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"जिस जजमेंट में 'बलि के बकरे' का ज़िक्र है उसे देश के हर नागरिक को ज़रूर पढ़ना चाहिए"

जामिया हिंसा के एक मामले में शरजील इमाम, सफूरा ज़रगर और आसिफ़ इक़बाल तन्हा समेत कुल 11 लोगों को बरी कर दिया गया है। कोर्ट का ये फ़ैसला बहुत अहम है। इसमें की गई टिप्पणियां काफ़ी मायने रखती हैं।
Sharjeel

जामिया हिंसा के एक मामले में शरजील इमाम, सफूरा ज़रगर और आसिफ़ इक़बाल तन्हा समेत कुल 11 लोगों को बरी कर दिया गया है। कोर्ट का ये फ़ैसला बहुत अहम है। इसमें की गई टिप्पणियां काफ़ी मायने रखती हैं। इस फ़ैसले में बरी हुए आसिफ़ इक़बाल तन्हा से नाज़मा ख़ान ने ख़ास बातचीत की।

'' इस मामले में दायर मुख्य चार्जशीट और तीन पूरक चार्जशीट को देखने के बाद जो तथ्य हमारे सामने लाए गए हैं उनसे अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि पुलिस अपराध को अंजाम देने वाले असली अपराधियों को पकड़ने में नाकाम रही लेकिन इन लोगों (शरजील और अन्य लोगों) को बलि के बकरे के तौर पर गिरफ्तार करने में कामयाब रही।''

''बलि के बकरे''

'कोर्ट के 33 पन्नों के जजमेंट में से सिर्फ़ इन तीन शब्दों ('बलि के बकरे'')पर ग़ौर करें तो इस मामले में पुलिस ने जिस तरह से काम किया उसका बखिया उधड़ गया।

दिसंबर 2019 में हुई जामिया हिंसा के एक मामले में शरजील इमाम, आसिफ़ इक़बाल तन्हा औऱ सफूरा ज़रगर को कोर्ट ने बरी कर दिया है। कोर्ट ने इस मामले में कुल 11 लोगों को बरी किया है। हालांकि शरजील इमाम को अब भी रिहाई नहीं मिलेगी वो दूसरे मामलों में अब भी आरोपी हैं। 4 फरवरी को कोर्ट ने जब ये फैसला सुनाया तो 2020 की वो फरवरी याद आ गई जब इसी दिल्ली में CAA-NRC के विरोध में हो रहे प्रदर्शन के बाद दंगा भड़क गया था।

जब भी फरवरी आएगी दिल्ली दंगे याद आएंगे

जब-जब फरवरी का महीना आएगा दिल्ली के लोग 2020 की उन ख़ौफ़नाक़ रातों को याद करेंगे जब दिल्ली का एक हिस्सा दंगों की चपेट में था और रह-रह कर पूरी दिल्ली में अफवाहें उठ रही थीं, लोग दहशत में थे और अपने घरों में भी ख़ुद को महफूज़ नहीं समझ पा रहे थे।

तमाम दिल्ली वालों के लिए 2020 की फरवरी की वो खौफ़ में गुज़री सर्द रातें ज़ेहन से कभी नहीं मिटने वाली। जिस वक़्त दहशत का माहौल था उस वक़्त टीवी पर जो शब्द बेहद परेशान कर रहे थे वो थे, ''आतंकी'', ''मास्टर मांइड'', ''सोची समझी साज़िश''

आख़िर कौन था असली गुनहगार?

2019-20 में दिल्ली, CAA-NRC के विरोध में जिस आंदोलन का गवाह बना वो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया लेकिन ये आंदोलन जिस तरह से ख़त्म हुआ (या करवाया गया) वो बेहद डरा देने वाला था। फरवरी का महीना था और कुछ तस्वीरें लगातार टीवी पर चल रही थीं, दिल्ली के जिस हिस्से में हिंसा हुई वहां चौक पर खड़े होकर, पुलिस की मौजूदगी में ही धरने की जगह को खाली करवाने की धमकी दी जा रही थी लेकिन पुलिस ख़ामोशी से खड़ी तमाशा देख रही थी और फिर हमने देखा कि अचानक ही दिल्ली में दंगे भड़क गए। दंगों में तो जो हुआ सो हुआ लेकिन फिर एक सिलसिला शुरू हुआ गिरफ़्तारियों का।

कसरत से मीडिया ट्रायल किया गया

इन गिरफ़्तारियों में कई नाम ऐसे थे जिनका केस कोर्ट में तो बाद में चलता लेकिन मीडिया ट्रायल बड़ी कसरत से किया गया। दिल्ली दंगों से पहले दिल्ली के जामिया में छात्रों के प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने जिस तरह से यूनिवर्सिटी में घुसकर कार्रवाई की, लाइब्रेरी में पढ़ते बच्चों को बेरहमी से पीटा उसके वीडियो आज भी दहशत में डाल देते हैं।

जामिया हिंसा और दिल्ली दंगों के बाद कई ऐसी गिरफ्तारियां हुई जिन्हें देखकर कोर्ट की टिप्पणी याद आती है ''बलि का बकरा''। जिन हालातों में दंगा भड़का, जिन बयानों ने माहौल गरमाया वो आज भी पब्लिक डोमेन में हैं। पर पुलिस ने जो चार्ज शीट बनाई उसका आधार ईमानदार जांच की बजाए मीडिया ट्रायल ज़्यादा नज़र आता है।

जामिया हिंसा के एक मामले में 11 लोग बरी

अब आते हैं ऊपर दी गई कोर्ट की टिप्पणी पर। ये टिप्पणी साकेट कोर्ट के अतिरिक्त सेशन जज अरुल वर्मा ने दी। जामिया हिंसा के मामले में एक केस के दौरान उन्होंने ये बात कही। इस केस में शरजील इमाम, आसिफ़ इक़बाल तन्हा और सफूरा ज़रगर समेत आठ लोगों को आरोप से मुक्त कर दिया गया। जिनमें ज़्यादातर स्टूडेंट थे। वैसे तो इन 11 लोगों की अपनी-अपनी आपबीती होगी लेकिन शरजील, आसिफ़ और सफूरा ये वो तीन नाम हैं जिनका ख़ूब मीडिया ट्रायल किया गया।

33 पन्नों के जजमेंट को दीवारों पर चस्पा करना चाहिए

लेकिन 4 फरवरी को कोर्ट ने जब इन तीनों समेत कुल 11 लोगों को जामिया हिंसा के एक मामले में बरी किया और अपना जजमेंट सुनाया उस दौरान कोर्ट की तरफ़ से जो टिप्पणियां की गई वो बेहद अहम हैं और उसकी ख़ूब चर्चा भी हो रही है। ये जजमेंट क़ानून की नज़र से तो बहुत अहम है ही साथ ही समाज के लिए भी ख़ास है। 33 पन्नों के इस जजमेंट के कुछ पन्ने तो वाक़ई फोटो कॉपी करवाकर दीवारों पर चस्पा करने लायक हैं। और इससे ही जुड़ा एक सवाल हमने इस मामले में बरी हुए आसिफ़ इक़बाल तन्हा से किया तो उनका जवाब था :

''जी बिल्कुल, ऐसा किया जाना चाहिए लेकिन अगर मैं अपनी बात करूं तो गली, मोहल्लों में तो नहीं लेकिन इस जजमेंट के 33 पन्ने मैं अपने घर में तो ज़रूर फ्रेम करके लगवाऊंगा'' ये जजमेंट आम लोगों तक ज़रूर जाना चाहिए।''

कोर्ट का फैसला आने के बाद जिन 11 लोगों को बरी किया गया है उनमें शरजील इमाम जेल में हैं, सफूरा ने कुछ वजहों से मीडिया से दूरी बना रखी है जबकि आसिफ़ इक़बाल तन्हा ने इसपर हमसे लंबी बातचीत की। हालांकि इस मामले में शरजील इमाम के भाई मुज़म्मिल ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी।

आसिफ अभी 26 साल के हैं लेकिन जिस वक़्त वो जेल गए थे तो 23- 24 साल के थे। आसिफ़ कहते हैं कि '' इस मामले में शायद मैं सबसे छोटा हूं और मुझ पर सबसे ज़्यादा केस लगे हैं''

आसिफ़ इक़बाल तन्हा से बातचीत का मुख्य अंश:

आप पर कुल कितने केस हैं और कितने केस में अब तक आप बरी हो गए हैं।

ये 13 दिसंबर 2019 का केस था जिसमें हम बरी हुए हैं, 13 दिसंबर को ही एक और केस ( इसी मामले में ) NFC ( New Friends Colony) थाने में है। एक ही दिन में दो FIR हुई थी। एक जामिया नगर थाने में और एक NFC थाने में। ठीक इसी तरह 15 दिसंबर 2019 को भी दो केस होते हैं, एक जामिया नगर थाने में और एक NFC थाने में, तो ये 4 केस हुए। इसके अलावा दिल्ली दंगे मामले में UAPA लगा था। तो कुल पांच केस मेरे ऊपर लगाए गए थे। और अब तक मैं सिर्फ़ एक केस में बरी हुआ हूं।

जेल में कितना वक़्त रहें, कितना मुश्किल था वो वक़्त ?

13 महीने जेल में रहा था, बहुत मुश्किल वक़्त था, लॉकडाउन लगा था कोरोना चल रहा था क्वारंटीन के नाम पर मुझे 20 दिन सेल से निकलने नहीं दिया गया। 24 घंटे अपने ही सेल में पड़ा रहा। जिस दिन मुझे गिरफ़्तार कर जेल में लाए मेरे साथ फिज़िकल वायलेंस हुआ। रमज़ान चल रहा था। सेहरी नहीं दी गई इसलिए रोज़ा नहीं रखने दिया गया। बहुत भेदभाव हुआ। 13 महीने के दौरान ईद आई, घर में कई मौक़े ऐसे आए जिसमें मैं शामिल होना चाहता था पर नहीं हो सका। बहन की सगाई थी, मैं शामिल नहीं हो सका।

इस बातचीत के दौरान आसिफ़ कुछ देर के लिए रुके और फिर कहा कि

''कुछ तकलीफ़ें ऐसी होती हैं जिनकी कोई भरपाई नहीं हो सकती''

गिरफ़्तारी का दिन याद आता है ?

17 मई को मेरी गिरफ़्तारी हुई थी, दोपहर के वक़्त, मुझसे मेरे घर का नंबर मांगा गया, मैंने अपने फादर का नंबर दे दिया। वो दोपहर के खाने का वक़्त था। मेरे फादर खाना ही खा रहे थे। मेरे सामने ही फोन किया था। पुलिस ने कहा कि आपके बेटे को गिरफ़्तार कर रहे हैं लेकिन जब मेरे फादर ने पूछा कि क्यों गिरफ़्तार कर रहे हैं, क्या किया है उसने? तो मेरे सामने ही ये कहते हुए फोन काट दिया गया कि आपको बाद में सब पता चल जाएगा।

19 मई को मेरी फॉर्मल गिरफ़्तारी हुई, जामिया के केस में तो मुझे बेल मिल जाती 298/19 में जिसमें मैं जेल गया था। लेकिन जब उन्होंने 59/20 की जो FIR की तो उसमें UAPA लगा और मैं 13 महीने जेल में रहा।

कोर्ट के फ़ैसले आ रहे हैं। कोर्ट सख़्त टिप्पणी कर रहा है।

जी, मुझे UAPA में बेल मिली थी ( साथ में नताशा नरवाल और देवांगना कालिता को भी बेल मिली थी ) अगर उस जजमेंट को पढ़ा जाए तो लगेगा कि वो हिस्ट्रोरिकल जजमेंट है। अगर कोई UAPA के केस में गिरफ़्तार होता है और अगर उस केस को नज़ीर बनाते है तो उन्हें आसानी से बेल मिल सकती है ( हमारे केस को अगर रेफरेंस में रखते हैं तो)। हालांकि हमारे इस केस ( UAPA) को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया है।

और जो 4 फरवरी को जजमेंट आया है, 33 पन्नों का जजमेंट उसे देखें तो वो साफ़ पुलिस की नाकामी दिखाता है, वो बताता है कि पुलिस ने अपना काम ठीक से नहीं किया। ना असली जांच हुई ना असली गुनहगारों को पकड़ा गया। ऐसा लग रहा था उन्हें जो सामने मिलता जा रहा था बस वो सबको आरोपी बनाते चल रहे थे। इस बारे में कोर्ट ने धारा 144 के उल्लंघन से जुड़ा सवाल पूछा तो उनके पास 24 से लेकर 2 घंटे पहले तक का एक भी नोटिस नहीं था। कभी ये कहा जा रहा थी कि जामिया में 144 लगी थी तो कभी वो कह रहे थे कि संसद की तरफ ये जा रहे थे और वहां 144 लगी थी। पुलिस बस गोल-मोल जवाब दे रही थी।

कोर्ट का एक और सवाल था जिसका जवाब पुलिस के पास जवाब नहीं था, चार्जशीट में ज़िक्र है कि चार से पांच हज़ार की भीड़ प्रोटेस्ट कर रही थी जो संसद की तरफ़ जाना चाह रही थी, चार से पांच हज़ार की भीड़ में से पुलिस ने 42 छात्रों को हिरासत में ले लिया और उन 42 में से 4 से 5 लोगों को आरोपी बना दिया, कोर्ट ने पूछा कि प्रोटेस्ट में अगर सबसे आगे 300 लोग चल रहे थे और आपने 42 लोगों को हिरासत में लिया तो आसिफ या 11 लोगों को ही आरोपी क्यों बनाया? जो उनके बग़ल में थे उन्हें आरोपी क्यों नहीं बनाया गया, या सिर्फ़ आसिफ को ही आरोपी क्यों बनाया उनके साथ 42 लोगों को आरोपी क्यों नहीं बनाया ? अगर ये फ्रंट लाइन में थे तो फ्रंट लाइन में तो और भी 300 लोग थे।

जिस तरह से मीडिया ट्रायल हुआ आप लोगों की इमेज को नुक़सान पहुंचाया गया और अब कोर्ट में आप बरी हो रहे हैं, क्या इसकी कोई भरपाई हो सकती है?

मीडिया ने एक नैरेटिव बना दिया था। लेकिन इस जजमेंट से मीडिया को भी जवाब मिला है कि जिसे आप आतंकवादी बोल रहे थे, जिस संंस्थान को टारगेट किया गया था, उन सबको जवाब मिला है कि छात्र प्रोटेस्ट कर रहे थे तो ये उनका राइट है। ये जजमेंट में भी कहा गया कि प्रोटेस्ट करना इनका लोकतांत्रित अधिकार है। बाक़ी बात भरपाई की तो बहुत मुश्किल है, कोई कोर्ट,कोई पुलिस, कोई मीडिया कितना भी चाह ले उसकी कोई भरपाई मुमकीन नहीं है। हम लोगों को इसलिए भी टारगेट किया गया था कि हम मुसलमान हैं और पढ़े-लिखे हैं।

4 फ़रवरी को जिस वक़्त कोर्ट में फैसला आया आसिफ़ इक़बाल समेत केस से जुड़े तमाम लोग अपने आंसू नहीं रोक पाए, लेकिन सब ख़ुश थे कि भले ही चीज़ें धीरे-धीरे आगे बढ़ रही हैं और उम्मीद अब भी बरक़रार है। इन सबके बीच आसिफ़ भले ही पर्शियन, उर्दू और अरबी के छात्र रहे हों लेकिन उन्हें क़ानून की भी अच्छी जानकारी हो गई है। अब वो क़ानून की पेचीदगी को भी बहुत अच्छी तरह से समझने लगे हैं।

इस मामले में हमने शरजील इमाम के भाई मुज़म्मिल इमाम से भी बात की।

शरजील पर कुल कितने केस हैं और अब तक कितने केस में बरी हुए हैं ?

शरजील पर कुल 8 केस हैं, अभी सिर्फ़ एक केस में बरी किया गया है। सात केस अब भी बचे हैं। पर हां बूंद-बूंद से घड़ा भरता है, हमारे लिए तो छोटा से छोटा ऑर्डर भी बहुत ख़ास है, क्योंकि इससे लगता है कि शरजील कभी तो घर वापस आ जाएगा।

मुज़म्मिल को इस बात की ख़ुशी है कि इतने केस में से एक केस में शरजील इमाम बरी हो गए हैं, वो कहते हैं कि ऐसा लग रहा है कि जो हक बात थी किसी ने तो कही। वो आगे कहते हैं कि ख़ुशी है लेकिन गम भी है कि इंतज़ार करते-करते लंबा वक़्त गुज़र रहा है, अगर इंसान की ज़िंदगी के तीन साल गुज़र गए तो उसे कोई लौटा नहीं सकता।

शरजील के मीडिया ट्रायल पर क्या कहना है?

जहां तक मीडिया की बात करें तो मीडिया के पास अधिकार नहीं है ट्रायल करने का लेकिन ऐसा लगता है कि उन्होंने एक एजेंडा के तहत किया। उन्हें क्या कहा जा सकता है लेकिन जनता की बात करें तो वो दोनों तरह की होती है। कुछ लोग को जो दिखाया गया उन्हें वो सही लगा लेकिन कुछ लोगों ने दूसरे पक्ष को भी समझने की कोशिश की।

इन सबके बीच आस-पड़ोस, रिश्तेदारों का कैसा व्यवहार है?

आस-पड़ोस से कोई दिक़्क़त नहीं है, हां कुछ रिश्तेदार चले गए लेकिन जो नए रिश्तेदार बने हैं उनकी तादात बहुत ज़्यादा है शायद हज़ारों में।

इस मामले में फैसला आने के बाद कांग्रेस के सीनियर नेता और पूर्व गृह मंत्री रहे पी चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा कि प्री-ट्रायल क़ैद को सहन करने वाला क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम संविधान का अपमान है। चिदंबरम ने सुप्रीम कोर्ट से क़ानून के 'दैनिक दुरुपयोग' को ख़त्म करने की अपील की।

इसके साथ ही उन्होंने पूछा की आरोपी के जेल में बिताए महीने या साल कौन लौटाएगा?

वैसे ये कितना अजीब सवाल है? देश में लंबे समय तक सत्ता में रही कांग्रेस के दामन पर सालों-साल लोगों को जेल में सड़ा देने का दाग़ लगा है लेकिन इसके बावजूद आज वो ख़ुद ये सवाल उठा रही है।

हमारे देश में जेलों की हालत क्या है, लंबी क़ानूनी लड़ाई कितनी मुश्किल है, ये जग ज़ाहिर है लेकिन सत्ता में आने वाली पार्टी शायद ये सवाल हमेशा विपक्ष से पूछने के लिए ही छोड़ देती है।

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