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किसान-आंदोलन भारतीय लोकतंत्र की नई इबारत लिखेगा

किसान आंदोलन आज मेनस्ट्रीम मीडिया से भले गायब हो, लेकिन दिल्ली के बॉर्डरों पर वह पहले जैसी ही दृढ़ता, जुझारूपन और स्पष्ट विज़न के साथ जारी है।
किसान-आंदोलन भारतीय लोकतंत्र की नई इबारत लिखेगा
Image courtesy : Hindustan Times

महामारी की विराट आपदा और गोदी मीडिया के पूर्वाग्रह के चलते किसान आंदोलन मेनस्ट्रीम मीडिया से भले गायब हो, लेकिन दिल्ली के बॉर्डरों पर वह पहले जैसी ही दृढ़ता, जुझारूपन और स्पष्ट विज़न के साथ जारी है।

इसका सबूत है 16 मई को दिनभर चला शह-मात का नाटकीय घटनाक्रम। हरियाणा के हिसार में मुख्यमंत्री खट्टर एक अस्पताल के उद्घाटन कार्यक्रम में गये थे। भाजपा-जजपा नेताओं, मंत्रियों के ख़िलाफ़ विरोध और सामाजिक बहिष्कार के अपने पूर्व घोषित फैसले के तहत किसानों ने वहां पुलिस बैरिकेड तोड़ते हुए जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया। खट्टर को अपना कार्यक्रम आनन-फानन में समेटकर वहां से भागना पड़ा। बौखलाई  सरकार के इशारे पर पुलिस ने किसानों के जुझारू प्रदर्शन पर आंसूगैस के गोले दागे और बेरहमी से लाठीचार्ज किया, सैकड़ों किसान बुरी तरह जख्मी हुए, जिनमें अनेक महिलाएं थीं। एक घायल महिला किसान की लहूलुहान तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल होती रही। सौ के आसपास किसानों को गिरफ्तार किया गया। किसान नेता गुरुनाम सिंह चढूनी ने आरोप लगाया कि पुलिस ने रबर बुलेट भी दागीं। पुलिस की इस बर्बरता के खिलाफ किसानों में गुस्से की लहर फैल गयी। किसान नेताओं ने तेजी से पहल ली। 2 घण्टे के लिए सारे हाईवे जाम कर दिए गए और अगले दिन के लिए हरियाणा के सभी थानों के घेराव का एलान हो गया। तत्काल पुलिस कप्तान का किसानों ने घेराव किया। हिसार पुलिस महानिरीक्षक से किसान नेताओं की वार्ता हो रही थी, बाहर राकेश टिकैत किसानों की विशाल आक्रोश-सभा को सम्बोधित कर रहे थे। टिकैत ने सभा को सूचित किया कि मुजफ्फरनगर और पश्चिम उत्तर प्रदेश के अन्य स्थानों पर भी किसान हरियाणा के अपने भाइयों के समर्थन में सड़क पर उतर रहे हैं।

किसानों के उग्र तेवर से सहमी सरकार ने देखते-देखते घुटने टेक दिए और सभी गिरफ्तार किसानों को तत्काल रिहा करने की घोषणा की। किसानों ने भी reciprocate करते हुए थानों के घेराव का कार्यक्रम वापस लेने का एलान किया।

पूरे घटनाक्रम पर बयान जारी कर संयुक्त किसान मोर्चा ने चेतावनी दी, " हरियाणा के किसान आगामी कार्रवाई तय कर हरियाणा सरकार को जवाब देंगे। सयुंक्त किसान मोर्चा यह स्पष्ट करता है कि हालांकि किसानों का यह आंदोलन केंद्र सरकार के खिलाफ है जो तीन कृषि कानूनो और MSP के सवाल पर केंद्रित है। परन्तु अगर हरियाणा सरकार बीच मे किसानों को बदनाम व परेशान करती है तो किसान उसे भरपूर सबक सिखाएंगे। "

यह ठीक वही तेवर था जो 4 महीने पहले 10 जनवरी को किसानों ने दिखाया था जब करनाल के कैमला गाँव में खट्टर के कार्यक्रम का विरोध करते हुए किसानों ने हेलीपैड खोद दिए थे और खट्टर को अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ा था।

जिनके मन मे किसान-आंदोलन को लेकर इस बीच कुछ आशंका पैदा हुई हो  कि किसान आंदोलन कमजोर पड़ गया है और जैसे महामारी की पहली लहर में शाहीन बाग आंदोलन खत्म हो गया वैसे ही दूसरी लहर में किसान आंदोलन अपनी मौत मर जायेगा, उनके लिए 16 मई को यह देखना  बेहद आश्वस्तकर रहा होगा कि किसान आंदोलन पहले की ही तरह पूरी आन-बान-शान के साथ जारी है। और उसका तेवर और जुझारूपन पूरी तरह बरकरार है। इसी दौरान किसान नेताओं ने पश्चिम बंगाल के महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव में अपना " भाजपा हराओ " अभियान सफलतापूर्वक संचालित किया। असम में भी किसान नेता और चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता अखिल गोगोई ने जेल से अपना चुनाव जीता, जिनके समर्थन में संयुक्त किसान मोर्चा के नेता शिवसागर में उनके प्रचार में उतरे थे। 

पिछले दिनों खेती के व्यस्त मौसम की वजह से किसान जरूर अपने गांवों को लौटे थे और इसी बीच आयी कोरोना की दूसरी लहर का भी दबाव है, पर इस सब के बावजूद संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर किसानों के जत्थे फिर दिल्ली मोर्चे की ओर कूच करने लगे हैं। 

आंदोलन जो अपनी शुरुआत से जाति-धर्म की सीमा के पार किसान एकता, आपसी भाईचारे, बहुलतावादी संस्कृति और लोकतांत्रिक मूल्यबोध का पर्याय बना हुआ है, वह राष्ट्रीय एकता की उसी भावना के साथ आगे बढ़ रहा है।

सिंघु बॉर्डर पर  किसानों के धरने में ईद का त्योहार मनाया गया व किसानों को धर्म के आधार पर बांटने वाली ताकतों को करारा जवाब देने का संकल्प लिया गया। 

खट्टर और भाजपा द्वारा किसानों के ऊपर कोरोना फैलाने के आरोप से नाराज किसानों ने यह जायज सवाल उठाया कि " लॉकडाउन है तो ये खट्टर  500 लोगों की भीड़ जुटाकर उद्घाटन करते क्यों घूम रहे हैं? उससे कोविड नहीं फैलता? इतने लोग मर रहे तो ये फीते काटकर उत्सव क्यों मना रहे हैं!  क्या यह उद्घाटन ऑनलाइन नहीं हो सकता था? "

किसानों ने अपने मोर्चों पर महामारी के मद्देनजर व्यवस्था चाक-चौबंद कर रखी है, यहाँ तक कि वे दिल्ली के अन्य इलाकों के जरूरतमंदों की भी मदद कर रहे हैं, उनका सीधा आरोप है कि मोदी-शाह खुद महामारी के सुपरस्प्रेडर हैं, जिस तरह चुनाव-आयोग के साथ मिलकर उन्होंने चुनाव करवाये, खुद बिना मास्क के बड़ी-बड़ी रैलियों के लिए अपनी पीठ ठोंकी और कुम्भ का आयोजन करवाया। अब वे किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए अपने कुकर्मों और नाकामी का ठीकरा किसान आंदोलन पर फोड़ना चाहते हैं, ठीक वैसे ही जैसे पहली लहर के दौरान तब्लीगी जमात के खिलाफ किये थे।

किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि यह हमारा गाँव है। जैसे हम गांव में रहते हैं, वैसे ही यहां रहेंगे सारे एहतियात के साथ। क्या कोरोना के लिये गाँव से भी किसानों को भगाया जाएगा?

सच तो यह है कि स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त होने के चलते, जिसे माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने "राम भरोसे" बताया है, किसान जो अपने घरों में हैं, उन्हीं की क्या सुरक्षा है?

ग्रामीण क्षेत्रों और किसानों के बीच सरकार के खिलाफ लगातार बढ़ते आक्रोश को भांपते हुए मोदी ने 14 मई को किसान सम्मान निधि की 2000 रुपये की एक किश्त उनके खातों में डाली। यह प्रति परिवार 500 रुपये मासिक है। 5 व्यक्ति के औसत परिवार  के हिसाब से देखा जाय तो यह प्रति व्यक्ति 3.33 रुपये दैनिक है। किसानों ने ठीक कहा है कि यह सम्मान नहीं अपमान निधि है, 5 रुपये से कम तो लोग अब भिखारी को भी नहीं देते! मोदी सरकार की बदइंतजामी के चलते जो परिवार महामारी में फंसे हैं उनका न जाने कितने हजार का दिवाला इसी दौर में पिट गया।

संयुक्त किसान मोर्चा ने इस पर बयान जारी कर सरकार की निंदा की है, " यह अफसोसनाक है कि एक निरन्तर चल रही योजना को बार बार त्योहार की तरह पेश किया जाता है। यह सिर्फ छवि चमकाने की कोशिश है। एक तरफ जहां 450 के करीब किसानों की इस आंदोलन के दौरान मौत हो गयी है व किसान 5 महीनों से ज्यादा सड़कों पर समय गुजार रहे है, उस समय सरकार सिर्फ कुछ पैसे की क़िस्त भेज कर किसानों का सम्मान करने का दिखावा कर रही है, हम इसे किसान सम्मान की बजाय किसान अपमान की तरह देखते हैं। किसानों का असली सम्मान तभी होगा जब सभी फसलों पर सभी किसानों को C2+50% फार्मूला पर MSP की कानूनी गारन्टी मिलेगी व सही खरीद होगी।"

"यह बेहद निंदनीय है कि प्रधानमंत्री व कृषि मंत्री ने आज के कार्यक्रम में एक बार भी प्रदर्शनकारी किसानों का नाम नहीं लिया। पिछले साढ़े पांच महीनों से सड़को पर समय गुजार रहे किसानों के सम्मान को रौंदकर सरकार उन्हें तरह तरह से बदनाम कर रही है। 22 जनवरी के बाद से सरकार ने पिछले 4 महीने से प्रदर्शनकारी किसानों से बातचीत तक नहीं की है।"

क्या मोदी सरकार किसान आंदोलन और कोविड के डबल असाल्ट को झेल पाएगी। अगले चंद महीनों के अंदर देश के राजनीतिक दृष्टि से सबसे निर्णायक राज्य उत्तर प्रदेश की धरती पर लड़े जाने वाले महाभारत में इसका फैसला होगा।

लंदन के अखबार  Financial Times के अनुसार  बहुत से भारतीय महसूस करते हैं कि मोदी ने महामारी की दूसरी लहर के संकेतों की साफ तौर पर उपेक्षा की और जनता को पूरी तरह भाग्य भरोसे छोड़ दिया तथा उनकी यातना के प्रति  उदासीन बने रहे। अखबार का निष्कर्ष  है कि महामारी की दूसरी लहर को संभाल पाने में नाकामी ने मोदी का कद घटाया है। 

किसानों के प्रति जारी सरकार के शत्रुतापूर्ण रुख ने किसान-आंदोलन की भाजपा-विरोधी दिशा को और तीखा किया है, पश्चिम बंगाल चुनाव परिणाम से उत्साहित किसान नेताओं ने कहा है कि बंगाल के बाद उत्तर प्रदेश अब उनका अगला निशाना है। 

बंगाल में भाजपा की हार को किसानों ने अपनी पहली बड़ी जीत करार दिया था और दिल्ली बॉर्डर के किसान मोर्चों पर मिठाईयां बंटी। वैसे तो CSDS के निदेशक संजय कुमार ने बंगाल में किसान आंदोलन के सम्बंध में विभिन्न सामाजिक व राजनीतिक रुझान वाले तबकों में  व्यापक सर्वे के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि आगामी चुनावों के लिए इसके बेहद नुकसानदेह राजनीतिक निहितार्थों को समझते हुए मोदी सरकार 3 कृषि कानूनों को वापस ले सकती है। 

पर सरकार अगर वैश्विक पूँजी और कारपोरेट के प्रति अपनी वर्गीय प्रतिबद्धता के चलते अब भी अड़ी रहती है, तो किसानों का यह मोर्चा उसके लिए वाटरलू बनेगा, पहले 2022 में उत्तर प्रदेश में और फिर 2024 में लोकसभा चुनाव में। हाल के उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में भाजपा की अगर प्रदेश में दुर्गति हुई है, और वह 2017 और 2019 के अपने प्रचण्ड बहुमत से गिरकर अब प्रदेश में दूसरे नम्बर की पार्टी हो गयी है, तो उसमें महामारी नियंत्रण में  भयानक नाकामी के साथ साथ किसान आंदोलन की भी भूमिका है।

16 मई को किसानों के साथ हिसार में टकराव के अगले दिन अमित शाह से खट्टर की मुलाकात हुई है। खट्टर ने कहा कि कोविड और किसान आंदोलन के बारे में बातचीत हुई और हमको जैसा निर्देश मिलेगा उसके हिसाब से हम आगे बढ़ेंगे। वैसे तो सरकार बंगाल और उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव परिणामों के बाद दबाव में है, लेकिन किसी mischief की संभावना को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता।

बहरहाल, सरकार अगर कोई दुस्साहस करती है तो यह मोदी राज के लिए आत्मघात से कम नहीं होगा और उसकी ताबूत में आखिरी कील साबित होगा।

वैश्विक महामारी के बीच, रोज नए नए आंधी तूफ़ान का मुकाबला करते, जिस तरह 6 महीने से यह अनोखा आंदोलन बिना थके, बिना दबे,  बिना रास्ते से भटके आगे बढ़ रहा है, यह जनांदोलनों के इतिहास का एक अभूतपूर्व अध्याय है। इस आंदोलन में मोदी-शाह के कारपोरेटपरस्त फ़ासीवादी निज़ाम के खिलाफ मुकम्मल प्रतिपक्ष के बीज है। सुप्रसिद्ध इतिहासकार स्व. प्रो. लाल बहादुर वर्मा ने अपनी मृत्यु से कुछ दिनों पूर्व गाजीपुर बॉर्डर पर कहा था, "भारत में कुछ बड़ा घटने वाला है...हालात बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे क्रांति पूर्व फ्रांस में थे।"

आने वाले दिनों में किसान-आंदोलन भारतीय लोकतंत्र की एक नई इबारत लिखेगा।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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