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बिहारः तीन लोगों को मौत के बाद कोविड की दूसरी ख़ुराक

एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ के अनुसार, इसे अधिकारियों और निजी स्वास्थ्य संस्थाओं के बीच के सांठ-गांठ का ही कमाल कहना चाहिए कि उनके द्वारा टीकाकरण के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सिर्फ तीन ही नहीं बल्कि ऐसे सैकड़ों मृत लोगों को वैक्सीन की दूसरी खुराक दी गई है।
covid 19 vaccine

अशोक कुमार सिंह, दुलारचंद शाह और तृप्ति रॉय, इन तीनों लोगों में जो एक बात समान है वह यह कि इन सभी लोगों को उनकी मृत्यु के कई महीनों बाद कोविड-19 टीके की दूसरी खुराक दी गई है। उनके परिवार के सदस्य उस समय आश्चर्यचकित रह गए जब हाल ही में उनके मोबाइल फोन पर संदेश प्राप्त हुआ, जिसमें उन्हें टीके की दूसरी खुराक को सफलतापूर्वक लगाए जाने की सूचना दी गई थी, भले ही उन्हें इस संसार से विदा हुए कई महीने बीत चुके थे। इस सूचना ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम लोगों के बीच में कई सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं।

राज्य सरकार ने इस महीने की शुरुआत में आधिकारिक तौर पर घोषणा की थी कि इसके द्वारा राज्य में 6 करोड़ लोगों का टीकाकरण संपन्न करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य समय से दो महीने पहले ही पूरा कर लिया गया है। इस दावे ने इस संदेह को जन्म दिया है कि क्या इसमें सिंह, शाह और रॉय सहित मौत के बाद टीका लेने वालों को भी शामिल किया गया है।

हालांकि, बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे राज्य में मृत लोगों के कथित कोविड-19 टीकाकरण की खबर पर अभी तक कुछ नहीं कहा है। उन्होंने दावा किया है कि साल के अंत तक सरकार 8 करोड़ से अधिक कोविड-19 खुराक लगाने जा रही है।

विडंबना यह है कि बिहार द्वारा 17 सितंबर को एक ही दिन में 33,09,685 कोविड-19 टीके की खुराक लगाने के दावे पर उठ रहे सवालों के करीब चालीस दिन बीत जाने के बाद भी सरकार इस बारे में किसी भी स्पष्टीकरण को पेश कर पाने में विफल रही है।

एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ के अनुसार, सैकड़ों मृतकों में से वे सिर्फ तीन हैं जिनके बारे में मालूमात हासिल हो सकी है, जिन्हें टीकाकरण का लक्ष्य किसी तरह से हासिल करने के लिए अधिकारियों और निजी स्वास्थ्य संस्था के कर्मचारियों के बीच की सांठ-गांठ की बदौलत वैक्सीन की दूसरी खुराक दिए जाने का दावा किया गया। ऐसे अधिकांश मामलों की रिपोर्ट नहीं हो पाई है।

ग्राम करिगांव निवासी और कैमूर जिले के उप-प्रखंड न्यायालय में वकील अशोक कुमार सिंह की 4 अप्रैल को संदिग्ध कोविड-19 लक्षणों के चलते मृत्यु हो गई थी। उन्हें 2 अप्रैल के दिन वैक्सीन की पहली खुराक लगाई गई थी।

सिंह के परिवार के एक सदस्य का कहना था कि “उनकी मौत के छह महीनों से भी अधिक समय बीत जाने के बाद मुझे 11 अक्टूबर को मोबाइल पर एक संदेश मिला था कि उन्हें टीके की दूसरी खुराक सफलतापूर्वक दे दी गई है। शुरू-शुरू में मैंने सोचा कि कुछ गलती या त्रुटि के चलते ऐसा हो गया होगा।”

उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि उन्होंने उनके टीकाकरण प्रमाणपत्र को डाउनलोड कर लिया था जिसमें साफ़-साफ़ उल्लेख किया गया था कि उन्हें मोहनिया के उप-प्रखंड अस्पताल में सफलतापूर्वक दूसरा डोज दिया जा चुका है। उन्होने बताया कि “यह संदेश प्राप्त होने के बाद हमने इसका सत्यापन किया तो पाया कि आधिकारिक रिकॉर्ड में भी उन्हें अक्टूबर में टीका लगाए जाने की बात को दर्ज किया गया था। किसी मृत व्यक्ति को वैक्सीन लगाए जाने की बात आखिर कैसे संभव है?”

जिला स्वास्थ्य सोसाइटी के जिला कार्यक्रम प्रबंधक के मुखिया ऋषिकेश कुमार जायसवाल ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इस मामले की जांच चल रही है। “हम इस लापरवाही या गलती के गंभीर मुद्दे की जांच कर रहे हैं कि कैसे एक मृत व्यक्ति को दूसरी डोज दिए जाने की बात रिकॉर्ड में दर्ज की गई है।”

इस प्रकार के एक अन्य मामले में, सीवान जिले के बंसोही गांव के निवासी दुलारचंद शाह की सांस लेने में तकलीफ की वजह से अप्रैल में मौत हो गई थी। 23 अक्टूबर को उनके परिवार के पास एक संदेश प्राप्त हुआ था कि उन्हें टीके की दूसरी खुराक सफलतापूर्वक लगा दी गई है। शाह के भतीजे का कहना था कि “उनकी मृत्यु से कुछ दिन पहले ही उन्हें कोविड-19 टीकाकरण की पहली खुराक दी गई थी। जब हमें इस बारे में एक लिखित संदेश प्राप्त हुआ तो हम सब चौंक गए थे कि कैसे उनकी मौत के छह महीनों के बाद उनका टीकाकरण कर पाना संभव हो सका। इस बाबत हमने सरकारी आधिकारिक वेबसाइट से टीकाकरण प्रमाणपत्र भी डाउनलोड किया था, जिसमें उल्लेख किया गया था कि उनकी दोनों खुराक का कोटा पूरा हो चुका है।”

इसी प्रकार पूर्णिया जिले की एक महिला तृप्ति रॉय, जिनकी मृत्यु अगस्त में हो चुकी थी, उनको 17 सितंबर को कोविड-19 टीकाकरण की दूसरी खुराक का टीका लगाया गया था। उनके एक निकट संबंधी ने बताया “हमें मोबाइल फोन पर एक लिखित संदेश मिला था जिसमें लिखा था कि उन्हें सफलतापूर्वक टीके की दूसरी खुराक लगाई जा चुकी है। इसे देख हम सब हैरान रह गए थे।”

इसके अलावा, ऐसी भी खबर है कि पूर्णिया के कई लोगों को जो 17 सितंबर के दिन बिहार से बाहर थे उनको उनके मोबाइल फ़ोन पर एक संदेश प्राप्त हुआ था कि उन्हें टीके की दूसरी खुराक सफलतापूर्वक दी जा चुकी है। उदाहरण के लिए, सुलोचना झा और ब्रजेश कुमार यादव के मामलों को ही देखा जा सकता है, इन दोनों को टीके की दूसरी डोज नहीं लगाई गई थी। इसके बावजूद, उन्हें अपने फोन पर यह संदेश प्राप्त हुआ था कि 17 सितंबर को उन्हें टीके की दूसरी खुराक सफलतापूर्वक लगाई जा चुकी है।

ऐसा जान पड़ता है कि सुलोचना झा और ब्रजेश कुमार यादव का मामला पिछले महीने के एक दिन में लगाए गए कोविड-19 टीके की खुराक के फर्जी आंकड़े से जुड़े हैं। उस दौरान राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने अपने ट्वीट में कहा था कि बिहार ने 17 सितंबर को अपने “महा-टीका-अभियान” में प्रधानमंत्री के जन्मदिन के अवसर पर एक ही दिन में रिकॉर्ड संख्या में कोविड-19 वैक्सीन की खुराक लगाई थी।

स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का इस बारे में कहना था “क्या यह हकीकत नहीं है कि 15 और 16 सितंबर को टीकाकरण अभियान को ऑफलाइन रखा गया था? इन दो दिनों के दौरान टीकाकरण के किसी भी आंकड़े को कोविन पोर्टल पर दर्ज नहीं किया गया था। यह स्पष्ट रूप से आंकड़ों के साथ हेराफेरी, संसाधनों का दुरुपयोग और जोर-जोर से बहु-प्रचारित कोविड-19 टीकाकरण अभियान की सफलता का ढोल पीटने वाला मामला है। यह सारी कवायद किसी एक खास व्यक्ति को खुश रखने के लिए की गई थी।”

जून में, राज्य ने अगले छह महीनों में छह करोड़ लोगों के टीकाकरण के लक्ष्य के साथ एक नया टीकाकरण अभियान शुरू कर दिया था। कुछ समय पहले तक कई जिलों में वैक्सीन की कमी की शिकायत की जा रही थी।

लेकिन उस दौरान भी प्रशासन ने रिकॉर्ड संख्या में लोगों के टीकाकरण का दावा किया था और 21 जून को राज्य में सात लाख से अधिक (7,29,332) लोगों के टीकाकरण की पुष्टि की थी। लेकिन इसके फ़ौरन बाद ही टीकाकरण की दर धीमी पड़ गई थी।

लेकिन मामला यहीं तक सीमित नहीं है। पटना में 800 रूपये से लेकर 1000 रूपये में नकली टीकाकरण प्रमाणपत्र जारी किये जा रहे थे। नाम जाहिर न किये जाने की शर्त पर पटना स्थित एक सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया “मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जिन्होंने स्वास्थ्य क्षेत्र के रैकेट में शामिल लोगों को पैसे देकर फर्जी टीकाकरण प्रमाणपत्र हासिल किया था। यह सब पिछले महीने से भारी पैमाने पर हो रहा था क्योंकि लोगों को विदेश और बिहार से बाहर जाने के लिए इसकी जरूरत थी। लेकिन उन्होंने अपनी जान को जोखिम में डाल दिया था।”

पिछले महीने, पटना पुलिस ने फर्जी कोविड-19 परीक्षण रिपोर्ट जारी करने में कथित तौर पर शामिल एक रैकेट का भंडाफोड़ किया था। उन्होंने भारतीय विमान प्राधिकरण (एएआई) द्वारा की गई एक शिकायत के बाद चार लोगों को हिरासत में लिया था। रिपोर्ट के मुताबिक, एक निजी डायग्नोस्टिक लैब ने हवाई सफर करने वाले यात्रियों को नकली आरटी-पीसीआर जांच रिपोर्ट मुहैय्या कराई थी, जिसमें उन्हें 1500 से 2500 रूपये के लिए कोविड-नेगेटिव दिखाया गया था।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Three People in Bihar Reported to Have Got the Second Shot of the COVID-19 Vaccine After Their Deaths

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