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आत्मालोचन को विवश करने वाली दस्तावेज़ी महत्व की पुस्तक है - 'भारत कहां'

 '' 'भारत कहां' किताब में हमारी कई चिंताओं को सामने रखा गया है। पुस्‍तक के अनुसार इंडिया और भारत का नकली झगड़ा शुरू किया जा रहा है। आज भारत कहां है इसे समझने की कोशिश इस किताब में की गई है।"
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पटना: 'भारत कहां' पुस्तक के संपादक रामबाबू कुमार सांकृत्य ने अपने संबोधन मे कहा "आजादी के 75 वीं वर्षगांठ को अमृत महोत्सव के रूप में मनाए जाने का ऐलान हुआ। अमृत महोत्सव के समय देश में इतने अधिक तिरंगे झंडे की मांग हुई कि खादी के तिरंगे झंडे की जगह पॉलिस्टर के झंडे विदेशों से मंगाए। अब तो 2047 तक के अमृत काल की चर्चा होने लगी है। हमने आजादी के 75 साल के मौके पर 'जनशक्ति' साप्ताहिक के पांच अंक निकले। जैसे गांधी जयंती, नेहरू जयंती और गणतंत्र दिवस और भगत सिंह व आंबेडकर और फिर 15 अगस्त के मौके पर विशेषांक निकाला गया था। इस किताब में इन्हीं लेखों को शामिल किया गया है। देश के विकास के विविध आयामों को देखते हुए सरकारी दावों का पर्दाफाश करते हुए हमने सामने लाने की कोशिश की है। इस प्रक्रिया में बहुत सारी सामग्री प्राप्त हुई। ऐतिहासिक दस्तावेज भी इस किताब में शामिल किए गए हैं। अमृत महोत्सव में क्‍या कमियां रहीं, क्या खूबी हैं इन सबको इस किताब में संग्रहित किया गया है। इस किताब में आज भारत कहां है इसे समझने की कोशिश की गई है।"

पटना कॉलेज के प्राचार्य प्रो. तरुण कुमार ने पुस्तक के प्रति अपनी राय प्रकट करते हुए कहा "लेखों का सौंदर्यपूर्ण ढंग से संपादन किया है उसकी यह पुस्तक मिसाल है। आजादी की लड़ाई के दौरान सपनों का भारत या भारत की खोज शुरू की। नेहरू जी ने तो 'भारत एक खोज' किताब ही लिखी। गांधी, नेहरू और महान लेखक प्रेमचंद के पास भारत का एक सपना था। इसी सपने के इर्द - गिर्द आजादी के लड़ाई शुरू हुई। इसे भले ही समकालीन चिंतन से लिखा गया है लेकिन भविष्य के लिए दस्तावेज की तरह है यह किताब। किताब में गांधी, नेहरू, भगत सिंह बी.आर. आंबेडकर के अलावा इकबाल, फैज, सरोजिनी नायडू, फैज अहमद फैज और आइंस्टाइन भी हैं। किताब बताती है कि पूंजीवादी आर्थिक अराजकता के कारण अस्थिरता बनी रहती है। आज भारत जहां है वहां क्यों है? इतिहास में आकस्मिक घटना कुछ नहीं होती। हजारी प्रसाद द्विवेदी कहा करते थे कि भक्ति साहित्य अचानक कौंध जाने वाली बिजली नहीं है बल्कि इसके पीछे हजारों साल का प्रयास रहा है। कांग्रेस, समाजवादियों, कम्युनिस्टो और दक्षिणपंथी लोगों की भी परिकल्पना अलग अलग थी। इतिहास की बड़ी विडंबना यह थी कि आजादी के वक्त देश में उल्लास नहीं था। गांधी ऐसे वक्त में उदास थे। कम्युनिस्ट के सामने भी आजादी का तसव्वुर वह नहीं है दक्षिणपंथी लोगों को लगता था की हिंदू राष्ट्र बना ही नहीं।"

प्रो. तरुण कुमार ने आगे अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा, ''गांधी कहा करते थे कि वे सनातन हिंदू है और अल्ला-ईश्वर तेरो नाम की बात किया करते थे। गांधी चाहते थे परंपरा और कृषि प्रधान समाज से उपजे मूल्य को लेकर आगे बढ़ा जाए। गांधी और नेहरू के बीच के संवाद को देखना चाहिए। वे मिलिटेंट हिंदू के खिलाफ थे और दक्षिणपंथी लोगों की राह में बाधा थे। प्रेमचंद अपने एक पात्र के माध्यम से कहा करते थे कि क्या फर्क पड़ता है कि गोरों की जगह काले बैठ जाएं।  मैंने गांवों में बुजुर्गो को कहते सुना है कि आज के समय से तो बेहतर अंग्रेजों का राज था। आखिर कोई तो उनका दर्द था। हमें आज के भारत को देखने के लिए इसके इतिहास को ठीक से देखना होगा।

आजाद भारत में कम्युनिस्टों का संबंध नेहरू जी से तीखा रहा। पार्टी प्रतिबंधित रहा। कवि मुक्तिबोध की चिंता क्या थी? चिंता यह थी कि नेहरू के बाद भारत का क्या होगा और कहीं भारत में तानाशाही तो नहीं आ जायेगी। इस पर उनकी महान कविता है "अंधेरे में"। इस मायने में देश नेहरू का चिर ऋणी रहेगा। आज भी बहुत सारी विकृतियों के बावजूद लोकतंत्र बचा हुआ है। धर्म और धर्मनिरपेक्षता के बारे में सोच जनमानस के बीच एक ऐसा रूप है जो हमारे अनुकूल नहीं है। मार्क्स की बात को उसके संदर्भ से काटकर देखा जाता है। यदि सबको समान शिक्षा और स्वास्थ्य मिल जाता तो इतनी बात न बिगड़ती। 2014 के बाद हम लोग उनकी बातों में ट्रैप हो गए। आज के समय में गहरे आंतरिक लगाव और सच्चे हमदर्द की तरह न खड़े होंगे तो सिर्फ दाव पेंच से कुछ नहीं होगा। वामपंथी ताकतों को एकजुट होने में क्या दिक्कत है। यदि वाम पार्टियां एक हो जाएं तो बाकी दलों को उनके दबाव में आना होगा। यदि एकजुट हो जाएं तो उन्‍हें भारतीय राजनीति में अग्रगामी भूमिका में आना चाहिए। नवयुवकों को उपभोक्तावाद और तकनीक के संजाल से कैसे निकाला जाए यह उपाय सोचना चाहिए। यह किताब हमें आत्ममंथन के लिए विवश करती है।"

लोकार्पण करते हुए ऐप्सो के उपाध्यक्ष लक्ष्मीकांत तिवारी ने कहा "रामबाबू कुमार ने भारत कहां पुस्तक के माध्यम से समाजवादी भारत की परिकल्पना रखी थी। नेहरू के समाजवाद और भगत सिंह या मार्क्सवादियों के समाजवाद में अंतर था। 'भारत कहां' किताब में हमारी कई चिंताओं को सामने रखा गया है। पुस्‍तक के अनुसार इंडिया और भारत का नकली झगड़ा शुरू किया जा रहा है। भारत सरकार कहती है कि हमारे यहां पूंजीपति बढ़े हैं लेकिन यह कभी नहीं बताती की गरीब कितने बढ़े हैं। एक जमाने में डिक्टेटरशिप और प्रोलेटारियट से चिढ़ाते थे लेकिन आज तो डिक्टेटरशिप ऑफ वन पर्सन हो गया है।"

सभा को कांग्रेस नेता आशुतोष कुमार, पटना विश्विद्यालय में लोक प्रशासन के प्रोफेसर प्रो सुधीर कुमार, पटना जिला किसान सभा के संयोजक गोपाल शर्मा, भोला पासवान ने भी संबोधित किया।

इस मौके पर बिहार 'ऐप्सो' के महासचिव ब्रज कुमार पांडे और इतिहासकार ओ.पी जायसवाल और चर्चित कवि अरुण कमलकी पुस्तक के प्रति अपने भेजे गए शुभकामना संदेश को गजेंद्रकांत शर्मा द्वारा पढ़ा गया।

 'भारत कहां' का लोकार्पण अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन (ऐप्सो) और अभियान सांस्कृतिक मंच द्वारा बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ भवन में आयोजित किया गया। इस मौके पर पटना शहर के विभिन्न तबकों के प्रतिनिधि शामिल थे। कार्यक्रम का संचालन ऐप्सो के कार्यालय सचिव जयप्रकाश ने किया।

(अनीश अंकुर स्वतंत्र पत्रकार हैं।) 

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