तिरछी नज़र: प्रेस फ्रीडम इंडेक्स और हमारे सरकार जी
इस सप्ताह प्रेस की स्वतंत्रता का इंडेक्स जारी किया गया। हमने फिर बाजी मारी है। एक सौ अस्सी (180) में से एक सौ इकसठवें (161) नम्बर पर हैं। जब 2002 में यह इंडेक्स शुरू हुआ था तो हम अस्सीवें (80) नम्बर पर थे। बीस साल में इतनी उन्नति क्या कम है। अभी और भी सुधरेंगे, थोड़ा इंतजार करो।
मुझे ध्यान आता सरकार जी का वह साक्षात्कार। अभी का नहीं है। अब, सरकार जी बनने के बाद तो उन्होंने असली साक्षात्कार दिया ही नहीं है। यह साक्षात्कार तो 2002 का है। उस समय गुजरात दंगों के बाद के एक साक्षात्कार में उनसे पूछा गया कि गुजरात दंगों में आपकी क्या असफलता रही, क्या कमी रह गई थी? तो उन्होंने जवाब दिया कि कमी यह रह गई थी कि वे मीडिया को ढंग से मैनेज नहीं कर पाए। परन्तु अब मीडिया मैनेजमेंट में कोई कमी नहीं है। अब एक सौ अस्सी देशों में से सिर्फ उन्नीस देशों में ही मीडिया हमारे देश से बेहतर मैनेज्ड है। देख लेना, जल्दी ही हम मीडिया मैनेजमेंट में सबसे अधिक मैनेज्ड देश हो जाएंगे।
यह जो ना हमें इतना पीछे दिखाते हैं, यह हमारे से चिढ़ने वाले पश्चिमी देशों की कारस्तानी है। वे देश हमारे विश्व गुरु बनने से चिढ़ते हैं। वे देश हमारे सरकार जी की उन्नति से चिढ़ते हैं। उनसे बर्दाश्त नहीं होता है कि हमारे सरकार जी विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता दिखाए जाएं और हमारा प्रेस सबसे निष्पक्ष। इसीलिए वे हमें किसी ना किसी तरह से नीचा दिखाने की फिराक में रहते हैं। कभी भुखमरी इंडेक्स में नीचे दिखा देते हैं तो कभी डेमोक्रेसी इंडेक्स में। अब प्रेस की स्वतंत्रता के इंडेक्स में नीचा दिखा दिया है। पिछले वर्ष से भी अधिक नीचे दिखा दिया गया है।
नीचा दिखाने से याद आया कि सरकार जी को याद है कि किसने कितनी बार उन्हें नीचा दिखाया है, गाली दी है। पता नहीं सरकार जी ने स्वयं गिना है या फिर पीएमओ में इस कार्य के लिए भी कोई अफसर रखा गया है कि गिनता रहे कि कांग्रेस ने सरकार जी को कितनी बार गाली दी है। खैर जिसने भी गिना है, गिना है कि कांग्रेस ने सरकार जी को पूरे इक्यावनवें (91) बार गाली दी है। सरकार जी गिनती का पूरा ध्यान रखते हैं। जैसे सौवीं बार मन की बात कही, 91वीं बार गाली सुनी। हो सकता है कि किसी बार बताएं कि मैं विरोधियों को पांच सौ बार गाली दे चुका हूं। कि मैंने अब तक सात सौ पचास बार पिछली सरकारों की बुराई की है। कि मैं अब हजारवीं बार रोड शो कर रहा हूं या फिर यह कि यह मेरी पांच हजारवीं चुनावी सभा है। गिनती याद रखना कितनी अच्छी बात है। परन्तु यह गिनती भी याद रखी जाए कि कितने किसानों ने आत्महत्या की है, कि कितने लोग बेरोजगार हैं, कि कितने लोग गरीबी रेखा से नीचे पहुंचे हैं, कि तेल और रुपया कहां से कहां पहुंच गया है।
बात तो हम प्रेस की स्वतंत्रता की कर रहे हैं। कोई माने या न माने, हमारे देश में प्रेस को पूरी स्वतंत्रता है। प्रेस को पूरी आजादी है कि वह सरकार जी की, और सरकार जी की सरकार की भरपूर प्रशंसा करे। सरकार जी का और सरकार जी की सरकार का इसमें कोई भी हस्तक्षेप नहीं है। कई बार तो कोई पत्रकार सरकार जी के सामने ही सरकार जी की इतनी प्रशंसा कर रहा होता है कि सरकार जी का चेहरा खुशी और लाज से लाल हो जाता है पर सरकार जी ने कभी भी किसी को भी नहीं रोका। न तो सरकार जी ने कभी कहा है कि इतनी प्रशंसा मत करो और न ही सरकार जी कभी कहेंगे। पत्रकारों को इतनी स्वतंत्रता सिर्फ, और सिर्फ सरकार जी ही दे सकते हैं, हमारे सरकार जी।
सरकार जी और सरकार जी की सरकार पूरा ध्यान रखती है कि प्रेस को, मीडिया को पैसे की कोई कमी न हो। सरकार जी अपनी पसंद वाले अखबारों में अपनी फोटो वाले पूरे पूरे पेज़ के विज्ञापन छपवाते हैं जिससे उन्हें पैसे की कोई कमी न महसूस हो। सरकार जी की सरकार सरकारी विज्ञापन देने में पूरी पारदर्शिता अपनाती है। सरकार ने पूरा बंदोबस्त कर रखा है कि जो अखबार, जो टीवी चैनल, सरकार जी की और उनकी सरकार की जितनी प्रशंसा करे उसे उतने ही अधिक विज्ञापन दिए जाएं। प्रेस को, मीडिया को विज्ञापन देने में इतनी पारदर्शिता शायद ही किसी और देश की सरकार अपनाती हो। फिर भी हमारे देश को प्रेस की स्वतंत्रता के इंडेक्स में पीछे कर दिया जाता है।
खबर है कि हमारे देश को प्रेस की स्वतंत्रता के इंडेक्स में इतना पीछे इसलिए भी कर दिया गया कि हमारे यहां पत्रकारों को सरकार विरोधी खबर छापने पर जेल भेज दिया जाता है। परन्तु हमारे यहां तो कोई ऐसा कानून ही नहीं है कि पत्रकारों को सिर्फ सरकार के खिलाफ लिखने या बोलने पर ही जेल भेज दिया जाए। इसलिए किसी भी पत्रकार को जेल भेजने के लिए सरकार को बहुत मेहनत करनी पड़ती है। तरह तरह की धाराएं लगानी पड़ती हैं। कभी देशद्रोह तो कभी दंगा-फसाद की धाराएं लगानी पड़ती हैं। तब जाकर, बड़ी कठिनाई से सरकार किसी पत्रकार को जेल भेज पाती है। इतना आसान नहीं है हमारे देश में पत्रकारों को जेल भेजना जितना यह प्रेस फ्रीडम इंडेक्स निकालने वाली संस्था, आरएसएफ समझे बैठी है। हम जेल तो बहुत सारे पत्रकारों को भेजना चाहते हैं पर क्या करें भेज ही नहीं पाते हैं।
आरएसएफ की रिपोर्ट में और भी बहुत कुछ बातें हैं। उनका और भी बहुत कुछ कहना है। उसकी चिंता फेक न्यूज और प्रोपेगंडा समाचार को लेकर भी है। परन्तु क्या उन्हें नहीं पता है कि यह फेक न्यूज और प्रोपेगंडा हमारे यहां पत्रकार अपने आप नहीं करते हैं, यह तो उनसे सरकार करवाती है।
आरएसएफ का यह भी कहना है कि भारत वर्ष में पत्रकारों की जान सुरक्षित नहीं है। पिछले वर्ष ही दो पत्रकारों को अपनी पत्रकारिता के चलते मार डाला गया। परन्तु बताओ, इस मामले में सरकार क्या करे। सरकार तो पत्रकारों को खुद सलाह देती है कि सब भला भला छापो। किसी का भी बुरा मत लिखो, किसी का भी भ्रष्टाचार मत उजागर करो। काहे अपनी जान जोखिम में डालते हो। खुद भी सुरक्षित रहो और औरों को भी सुरक्षित रखो।
अभी तो अगले साल भी, तीन मई तक तो, अंतरराष्ट्रीय पत्रकार स्वतंत्रता दिवस 2024 तक तो, वोट भले ही पड़ जाएं, पर पुराने वाले सरकार जी ही सरकार जी रहेंगे। नई सरकार तो मई के तीसरे हफ्ते में ही बदलेगी। और देख लेना, जब तक यह सरकार रहेगी, तब तक हम प्रेस की स्वतंत्रता के सूचकांक में ही नहीं, अन्य और सूचकांकों में भी नई ऊंचाइयों को छुएंगे।
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)
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