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“भीख नहीं इज़्ज़त चाहिए” : पेंशन में बढ़ोतरी समेत कई मांगों को लेकर इकठ्ठा हुए हज़ारों दिव्यांग

“जब हम अपने अधिकार की मांग करते हैं तो हमें प्रताड़ित किया जाता है जबकि 2016 के दिव्यांगजन अधिकार क़ानून के मुताबिक़ हर सरकारी योजना मे 25% इन लोगों के लिए आरक्षित है।”
Divyang Protest

सोमवार 10 जुलाई को देश के कई राज्यों से बड़ी संख्या में 'दिव्यांग' दिल्ली में एकजुट हुए। आपको बता दें, वर्तमान केंद्र सरकार ने 'विकलांग' शब्द की जगह अब 'दिव्यांग' कहना शुरू कर दिया है लेकिन आरोप है कि इनके हालात में बदलाव नज़र नहीं आता है। केंद्र सरकार की तरफ से दिव्यांगों को महज़ 300 रुपए की पेंशन दी जाती है। इस पेंशन को देशभर में बढ़ाकर 5000 रुपए करने और अन्य सामाजिक सुरक्षा कानूनों को लागू करने की मांग को लेकर सोमवार को केंद्र सरकार के खिलाफ दिल्ली के जंतर-मंतर पर दिव्यांगों ने धरना दिया। यह विरोध प्रदर्शन राष्ट्रीय विकलांग अधिकार मंच (NPRD) द्वारा आयोजित किया गया था, जो राज्य स्तरीय विकलांगता अधिकार संगठनों का एक राष्ट्रीय मंच है।

भारी बारिश एंव अनेक कठिनाइयों और बाधाओं का सामना करते हुए देश के सुदूर कोनों से ये लोग इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होने दिल्ली पहुंचे। ऐसे ही एक प्रदर्शनकारी हैं सिधप्पा जिनकी उम्र 45 साल है और वो 80% तक दिव्यांग हैं। सिधप्पा के पैर खराब हैं और वे बैसाखी के सहारे चलते हैं, वे विपरीत परिस्थितियों में ट्रेन के जनरल डिब्बे से कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले से दिल्ली पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि वो यहां सरकार को अपनी पीड़ा बताने आए हैं। वो बताते हैं कि उन्हें राज्य में केवल 1400 रुपए पेंशन मिलती है और वे इस हालत में नहीं है कि कोई काम कर सकें। सिधप्पा के दो बच्चे हैं जिनका पालन-पोषण भी बड़ी मुश्किल से होता है। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी को जो कुछ काम मिलता है वो कर लेती हैं लेकिन बेहद कम मेहनताना मिलता है। वो सरकार से मांग करते हैं कि उनकी पेंशन बढ़ा दी जाए जिससे उनकी आर्थिक परेशानी कुछ कम हो जाए।

पश्चिम बंगाल के सुंदर वन से अपने 100 फीसदी तक दिव्यांग 8 साले के बच्चे के साथ दिल्ली पहुंचे लालमोहन दास ने कहा, "बंगाल मे केवल एक हज़ार पेंशन मिलती है जबकि इसकी देखभाल में ही काफी पैसे खर्च होते हैं इसलिए वो 5000 हज़ार न्यूनतम पेंशन की मांग के समर्थन मे दिल्ली पहुंचे हैं।
 
दिव्यांगों के इस धरने-प्रदर्शन को राज्यों के एनपीआरडी के नेताओं ने संबोधित किया और ज़मीनी हालात और उनके सामने आ रही आर्थिक और अन्य कठिनाइयों को सामने रखा।

धरने को पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन और लोकसभा सांसद कनिमोझी ने भी संबोधित किया। इसके अलावा पूर्व सांसद और किसान नेता हन्नान मोल्ला ने भी सभा को संबोधित किया। सभी ने दिव्यांगों की दुर्दशा की निंदा करते हुए उनके मुद्दों को अपने-अपने राजनीतिक दलों और सरकारों के एजेंडे में रखने के साथ-साथ संसद में भी उठाने का वादा किया।
 
इसके साथ ही महिला संगठन AIDWA और छात्र संगठन SFI जैसे कई संगठनों के नेताओं ने भी सभा को संबोधित किया। दिव्यांगों के रोज़गार को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय केंद्र के कार्यकारी निदेशक, अरमान अली ने भी सभा को संबोधित किया और इनकी मांगों का समर्थन किया।

इसके साथ ही 6 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी) के सचिव राजेश अग्रवाल से मुलाकात की और उन्हें एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा।

इस प्रतिनिधिमंडल में संगठन के अध्यक्ष गिरीश खीरती, कार्यकारी अध्यक्ष नंबुराजन, उपाध्यक्ष जानसी रानी और अनिर्बान मुखर्जी, महासचिव मुरलीधरन और कार्यकरणी सदस्य के. वेंकट  शामिल थे।

डीईपीडब्ल्यूडी सचिव से मुलाकात के बाद PRDA ने अपने बयान में कहा कि "उन्हें धैर्यपूर्वक सुना गया और सचिव व उपस्थित अन्य अधिकारियों ने तुरंत समाधान के लिए संबंधित मंत्रालयों के साथ मांगों को उठाने का भी आश्वासन दिया।"

मुरलीधरन ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि "इस धरने में केरल, तमिलनाडु, तेलांगना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और हरियाणा से बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। इस धरने की सबसे बड़ी मांग है - पेंशन में बढ़ोतरी क्योंकि जबसे कानून बना है तब से लेकर अब तक केंद्र सरकार केवल 300 रुपए पेंशन दे रही है जबकि राज्य सरकार ने अपनी ओर से कुछ हिस्सा बढ़ाया है लेकिन वो भी मामूली ही है।  ये पेंशन भी देश में केवल तीन-चार प्रतिशत लोगों को ही मिल रही है इसलिए हम 5000 रुपये के पेंशन की मांग कर रहे हैं। इसके साथ ही हम केयर-टेकर भत्ता देने की भी मांग कर रहे हैं।

उन्होंने आगे कहा, "इसके साथ ही रेल और बाकी संस्थानों में प्रवेश का सवाल है वो बेहद महत्वपूर्ण है।  रेलवे मे सभी दिव्यागों को लाभ नहीं मिलता है जबकि कानून कहता है 21 तरह के दिव्यांग रेल मे छूट के हकदार है लेकिन केवल दो-तीन तरह के लोगों को ही रेलवे छूट देता है। इसके अलावा यूनिवर्सल आइडेंटिटी कार्ड (यूआइडीकार्ड) एक बड़ा मुद्दा है। रेलवे इसे मान्यता नहीं देता है जबकि इस कार्ड का उद्देश्य ही है कि एक कार्ड हर जगह चलेगा।"

बंगाल के पूर्वी मिदानपुर से आईं 35 वर्षीय गंगा मंडल ने कहा कि "उन लोगों को किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता है। हमें इंदिरा आवास (प्रधानमंत्री आवास योजना) भी नहीं मिलता है।  इसके अलावा अंत्योदय अन्न योजना (AAY) के तहत राशन कार्ड नहीं मिलता है। जब हम अपने अधिकार की मांग करते हैं तो हमें प्रताड़ित किया जाता है जबकि 2016 का दिव्यांगजन अधिकार कानून के मुताबिक हर सरकारी योजना मे 25% इन लोगों के लिए आरक्षित है।”

कर्नाटक से आए अर्पित रंजन ने कहा कि "हम सालों से इस कानून में मौजूद अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं लेकिन ये कानून आज भी सिर्फ कागजों में है, हम इसे लागू करने की मांग कर रहे हैं क्योंकि हम गरिमापूर्ण जीवन जीना चाहते हैं लेकिन सरकार को हमारी कोई चिंता नहीं है। अभी सरकार हमें पेंशन के नाम पर भीख दे रही है, हमें भीख नहीं इज़्ज़त चाहिए।"

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