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विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती— सत्ता के हमलों और साज़िशों से अपनी नवजात एकता की रक्षा करना

पटना बैठक से निकली विपक्षी मोर्चेबन्दी पर " 20 लाख करोड़ के घोटाले की गारंटी " के तंज का तो शायद ही कोई adverse political impact हो, पर इससे यह पता ज़रूर लगता है कि उदीयमान विपक्षी एकता के ख़िलाफ़ मोदी-शाह की रणनीति के प्रहार का केन्द्रबिन्दु क्या होने जा रहा है।
opposiiton meeting
फ़ोटो : PTI

जैसी कि उम्मीद थी मोदी जी ने विदेश से आते ही विपक्षी एकता पर हमला बोला है लेकिन उनके वार में कोई नई राजनीतिक धार और चमक नहीं है। उन्होंने यह हमला भ्रष्टाचार के उस हथियार से किया है जो उनकी सरकार के हाथों अपनी साख खो चुका है और अब भोथरा हो चुका है।

मध्यप्रदेश के बूथ कायकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए उन्होंने विपक्षी गठबन्धन को घोटालेबाजों की जुगलबन्दी करार दिया, " जिसने गरीब और देश को लूटा है, उससे हिसाब होकर रहेगा। कानून का डंडा चल रहा है, जेल की सलाखें सामने दिख रहीं हैं तो ये दल जुगलबंदी कर रहे हैं। विपक्षी एकता के पीछे 20 लाख करोड़ के घोटाले की गारंटी है। "

बहरहाल, पिछले 9 साल से जिस तरह एजेंसियों के selective इस्तेमाल द्वारा केवल विपक्ष के नेताओं को घेरा जा रहा है, और उनमें से जो भाजपा में शामिल हो जाते हैं, उन्हें साफ पाक करार दे दिया जाता है, भाजपा के भ्रष्ट से भ्रष्टतम नेताओं के यहां एजेंसियां कभी भूलकर भी नहीं जातीं, उससे सरकार के साथ ही जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता भी मिट्टी में मिल चुकी है और जनमानस में यह पक्की धारणा ( perception ) बन गयी है कि यह सब राजनीति का खेल है।

इस तरह मोदी-शाह ने भ्रष्टाचार के संवेदनशील मुद्दे को भी राजनीतिक खेल का मुहरा बनाकर trivialise कर दिया, जहां सचमुच भ्रष्टाचार हुआ भी हो, लोग अब उसे गम्भीरता से नहीं लेते।

स्वयं मोदी सरकार की छवि रफाल घोटाले से अडानी महाघोटाले के आरोपों तक और सरकार की नाक के नीचे से तमाम घोटाले बाजों के विदेश चंपत होने तक संदिग्ध हो चुकी है। उनके निकट रहे पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा भ्रष्टाचार के प्रति मोदी जी के टॉलरेंस के खुलासे ( " मोदी जी को भ्रष्टाचार से कोई समस्या नहीं है " ) भी सोशल मीडिया में वायरल हो चुके हैं।

हाल ही में भ्रष्टाचार के आरोपों में लिपटी उनकी कर्नाटक सरकार को जनता बाहर का रास्ता दिखा चुकी है और जिस मध्य प्रदेश के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते 27 जून को उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाए, वह स्वयं ही व्यापम से लेकर तमाम घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई है।

इसलिए पटना बैठक से निकली विपक्षी मोर्चेबन्दी पर उनके " 20 लाख करोड़ के घोटाले की गारंटी " के तंज का तो शायद ही कोई adverse political impact हो, पर इससे यह पता जरूर लगता है कि उदीयमान विपक्षी एकता के ख़िलाफ़ मोदी-शाह की रणनीति के प्रहार का केन्द्रबिन्दु क्या होने जा रहा है। विपक्षी एकता को बदनाम करने, नेताओं को ब्लैकमेल करने, तोड़ने और मोर्चे से अलग होने के लिए दबाव बनाने के लिए आने वाले दिनों में हमला और तेज हो सकता है। यह अनायास नहीं है कि केजरीवाल के खिलाफ कल ही CAG की जांच शुरू हो गयी।

इस के साथ उन्होंने फिर विपक्ष द्वारा जनता को दी जा रही " गारंटी " पर तंज कसा। दरअसल वे विपक्ष द्वारा लोककल्याण के बड़े और आकर्षक वायदों के आगे अपने लाभार्थी कार्ड के फीके पड़ते जाने की आशंका से घबराये हुए हैं। कर्नाटक में उन्हें इसका स्वाद मिल चुका है।

कल के सम्बोधन में उन्होंने विपक्षी गठबंधन को तुष्टिकरण वालों का और अपने दल को सन्तुष्टिकरण वाला करार दिया। Uniform Civil Code की पहली बार जोरशोर से सार्वजनिक वकालत करते हुए उन्होंने विपक्ष पर मुसलमानों को भड़काने का आरोप लगाया। वे विपक्षी गठबंधन से निपटने के लिए UCC के माध्यम से दुहरी रणनीति पर बढ़ रहे हैं-एक ओर वे इस पर विपक्ष को विभाजित करना चाहते हैं, दूसरी ओर देश को तीखे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के रास्ते पर धकेलना चाहते हैं।

बहरहाल, जैसी कि उम्मीद थी पटना बैठक से शुरू हुई विपक्षी एकता की हलचल राष्ट्रीय राजनीतिक विमर्श के केंद्र में आ गयी है। पूरा सत्ता प्रतिष्ठान इस पर टूट पड़ा है, तो जाहिर है गोदी मीडिया को भी अब इसे कवर करना ही है, भले ही वह इसे महत्वहीन घटना साबित करने और खारिज करने के लिए ही ऐसा करे। तरह-तरह के विश्लेषण मुख्यधारा से लेकर सोशल मीडिया तक छाए हुए हैं।

विपक्ष की मोर्चेबन्दी से 9 साल में पहली बार यह perception बनने लगा है कि आम चुनाव में मोदी सरकार की विदाई सम्भव है। विपक्षी एकता के महत्व को कमतर दिखाने की लाख कवायद के बावजूद धुर सत्ता समर्थक विश्लेषक भी अब यकीन के साथ मोदी की पुनर्वापसी की भविष्यवाणी नहीं कर पा रहे हैं। यह चंद महीनों पहले की तुलना में, जब 2024 में मोदी को एक और कार्यकाल ( term ) foregone conclusion माना जा रहा था, भारी उलट-फेर है।

माहौल बदलने का सीधा असर युद्धरत सेनाओं के मनोबल पर पड़ता है। धारणा के स्तर पर बड़े उलटफेर से जहाँ सत्ता खेमे में मायूसी का आलम बताया जा रहा है, वहीं मौजूदा निज़ाम की तबाही से बदहाल, मुक्ति चाहती जनता तथा सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता जो नाउम्मीद थे, उनके अंदर उत्साह और आशा का संचार हुआ है।

कर्नाटक की भारी हार से मोदी-भाजपा के अपराजेय होने का मिथक टूटना शुरू हुआ था, अब विपक्षी एकता प्रक्रिया की सफल शुरुआत ने लोगों के अंदर यह उम्मीद जगा दी है कि 2024 में इन्हें पूरे देश में हराया जा सकता है। आगामी election-bound states की हलचलों पर भी बदलते राजनीतिक माहौल का असर दिखने लगा है। मध्यप्रदेश से लेकर तेलंगाना तक भाजपा के अंदर लड़ाई और भगदड़ तेज होती जा रही है।

बहरहाल, सत्ता समर्थक विश्लेषक फर्जी नैरेटिव गढ़ने में लगे हैं। नरेन्द्र मोदी के उभार के पुराने दौर से उनके ढलान के मौजूदा दौर के हालात और मतदाताओं के मूड में जमीन-आसमान के फर्क के बावजूद, वे गिना रहे हैं कि 2019 में भाजपा को 224सीटों पर 50% से अधिक मत मिला था, अर्थात पूरा विपक्ष एक होता तब भी भाजपा उन पर जीतती। वे कहानी गढ़ रहे हैं कि भाजपा ऐसी वर्चस्वशाली ( hegemonic position) स्थिति में पहुंच गई है कि उसे विपक्षी एकता से भी कोई खतरा नहीं है !

उन्हें याद दिलाना होगा कि पुलवामा और बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के बाद का 2019 का चुनाव एक असामान्य चुनाव था, जिसके नतीजों की सामान्य चुनाव से तुलना absurd है और पूरी तरह गलत निष्कर्ष तक पहुंचा सकती है।

स्मरणीय है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद ऐसे ही असामान्य चुनाव में राजीव गांधी को 400 से ऊपर सीटें मिल गयी थीं, जितनी आज़ादी के बाद किसी को कभी मिलीं ही नहीं। लेकिन अंधराष्ट्रवाद और साम्प्रदायिक उन्माद की लहर पर सवार होकर हासिल वह वोट टिक नहीं सका और अगले चुनाव में ही वे सत्ता से बाहर हो गए। ठीक वैसी ही उन्मादी लहर में मोदी द्वारा 2019 में हासिल वोट के 2024 में टिके रहने का दावा मूर्खता है या फर्जी नैरेटिव बनाने की धूर्तता है।

दरअसल, मोदी जब अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थे तब भी वोट उन्हें 2014 में 31% और 2019 में 37% मत ही मिला था, पर विपक्ष के बिखराव के कारण वे प्रचंड जीत दर्ज करने में सफल हुए थे और तब से अपराजेय बने हुए थे। विपक्षी एकता बनने से वह पूरी कहानी बदल गयी है। विपक्षी दलों की पहली ही बैठक को जिस तरह का response मिल रहा है, वह दिखा रहा है कि शायद देश को लंबे समय से इसका इंतज़ार था।

CSDS की गणना के अनुसार अगर 2019 के असामान्य चुनाव के बराबर भी भाजपा तथा बैठक में शामिल दलों को मत मिलें, तब भी एकताबद्ध विपक्ष के आगे भाजपा 303 सीट से लगभग 60 सीट खिसक कर 245 सीट पर, अर्थात बहुमत से 27 सीट नीचे पहुँच जाएगी। वोट प्रतिशत के लिहाज से भी बैठक में शामिल दलों का कुल मत 37% के आसपास अर्थात भाजपा को मिले उस समय के एब्नार्मल मतों के लगभग बराबर पहुंच जाता है।

यह सब बस एक फैक्टर-नए opposition unity index के आधार पर 2019 के चुनाव परिणाम का आंकलन है। सबसे बड़ी बात यह कि CSDS की यह गणना उस दौर के मतों के आधार पर है जब मोदी का जादू देश के सर चढ़ कर बोल रहा था, अच्छे दिन की उम्मीद का नशा छाया हुआ था, अंधराष्ट्रवाद और साम्प्रदायिक उन्माद की लहर चल रही थी।

अब 2023 आते आते वह सारा नशा काफूर हो चुका है, आम जनता की सारी उम्मीदें धूल-धूसरित हो चुकी हैं। आसमान छूती महंगाई और रेकॉर्ड तोड़ बेकारी से व्यापक जनता, गरीबों, मेहनतकशों का जीना मुहाल हो गया है। किसान, बेरोजगार युवा, महिलाएं सब त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। अल्पसंख्यकों, हाशिये के तबकों ने सत्ता के बर्बर बुलडोजर राज का जुल्म झेला है, उनके जीवन, सुरक्षा-सम्मान, आरक्षण समेत तमाम संवैधानिक अधिकारों पर भी बुलडोजर चला है।

जाहिर है 9 साल की एन्टी-इनकम्बेंसी के बाद पूरा खेल अंदर ही अंदर बदल चुका है। अब न मोदी मैजिक बचा है, न विपक्ष बिखरा रहने वाला है। इसलिए 2014, 19 के आंकड़ों अथवा विधानसभा-लोकसभा के कथित split वोटिंग पैटर्न के पुराने ट्रेंड के आधार पर 2024 के परिणाम का आंकलन परोसना बेईमानी है।

उम्मीद है विपक्षी मोर्चा मोदी सरकार से disillusioned बदलाव चाहती जनता के लिए rallying point बनता जाएगा और जैसे जैसे यह कारवां आगे बढ़ेगा, कई और दल भी हवा का रुख भांपते हुए opportune time पर इसमें शामिल होते जाएंगे।

आज विपक्षी दलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती सत्ता के हमलों और साजिशों से अपनी नवजात एकता की रक्षा है। उन्हें जनकल्याण तथा राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लोकप्रिय एजेंडा और कार्यक्रम के साथ आक्रामक मोदी-हटाओ अभियान में उतरना होगा। अंततः जागृत जनता की सड़क पर संगठित सक्रियता ही लोकतन्त्र का रक्षा-कवच बनेगी।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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