए मुख्य सहयोगी के तौर पर है।
ट्रिप्स छूट एक पुल जो बहुत दूर है?
भारतीय दृष्टिकोण के लिहाज से, महामारी के खात्मे में मदद करने के लिए विश्व व्यापार संगठन [डब्लूटीओ] के सदस्यों के द्वारा विचार किये जा रहे कोविड-19 टीकों के लिए बौद्धिक संपदा अधिकारों में अस्थाई छूट के विवादास्पद मुद्दे के संबंध में बाईडेन-मर्केल वार्ता के नतीजों पर गहरी दिलचस्पी होने जा रही है।
पिछले वर्ष अक्टूबर में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने डबल्यूटीओ के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं [ट्रिप्स] काउंसिल में आईपी अधिकारों को माफ़ किये जाने के संबंध में प्रस्ताव जारी किया था।
बाईडेन प्रशासन ने छूट दिए जाने के पक्ष में अपना समर्थन जाहिर किया था। लेकिन जर्मनी ने इस विचार को सिरे से खारिज कर दिया था, यह कहते हुए कि टीकों के उत्पादन में सबसे बड़ी बाधा बौद्धिक संपदा नहीं है, बल्कि क्षमता को कैसे बढ़ाया जाए और गुणवत्ता को सुनिश्चित करने की है। मई में एक जर्मन बयान में कहा गया था “बौद्धिक संपदा की सुरक्षा नवाचार का एक स्रोत है, और भविष्य में भी इसे बरकरार रखना चाहिए।”
जाहिर है, यूरोपीय उद्योगों के बड़े-बड़े धुरंधरों- बायोएनटेक और एस्ट्राज़ेनेका जैसे प्रमुख खिलाड़ियों ने छूट दिए जाने की मुखालफत की है। जून की शुरुआत में, यूरोपीयन आयोग ने जर्मन प्रभाव के तहत, डब्ल्यूटीओ को एक वैकल्पिक योजना पेश की थी, जिसमें निर्यात प्रतिबंधों पर सीमा और कुछ परिस्थितियों में पेटेंट्स के लिए अनिवार्य लाइसेंसिंग जैसे अन्य उपायों को प्रस्तावित किया गया था। अधिक पढ़ें
हालांकि, 10 जून को पैर के नीचे की जमीन कुछ हद तक खिसक गई थी, जब यूरोपीय संसद ने कोविड-19 टीकों, उपचार एवं उपकरणों के संबंध में ट्रिप्स छूट का समर्थन कर दिया। यूरोपीय संसद संशोधन को 263 के मुकाबले 355 मतों से पारित कर दिया गया, जबकि 71 ने मतदान में भाग नहीं लिया। यह बड़े पैमाने पर वामपंथी-दक्षिणपंथी लाइन का अनुसरण करते हुए, वामपंथियों जैसे कि सोशलिस्टों और डेमोक्रेट्स ने छूट का समर्थन किया और जो दक्षिणपंथी थे उन्होंने इसका विरोध किया था। अधिक पढ़ें
निस्संदेह, आयोग यूरोपीय संसद के संशोधन से बाध्य नहीं है लेकिन इसके बावजूद मतदान एक मजबूत राजनीतिक संदेश प्रेषित करता है: और ऐसे में यूरोप धीरे-धीरे छूट के समर्थक शिविर में खिसकता जा रहा है। इस बीच, जर्मनी लगातार छूट दिए जाने के विरोधी के रूप में अलग-थलग पड़ता जा रहा है, क्योंकि हाल ही में फ़्रांस ने भी पेटेंट-स्थगन शिविर से कूदकर अपना पाला बदल लिया है।
ऐसा लगता है कि ज्वार उलटी दिशा की ओर मुड़ रहा है, हालांकि अभी भी इसे एक लंबा सफर तय करना बाकी है क्योंकि छूट दिए जाने वाले शिविर में भी अलग-अलग आवाजें और दिखावे हैं, जैसे कि फ़्रांस की उपस्थिति छलावा साबित हो सकती है।
मेर्केल को संभवतः अप्रत्याशित समर्थन वाशिंगटन के एक ऐसे प्रभावशाली वर्ग से हासिल हुई है जब विश्व बैंक के अध्यक्ष डेविड मल्पास [वैसे, ट्रम्प प्रशासन के एक नामित] यह कहते हुए इस विवाद में कूद पड़े हैं कि “हम इस वजह से उसका [ट्रिप्स छूट] समर्थन नहीं करते हैं क्योंकि यह नवाचार और शोध एवं विकास के क्षेत्र में कमी लाने के जोखिम को उत्पन्न कर सकता है।”
इसे यकीनी तौर पर सुनिश्चित करने के लिए जब शुक्रवार को यह सवाल किया जायेगा कि क्या बाईडेन पेटेंट छूट मामले पर मर्केल को मनाने की कोशिश करेंगे, तो प्साकी का जवाब टाल-मटोल वाला रहने वाला है। वे सिर्फ इतना भर कह सकती हैं कि बाईडेन छूट के “मजबूत हिमायती” हैं, इसके साथ ही प्साकी आगे जोड़ते हुए कह सकती हैं “हमारे बक्से में यह एक औजार है। उत्पादन बढ़ाने सहित हमारे पास कई अन्य उपाय मौजूद हैं।” यह मर्केल की सोच के करीब जान पड़ती है।
एमके भद्रकुमार पूर्व राजनयिक रहे हैं। आप उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत के तौर पर कार्यरत थे। लेख में व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।
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