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बात बोलेगी : सहकारिता मंत्रालय के पीछे RSS के विस्तार की रणनीति !

इस बात की आशंका है कि आने वाले दिनों में यह मंत्रालय विविध और व्यापक सहकारिता आंदोलन को एक तरह के विचारों की दिशा में काम करने के लिए बाध्य करेगा।

मोदी सरकार ने मंत्रिमंडल में फेरबदल के साथ ही एक नया मंत्रालय बनाया सहकारिता मंत्रालय (co-operation ministry)  और इसकी कमान सौंपी सीधे गृह मंत्री अमित शाह को। इस मंत्रालय के बनाये जानेया इसकी मांग सहकारिता क्षेत्र से आने की खबर नहीं थी। फिर सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों यह मंत्रालय बनाया गया और मोदी सरकार में सबसे ताकतवर व्यक्ति अमित शाह को इसकी कमान सौंपी गई। इसके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और उसका अनुषांगिक संगठन सहकार भारती का होना है।

सहकार भारती के संस्थापक सदस्य सतीश काशीनाथ मराठे, जो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में अंशकालिक निदेशक हैं, ने सबसे पहले मोदी सरकार द्वारा इस नये मंत्रालय को बनाये जाने का स्वागत किया और आभार जताया कि केंद्र सरकार ने सहकार भारती की फरवरी में रखी गई मांग को अमलीजामा पहना दिया। मोदी सरकार की तत्परता का आलम यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अनुषांगिक संगठन ने फरवरी में नये मंत्रालय की मांग की और जुलाई के पहले पखवारे से पहले ही उस पर अमल हो गया। इसके जरिये देश भर के सहकारी क्षेत्र को सीधे केंद्र के अंतर्गत लाने, उसे नये ढंग के नियम-कायदे में बांधने की शुरुआत हो गई है।

नोटबंदी, जीएसटी के बाद यह सहकारिता मंत्रालय देश के अंचल में बसे और जीवंत आर्थिक स्रोत पर कब्जा जमाने वाला कदम हो सकता है। जैसा कि हम सब जानता है कि देश भर में सहकारिता आंदोलन औऱ इसकी अनगिनत इकाइयां मंदी के दौर में भी लाखों की तादाद में लोगों को आजीविका मुहैया कर रही हैं। साथ ही तमाम राजनीतिक दलों की सहकारिता समितियों-कॉ-ओपरेटिव पर पकड़ मजबूत है। महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी की चीनी मिलों पर पकड़ भी लंबे समय से भाजपा को नागवार लग रही है। सहकारिता आंदोलन की खूबसूरती और मजबूती उसका विकेंद्रित स्वरूप हैजिसे इस मंत्रालय के तहत नष्ट करने की कोशिश की गई है। शायद यही वजह है कि इसकी कमान गृह मंत्री को सौंपी गई हैसारी जानकारी, सारे स्रोत एक केंद्र में जाएं और वहां से ही ऑपरेशन को अंजाम दिया जाए।

सरकार की इस तैयारी और आरएसएस की रणनीति-दोनों देश के विविधता और विकेंद्रीयकरण के प्रतीक सहकारिता आंदोलन को एक अलग प्रशासनिक, वैधानिक और नीतिगत ढांचे (सरकारी बयान) में बांधने और रेगुलेट करने की है।

मोदी सरकार की तरफ से जो जानकारी सार्वजनिक की गई है उसके मुताबिक यह मंत्रालय सहकारी समितियों के लिए कारोबार में आसानी के लिए तमाम प्रक्रियाएं सुव्यवस्थित करने औऱ बहु-राज्य सहकारी समितियों का विकास सुनिश्चित करने के लिए काम करेगा। इसकी तैयारी वित्त मंत्री निर्मला सीमारण ने अपने बजट भाषण में ही कर दी थी, जिसमें उन्होंने कहा थासहकारी समितियों के लिए कारोबार करना आसान बनाने के उद्देश्य से मैं उनके लिए एक अलग प्रशासनिक ढांचा स्थापित करने का प्रस्ताव करती हूं।

इस नये मंत्रालय की तैयारी अपने चिरपरिचित अंदाज में मोदी सरकार ने पूरे गुपचुप तौर से की। और फिर सहकार से समृद्धि  के स्लोगन के साथ पेश कर दिया। इस बारे में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के महासचिव सीताराम येचुरी ने जो ट्वीट किया, उससे कई चिंताजनक पहलुओं पर विचार करना जरूरी हो उठाता है। सीताराम येचुरी ने सवाल उठाया कि अभी तक कोऑपरेटिव सोसाएटीज राज्य सरकारों के अंतर्गत आती है, संविधान के 7वें शिड्यूल के मुताबिक, राज्य सरकारों के तहत चलती हैं। ऐसे में यह नया मंत्रालय भारत के संघीय ढांचे (फेडरल स्ट्रचर) को नष्ट करेगा। उन्होंने यह भी आशंका जताई कि देश के सार्जिनक क्षेत्र के बैंकों को लूटने और वहां से पूंजीपतियों के भयानक ऋण देने के बाद अब वे देश भर में फैले सहकारी बैंकों को लूटने की तैयारी कर रहे हैं।

इस बात की आशंका है कि आने वाले दिनों में यह मंत्रालय विविध और व्यापक सहकारिता आंदोलन को एक तरह के विचारों की दिशा में काम करने के लिए बाध्य करेगा। सहकार भारती का लक्ष्य भी यही हैवह सहकारिता आंदोलन में गड़बड़ियों को ठीक करने की जो बात करते हैं। 

(भाषा सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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