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भीमा कोरेगांव-16 के बारे में

यह पूरी प्रक्रिया सज़ा बन गयी है—कि कैसे बिना मुक़दमा चलाये अभियुक्तों को लंबे समय तक जेल के अंदर रखा जाये।
Bhima Koregaon case
सांकेतिक तस्वीर। साभार : Change.org

जेलों में पिछले क़रीब तीन-चार सालों से ‘माओवादी षडयंत्र’ के मामले में अभियुक्त के रूप में बंद देश के 16 आला दिमाग़ इस समय कैसी स्थिति में हैं? इन्हें भीमा-कोरेगांव-16 (BK-16) के सामूहिक नाम से जाना जाता है।

इस साल अक्टूबर के अंत में दिल्ली में जब मैं, लेखक और आर्टिस्ट सहबा हुसैन से उनके घर पर मिला, तब हमारे बीच चर्चा का मुख्य बिंदु यही था कि ये बंदी किन हालात से गुजर रहे होंगे। बंदियों के लिए गहरी चिंता और उनके बुलंद हौसले के लिए गहरा प्यार सहबा हुसैन की बातचीत से झलक रहा था।

सहबा मुंबई बराबर जाती रही हैं। जब भी वहां ट्रायल कोर्ट में या हाईकोर्ट में इन क़ैदियों की पेशी होती (ज़मानत अर्ज़ी के सिलसिले में), तब-तब वह वहां पहुंचती रही हैं और क़ैदियों से मिलती रही हैं। वह अपने साथ खाने-पाने की चीज़ें, किताबें और पत्रिकाएं ले जाती रही हैं—क़ैदियों को देने के लिए।

जानकारी के लिए बता दूं कि सहबा गौतम नवलखा की पार्टनर हैं। गौतम इस ‘षडयंत्र’ मामले में 16 अभियुक्तों में से एक हैं। सहबा की बातचीत में गौतम के लिए प्यार व चिंता सामने आ रही थी, साथ ही लड़ने के लिए मज़बूत इरादा भी झलक रहा था। गौतम मेरे पुराने दोस्त हैं।

भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद ‘माओवादी षडयंत्र’ मामले में पहले पुलिस और बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा 2018 से 2020 के बीच गिरफ़्तार किये गये 16 अभियुक्तों में से एक की पिछले साल (2021) जेल में मौत हो गयी। तीन अभियुक्त ज़मानत पर जेल से बाहर है। एक अभियुक्त एक महीने के लिए हाउस अरेस्ट में है (घर में नज़रबंद है), और फ़िलहाल जेल से बाहर है। बाक़ी 11 अभियुक्त जेल की सलाख़ों के पीछे हैं।

इन सभी विचाराधीन बंदियों को मुंबई की तलोजा और भायकुला जेलों में रखा गया है। इन पर नरेंद्र मोदी सरकार की पुलिस और जांच एजेंसी का आरोप है कि इन्होंने ‘देश के खिलाफ़ युद्ध छेड़ने का माओवादी षडयंत्र’ रचा और ये सब प्रतिबंधित भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सक्रिय सदस्य हैं या उससे गहराई से जुड़े हैं।

हालांकि चार साल से ज़्यादा समय बीत जाने के बाद भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) इस मामले में ठोस सबूत नहीं पेश कर पायी है। इस तथाकथित माओवादी षडयंत्र मामले में अभी तक मुक़दमा शुरू नहीं हुआ है—दूर-दूर तक उसके आसार नहीं हैं। एनआईए ने अभी तक—ध्यान दीजिये, पहली पांच गिरफ़्तारियां जून 2018 में हुई थीं—अदालत में औपचारिक (फ़ाइनल) आरोपपत्र दाख़िल नहीं किया है, अदालत ने आरोप तय नहीं किया है, लिहाजा मुक़दमा शुरू होने और मामले की सुनवाई होने की नौबत ही नहीं आ रही है। अभी और कितने साल लगेंगे, कहा नहीं जा सकता।

यह पूरी प्रक्रिया सज़ा बन गयी है—कि कैसे बिना मुक़दमा चलाये अभियुक्तों को लंबे समय तक जेल के अंदर रखा जाये। यह नरेंद्र मोदी सरकार की सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है।

आइये, देखते हैं, इस तथाकथित माओवादी षडयंत्र मामले में गिरफ़्तार किये गये अभियुक्तों की इस समय क्या स्थिति है।

83 साल के पादरी और आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फ़ादर स्टेन स्वामी को ज़मानत देने से अदालत बराबर इनकार करती रही। 5 जुलाई 2021 को जेल में उनकी मौत हो गयी। उन्हें एनआईए ने अक्टूबर 2020 में गिरफ़्तार किया था और वह मुंबई की तलोजा जेल में बंद थे।

82 साल के तेलुगू कवि और ऐक्टिविस्ट वरवर राव को फ़रवरी 2021 में मेडिकल आधार पर ज़मानत मिली और वह जेल से बाहर हैं। उन्हें अगस्त 2018 में गिरफ़्तार किया गया था।

ट्रेड यूनियन ऐक्टिविस्ट और मानवाधिकारवादी वकील सुधा भारद्वाज को दिसंबर 2021 में ज़मानत मिली। उन्हें अगस्त 2018 में गिरफ़्तार किया गया था। उन्हें भायकुला जेल में रखा गया था।

लेखक और स्कॉलर आनंद तेलतुंबडे को नवंबर 2022 में ज़मानत मिली। उन्हें अप्रैल 2020 में एनआईए ने गिरफ़्तार किया था। वह तलोजा जेल में बंद थे।

लेखक-पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को नवंबर 2022 में एक महीने के लिए हाउस अरेस्ट (घर में नज़रबंद) की स्थिति में रखा गया है। उन्हें अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया गया था और वह तलोजा जेल में बंद थे।

प्रोफ़ेसर शोमा सेन, प्रोफ़ेसर हनी बाबू, वकील सुरेंद्र गाडलिंग, ऐक्टिविस्ट महेश राउत, ऐक्टिविस्ट रोना विल्सन, ऐक्टिविस्ट सुधीर धवले, वकील और लेखक अरुण फ़रेरा, मानवाधिकार कार्यकर्ता वरनॉन गोनसाल्वेस, कबीर कला मंच से जुड़ी कलाकार ज्योति जगतप, गायक और जाति-विरोधी कार्यकर्ता सागर गोरखे और रमेश गेछोड़ को ज़मानत नहीं मिली है। इन्हें 2018 से 2020 के बीच गिरफ़्तार किया गया था।

(लेखक कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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