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तिरछी नज़र: हम भी चांद पर, पर मणिपुर में नहीं

लोग कह रहे हैं कि चांद पर तो पहुंच गए, मणिपुर कब जाओगे? देखो भाई, चांद दिल्ली से, राजधानी से साफ़ साफ़ दिखाई देता है, लेकिन मणिपुर नहीं।
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इस सप्ताह, 23 अगस्त को हम चांद पर पहुंच गए। यह कार्य सरकार जी के नेतृत्व में पहली बार हुआ। देखिए, इसरो भी सालों‌ से है, नेहरू के जमाने से। और वैज्ञानिक तो आदिकाल से हुए हैं। पर क्या कोई अभी तक चांद पर पहुंचा? नहीं ना। अब जब सरकार जी आए हैं, तभी हम चांद पर पहुंचे हैं। 

हमने चंद्रयान 3 ऐसी जगह उतारा जहां पहले किसी का यान न उतरा हो। इसका एक लाभ तो यह है कि ऐसा कर के हमने इतिहास बनाया है, विश्व इतिहास। अगर ऐसी जगह उतारते जहां पहले कोई अपना अंतरिक्ष यान उतार चुका होता तो सरकार जी भारतीय इतिहास तो बनाते पर विश्व इतिहास बनाने में चूक जाते। सरकार जी की रूचि इतिहास बनाने में है। या तो वे इतिहास बनाते हैं या फिर इतिहास लिखवाते हैं। भारत का इतिहास तो वे बहुत बार बना और लिखवा चुके हैं। अब वे विश्व इतिहास की ओर ध्यान दे रहे हैं। तो चंद्रयान नई जगह उतारने से विश्व में पहली बार यह काम हुआ। विश्व इतिहास बना।

सरकार जी के काल में इतिहास पर बहुत काम हो रहा है। इतिहास बनाया भी जा रहा है और लिखवाया भी जा रहा है। किताबों में दशकों से, सदियों से लिखा इतिहास भी सरकार जी बदलवा रहे हैं, पुनः लिखवा रहे हैं। 'एंटायर पोलिटिकल साइंस' की तरह ही 'वाट्सएप यूनिवर्सिटी' और 'फेसबुक इंस्टीट्यूट' में 'एंटायर हिस्ट्री' पर भी डिग्री दी जा रही है। पीएचडी कराई जा रही है। 

चंद्रयान 3 के ऐसी जगह, जहां किसी का भी यान न उतरा हो, उतारने का दूसरा बड़ा और दूरगामी लाभ यह है कि कल को चंद्रमा पर जमीन को लेकर कोई लड़ाई झगडा़ हो तो हम सेफ हैं। मतलब हम कह सकते हैं कि यहां सबसे पहले यान हमारा उतरा था। यहां सबसे पहले झंडा हमारा गड़ा था। तो यह जमीन हमारी है। फिर भी अगर झगड़ा हुआ तो देखा जाएगा। हमने सबसे महंगे रफाल और अमरीकी ड्रोन एंवे ही नहीं खरीदे हैं। वे चंद्रमा पर भी काम आएंगे।

लोग कह रहे हैं कि चांद पर तो पहुंच गए, मणिपुर कब जाओगे? देखो भाई, चांद दिल्ली से, राजधानी से साफ साफ दिखाई देता है। बस जब बादल हों तब दिखाई नहीं देता है या फिर अमावस्या को दिखाई नहीं देता है। मतलब आमतौर पर दिखाई देता है और सबको दिखाई देता है। सरकार जी को भी दिखाई देता है और आम जनता को भी दिखाई देता है। 

लेकिन मणिपुर के साथ दिक्कत है। वह तो दिखाई ही नहीं देता है। दिल्ली से तो हरगिज दिखाई नहीं‌ देता है। दिल्ली वालों को तो मणिपुर दिखाई नहीं देता है। और सरकार जी को भी दिखाई नहीं देता है। 'आउट ऑफ साईट' तो 'आउट ऑफ माइंड'। इसलिए सरकार जी को लगा चांद तक पहुंचना अधिक जरुरी है, मणिपुर तक नहीं। सरकार जी ने वही किया। तीन लाख चौरासी हजार किलोमीटर चले गए पर दो-ढाई हजार किलोमीटर नहीं गए। हम चांद पर पहुंच गए बस मणिपुर नहीं पहुंच पाए।

लेकिन सरकार जी के लिए 'आउट ऑफ माइंड' कुछ नहीं होता है। सब कुछ माइंड से ही होता है। और माइंड है कि मानता ही नहीं है, बस वोट ही मांगता है। सरकार जी का माइंड जानता है कि वोट बस चांद पर जाने से बढेंगे, मणिपुर जाने से नहीं। मणिपुर जाने से तो घट भी सकते हैं। सरकार जी का न दिल मानता है और न ही दिमाग कि उन्हें मणिपुर जाना चाहिये। 

सरकार जी की 'एंटायर पोलिटिकल साइंस' की पढ़ाई भी उन्हें मणिपुर जाने से रोकती है। उनकी पढ़ाई समझाती है कि जहां दंगे में अपना वोटबैंक लाभ में हो, वहां दंगा नहीं रुकवाना चाहिये। जहां वाट्सएप यूनिवर्सिटी, फेसबुक और मिस्टर 'एक्स' जैसी इंस्टीट्यूटस् की 'एंटायर हिस्ट्री' की कक्षाएं दंगों का औचित्य समझा रही हों, वहां दंगा होता रहना ही अच्छा है। यह सरकार जी का वंडरफुल माइंड जानता है। इसीलिए सरकार जी तीन लाख किलोमीटर से अधिक चले गए, पर तीन हजार किलोमीटर से कम नहीं गए।

अंत में

चांद पर ज़रूर जाएं, देश के गौरव की बात है। पर मणिपुर भी तो हो आएं। वह तो देश की बात है।

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