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तिरछी नज़र:  हैप्पी न्यू ईअर... सरकार जी बदल रहे हैं

नया वर्ष सभी के लिए सुख, शांति और समृद्धि ले कर आए। और ऐसा होगा अवश्य क्योंकि मुझे एक सपना आया है। बुजुर्ग लोग बताते हैं कि नव वर्ष के पूर्व की रात्रि को आया सपना नए‌ वर्ष में अवश्य ही पूरा होता है।
happy new year
फ़ोटो : PTI

नया वर्ष शुरू हो गया है। सभी लोगों को, सभी मित्रों को, 'तिरछी नज़र' के, 'न्यूजक्लिक' के सभी पाठकों को और देश की समस्त जनता को नववर्ष की शुभकामनाएं। नया वर्ष सभी के लिए सुख, शांति और समृद्धि ले कर आए। और ऐसा होगा अवश्य क्योंकि 31 दिसम्बर और‌ एक जनवरी के बीच की रात को मुझे एक सपना आया है। बुजुर्ग लोग बताते हैं कि नव वर्ष के पूर्व की रात्रि को आया सपना नए‌ वर्ष में अवश्य ही पूरा होता है।

आप कहेंगे कि मुझे ऐसा क्या सपना आया है कि मैं उसे सबको सुनाने बैठा हूं। बात यह है कि यह कोई आम सपना नहीं था कि मैं अपने मन में ही छुपा कर बैठ जाऊं। बहुत ही अच्छा सपना था। आप भी सुनेंगे तो आपकी बांछें खिले बिना नहीं रह पाएंगी। आपका चित्त भी प्रसन्न हो जाएगा। आप भी कहेंगे कि काश! मेरा देखा सपना सच हो जाए तो सच में नववर्ष नई खुशियां ले कर आए।

हुआ यह कि मुझे रात को स्वप्न में सरकार जी दिखाई दिए। मुझे और सरकार जी! आपको अचरज हो रहा है ना। पर मुझे बिल्कुल भी नहीं हुआ। सरकार जी तो मेरे विचारों‌ में, मेरे लेखन में हमेशा आते ही रहते हैं। आम तौर पर शनिवार की रात को तो मंडराते ही रहते हैं। रविवार को 'तिरछी नज़र' जो लिखना होता है, छपने के लिए दे देना होता है। इस बार भी आए। सुबह भोर के समय आए। जरूर ही एक जनवरी की सुबह सुबह ही आए होंगे।

सरकार जी मेरे सपनों में आए और कुछ बदले बदले से नजर आए। मैंने देखा कि सरकार जी अपने ऑफिस की कुर्सी पर बैठे काम कर रहे हैं। है ना अजीब सी बात। इससे पहले हमने कभी सरकार जी की ऑफिस में बैठ कर काम करते हुए शायद ही कोई तस्वीर देखी हो। मुझे तो याद नहीं आती है। अभी तक तो हम सरकार जी को फील्ड में काम करते हुए ही देखा करते थे। हर तरह की फोटो देखी है। कभी किसी चुनाव में मोटर रैली की, कभी किसी चुनावी सभा की, कभी किसी रेलगाडी़ का उद्घाटन करते हुए की, तो कभी किसी मंदिर में पूजा करते हुए। कभी कभी तो सरकार जी की बादलों को, हवा को हाथ हिलाते हुए की फोटो भी देखी है। पर काम करते हुए फोटो कभी नहीं देखी। तो मुझे बहुत ही अच्छा लगा जब मैंने अपने सपने में सरकार जी को ऑफिस में काम करते हुए देखा।

मैंने देखा कि सरकार जी के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। वह हमेशा की तरह तनाव भरी, क्रोध से तनी, बनावटी मुस्कुराहट नहीं थी। नहीं, नहीं, वह वाली मुस्कुराहट नहीं जो हमेशा उनके चेहरे पर चिपकी रहती है। जो मुस्कुराहट मैंने अपने सपने में देखी उस मुस्कुराहट में कोई छल कपट नहीं था। वह तो बिल्कुल भोली भाली मुस्कुराहट थी जो उनके चेहरे पर छाई थी। बिल्कुल एक छोटे बच्चे की निश्छल, निष्कपट मुस्कुराहट। देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा। मुझे लगा कि सरकार जी की इस मुद्रा में, इस मुस्कुराहट के साथ एक फोटो अवश्य होनी चाहिए। पर आश्चर्य, वहां कोई फोटोग्राफर ही नहीं था। सरकार जी थे पर कैमरामैन नहीं था। थी न आश्चर्य की बात। और मैं भी फोटो नहीं ले सकता था। मेरा फ़ोन तो सिक्योरटी वालों ने बाहर ही जमा करवा लिया था।

सरकार जी बहुत ही तन्मयता से किसी फाइल पर झुके हुए गंभीरता से कुछ पढ़ रहे थे। वे अपनी फोटोजेनिक मेमोरी की सहायता न लेकर, पृष्ठों को जल्दी जल्दी न पलट कर, पूरे पेज को पूरा पढ़ रहे थे। वे अपने काम में इतने खोए हुए थे कि उन्हें मेरी उपस्थिति का पता ही नहीं चला। फाइल को पूरा पढ़ कर, उसमें कुछ नोटिंग कर, दस्तखत कर उन्होंने फाइल बंद की और अपना सिर ऊपर उठा कर मुझे देखा, "आओ, व्यंग्यकार, आओ! तुम ही तो मेरा आईना हो। तुम ही तो मुझे सुंदर बनाते हो। मेरी बदसूरती मुझे दिखा कर मुझे और सुंदर बनने के लिए उत्साहित करते हो। तुम न हो तो मैं और सुंदर हो ही ना पाऊं"।

मुझे चकित छोड़ सरकार जी आगे बोले, "यह जो फाइल मैंने अभी साइन की है ना, यह उमर खालिद, शरजील, गौतम, सुधा भारद्वाज जैसे तमाम लोगों के ऊपर से बेकार के देशद्रोह वाले केसों को हटाने के लिए ही है। और यह जो अगली फाइल है ना, यह प्रेस की स्वतंत्रता के लिए है। सरकार की आलोचना करने वाले किसी भी अखबार, टीवी चैनल, यू ट्यूब चैनल, ई मैगज़ीन को अब कोई तंग नहीं करेगा। बल्कि उनको सरकारी सहायता मिलेगी। सरकारी विज्ञापन मिला करेंगे"।

"अब मैं ए से ए तक की उन्नति के लिए काम नहीं करुंगा। क्यों व्यंग्यकार, तुम भी तो मेरी इन्हीं सब बातों पर व्यंग्य गढ़ते हो ना। पर अब ऐसा नहीं होगा", सरकार जी बोले ही जा रहे थे। "अब मैं ए से जेड तक की उन्नति के लिए काम करुंगा। मैं सिर्फ ए की उन्नति करते करते थक गया हूं। अब मैं एक सौ चालीस करोड़ जनता के लिए काम करूंगा। अब मैं मन की नहीं, जन की बात करूंगा। मैं लालची बन‌ गया था। वोट के लालच में अस्सी करोड़ जनता को गरीब बनाए रखा। उन्हें मुफ्त का अनाज देता रहा। पर उनकी गरीबी दूर नहीं की। अब में उनकी गरीबी दूर करूंगा। उन्हें नौकरी दूंगा। महंगाई कम करुंगा। जिससे वे अपना राशन खुद खरीद सकें और सम्मान की जिन्दगी जी सकें। उसके बाद भले ही वे किसी को भी वोट दें"।

सरकार जी बोले ही जा रहे थे। इसी बात से लगा कि मैं वास्तव में ही, सपने में भी, असली वाले सरकार जी से ही मिल रहा हूं। हां! बातें जरुर अलग थीं। वे आगे बोले, "मैं नीरो नहीं, नेहरू बनना चाहता हूं। मैं इतिहास में याद रखा जाना चाहता हूं, हिटलर, इदी अमीन या कंस की तरह नहीं, जिन्होंने विरोध को कुचल दिया था। मैं सचमुच में बदलना चाहता हूं"।

"देखो, कोई भी बदलाव करना हो, कुछ भी नया काम करना हो, अपने में बदलाव करना हो तो यही कहते हैं ना, कि सोमवार से करुंगा, एक तारीख से करुंगा, नए साल से करुंगा। आज तो तीनों हैं, सोमवार भी है, एक तारीख भी है और नया साल तो शुरू हो ही रहा है। तो मैं आज से ही बदल रहा हूं। तो व्यंग्यकार, आज से तुम्हारे सरकार जी बदल रहे हैं"।

तभी कमला (मेरी पत्नी) ने मुझे झकझोर कर उठा दिया। "उठो, उठो, आज से तो तुम रोज सुबह घूमने जाने वाले थे। और यह क्या बड़बड़ा रहे हो, सरकार जी बदल रहे हैं, सरकार जी बदल रहे हैं। कोई नहीं बदलने वाला। न तुम मार्निंग वॉक शुरू करने वाले हो, न ही तुम्हारे सरकार जी बदलने वाले हैं। ये जो न्यू ईअर रिजोल्यूशन होते हैं न‌, धरे के धरे रह जाते हैं। और हां तुम्हें हैप्पी न्यू ईअर।

"तुम्हें भी हैप्पी न्यू ईअर, और मार्निंग वॉक, वह तो मैं कल से शुरू करुंगा", कह कर मैं रजाई तान कर फिर से सो गया।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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