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कमलेश की तरह फिर न लौटाया जाए किसी बेटे का शव, ये तय करे सरकार

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के रहने वाले कमलेश की मौत हार्ट अटैक से दुबई में हो गई थी। वहां से इस प्रमाण पत्र के साथ कि कमलेश कोरोना संक्रमित नहीं थे, उनका शव भारत आया तब भी यहां अधिकारियों ने उसे लेने से इनकार कर दिया और शव को वापस भेज दिया।
उत्तराखंड

अबू धाबी से कमलेश भट्ट का शव 25-26 अप्रैल की दरमियानी रात दोबारा दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचा। कोरोना के संकटग्रस्त समय में यूएई में लॉकडाउन के दौरान बड़ी मुश्किल से यही ताबूत 23 अप्रैल को भी दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचा था। समूचे दस्तावेजों, डेट सर्टिफिकेट, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ आबू धाबी से भारतीय दूतावास ने शव दिल्ली भिजवाया था लेकिन तब कई फोन घुमाने के बाद एयरपोर्ट अधिकारियों ने शव लेने से इंकार कर दिया और उसी विमान से ताबूत आबू धाबी लौटा दिया। आपको बता दें कि उसके मृत्यु प्रमाणपत्र में लिखा है कि वह कोरोना से संक्रमित नहीं था।

उसके साथ दो और शव वतन से वापस भेज दिए गए। कमलेश की मौत 17 अप्रैल को हुई थी। टिहरी से शव लेने के लिए विशेष पास बनवाकर दिल्ली पहुंचे उसके दो भाइयों के होश फाख्ता हो गए, ये क्या क्रूर मज़ाक था, जो अभी-अभी उनके भाई के शव के साथ हुआ।

भारतीय दूतावास का सर्टिफिकेट.jpeg

मामूली वेतन के लिए विदेश जाने को मजबूर युवा

टिहरी के धनौल्टी तहसील के सकलाना पट्टी के सेमवाल गांव का रहने वाला 24 साल का कमलेश अपने परिवार का इकलौता कमाऊ सदस्य था। माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं हैं। आर्थिक स्थिति कमज़ोर है। छोटा भाई पढ़ाई कर रहा है। दो बहनों की शादी हो चुकी है। घर की सारी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर लेकर वो दुबई के होटल में नौकरी करने चला गया। दुबई में मात्र 25-26 हजार के वेतन के लिए घर छोड़ने वाले कमलेश को अगर यहीं रोजगार मिला होता तो वो इतनी दूर क्यों जाता।

उस रोज भी ऋषिकेश के पूर्णानंद घाट पर पहाड़ के इस युवा के अंतिम संस्कार की पूरी तैयारियां थीं। लेकिन शव नहीं पहुंचा। आज सुबह इसी घाट पर दोबारा अंतिम रस्मों को पूरा किया गया। आपको बता दें कि कमलेश का शव दोबारा दुबई से भारत आ गया था। इस समय हर तरफ कोरोना से मौत की आहटें सुनायी दे रही हैं, कमलेश की मौत हार्ट अटैक से हुई, पोस्टमार्टम रिपोर्ट इसकी तस्दीक करती है।

ये ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने जैसा था, बेहद अमानवीय

उनके चचेरे भाई विमलेश भट्ट बताते हैं कि अबू धाबी में समाजसेवी रोशन रतूड़ी ने सभी कागजात तैयार कराकर, भारतीय दूतावास से बात करने के बाद शव दिल्ली भिजवाया था। हम शव लाने के लिए देररात एयरपोर्ट पहुंच गए थे। करीब डेढ़ घंटा वहां इंतज़ार किया। किन्हीं वजहों से भारत सरकार शव उतारने की अनुमति नहीं दे रही थी।

शायद रात का समय था और गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय से क्लीयरेंस मिलने में दिक्कत आ रही थी। हमें ये समझ आ रहा था कि विभागों में आपसी तालमेल नहीं था और अधिकारियों ने हमारे सामने ही हमारे भाई का शव वापस भेज दिया। वह कहते हैं कि ये जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा था। बेहद अमानवीय। एक बेटे का शव बड़ी मुश्किल से वतन पहुंचे और दोबारा लौटा दिया जाए। कमलेश के साथ ही पंजाब के दो युवाओं संजीव कुमार और जगसीर सिंह के शव भी वापस लौटा दिए गए।

दिल्ली हाईकोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई

इसके बाद, विमलेश भट्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका डाली। 25 अप्रैल को हाईकोर्ट ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई करते हुए सरकार को मामले में दखल देने को कहा। अदालत में ये भी कहा गया कि ये अपनी तरह का अनोखा मामला है, गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालय स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसिजर तैयार कर रहे हैं ताकि भविष्य में इस तरह की दिक्कत सामने न आए।

कहां खोई है उत्तराखंड की सरकार?

ये मामला सोशल मीडिया पर आ गया। उत्तराखंड सरकार की ओर से कोई हरकत न देख राज्य के लोगों की नाराजगी बढ़ चली। इससे पहले गुजरात के लोगों को हरिद्वार से गुजरात छोड़ने लेकिन उत्तराखंडी लोगों को वापस न आने पर पहले ही राज्य सरकार को लोगों का गुस्सा झेलना पड़ा था।

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने अन्य राज्यों में फंसे अपने छात्रों को बसों के ज़रिये वापस बुलाया तो फिर त्रिवेंद्र सरकार पर सवाल उठे कि वो अपने राज्य के लोगों को वापस लाने के लिए क्या इंतज़ाम कर रही है? पहाड़ के बेटे का शव दुबई से दिल्ली आकर वापस लौट गया और त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार पर कोई फर्क ही नहीं पड़ा। ये बात लोगों को नागवार गुजर रही है।

केरल से सीखो मुख्यमंत्री जी!

ठीक इसी समय केरल की सरकार खाड़ी देशों में मरने वाले केरल के लोगों के शव लाने के प्रयास कर रही है। अनुमान के मुताबिक करीब 150 लोगों के शव वहां फंसे हुए हैं और कार्गो एयरलाइन्स से शवों को भारत लाने के लिए जरूरी प्रयास किया जा रहा है। ये वो लोग हैं जिनकी मौत कोविड-19 से नहीं हुई है। लेकिन ऐसे समय में उत्तराखंड की डबल इंजन वाली सरकार की ख़ामोशी अखरती है।

क्या राज्य के मुखिया को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था? एक गरीब परिवार अपने बूते अपने बेटे का शव लाने के लिए संघर्ष कर रहा है। वोट लेने के लिए घर-घर पहुंचने वाले नेताओं की ये अनदेखी आपराधिक लग रही थी।

यूएई में भारतीय राजदूत पवन कपूर ने भी शव लौटाए जाने पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि ये चौंकाने वाला था। शव भेजने से संबंधित सभी औपचारिकताएं पूरी की जा चुकी थीं। कोरोना संक्रमित लोगों के शव वापस नहीं भेजे जा रहे हैं और कमलेश की मौत कोरोना से नहीं हुई थी।

एक गरीब मां-बाप के बेटे का शव बड़ी मशक्कत के बाद अपने पहाड़ों में वापस लाया जा सका। दिल्ली एयरपोर्ट पर जो कुछ भी हुआ उसके साथ ही उत्तराखंड सरकार की निष्क्रियता भी लोगों को नाराज कर रही है, लेकिन फिर वोट की बात आती है तो लोग क्या फैसला करते हैं। विमलेश भट्ट कहते हैं कि हमारा भाई तो चला गया, हम ये चाहते हैं कि ऐसा दोबारा किसी और के साथ न हो, ये सुनिश्चित किया जाए।

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