इस साल 4 लाख से ज्यादा भारतीयों ने छोड़ा देश, अमीर देशों की नागरिकता लेने में भी भारतीय सबसे आगे
ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अमीर देशों की नागरिकता लेने के मामले में भी भारतीय नागरिक सबसे आगे हैं। इसमें अमेरिका ऐसा है जहां भारतीय नागरिक भारी संख्या में जाकर बसे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भले ही भारत और कनाडा का विवाद चल रहा हो लेकिन अमेरिका के साथ-साथ कनाडा भी भारतीय नागरिकों का स्वागत करने के मामले में काफी आगे है। बीते कुछ सालों में कनाडा जाकर बसने वाले भारतीयों की संख्या में भारी तेजी आई है।
ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) की रिपोर्ट में कहा गया है कि कनाडा की नागरिकता लेने वाले भारतीयों की संख्या में 174 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल OECD देशों की नागरिकता लेने वाले लोगों की संख्या में कुल 28 लाख यानी 25 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 से ही इन देशों की नागरिकता लेने वालों में भारतीय नागरिक सबसे आगे हैं।
किन देशों के लोगों ने सबसे ज्यादा ली नागरिकता
साल 2019 में भारत के 1.55 लाख लोगों ने और 2021 में 1.32 लाख लोगों ने OECD देशों की नागरिकता ली। वहीं, मेक्सिको के 1.28 लाख लोगों ने 2019 में और 1.18 लाख लोगों ने 2021 में नागरिकता ली है। भारतीयों को सबसे ज्यादा नागरिकता देने के मामले में पहले नंबर पर अमेरिका, दूसरे पर ऑस्ट्रेलिया और तीसरे नंबर पर कनाडा है। 2021 में 56 हजार भारतीयों ने अमेरिका की, 24 हजार ने ऑस्ट्रेलिया की और 21 हजार ने कनाडा की नागरिकता ली है। इस लिस्ट में चीन पांचवे नंबर पर है और 2021 में उसके 57 हजार नागरिकों ने OECD देशों की नागरिकता ली है।
नागरिकता देने में तेजी दिखा रहा कनाडा
पेरिस-इंटरनेशनल माइग्रेशन आउटलुक में जारी ओईसीडी रिपोर्ट के अनुसार: 2023 में भारतीय अमीर देश की नागरिकता प्राप्त करने वाले सबसे बड़े राष्ट्रीय समूह हैं। साथ ही कनाडा ने 2021 और 2022 के बीच नागरिकता देने के मामले में सबसे बड़ी (174%) आनुपातिक वृद्धि दर्ज की है। पिछले वर्ष भी OECD देश की नागरिकता प्राप्त करने वाले विदेशी नागरिकों की संख्या सबसे अधिक 28 लाख थी, जो 2021 की तुलना में 25% अधिक है। रिपोर्ट 2022 के लिए मूल देश के डेटा का विस्तृत विवरण प्रदान नहीं करती है। हालांकि, यह बताती है कि भारत ने जब 2019 से ओईसीडी देश की नागरिकता प्राप्त करने की बात आती है तो यह मुख्य मूल देश रहा है।
विदेश मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार, जनवरी 2018 और जून 2023 के बीच 1.6 लाख या लगभग 20% भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़कर, कनाडा का विकल्प चुना।
नागरिकता देने में टॉप पर अमेरिका
2021 में, लगभग 1.3 लाख भारतीयों ने OECD सदस्य देश की नागरिकता हासिल कर ली। 2019 में ये आंकड़ा करीब 1.5 लाख था। चीन 2021 में इस दौड़ में पांचवें स्थान पर आया क्योंकि लगभग 57,000 चीनियों ने ओईसीडी देश की नागरिकता हासिल की। 38-सदस्यीय ओईसीडी में शीर्ष तीन देश जिन्होंने 2021 में भारतीय प्रवासियों को पासपोर्ट सौंपे, वे अमेरिका (56,000), ऑस्ट्रेलिया (24,000) और कनाडा (21,000) हैं।
कितने भारतीयों ने छोड़ी नागरिकता?
विदेश मंत्रालय (एमईए) ने खुलासा किया है कि कनाडा भारतीय प्रवासियों के बीच कितना लोकप्रिय है। जनवरी 2018 और जून 2023 के बीच, अपनी नागरिकता छोड़ने वाले 1.6 लाख या लगभग 20% भारतीयों ने कनाडा को चुना। अमेरिका इस लिस्ट में टॉप पर है। इस बीच, ऑस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम ने क्रमशः तीसरा और चौथा स्थान हासिल किया। इस समय सीमा के दौरान अपनी नागरिकता छोड़ने वाले कुल 8.4 लाख भारतीयों में से, महत्वपूर्ण 58.4% ने संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा का नागरिक बनने का विकल्प चुना है।
क्यों विदेश जा रहे भारतीय
स्टडी : कई लोग स्टडी वीजा पर जाते हैं। ग्रेजुएशन के बाद पोस्ट स्टडी वर्क वीजा के लिए अप्लाई करते हैं। इसके बाद स्थायी नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं और नागरिकता हासिल कर लेते हैं।
घूमने में आसानी : विदेशी नागरिकता से देश-विदेश घूमने में आसानी होती है। अमेरिका और कनाडा जैसे देशों के पासपोर्ट होने पर कई देशों में बिना वीजा भी यात्रा की सुविधा मिल जाती है।
काम : कई देशों में परस्पर काम का अधिकार भी एक वजह है। कई लोग इसका फायदा उठाते हैं।
सोशल सिक्योरिटी बेनिफिट- कई देशों व्यक्ति रूप से अन्य देशों के नागरिकों को सोशल सिक्योरिटी बेनिफिट की अनुमति देते हैं।
लुभावनी नौकरियां- विदेशों में सरकारी और संवेदनशील क्षेत्रों में नौकरी का भी मौका मिलता है।
वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक चिंतक दिलीप मंडल ट्वीट के माध्यम से व्यवस्थागत खामियों पर तंज कसते हुए कहते हैं कि इस साल 4 लाख लोगों ने भारतीय पासपोर्ट को अलविदा कह दिया। कामयाब लोग देश छोड़कर विदेश चले जा रहे हैं। अब तो अभागे मिडिल क्लास, गरीब तथा ग्रामीण लोगों पर ही अब देशभक्ति का सारा बोझ आ गया है। अब इसका दोष आरक्षण पर मत डाल देना। सरकारी सेक्टर में 2% नौकरी भी नहीं हैं।
साभार : सबरंग
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