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तिरछी नज़र: उफ! हमें दो दिन बाद पता चला कि भ्रष्टाचार बढ़ाना है!

सरकार जी जो बोलते हैं उसका तत्काल असर होना चाहिये। ठीक पिछले साल की तरह। इधर नारी सम्मान पर बोला नहीं, उधर बिलक़ीस के बलात्कारियों की सज़ा तत्काल माफ़ हो गई।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार गूगल

सोलह अगस्त को अखबार नहीं आया। ऐसा हर वर्ष होता है। पन्द्रह अगस्त को स्वतंत्रता दिवस होने की वजह से समाचार पत्रों के कार्यालय बंद रहते हैं। अतः सोलह अगस्त का संस्करण नहीं छपता है। यह तो बहुत नाइंसाफी है। देश की जनता के साथ नाइंसाफी है, और उससे भी अधिक देश के सरकार जी के साथ नाइंसाफी है। देखा जाए तो सभी के साथ नाइंसाफी है।

आप कहेंगे, कैसे? समझाते हैं। थोड़ा धीरज रखो। देखो, सरकार जी पन्द्रह अगस्त को लाल किले पर चढ़ कर झंडा फहराते हैं और खूब लम्बा चौड़ा भाषण देते हैं। कई बार तो इतना लम्बा लम्बा भाषण दिए हैं कि उतना लम्बा भाषण किसी और ने नहीं दिया है। स्वयं सरकार जी ने भी नहीं। तो सरकार जी लाल किले की प्राचीर से बहुत लम्बा भाषण देते हैं। कई लोग तो टीवी पर लाइव देख लेते हैं परन्तु फिर भी बहुत सारे लोग टीवी पर देख नहीं पाते हैं। घर में टीवी नहीं है या फिर इतना लम्बा भाषण सुनने का न धैर्य है और न ही समय। मैं खुद दूसरे नम्बर की कैटेगरी में आता हूं।

सबसे छोटा और आसान साधन है कि अगले दिन समाचार पत्र में पढ़ लो। उसमें संक्षिप्त में आता है। मूल मूल बातें आ जाती है। पर ये अखबार अगले दिन छुट्टी रख लेते हैं। सरकार जी ने लाल किले की प्राचीर से जो कुछ कहा, झंडा फहराते हुए जो कुछ कहा, वह लोगों को दो दिन बाद पता चलता है। यह लोगों के साथ तो अन्याय है ही, सरकार जी के साथ उससे ज्यादा अन्याय है। सरकार जी कुछ कहें और लोगों को दो दिन तक पता ही न चले, सरकार जी के साथ इससे बड़ा अन्याय और क्या हो सकता है।

खैर छोड़ो, देर से ही सही पर पता तो चलता है ना कि सरकार जी ने क्या कहा? सरकार जी ने वही कहा जो वे आजकल हर जगह कह रहे हैं, हर सभा में‌ कह रहे हैं। पन्द्रह अगस्त को भी सरकार जी ने भ्रष्टाचार पर बोला। सरकार जी ने कहा कि भ्रष्टाचार बुरी बात है। आजकल सरकार जी भ्रष्टाचार के बारे में बहुत ही बढ़ चढ़ कर बोल रहे हैं। सरकार जी बस अपनी दाढ़ी सहलाते हैं और भ्रष्टाचार पर बोल देते हैं।

सरकार जी का भ्रष्टाचार से लड़ने का अपना ही फंडा है। पहले तो अपने भ्रष्टाचार का जिक्र ही न होने दो। उसकी जांच ही न करवाओ। न रफाल की जांच करवाओ, न अपने केयर्स फंड की और न ही नोटबंदी या अन्य किसी आरोप की। मतलब अपने ऊपर लगे किसी भी आरोप की जांच मत करवाओ। न जांच होगी, न सच्चाई सामने आएगी। और हां! अपनी वाशिंग मशीन भी चालू रखो। और जो विपक्षी सरकार जी की वाशिंग मशीन में धुलने न आए उस पर ईडी और सीबीआई छोड़ दो। सरकार जी तो इसी तरह भ्रष्टाचार खत्म करेंगे।

सरकार जी के बोलने का तत्काल प्रभाव होता है। उधर सरकार जी लाल किले से जो भी कुछ स्वतंत्रता दिवस पर बोलते हैं और इधर सरकार जी उनकी सरकारें तुरंत उस पर अमल करती हैं। पिछले वर्ष सरकार जी ने लाल किले से नारी सम्मान के बारे में बोला था और सरकार जी के गृह राज्य में उन्हीं के दल की सरकार ने इस पर तत्काल अमल कर दिया था। ठीक उसी दिन बिलकीस बानो के बलात्कारियों को रिहा कर दिया गया था। सरकार जी के बोलने का असर हो तो ऐसा हो। इतना तत्पर हो।

वैसे सरकार जी मानते हैं कि झूठ बोलो, लगातार झूठ बोलो, बार बार झूठ बोलो और इतनी बार झूठ बोलो कि झूठ ही सच लगने लग जाए। यह सरकार जी ही नहीं, सरकार जी के सारे रत्न, नवरत्न, भक्त, सभी मानते हैं। और फिर जब झूठ ही सच लगने लगा जाए तो फिर जो मर्जी बोलो। जोर जोर से बोलो। सरकार जी को भ्रष्टाचार न करने वाला बोलो। सरकार जी को भ्रष्टाचार न सहने वाला बोलो। सरकार जी को ईमानदार बोलो। सरकार जी को नारियों की इज्जत करने वाला बोलो। सरकार जी को देशभक्त बोलो। फिर तो जो बोलो, सब सच ही है।

सरकार जी जो बोलते हैं उसका तत्काल असर होना चाहिये। ठीक पिछले साल की तरह। इधर नारी सम्मान पर बोला नहीं, उधर बलात्कारियों की तत्काल सजा माफ हो गई। इसी तरह से इस बार भी होना चाहिये। भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए बोला नहीं कि भ्रष्टाचार तत्काल बढ़ जाए। पर लोगों को दो दिन तक पता ही नहीं चलना कि भ्रष्टाचार बढ़ाना है! यह दो दिन का गैप, यह एक दिन अखबार न‌ छपना, यह पता न चलना कि सरकार जी ने स्वतंत्रता दिवस पर क्या बोला, देश की उन्नति के लिए बहुत ही घातक है।

इसलिए आगे से यह होना चाहिये कि ये समाचार पत्र जिस दिन मर्जी छपें, न छपें पर पन्द्रह अगस्त को जरुर छपने चाहिए और सोलह अगस्त को जरूर बंटने चाहिए जिससे सरकार जी ने जो कुछ बोला है‌ वह लोगों को समय से पता चल सके और लोग समझ सकें कि अब आगे क्या करना है। अब बताइये कि देश से भ्रष्टाचार खत्म करने की मुहिम में ये दो दिन‌ जो बर्बाद हुए, उसका खामियाजा क्या अखबार भरेंगे।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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