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निर्माण श्रमिक कल्याण के पतन के कारण क्या हैं?

करोड़ों रुपये का इस्तेमाल न किए जाने वाली निधियों पर बैठे असफल सामाजिक कल्याण बोर्डों को भवन और निर्माण श्रमिकों की सेवा के लिए अपने प्रयासों को फिर से शुरू करना चाहिए।
Labour

2011 से 2023 के बीच निर्माण उद्योग में रोजगार 4 करोड़ 10 लाख से बढ़कर 7 करोड़ 10 लाख हो गए हैं। इनमें से अधिकांश श्रमिक समाज के सबसे हाशिए पर रहने वाले वर्गों के प्रवासी हैं, जो पानी, स्वच्छता और भोजन की बेहतर पहुंच के अभाव में अपने कार्यस्थल पर झुग्गी-झोपड़ियों या अस्थायी आवासों में रह रहे हैं। इन श्रमिकों को अक्सर न्यूनतम वेतन से कम पर काम मिलता है; ऐसे मामले प्रचलित हैं जहां उन्हें मालिक से न्यूनतम वेतन मिलता है, और बाद में उन्हें एक हिस्सा (कट मनी) अपने ठेकेदार या उपठेकेदारों को रिश्वत के रूप में देना पड़ता है। निर्माण कार्यों में वृद्धि के साथ, कार्यस्थल पर दुर्घटनाओं की संख्या भी बढ़ रही है, जिससे मौतें हो रही हैं।

दुर्भाग्य से, ये सभी मुद्दे विधायी सुरक्षा उपायों की उपस्थिति में मौजूद हैं। संसद ने भवन और अन्य निर्माण श्रमिक (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम, 1996 (इसके बाद बीओसीडब्ल्यू अधिनियम या अधिनियम) भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण उपकर अधिनियम, 1996 (इसके बाद बीओसीडब्ल्यू उपकर अधिनियम) को विनियमित करने के लिए अधिनियमित किया था ताकि उनके रोजगार और काम से संबंधित अन्य मुद्दे रेगुलेट किए जा सके।

अधिनियम में 'भवन और अन्य निर्माण कार्य' के अंतर्गत किसी भी निर्माण-संबंधी कार्य का निर्माण, परिवर्तन, मरम्मत, रखरखाव या भवन का विध्वंस शामिल है। यह उन सभी 'प्रतिष्ठानों' पर लागू होता है जो एक वर्ष में 10 या अधिक भवन निर्माण श्रमिकों को रोजगार देते हैं। अधिनियम अन्य बातों के साथ-साथ व्यावसायिक सुरक्षा, साप्ताहिक और दैनिक काम के घंटे, वेतन का भुगतान, ओवरटाइम, पीने के पानी तक पहुंच, स्वच्छता, मुफ्त आवास से संबंधित विस्तृत प्रावधान देता है।

सुरक्षा के प्रावधान 

अधिनियम निर्माण कार्य स्थल पर मालिक को महत्वपूर्ण सुरक्षा दिशानिर्देश लागू करने का निर्देश देता है। कुछ प्रावधान विस्तृत हैं, जिनमें एक निश्चित ऊंचाई से ऊपर काम करते समय जाल का इस्तेमाल, हेलमेट और सुरक्षा जूते पहनना और एक मजदूर द्वारा उठाए जा सकने वाले अधिकतम भार को तय करना शामिल है। बीओसीडब्ल्यू के नियमों के अनुसार, एक वयस्क पुरुष श्रमिक 55 किलोग्राम और एक महिला श्रमिक 30 किलोग्राम वजन सिर या कंधे पर उठा सकती है। हालांकि, श्रमिकों को भारी निर्माण सामग्री ले जाते हुए देखना आम बात है।

अधिनियम बड़े प्रतिष्ठानों को, जो प्रभावी रूप से 500 या अधिक निर्माण श्रमिकों को रोजगार देते हैं, एक सुरक्षा समिति गठित करने का आदेश देता है जिसमें नियोक्ताओं और निर्माण श्रमिकों दोनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। समिति के कुछ महत्वपूर्ण कार्य हैं जिनमें संभावित क्षेत्रों की पहचान करना और असुरक्षित प्रथाओं में सुधार लाने का सुझाव देना है।

कार्यस्थल पर मृत्यु, चोटें अक्सर रिपोर्ट नहीं की जातीं हैं

निर्माण कार्य में मौतें और चोटें एक हक़ीक़त हैं, जो अक्सर ठेकेदारों और मालिकों की लापरवाही के कारण होती हैं। निर्माण क्षेत्र में सुरक्षा उपकरण अक्सर दुर्लभ होते हैं, इसके अतिरिक्त, यदि उपलब्ध भी होते हैं तो वे घटिया गुणवत्ता के होते हैं।

नियम 210 निर्माण स्थलों पर सभी प्रकार की दुर्घटनाओं की रिपोर्टिंग करने के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया के बारे में बताता है। रिपोर्ट बताती है कि देश भर में निर्माण स्थलों पर प्रतिदिन 38 घातक दुर्घटनाएं होती हैं। इस क्षेत्र के प्रमुख मालिक अक्सर दुर्घटना या मौत की खबर सामने नहीं आने देते हैं, और श्रमिकों के परिवारों को ठेकेदारों या उपठेकेदारों के माध्यम से मामूली मुआवजा राशि दी जाती है और इस बारे में चुप रहने के लिए कहा जाता है।

घायल श्रमिकों को बेहतर पुनर्वास और मुआवजा देने का प्रावधान इस अधिनियम और कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 दोनों के तहत उपलब्ध है। लेकिन जमीनी स्तर पर, यह लाभार्थियों के लिए मुख्य रूप से पहुंच योग्य नहीं है; जिसकी वजह: 'अधिकार तक पहुंच' और 'थका देने वाली प्रशासनिक प्रक्रियाएं' हैं।

रोज़गार प्रशिक्षण और पदोन्नति का अभाव

2011 और 2023 के बीच निर्माण श्रमिकों का रोजगार 4 करोड़ 10 लाख से बढ़कर 7 करोड़ 10 लाख हो गया है। इस क्षेत्र में कार्यरत 7 करोड़ 10 लाख श्रमिकों में से लगभग 81 फीसदी अकुशल हैं। बढ़ती मांग के बावजूद इस क्षेत्र में कुशल श्रमिकों की कमी है। अधिकांश प्रवासी श्रमिक स्वाभाविक पसंद के रूप में काम और निर्माण कार्य के लिए जमीन की तलाश में बड़े शहरों का रुख करते हैं। इन श्रमिकों को अक्सर अनौपचारिक रूप से प्रशिक्षित किया जाता है लेकिन नियोक्ता द्वारा इन्हें कुशल श्रमिकों के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है।

दिल्ली में एक निर्माण स्थल पर अपने फील्डवर्क दौरे के दौरान, मैं झारखंड के एक पिता-पुत्र की जोड़ी को राजमिस्त्री सहायक के रूप में काम करते हुए देखकर आश्चर्यचकित रह गया। पिता 20 वर्षों से सहायक के रूप में काम कर रहे थे, जबकि उनका बेटा कोविड महामारी के बाद उनके साथ जुड़ गया था। 20 वर्षों के कार्य अनुभव के बावजूद, पिता को कभी भी कुशल श्रमिक के रूप में पदोन्नत नहीं किया गया।

रोज़गार प्रशिक्षण के न होने से इन श्रमिकों के लिए पदोन्नति की संभावना को और कम कर देती है और वे जीवन भर एक ही स्थिति में काम करते रहते हैं। यह श्रमिकों के विकास को अक्षम कर देता है और उन्हें स्थिर बना देता है, जिससे वे गरीबी की चपेट में आ जाते हैं।

बीओसीडब्ल्यू बोर्ड और कल्याण योजनाएं

बीओसीडब्ल्यू अधिनियम की एक महत्वपूर्ण विशेषता देश भर के प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में राज्य कल्याण बोर्ड (एसडब्ल्यूबी) की स्थापना करना है। बीओसीडब्ल्यू उपकर अधिनियम के तहत, इन बोर्डों को (कुल) निर्माण लागत पर 1-2 फीसदी उपकर लगाना अनिवार्य है। (बीओसीडब्ल्यू उपकर) अधिनियम कहता है कि एकत्र किए गए उपकर का उपयोग श्रमिकों के लिए चल रही योजनाओं के लिए किया जाना है। अधिनियम की धारा 22, श्रमिकों की शिक्षा, उनके पति/पत्नी, बच्चों, स्वास्थ्य, मातृत्व, चोट मुआवजा, आवास और पेंशन योजनाओं से संबंधित विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का विवरण देती है।

मिशन मोड प्रोजेक्ट दिशानिर्देशों (श्रम और रोजगार मंत्रालय, 2020) के अनुसार, बीओसीडब्ल्यू राज्य कल्याण बोर्डों के पास लगभग 38,000 करोड़ रुपये पड़े हैं जिन्हें इस्तेमाल नहीं किया गया है। कम इस्तेमाल किए गए धन पर बैठे इन बोर्डों ने बीओसीडब्ल्यू श्रमिकों के साथ अन्याय किया है।

कुछ अच्छे कदम

हाल ही में, सोशल कॉम्पेक्ट (दसरा, आजीविका ब्यूरो और सामाजिक न्याय केंद्र का एक समूह) जैसी पहल छह परिणामों पर ध्यान केंद्रित करके श्रमिकों के जीवन में बदलाव लाने के बड़े लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध हैं, जैसे - मजदूरी, स्वास्थ्य, सुरक्षा, लिंग, पात्रता तक पहुंच और काम का भविष्य इसमें शामिल है।

कई एसडब्ल्यूबी अब श्रमिकों को साइकिल, उपकरण और उपकरण खरीदने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रहे हैं। महाराष्ट्र बोर्ड एक सुरक्षा और कार्य किट प्रदान करता है जिसमें टॉर्च, टिफिन बॉक्स, हेलमेट, सुरक्षा जूते, हार्नेस और दस्ताने शामिल हैं। एक कदम आगे बढ़ते हुए, गुजरात बोर्ड ने चार शहरों - अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत और राजकोट में परिवहन विभाग के सहयोग से एक मुफ्त बस पास योजना 'श्रमिक मनपसंद पास योजना' शुरू की है। इस योजना का लक्ष्य इन श्रमिकों की यात्रा लागत को कम करना है और इसलिए, उन्हें बेहतर कामकाजी स्थिति हासिल करने में मदद करना है। इसी तरह, बेंगलुरु मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्टेशन कॉरपोरेशन (बीएमटीसी) ने पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को बीएमटीसी बसों में यात्रा करने के लिए मुफ्त बस पास जारी किए हैं।

एलएंडटी जैसे बहुराष्ट्रीय निर्माण कंपनियों ने देश भर में फैले अपने प्रमुख 'निर्माण कौशल प्रशिक्षण संस्थानों' के तहत अकुशल श्रमिकों के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम भी शुरू किए हैं।

आगे का रास्ता 

बीओसीडब्ल्यू अधिनियम एक व्यापक कानून है जो निर्माण श्रमिकों से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को कवर करता है। श्रमिकों को सीधे योजना का लाभ प्रदान करने के लिए एसडब्ल्यूबी को 'ई-श्रम' श्रमिक पंजीकरण पोर्टल से जोड़ा जा सकता है। एसडब्ल्यूबी को पात्र निर्माण श्रमिकों की परेशानी मुक्त पंजीकरण प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है। इसमें मिशन मोड प्रोजेक्ट दिशानिर्देश, 2020 के तहत मिस्ड कॉल के माध्यम से पंजीकरण, सदस्यता नवीनीकरण में आसानी और एक राज्य से दूसरे राज्य में सदस्यता के आसान हस्तांतरण की सुविधा भी होनी चाहिए। राज्य कल्याण बोर्डों को यह महसूस करना चाहिए कि बीओसीडब्ल्यू फंड श्रमिकों के लिए है, और यह उन पर खर्च किया जाना चाहिए।

लेखक बेंगलुरु के प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय में श्रम कानून पढ़ाते हैं। विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

Construction Workers’ Welfare: Anatomy of a Fall

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