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तिरछी नज़र: सोसायटी के चुनाव और सरकार-जी की प्रेरणा

ऐसा नहीं था कि मैंने सोसायटी में कोई काम ही नहीं किया था। सोसायटी में रामलीला मंचन और रावण दहन मैंने ही पहली बार करवाया था...
nagpur
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार: गूगल

कॉलोनी की वेलफेयर सोसायटी के चुनाव सिर पर थे। पिछले दो टर्म से मैं ही चेयरमैन था पर तीसरा टर्म थोड़ा मुश्किल लग रहा था। सोसायटी में गंदगी बढ़ गई थी। अंदरुनी सड़कों पर इतने गड्ढे पड़े हुए थे कि चलना तक मुश्किल था। बार बार बिजली जाती थी और बैकअप वाला जनरेटर महीनों से खराब पडा़ था। विरोधी ग्रुप इसी बात का शोर मचा रहा था। इसी बात को चुनावी मुद्दा बनाना चाहता था। 

परन्तु ऐसा नहीं था कि मैंने कॉलोनी की सोसायटी में कोई काम ही नहीं किया था। सोसायटी में रामलीला मंचन और रावण दहन मैंने ही पहली बार करवाया था। पिछली दीपावली पर पूरी सोसायटी को पहली बार एक लाख दीपों से सजा कर नया इतिहास बनाया गया था। राम नवमी पर भी सोसायटी में भव्य जुलूस निकाला गया था। और दूर क्यों जाना, अभी पिछले सप्ताह ही तो कृष्ण जन्माष्टमी का जितना भव्य कार्यक्रम कॉलोनी के मंदिर में हुआ था, पहले कभी नहीं हुआ था। पर इस सबके बावजूद यह विरोधी गुट गंदगी, गड्ढों और जनरेटर के पीछे पड़ा हुआ था।

बच्चे बड़ों से सीखते हैं और हम आम लोग महापुरुषों से। तो हमने भी सरकार जी से सीख ली। क्यों न घर में एक बहुत भव्य पार्टी का आयोजन किया जाए। ऐसी पार्टी कि कॉलोनी वाले पार्टी देख कर मेरे सामर्थ्य का लोहा मान जाएं और साथ ही विरोधी भी जल भुन जाएं। और पार्टी ऐसी हो कि चुनाव में भी काम आए। तो सरकार जी का अनुकरण कर हमने भी एक पार्टी रख ली।

पार्टी तो हो और सरकारी हो, मतलब सोसायटी के फंड से हो। पर लगे ऐसा कि हमने ही करवाई है। लगे कि जो हुआ है, हमारी ही जेब से हुआ है। मतलब जो भी यश मिले हमें ही मिले। तो हमने पार्टी की पूरी प्लानिंग कर ली। और सिर्फ प्लानिंग ही नहीं की, पार्टी कर भी ली।

पार्टी की और पार्टी में‌ सभी बड़े लोगों को बुलाया गया। शहर के सांसद, जो केन्द्र में मंत्री भी हैं, तीनों विधायकों, डीएम, एसएसपी, बड़े व्यवसायियों, मतलब जो भी गणमान्य थे, प्रभावशाली थे, काम के थे, सभी को बुलावा भेजा। और सभी आए भी। सपत्नी आए। शहर के सबसे बड़े केटरर से इंतजाम करवाया। उसने सबसे बढ़िया बर्तनों में खाना परोसा। मेन्यू भी दो तरह का रखा। एक खाने वाला और एक दिखाने वाला।

इतने मेहमान आने थे तो सोसायटी के बंद पड़े फव्वारों को चालू करवाया गया। उनमें पानी और रौशनी का प्रबंध किया। जहां जहां गन्दगी थी, उसे साफ करवाया। अरे नहीं भाई, उसे साफ करवाने की फुर्सत किसे थी, तो उसको ढका गया। कुछ गमले किराये पर ला कर इधर उधर रखवाए गए। मतलब टेम्प्रेरी तौर पर ही सही, सोसायटी सुंदर बना दी गई। बच्चों को एक कमरे में बंद कर दिया गया और समझा दिया कि चूं भी बाहर नहीं आनी चाहिए। मतलब सरकार जी से, महापुरुष से जो शिक्षा मिल सकती थी, सबका अनुकरण किया। और पार्टी सफल रही।

पार्टी सफल रहे और उसका लोगों को पता ही न चले तो सफलता कैसी। यहां तो असफलता को भी सफलता कह कर भुनाने का प्रचलन है। तो हमने भी अपनी पार्टी के वीडियो और फोटो कॉलोनी के वाट्सएप ग्रुप में डाल दिए। टुकड़ों में डाले और कई दिनों तक डाले। अपने भक्तों से कह कर अपना स्वागत भी करवा डाला। जिस दिन हमारा स्वागत हुआ, उस दिन कोई दुर्घटना नहीं हुई। यह दुर्घटना होने का सौभाग्य तो सरकार जी को ही प्राप्त है। कि जब जिम कार्बेट पार्क में शूटिंग करें तो पुलवामा हो जाए और जब उनके भक्त G 20 की सफलता के उपलक्ष्य में उन पर फूल बरसाएं तो आतंकवादी घटना में कर्नल, मेजर और डीएसपी शहीद हो जाएं।

पुनश्च: एक बात तो बताना भूल ही गया। उसकी प्रेरणा भी सरकार जी से ही मिली थी। हमारी कॉलोनी का नाम है, वेस्टएंड सोसायटी कॉलोनी। पर मैंने पार्टी के निमंत्रण पत्र पर छपवाया, पश्चिमांत सोसायटी कॉलोनी। अब सब लोग कॉलोनी की असली समस्याएं भूल दो ही बातों में व्यस्त हैं। एक तो मेरी सफल पार्टी और दूसरे मेरे द्वारा कॉलोनी का नाम बदलना। और अब मेरी ओर से तो चुनाव जीतने की तैयारी पूरी है।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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