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तिरछी नज़र: मानहानि का डर और वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स

हम इसीलिए खुश नहीं हैं। इसीलिए खुशहाली के इस विश्व इंडेक्स में पिछड़े हुए हैं क्योंकि हम चोर को चोर नहीं कह सकते हैं। डर में रहते हैं कि क्या पता चोर ही मानहानि का मुकदमा ना दायर कर दे।
World Happiness Index
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार: गूगल

वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में हम फिर से फिसड्डी रह गए हैं। हालांकि पिछले वर्ष से कुछ सुधरे हैं पर फिर भी हैं फिसड्डी के फिसड्डी ही। आस पास जितने भी देश हैं उनमें सबसे फिसड्डी। यहां तक कि पाकिस्तान से भी फिसड्डी। लिस्ट में देखो तो यूरोप के छोटे-छोटे देश सबसे ऊपर। स्केवेंडियन देश सबसे ऊपर। वे छोटे-छोटे देश जिनका नाम भी शायद किसी ने ही सुना हो, सबसे खुश। और एक हमारा देश, विश्व गुरु बनने की कगार पर खड़ा देश, इतना बड़ा देश और इतना पीछे है। बड़ी ही शर्म की बात है।

हम ना, सच में ही बड़े दुखी रहते हैं। हर समय अपने मान सम्मान के चक्कर में पड़े रहते हैं। इसने यह कह दिया, उसने वह कह दिया। ज़रा ज़रा सी बात पर हमारी मानहानि हो जाती है। दूसरे को मानहानि का नोटिस पकड़ा देते हैं। तूने उस दिन, उस समय, उस जगह पर यह कहा था। उससे मेरी मानहानि हो गई। मुझे मानसिक कष्ट पहुंचा। मेरी भावनाओं को नुकसान हुआ। ये ले पकड़ नोटिस। माफी मांग या फिर जेल जा। जिसकी मानहानि होती है वह मानहानि होने के चक्कर में दुःखी रहता है और दूसरा जेल जाने के डर से।

यह जो मानहानि है ना, यह कभी भी, कहीं भी, किसी की भी हो सकती है। बस अगर नहीं होती है तो संसद और विधानसभाओं में नहीं होती है। वहां आप किसी के भी बारे में जो मर्जी बोल सकते हैं, मानहानि कर सकते हैं। कई लोग इसी 'इम्यूनिटी' का लाभ उठाते हैं और वहां किसी को भी देशद्रोही या फिर शूर्पणखा बोल सकते हैं। और तो और किसी को अनपढ़ बता सकते हैं, उसकी बीए, एमए की डिग्री पर प्रश्न उठा सकते हैं। सदन में सबका मान-सम्मान बराबर है पर सदन के बाहर ऐसा नहीं है। वहां मानहानि हो सकती है।

मानहानि ना बड़ी ही अजीब चीज है। आप अपनी मानहानि नहीं कर सकते हो। कोई दूसरा ही आपकी मानहानि कर सकता है। आप तो बस मानहानि का नोटिस भेज सकते हो। अब देखिए, आप खुद कहें, मैं गरीब, पिछड़े परिवार में पैदा हुआ था तो आपकी मानहानि नहीं, आपका महानता है। कि देखो, गरीब परिवार में पैदा हो कर, पिछड़ा हो कर कहां से कहां पहुंच गया। कोई दूसरा यही कह दे तो मानहानि है। आप स्वयं कहें कि मैं कोई खास पढ़ा-लिखा नहीं हूं तो ठीक है, आपका सम्मान। देखा भाई, बेपढ़ा कहां तक पहुंच गया। परन्तु कोई दूसरा आपकी पढ़ाई पर कैसे पूछ सकता है, आपको बेपढ़ा, अनपढ़ कैसे कह सकता है, यह तो मानहानि है। हमारा सबसे बड़ा दुःख तो मानहानि ही है।

हम इसीलिए खुश नहीं हैं। इसीलिए खुशहाली के इस विश्व इंडेक्स में पिछड़े हुए हैं क्योंकि हम चोर को चोर नहीं कह सकते हैं। डर में रहते हैं कि क्या पता चोर ही मानहानि का मुकदमा ना दायर कर दे। चोर नहीं तो उसका कोई हमनाम ही मुकदमा ना दायर कर दे कि उसको चोर कैसे कहा। यहां, हमारे यहां इतने सारे लोग रहते हैं कि एक ही नाम के बहुत सारे लोग मिल जाते हैं। यहां तक कि एक ही नाम के दो तीन चोर भी हो सकते हैं। तो चोर के बारे में भी संभल कर बोलना पड़ता है, चुप रह जाना पड़ता है। कहीं मानहानि का मुकदमा ही दर्ज न हो जाए।

हम इसलिए खुश नहीं हैं, दुःखी इसलिए हैं क्योंकि हमें बहुत संभल संभल कर चलना पड़ता है, बोलना पड़ता है। अब हमारी सोसायटी की ही बात लो। हमारी हाउसिंग सोसायटी में एक के बाद एक, बहुत सारी चोरियां हो गईं। जब बात हद से गुजर गई तो लोगों को चौकीदार की मिलीभगत का संदेह हुआ। संदेह क्या, पूरा यकीन ही था। पर कोई बोला नहीं कि चौकीदार चोर है। बोलता भी कैसे। मानहानि का मुकदमा ना हो जाता। आखिर 'चौकीदार' शब्द पर किसी एक का कॉपीराइट जो है।

वैसे हमारे पास खुश होने के बहुत सारे बहाने हैं। हम यह सोच कर खुश हो रहे होते हैं कि चलो राम मंदिर तो बनने ही वाला है पर बेरोजगारी दुःखी कर देती है, यह नहीं समझते कि मंदिर के बाहर भी तो भिक्षा मांगने का रोजगार मिलेगा। यह सोच कर खुश होते हैं कि अब तो बस विश्व गुरु बनने ही वाले हैं पर बंद होते स्कूल दुःखी कर देते हैं, यह नहीं सोचते कि नए भारत में पढ़े-लिखे होने की क्या जरूरत है। संसद के नए भवन को देख खुश होने लगते हैं तो सिमटता लोकतंत्र दुःखी कर देता है जबकि सच्चाई यह है कि तानाशाही में लोकतंत्र की जरूरत ही क्या है। सुख देने के बहाने कम हैं पर दुःखी करने की सच्चाइयां बहुत। इसीलिए हम इस वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में इतना पिछड़े हुए हैं।

लेकिन इस इंडेक्स में, विश्व खुशहाली सूचकांक में हम बहुत आगे निकल सकते हैं, बहुत ही आगे। कोई लोगों को खुश वुश करने की जरूरत नहीं है। बेरोजगारी, महंगाई दूर करने की, अस्पतालों और स्कूलों को सुधारने की, लॉ-ऑर्डर दुरस्त करने की या फिर भ्रष्टाचार दूर करने की कोई जरूरत नहीं है। बस करना यह है कि सूरत में रहने वाला कोई, सूरत के उसी न्यायालय में, उन्हीं जज साहब की अदालत में, उस संस्था के सीईओ के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दे जो संस्था यह खुशहाली इंडेक्स निकालती है। देख लेना, वह संस्था माफी भी मांगेंगी, और हम वर्ल्ड हैप्पीनेस इंडेक्स में टॉप टेन में होंगे। अन्यथा सीईओ साहब एक ही महीने के अंदर दो वर्ष के लिए जेल में होंगे। 

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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