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तमिलनाडु भी केंद्र के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़, विधानसभा में प्रस्ताव पारित

केरल, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के बाद तमिलनाडु भी केंद्र के कृषि क़ानूनों के विरोध में स्पष्ट रूप से आ गया है। तमिलनाडु विधानसभा ने तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने का केंद्र से अनुरोध करते हुए एक प्रस्ताव शनिवार को पारित कर दिया।
तमिलनाडु भी केंद्र के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़, विधानसभा में प्रस्ताव पारित

चेन्नई: तमिलनाडु विधानसभा ने भी तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने का केंद्र से अनुरोध करते हुए एक प्रस्ताव शनिवार को पारित कर दिया। इन कानूनों के खिलाफ किसान 9 महीने से दिल्ली की सीमाओं पर लगातार धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं।

इससे पहले केरल, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ इत्यादि राज्य भी इन कानूनों के विरोध में इसी तरह के प्रस्ताव पास कर चुके हैं।

केरल में तो 140 सदस्यीय विधानसभा के एकमात्र बीजेपी सदस्य ने भी केंद्र के खिलाफ लाए प्रस्ताव का समर्थन किया था। सत्तारूढ़ सीपीएम के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चे (एलडीएफ) और कांग्रेस नीत संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे (यूडीएफ) के सभी सदस्यों ने एक सुर में इन कानूनों को रद्द करने की मांग की थी।

तमिलनाडु में मुख्य विपक्षी दल अन्ना द्रमुक और उसकी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे पर सदन से बहिर्गमन कर दिया। शनिवार को जैसे ही सदन की कार्यवाही शुरू हुई तो मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने प्रस्ताव रखा। भाजपा ने इसका विरोध किया और सदन से बहिर्गमन कर दिया।

अन्ना द्रमुक के विधायक दल के उपनेता ओ. पनीरसेल्वम ने कहा कि मुख्यमंत्री ने कृषि कानूनों के नुकसान को बताया जबकि इसके फायदे भी बताने की जरूरत है। उन्होंने पूछा कि क्या राज्य सरकार ने इस मामले पर केंद्र को पत्र लिखा और क्या उसे कोई जवाब मिला।

सदन के नेता दुरईमुरुगन ने कहा कि ये कानून तब लागू किए गए जब अन्ना द्रमुक राज्य में सत्ता में थी और स्टालिन भी यह जानना चाहते हैं कि क्या मुख्य विपक्षी दल आज के प्रस्ताव का समर्थन करती है या नहीं।

इसका जवाब देते हुए पनीरसेल्वम ने कहा कि कृषि कानूनों के खिलाफ याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में लंबित हैं इसलिए कोई फैसला नहीं लिया जा सकता। साथ ही उन्होंने किसानों के कल्याण के लिए पार्टी के समर्थन का आश्वासन दिया।

आपको मालूम है कि इन कानूनों के खिलाफ किसान 9 महीने से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं और अपनी किसान संसद कर इन कानूनों को न केवल रद्द बल्कि केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी पास कर चुके हैं।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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