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तिरछी नज़र: चुनावी साल में पांच पांच भारत रत्न

यह संख्या लिखते लिखते, छपते छपते या पढ़ते पढ़ते बढ़ जाए तो मेरी कोई जिम्मेवारी नहीं है।
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तस्वीर केवल प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। सतीश आचार्य के X हैंडल से साभार

इस बार भारत रत्न पर लिखने का मन था। मन क्या था, लिखना भी शुरू कर दिया था। जब आडवानी जी को भारत रत्न घोषित किया गया था तब लगा कि इस पर व्यंग्य तो बनता ही है। पर उसके बाद भी और लोगों को भारत रत्न दिया जा रहा है तो सोचा कि सरकार जी एक बार पहले भारत रत्न देने से निपट जाएं, मतलब जिन जिन को भारत रत्न देना है, उन सभी को दे दें तभी इस बारे में कुछ लिखा जाए। तो सोचा कि इस हफ्ते किसी और चीज पर लिख लिया जाए। भारत रत्न पर अगले हफ्ते लिख लिया जाएगा।

तभी पत्नी महोदया ने सुझाव दिया कि इस बार भारत रत्न‌ पर ही लिखो। अभी तक पांच लोगों को ही भारत रत्न‌ मिला है। तुम्हें तो एक छोटा सा व्यंग्य लिखना है। अभी समय ठीक है। तुमने एक और हफ्ते टाल दिया तो हो सकता है पन्द्रह बीस लोगों को भारत रत्न मिल जाए। तो फिर छोटे व्यंग्य से काम नहीं चलेगा। पूरा उपन्यास ही लिखना पड़ेगा। और वह तुम्हारे बस की बात है नहीं। तुम तो बस छोटा मोटा व्यंग्य ही लिख लो, वही बहुत है।

पत्नी महोदया ने सच ही कहा था। एक तो व्यावसायिक व्यस्तता, डाक्टरी पेशा ही ऐसा है, और दूसरे एकाग्रता की कमी, जो इंटरनेट, फेसबुक, एक्स, आदि की वजह से सभी में हो गई है, के कारण उपन्यास लिखना तो छोड़ो, पढ़ना तक मुश्किल हो गया है। उपन्यास ही नहीं, मन लम्बी कहानी तक में नहीं लग पाता है। उपन्यास पढ़े हुए तो वास्तव में ही दशकों बीत गए होंगे। यह 'एटेंशन डेफिसिट' सारी दुनिया में फैल गया है। सरकार जी भी कहां एक काम में लम्बे समय तक ध्यान लगा पाते हैं।

तो हमने भी सोचा कि इस बार भारत रत्न पर ही लिख लेते हैं और बाद में जब और‌ लोगों‌  को भारत रत्न मिलेगा तो फिर से लिख लेंगे। आखिर लगातार चलने वाली घटनाओं पर पहले भी तो लगातार लिखा है। कोविड पर बार बार लिखा था, किसान आन्दोलन पर भी बहुत बार लिखा था। तो अब यह भारत रत्न देने का एपिसोड लम्बा चलेगा तो इस पर भी कई बार लिख लेंगे। एक बार एक चीज पर लिखने के बाद उस पर दोबारा नहीं लिख सकते हैं, ऐसा कोई कानून तो अभी संसद ने नहीं बनाया है।

इस सरकार ने अपने दस वर्ष के कार्यकाल में अभी तक दस लोगों को भारत रत्न से सम्मानित किया है। इनमें से पांच को पिछले बीस दिन में ही तीन किस्तों में भारत रत्न दिया है। यह संख्या लिखते लिखते, छपते छपते या पढ़ते पढ़ते बढ़ जाए तो मेरी कोई जिम्मेवारी नहीं है। हां, घटेगी नहीं, यह मेरी गारंटी है।

पहला भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर जी को मिला। वजह समझ में आई। एक तो बिहार साधना था। वह चार दिन‌ बाद सध ही गया। नीतीश बाबू ने शायद नौवीं बार मुख्यमंत्री की शपथ ली। बिहार में सिर्फ विपक्ष बदलता है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहते हैं। दूसरे दलित और अति पिछड़ों को भी साधना था। अब ये जो दल के लोग जगह जगह दलित-पिछड़ों का उत्पीड़न कर रहे हैं। पेशाब कर रहे हैं, जूते चटवा रहे हैं, कोड़े बरसा रहे हैं, उनकी स्त्रियों से रेप कर रहे हैं, सबमें अगर न्याय किया जाए, सबको दंड दिया जाए तो दल में बचेगा ही कौन? तो दलित-पिछड़ों को न्याय देने के लिए कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न प्रदान कर दिया गया।

दूसरा भारत रत्न आडवानी जी को दिया गया। जिस व्यक्ति ने मुझे यह खबर दी उसने बीच में से व गायब कर दिया। उसने अनजाने में कर दिया, जानबूझ कर किया या फिर शरारतन किया, राम कसम मुझे सच में नहीं मालूम। पर यह पता चलने पर मुझे बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हुआ। आश्चर्य तो मुझे तब हुआ जब असली नाम का पता चला। जो व्यक्ति बाइस जनवरी को इतना भी सम्मानित नहीं था कि पांच हजार लोगों की भीड़ में शामिल हो सके, दस बारह दिन बाद ही इतना सम्मानित हो गया कि भारत रत्न पा गया। है न आश्चर्य की बात। दूसरा आश्चर्य यह है कि सरकार जी आज भी यह मानते हैं कि उनके दल‌ में कोई और भी है जिसके नाम पर वोट मिल सकते हैं।

इस साल तीसरी खेप में देश को तीन भारत रत्न और मिले हैं। दो तो किसानों को बरगलाने के लिए मिले हैं। किसानों, हम तुम्हारे ऊपर लाठियां बरसाएंगे, रास्ते में कीलें लगाएंगे, साल भर दिल्ली के बार्डर पर बिठा कर रखेंगे, दिल्ली में नहीं आने देंगे। जमीन कब्जाएंगे। सड़क के लिए कब्जा करेंगे, कारखाने के लिए कब्जा करेंगे, हवाई अड्डे और फ्लैट बनाने के लिए कब्जा करेंगे। पर उचित मुआवजा नहीं देंगे। बस चौधरी साहब को, चौधरी चरणसिंह जी को भारत रत्न दे देंगे। ऐसे ही तुम्हें एमएसपी नहीं देंगे। इतनी एमएसपी भी नहीं देंगे कि लागत तक निकल सके पर लागत के डेढ़ गुणा एमएसपी का फार्मूला सुझाने वाले को भारत रत्न दे देंगे। एम एस स्वामीनाथन जी से पूछो तो शायद वे यही कहें कि मुझे भारत रत्न‌ मत दो, बस किसानों को मेरे द्वारा सुझाए गए फार्मूले से एमएसपी दे दो। 

तीसरे भारत रत्न नरसिम्हा राव जी रहे। इससे लोगों को बहुत आश्चर्य नहीं हुआ। गांधी नेहरू परिवार के अलावा सभी कांग्रेसियों को संघी भाजपा में ही मानते हैं। वैसे भी राजनेताओं के उत्तर दक्षिण बैलेंस को बनाने के लिए भारत रत्नों में तीन उत्तर भारत के नेताओं के साथ एक दक्षिण भारत का नेता भी जरूरी था। (स्वामीनाथन दक्षिण से हैं पर राजनेता नहीं हैं)।

चुनावी वर्ष है। अभी तो वोट के लिए कुछ भारत रत्न और दिए जा सकते हैं। जयंत चौधरी जी ने कह ही दिया है, 'आज मैं किस मुंह से इंकार करूं'। लगे रहो, सरकार जी लगे रहो। मुलायम सिंह जी और लालू यादव को भी भारत रत्न दे दो तो शायद अखिलेश और तेजस्वी भी यही कह बैठें, ' दिल जीत लिया' या फिर 'अब मना करें भी तो कैसे करें'। एनडीए को येन केन प्रकरेण चार सौ के पार जो ले जाना है।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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