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लखीमपुर में किसानों की हत्या भाजपा सरकार के ताबूत में आख़िरी कील

लखीमपुर जनसंहार का जो ताजा वीडियो वायरल हो रहा है, उसने भाजपा और गोदी मीडिया द्वारा 3 अक्टूबर से लगातार खड़े किए जा रहे झूठ के हवामहल को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है।
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(यह वीडियो वरुण गांधी ने शेयर किया है। जो किसी विपक्ष के नेता नहीं बल्कि पीलीभीत से बीजेपी के ही सांसद हैं।)

लखीमपुर जनसंहार का जो ताजा वीडियो वायरल हो रहा है, उसने भाजपा और गोदी मीडिया द्वारा 3 अक्टूबर से लगातार खड़े किए जा रहा झूठ के हवामहल को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है। अब इसमें कोई शक की गुंजाइश ही नहीं बची है कि मोदी जी के मंत्री अजय मिश्र टेनी ने किसानों को 2 मिनट में ठीक कर देने की जो धमकी दी थी, उनके लाडले ने 3 अक्टूबर को उसे ही सच कर दिखाया था।

वीडियो से बिल्कुल साफ है कि शांतिपूर्वक लौट रहे किसानों पर धोखे से, पीछे से गाड़ी-चढ़ाई गयी। हत्यारों का निशाना सम्भवतः तेजिंदर सिंह विर्क थे, जो तराई किसान यूनियन के जांबाज नेता और संयुक्त किसान मोर्चा की वर्किंग कमेटी के सदस्य हैं। 26 जनवरी के नाटकीय घटनाक्रम के सबसे नाजुक, निर्णायक क्षणों में राकेश टिकैत की सबसे बड़ी ताकत बन कर उन्होंने गाजीपुर बॉर्डर पर एक बेमिसाल भूमिका निभाई थी, जिसके लिए किसान-आंदोलन उनका हमेशा ऋणी रहेगा। वे फिलहाल मेदांता अस्पताल दिल्ली में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं।

(लखीमपुर की घटना को लेकर यह एक नया वीडियो और सामने आया है। जिसमें लोग गाड़ी से कूदकर भागते नज़र आ रहे हैं। कहा जा रहा है कि ये वही लोग हैं जिन्होंने किसानों को गाड़ी से कुचला।)

लखीमपुर जनसंहार का एक false narrative गढ़ने के लिए भाजपा और गोदी मीडिया इसे 26 जनवरी के घटनाक्रम से जोड़ रहे हैं। उनका कहना बेशक सच है, लेकिन उल्टे ढंग से !

ठीक जिस तरह 26 जनवरी को खालिस्तान से जोड़कर, सिखों के खिलाफ अंधराष्ट्रवादी उन्माद को उभारकर कत्लेआम करने और किसान-आंदोलन को कुचल देने की साजिश रची गयी थी, ठीक वैसे ही तराई इलाका, जहां सिख किसानों की बड़ी आबादी है, जो पश्चिम उत्तर प्रदेश के साथ किसान-आंदोलन का UP में सबसे मजबूत इलाका है और जो अवध व पूर्वांचल में आंदोलन के विस्तार का लॉन्चिंग पैड बन रहा है, वहां बब्बर खालसा और खालिस्तान की कहानी गढ़कर सिख किसानों के ख़िलाफ़ ध्रुवीकरण करने, आंदोलन के नेतृत्व को खत्म कर देने और शैशवावस्था में ही UP में आंदोलन की सम्भावनाओं को खत्म कर देने का भयानक षड्यंत्र रचा गया था। पर्दे के पीछे सूत्रधार और होंगे, पर इसे अंजाम दिया गया मोदी जी के नए नवेले गृह-राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के माध्यम से, जिन्हें हाल ही में चुनाव के मद्देनजर जाति विशेष के चेहरे के बतौर लाया गया था। लोग आश्चर्यचकित थे कि जातिवाद के लिए मोदी जी को कोई और नहीं मिला !

बहरहाल, टेनी ने मोदी जी के अपने प्रति व्यक्त विश्वास को ' सही ' साबित करते हुए 3 अक्टूबर के खूनी खेल के 1 सप्ताह पूर्व 25 सितंबर को संपूर्णानगर में एक सभा में अपना असली परिचय बता दिया ( जिसे स्थानीय लोग पहले से जानते थे)। उन्होंने कहा कि वे मंत्री और विधायक बनने के पहले कुछ और थे, उन्हें किसानों को ठीक करने में 2 मिनट लगेगा। उन्होंने सिख किसानों को लक्ष्य कर कहा कि निघासन-पलिया ही नहीं पूरे लखीमपुर, उत्तर प्रदेश से खदेड़वा दूंगा।

और इसी के साथ सिख किसानों के खिलाफ उस पूरे इलाके में नफरती अभियान छेड़ दिया गया, लालच दिया गया कि सिखों को खदेड़ने के बाद उनकी जमीन-जमीन जायदाद हमारे कब्जे में आ जायेगी !

यह कम आश्चर्यजनक नहीं है कि एक केंद्रीय मंत्री, वह भी उस गृह विभाग का जिसका सीधा सम्बन्ध आंतरिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था से है, उसके ऐसे संवेदनशील मसले पर, इस तरह के खुले आम गैर-कानूनी, संविधान-विरुद्ध, आपराधिक, भड़काऊ बयान के बावजूद मोदी-योगी किसी सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया। इससे शक होना स्वाभाविक है कि क्या टेनी के इस खतरनाक खेल को ऊपर से हरी झंडी थी ?

यह शक और गहरा हो जाता है क्योंकि अब यह बात सार्वजनिक हो चुकी है कि जिला प्रशासन ने सरकार को सूचित कर दिया था कि टेनी के बयान को लेकर किसानों में भारी आक्रोश है और टेनी के गांव में उपमुख्यमंत्री के कार्यक्रम में आने से हालात बिगड़ सकते हैं। इस सब को अनसुना करके कार्यक्रम आयोजित किया गया। हेलीपैड पर किसानों के कब्जे के बाद भी कार्यक्रम कैंसिल नहीं किया गया और अंततः किसानों को सबक सिखाने के लिए यह जनसंहार रच दिया गया।

घबराई योगी सरकार को डैमेज कंट्रोल के लिए जिस तरह किसानों के आगे झुकना पड़ा है और मंत्रीपुत्र के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करना पड़ा है, उससे यह साफ है कि पूरा दांव उल्टा पड़ गया है। पूरे देश में भाजपाइयों के इस राज्य-प्रायोजित जनसंहार के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश है।

5 राज्यों, विशेषकर UP व उत्तराखंड चुनाव के पहले यह सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है, मतदान तक और उसके बाद भी शहीद किसानों का खून अब मोदी-योगी सरकार को चैन से नहीं बैठने देगा। उत्तराखंड की 70 में से 20 और यूपी की 406 में लगभग 150 सीटें- पश्चिम यूपी और तराई की-सीधे आंदोलन की चपेट में हैं। इस खूंरेजी के बाद मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी भाजपा के खिलाफ किसानों का गुस्सा भड़क उठा है।

4 अक्टूबर को सभी जिला मुख्यालयों, शहरों, कस्बों में जनता ने सड़कों पर उतर कर प्रतिरोध किया, जिसे पुलिस दमन के बल पर कुचलने की नाकाम कोशिश की गई। योगी सरकार ने सारे विपक्षी नेताओं को बिल्कुल गैरकानूनी ढंग से गिरफ्तार कर, मुख्यमंत्रियों तक को यहां land करने से रोककर जिस तरह जनता की आवाज दबाने की कोशिश किया, वह अभूतपूर्व है और लोकतन्त्र के लिए बेहद खतरनाक संकेत है। एक बार फिर यह बिल्कुल साफ हो गया कि मोदी-योगी संसदीय लोकतन्त्र की न्यूनतम मर्यादाओं की भी परवाह नहीं करते और एकछत्र, एकपार्टी अधिनायकवादी राज के रास्ते पर बढ़ रहे हैं।

किसानों के ख़िलाफ़ लट्ठ उठाने के लिए संघ-भाजपा कायकर्ताओं को provoke करते हुए मुख्यमंत्री खट्टर का जो वीडियो वायरल हो रहा है, और अब लखीमपुर में मोदी जी के गृह राज्यमंत्री द्वारा गुंडावाहिनी के बल पर किसान-आंदोलन से निपटने का जो कारनामा अंजाम दिया गया है, वह बढ़ते जनप्रतिरोध के खिलाफ राज्य-प्रायोजित vigilante गिरोहों के फासिस्ट रास्ते की ओर बढ़ने का ही संकेत है। दरअसल, मॉब लिंचिंग इसी का localised स्वतःस्फूर्त version था जिसे अब सीधे शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों द्वारा प्रायोजित और संगठित किया जा रहा है।

जाहिर है अगले कुछ महीने हमारे लोकतंत्र के भविष्य के लिए निर्णायक होंगे। नफरत की आग में पूरे प्रदेश और देश को झुलसाने, जनता की एकता को तोड़ने और चुनावी वैतरणी पार करने के लिए अनगिनत साजिशें होंगी। मेहनतकश जनसमुदाय, नागरिक समाज, लोकतान्त्रिक शक्तियों जनान्दोलन की ताकतों, विपक्षी दलों को एकजुट होकर इसका मुकाबला करना होगा और सड़क पर तथा ballot पर, दोनों मोर्चों पर इसे शिकस्त देना होगा।

लखीमपुर जनसंहार के जिम्मेदार केंद्रीय मंत्री टेनी की मोदी मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी, खट्टर और टेनी के खिलाफ संवैधानिक पद पर बैठकर वैमनस्य फैलाने और हिंसा भड़काने के आरोप में कार्रवाई की मांग आने वाले दिनों में किसान आंदोलन और लोकतांत्रिक ताकतों की सर्वप्रमुख मांग बनी रहनी चाहिए।

हमारे लोकतंत्र और देश को बचाने की अवाम की फैसलाकुन जंग में महान किसान आंदोलन इसके मेरुदण्ड की तरह खड़ा है। इसकी हर हाल में रक्षा करनी होगी, इसके बचे रहने और ताकतवर होने में ही हमारे गणतंत्र के पुनर्जीवन की उम्मीद पल रही है।

जनता आगामी चुनावों में लोकतन्त्र की हत्या पर आमादा योगी -मोदी सरकार का अंत करेगी।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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