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बना रहे रस: वे बनारस से उसकी आत्मा छीनना चाहते हैं

सुब्ह-ए-बनारस में सूरज की लालिमा के साथ अपनी सांसों को आवाज़ बनाकर शहनाई के जरिए रंग भरने वाले बिस्मिल्लाह खां को गंगा का किनारा आज भी ढूंढता है। बनारस में जो नदी आठों पहर अमनपसंद लोगों का पांव पखारती रही है, उस गंगा के आंचल में विहिप और बजरंग दल ने गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध वाले विवादित पोस्टर लगाए हैं।
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न्यूज़क्लिक डेस्क

कितना सुर कितनी खुशी कितनी मुहब्बत वल्लाह

क्या मेरी गुइयां छुपी है तेरी शहनाई में

                                             (मुकुल सरल)

ये शेर उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की शहनाई के सुरों में डूबकर ही कहा गया है। लेकिन अफ़सोस मुहब्बत के सुरों के शहर बनारस को आज नफ़रत की आग में झोंकने की पूरी कोशिश की जा रही है। विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल जिस घाट पर गैर हिंदुओं के प्रवेश को प्रतिबंधित कर रहे हैं, उसी शहर, उसी गंगा के घाट के लिए शायर नज़ीर बनारसी ने कहा था, "सोएंगे तेरी गोद में एक दिन मरके, हम दम भी जो तोड़ेंगे तेरा दम भर के, हमने तो नमाजें भी पढ़ी हैं अक्सर, गंगा तेरे पानी से वजू करके... "

इसी शहर के लिए मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा था कि यह हम हिन्दुस्तानियों का काबा है-

इबादत-ख़ाना-ए-नाक़ूसियानस्त

हमाना काबा ए हिन्दूस्तानस्त

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार विजय विनीत अपने रिपोर्ट में लिखते हैं-

विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल बनारस ने उन गंगा घाटों को गैर-हिंदुओं के लिए प्रतिबंधित करने की बाबत बड़े पैमाने पर पोस्टर चस्पा किया है जो बनारस के घाट सांप्रदायिक सद्भाव के मिसाल माने जाते रहे हैं। सुब्ह-ए-बनारस में सूरज की लालिमा के साथ अपनी सांसों को आवाज़ बनाकर शहनाई के जरिए रंग भरने वाले बिस्मिल्लाह खां को गंगा का किनारा आज भी ढूंढता है।

बनारस में जो नदी आठों पहर अमनपसंद लोगों का पांव पखारती रही है, उस गंगा के आंचल में विहिप और बजरंग दल ने गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध वाले विवादित पोस्टर लगाए हैं। ये संगठन अब अपनी काली कारगुजारियों से प्रसिद्ध शायर नजीर बनारसी और शहनाई सम्राट बिस्मिल्लाह खां की गंगा-जमुनी तहजीब को तार-तार करने पर उतारू हो गए हैं।

पढ़िए ये स्पेशल रिपोर्ट

बनारस में विहिप और बजरंग दल बेलगाम, गंगा घाटों के किनारे लगाए 'ग़ैर-हिंदुओं के प्रवेश प्रतिबंध' के पोस्टर

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