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उत्तरी कश्मीर के हज़ारों निवासियों ने साधना टनल बनाने की मांग की

उत्तरी कश्मीर के पहाड़ों में जब बर्फ़बारी होती है तो वह घाटी के मैदानी इलाक़ों से हज़ारों निवासियों को काट देती है।
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श्रीनगर: उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा ज़िले की एक छोटी सी घाटी करनाह के निवासी इस अनियंत्रित सर्दी के मौसम में सबसे अलग-थलग रहते हैं। सर्द हवाएं जब ठंडी हो जाती हैं तो डरे और असहाय ग्रामीण खुद को अपने चारों ओर घिरे विशाल पर्वत की कैद में खुद को महसूस करते हैं।

उत्तरी कश्मीर के पहाड़ों में बर्फबारी घाटी के मैदानी इलाकों से हजारों निवासियों को अलग-थलग कर देती है। करनाह जैसे दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले लोग स्वास्थ्य या आपातकालीन स्थिति में इलाज़ नहीं करा पाते हैं और कुदरत के रहम-ओ-करम पर निर्भर रहते हैं।

पिछले हफ्ते की शुरुआत में, सैकड़ों स्थानीय लोगों ने करनाह शहर में जुलूस निकाला – क्योंकि जो कभी 1947 के विभाजन से पहले एक व्यस्त व्यापार मार्ग होता था अब उसकी महिमा समाप्त हो गई है – वे उस प्रशासन के खिलाफ नारे लगा रहे थे जो सभी मौसम में कनेक्टिविटी दिलाने के मामले में उनकी प्रमुख मांग को पूरा करने में विफल रहा। वे साधना टनल के निर्माण की मांग वाली तख्तियां और बैनर लिए हुए थे। बारहमासी मार्ग करनाह में लोगों की लंबे समय से लंबित दो मांगों में से एक है, जिनमें से अधिकांश इलाका पहाड़ी हैं और वे अपने लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा भी मांग रहे हैं।

लगभग 10,020 फीट की ऊंचाई पर साधना टॉप एक पहाड़ी दर्रा है जो करनाह को बाकी घाटी से अलग करता है। सर्दियों के दौरान, यहां 10-15 फीट के बीच बर्फ पड़ती है - इसे एक उच्च हिमस्खलन जोखिम इलाका भी माना जाता है – जो किसी भी आवागमन या परिवहन के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग 701 को अलग करता है।

एक प्रदर्शनकारी ने कहा कि, "केवल वादे ही वादे हैं, सभी सरकारों ने हमें धोखा ही दिया है। मुझे समझ नहीं आता कि इस इलाके में ऐसा मार्ग बनाने में इतनी कठिनाई क्यों है जो हर मौसम के लिए सुलभ हो।"

प्रदर्शनकारियों की मांग है कि अधिकारी सुरंग बनाएं या तीतवाल-मुजफ्फराबाद-उरी कॉरिडोर खोलें। तीतवाल-श्रीनगर से लगभग 160 किमी-करनाह का आखिरी गांव है जिसके माध्यम से नियंत्रण रेखा (एलओसी) पूर्ववर्ती मुजफ्फराबाद वजारत को विभाजित करती है, जिसका कभी करनाह एक हिस्सा था।

सामाजिक कार्यकर्ता राजा वकार का कहना है कि तीन तरफ से सीमा से घिरे इस इलाके में लोगों की समस्याओं का कोई अंत नज़र नहीं आता है। 

वकार कहते हैं, "समस्या गर्मियां नहीं है, लेकिन जैसे ही सर्दी आती है, भले ही हल्की बारिश हो, दर्रा बंद हो जाता है, जिससे निवासियों को भारी असुविधा होती है, खासकर वो जो बीमार पड़ते हैं या जिन्हे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं।"

एकमात्र साधन हेलिकॉप्टर सेवा है, जो कभी-कभी प्रशासन द्वारा और अक्सर भारतीय सेना या सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) द्वारा प्रदान की जाती है।

वकार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "लेकिन यह सुविधा भी एक समय में केवल एक या दो व्यक्तियों की सहायता कर सकता है और यह मौसम की स्थिति पर भी निर्भर करता है। यदि मौसम बहुत अधिक अस्थिर या खराब है, तो हेलिकॉप्टर भी मदद नहीं कर पाते हैं।"

भारतीय सेना ने 15 जनवरी को गंभीर हालत में एक गर्भवती महिला को निकालने में नागरिक प्रशासन की मदद की थी। चित्रकूट की रहने वाली नुसरत बेगम को एक दिन बाद ही स्थानीय अस्पताल में जटिलताएं पैदा हो गई थीं, लेकिन खराब मौसम के कारण इलाज़ के लिए उन्हें बाहर नहीं ले जाया जा सका था।

सेना के एक बयान में कहा गया है कि, "सीमित चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध होने के कारण मां और अजन्मे बच्चे के जीवन के लिए खतरे को कम नहीं किया जा सका।"

स्थानीय लोगों के अनुसार, इस इलाके में चिकित्सा विशेषज्ञों की भी कमी है क्योंकि वे यहां काम करना पसंद नहीं करते हैं और लंबी नाकेबंदी के डर से अक्सर नौकरी से इस्तीफा दे देते हैं।

कार्यकर्ता कहते हैं कि, "इसके कारण, हमें जीवन और अर्थव्यवस्था के मामले में भारी नुकसान होता है।"

स्थानीय लोगों का दावा है कि इस खतरनाक दर्रे पर दुर्घटनाओं के कारण पिछले वर्षों में 200 से अधिक मौतें हुई हैं, जो अक्सर आवाजाही के लिए असंभव रास्ता बन जाता है।

2019 में, इश्फाक हाईवे पर एक रिश्तेदार के साथ यात्रा कर रहा था, जब वह पास के करीब खूनी नाला या खूनी खड्ड के पास दुर्घटना से ग्रस्त हो गया था। 

इश्फाक ने अफसोस जताते हुए बताया कि, "मेरे साथ यात्रा कर रहे मेरे एक रिश्तेदार की दुर्घटना में मृत्यु हो गई, और ठीक होने के लिए मुझे पांच सर्जरी करवानी पड़ी। यह एक मौत की सड़क है और में जनता हूं कि यहां कितने लोग मर चुके हैं, और मृतकों को भी कोई राहत नहीं मिली है।" 

पिछले हफ्ते विरोध प्रदर्शन इसलिए हुए, क्योंकि स्थानीय लोगों के पास कम से कम तीन शव अंतिम संस्कार के लिए उनके गांवों तक नहीं पहुंच पाए थे। परिवहन के लिए सड़क साफ होने से पहले उन्हें मुर्दाघर में इंतजार करना पड़ा।

इश्फाक कहते हैं कि, "अगर कोई श्रीनगर या करनाह के बाहर कहीं भी जाता है, और उसकी मृत्यु हो जाती है, उसे दफनाने के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ता है। यह जीवित और मृत दोनों के लिए कितना बुरा है।"

वकार कहते हैं कि स्थानीय लोगों को हर बार जरूरी सेवाओं के लिए प्रशासन के सामने "भीख" मांगनी पड़ती है और हमेशा उसमें अक्सर देरी होती है। वे कहते हैं कि हमें लगता है कि “हम जैसे क़ैदी हैं।”

निवासियों ने बताया कि उन्हें साधना सुरंग का वादा किया गया था और 2009 से उन्हे बहुत अधिक उम्मीद भी थी। सुरंग की एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) पिछले कुछ वर्षों में तैयार की गई है, लेकिन इस पर प्रशासन की ओर से कोई बात सुनने को नहीं मिली है।

इलाके के एक प्रशासनिक अधिकारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि प्रक्रिया जारी है और मंत्रालय पहले ही काम के लिए निविदाएं आमंत्रित कर चुका है। 

हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के नेता रविंदर रैना ने 2021 में कहा था कि निर्माण के लिए 1300 करोड़ रुपये की लागत से 6.5 किमी लंबी सुरंग पर काम जल्द ही शुरू होगा। यह राशि केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने तय की थी, जिन्होंने उस समय दावा किया था कि विस्तृत डीपीआर मार्च 2022 तक तैयार हो जाएगा। तब से काम पूरा नहीं होने से यहां के निवासियों में संदेह पैदा हो गया है।

वकार कहते हैं कि, "जब तक काम शुरू नहीं होता, हम किसी भी सरकार या प्रशासनिक अधिकारी पर विश्वास नहीं करेंगे। ऐसा कोई कारण नहीं है कि प्रशासन बताए कि सुरंग क्यों नहीं बनाई जा रही है या कोई विकल्प क्यों तैयार नहीं किया जा रहा है।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के किए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

Caged in the Mountains, Thousands Demand a way out in North Kashmir's Karnah

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