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तमिलनाडु: तिरुपुर में पहली बार चप्पल पहनकर चले दलित, पीढ़ियों के उत्पीड़न को नकारा

इस क़दम ने ऊंची जातियों द्वारा लगाए गए उस फ़रमान को चुनौती दी जो दलितों को किसी विशेष सड़क पर चप्पल पहनकर चलने या साइकिल चलाने तक से प्रतिबंधित करता था।
dailt rights

समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए तिरुपुर जिले के मदाथुकुलम तालुक के राजावुर गांव के 60 दलितों ने जूते पहनकर 'कम्बाला नाइकेन स्ट्रीट' पर चलकर पीढ़ियों के भेदभाव के मानदंडों को तोड़ दिया। न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इस कदम ने 'ऊंची जातियों' द्वारा लगाए गए उस अघोषित आदेश को चुनौती दी जिसके तहत दलितों को इसी सड़क पर चप्पल पहनने यहां तक कि साइकिल चलाने से भी प्रतिबंधित किया गया था।

यहां के निवासी ए मुरुगानंदम (51) ने पीढ़ियों से चली आ रही कहानियों का वर्णन करते हुए अखबार को बताया कि इस सड़क पर केवल चप्पल पहनने के कारण अरुंथथियार समुदाय के सदस्यों को वर्षों तक धमकियों और हमलों का सामना करना पड़ा। यहां तक कि ऊंची जाति की महिलाओं ने भी चेतावनी जारी की थी और दावा किया कि अगर दलित वहां जूते पहनकर पैर रखने की हिम्मत करेंगे तो स्थानीय देवता उनके लिए विनाश ला देंगे। इसलिए वे दशकों तक सड़क पर जाने से बचते रहे।

इस प्रथा के खिलाफ स्टैंड लेते हुए कुछ हफ्ते पहले दलित संगठनों ने इस मुद्दे को संज्ञान में लिया था। एक अन्य ग्रामीण ने बताया कि रविवार की देर रात, दलितों ने चप्पल पहनकर सड़क पर चलकर अपनी गरिमा को पुनः प्राप्त किया।

हालांकि इस भेदभाव की जड़ें बहुत गहरी हैं। एससी समुदाय के एक सदस्य ने कहा कि भले ही आजादी के बाद अस्पृश्यता पर प्रतिबंध लगा दिया गया था लेकिन प्रमुख जाति के सदस्यों ने सड़क के नीचे दबी हुई एक वूडू गुड़िया के बारे में एक कहानी प्रचारित की और धमकी दी कि अगर कोई दलित चप्पल पहनेगा तो तीन महीने के भीतर उसकी मौत हो जाएगी। ग्रामीण ने कहा कि कुछ दलितों ने इन कहानियों पर विश्वास किया जिससे इस प्रथा को आज तक कायम रखने में मदद मिली।

तमिलनाडु अस्पृश्यता उन्मूलन मोर्चा (तिरुप्पुर) [TNUEF] के सचिव सीके कनगराज ने अखबार को विरोध प्रदर्शन के प्रयासों के दौरान आने वाली चुनौतियों का ज़िक्र किया। पुलिस के शुरुआती इनकार और स्थगित विरोध योजना के बावजूद, विभिन्न संगठनों के सदस्यों ने एक साहसिक कदम उठाया। सीपीआई (एम), वीसीके और एटीपी के पदाधिकारियों के साथ टीएनयूईएफ के सदस्यों ने सड़क से चलकर गांव के राजकलियाम्मन मंदिर में प्रवेश करने का फैसला किया जो दलितों के लिए भी वर्जित है। उन्होंने कहा, लगभग 60 दलित बेरोकटोक सड़क पर चले। स्थानीय पुलिस घटना पर बारीकी से निगरानी कर रही है।

उन्होंने कहा कि यह पदयात्रा मुक्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है लेकिन कुछ दलित अभी भी डर रहे हैं। हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई कि इस कदम से आत्मविश्वास पैदा होगा और समानता का मार्ग प्रशस्त होगा।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

TN: Dalits Walk With Footwear in Tiruppur, Defy Generations of Oppression

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