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सरकार जी की शिक्षाएं— कमियां दूर मत करो, उनपर परदा डाल दो

सरकार जी चाहते हैं कि ग़रीबी रहे, पर दिखे नहीं। भुखमरी हो, पर पता न चले। बेइमानी हो, पर जांच न हो। मतलब सब पर परदा पड़ा रहे।
G-20
फ़ोटो साभार : The Quint

बीते सप्ताह पांच सितंबर को शिक्षक दिवस था। अपने शिक्षकों को याद करने का दिवस, उनको श्रेय देने का दिवस, उन्हें धन्यवाद देने का दिवस। इस दिन सभी को अपने शिक्षकों को याद करना चाहिए, अपने जीवन में मिली सफलताओं के लिए उनका धन्यवाद करना चाहिए।

हमारे जीवन में मिली सफलताओं में कुछ निजी शिक्षकों का तो हाथ रहता ही है, कुछ सार्वजनिक हस्तियों का भी हाथ रहता है। निजी शिक्षक तो मेरी निजी सफलताओं के लिए, मेरे निजी उत्थान के लिए उत्तरदायी हो सकता है पर सार्वजनिक हस्तियां पूरे समाज, पूरे देश की सोच में बदलाव कर सकती हैं। महात्मा गांधी, अंबेडकर, ज्योतिबा फुले जैसे कई लोग पूरे समाज के शिक्षक थे। एक दो नहीं, कई पीढ़ियां उनके जीवन, उनकी शिक्षाओं से प्रभावित थीं।

आज इनके उलट भी हमारे सामने एक ऐसे शिक्षक हैं जिनका हमें शुक्रगुजार होना चाहिए कि वे हमारे बीच हैं। हम उनसे सीख सकते हैं। उनके जीवन से सीख कर हम सफलता की नई ऊंचाइयां प्राप्त कर सकते हैं। अपना जीवन सफल बना सकते हैं। वे शिक्षक हैं हमारे ‘सरकार जी’।

हमारे सरकार जी की पहली शिक्षा है, सच से परहेज़। जहां तक हो सके, सच मत बोलो। जब भी बोलो, झूठ बोलो, झूठ बोलो, बार-बार झूठ बोलो। इतनी बार झूठ बोलो कि झूठ ही सच लगने लग जाए। इस मामले में उनके आदर्श हिटलर और गोयबल्स हैं। झूठ बोलना कितना लाभप्रद हो सकता है, उनका जीवन इसकी जीती जागती मिसाल है। झूठ पहले से ही विद्यमान था, है और रहेगा परन्तु झूठ को इतनी प्रतिष्ठा पहले कभी नहीं हासिल हुई जितनी अब उनके शासन काल में है। झूठ को इतनी प्रतिष्ठा दिलाने का पूरा श्रेय सरकार जी और उनके नवरत्नों को जाता है।

सरकार जी की दूसरी शिक्षा है, महिलाओं का सम्मान। महिलाओं को इतनी इज्जत किसी और ने नहीं दी, किसी महिला सरकार जी ने भी नहीं, जितनी इन सरकार जी ने दी है। 'कांग्रेस की विधवा' और 'पचास करोड़ की गर्ल फ्रेंड' जैसे सुशोभित वचन सरकार जी द्वारा महिलाओं के सम्मान के प्रतीक हैं। सरकार जी, सरकार जी की सरकारों, सरकार जी के नवरत्नों दवारा महिलाओं का बात बात पर, बार बार सम्मान किया जाता है। बलात्कारियों को जेल से समय से पहले रिहा करना, उनका मालाएं‌ पहना कर स्वागत करना, महिला सम्मान की ही निशानी है। पदक जीतने वाली महिला पहलवानों को धरने के दौरान जो इज्जत बख्शी गई, जितनी तत्परता से उन्हें न्याय मुहैया कराया गया और आरोपी को बचाया गया, वह भी सरकार जी द्वारा महिला सम्मान की निशानी ही है।

सरकार जी की अगली शिक्षा है, ईमानदारी। ईमानदार होना नहीं, ईमानदार दिखना जरुरी है, सरकार जी इसका विशेष ध्यान रखते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ जितनी जुबानी जंग सरकार जी लड़ रहे हैं, उतनी आज से पहले किसी ने नहीं लडी़ है। यह जंग अभूतपूर्व है, ऐतिहासिक है। सरकार जी जानते हैं कि कोई तभी तक ईमानदार है जब तक उसके भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच नहीं हुई है। इसीलिए सरकार जी ने न तो रफाल के खिलाफ जांच होने दी और न ही पीएम'स केयर फंड के खिलाफ। किसी मामले में फाइल ही गुम हो गई तो किसी को जांच के दायरे से ही बाहर बता दिया गया। बहरहाल, ईमानदार होना नहीं, ईमानदार दिखते रहना सरकार जी की बहुत बड़ी शिक्षा है।

सरकार जी का गरीब प्रेम अभूतपूर्व है। ग़रीबी और गरीबों से प्रेम की खातिर ही वे दिन में चार चार बार कपड़े बदलते हैं। बताया जाता है कि भिक्षाटन के दौर के दौरान सरकार जी ने एक गरीब मजदूर को देखा जो अपने कपड़े एक तरफ उतार केवल कच्छे में मजदूरी कर रहा था। सरकार जी ने उसके कपड़े चुरा कर पहन लिए। (ध्यान दें, सरकार जी सिर्फ पुरुषों की ओर देखते हैं, गांधी जी की तरह महिलाओं की तरफ नहीं कि देखें कि वे एक ही धोती में गुजारा कर रही हैं।)। उस गरीब के कपड़े सरकार जी को इतने अच्छे लगे कि सरकार जी ने प्रण किया कि वे गरीबों से चुरा चुरा कर दिन में चार-चार बार कपड़े चेंज करेंगे और गरीबों को मात्र कच्छे में ही रहने देंगे। 

सरकार जी चाहते हैं कि गरीबी रहे, पर दिखे नहीं। भुखमरी हो, पर पता न चले। बेइमानी हो, पर जांच न हो। मतलब सब पर परदा पड़ा रहे। अब जी 20 में सरकार जी ने यही किया। गरीब बस्तियां रहने दीं। गंदी कॉलोनियां साफ नहीं करवाईं। बस उन पर परदा डाल दिया। ट्रम्प के अहमदाबाद दौरे के समय भी यही किया गया था और अब जी 20 के दौरान भी यही किया जा रहा है। तो, सरकार जी की अगली शिक्षा यही है कि कमियों को दूर मत करो, गलतियों को सुधारो मत, गंदगी साफ मत करो। उन्हें बना रहने दो। बस उन पर परदा डाल दो।

सरकार जी की एक और शिक्षा मित्रता को लेकर है। कृष्ण सुदामा से कम नहीं हैं, सरकार जी की मित्रता की कहानियां। जैसे भगवान कृष्ण ने राजकीय कोष से सुदामा की ग़रीबी दूर की थी, उसका महल उसके पहुंचने से पहले ही बनवा दिया था, सरकार जी भी मित्रता निभाने के लिए न तो देश की चिंता करते हैं और न देश के पैसे की। मित्रता सर्वोपरि का सिद्धांत सरकार बखूबी जानते हैं। सार्वजनिक पैसे से मित्रता निभाना तो कोई सरकार जी से सीखे।

सरकार जी द्वारा दी गई शिक्षाएं अनगिनत हैं। कोई उनका कहां तक बखान करे। गांधी से बड़े शिक्षक हैं सरकार जी। गांधी से शिक्षा पाते लोग तो जिंदगी भर चरखा कातती रहे, खादी पहनते रहे, गांधी आश्रम चलाते रहे पर सरकार जी जैसे शिक्षक की शिक्षाएं जो अपनाएगा, नित नए कपड़े पहनेगा। सरकारी उपक्रम खरीदेगा। महलों में ऐश का जीवन जीएगा। ऐसे शिक्षक को शिक्षक दिवस पर सादर प्रणाम।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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