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तिरछी नज़र: मित्रों.. आइये अभी तो यही गणतंत्र दिवस मनाएं

आज नहीं तो कल, यह तो होना ही है। भविष्य में देश में दो या तीन गणतंत्र दिवस होने वाले ही हैं। स्वतंत्रता दिवस के लिए तो अनगिनत दिवस घोषित हो ही चुके हैं।
Tiranga

आज छब्बीस जनवरी है। आज के ही दिन, पिचहत्तर वर्ष पहले हमारा संविधान लागू किया गया था। आज हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं। आज के दिन देश की राजधानी दिल्ली में भव्य परेड का आयोजन किया जाता है जिसकी महामहिम राष्ट्रपति महोदय/महोदया सलामी लेते हैं।

आज की तारीख तक गणतंत्र दिवस एक ही है। सरकार जी ने, सरकार जी के किसी चाहने वाले ने आज तक गणतंत्र दिवस के लिए कोई दूसरा दिन नहीं सुझाया है। कल को, दो चार दिन बाद या फिर महीने, दो महीने या फिर साल दो साल बाद कोई गणतंत्र दिवस के लिए कोई दूसरा दिन सुझा सकता है। और आज नहीं तो कल, यह तो होना ही है। भविष्य में देश में दो या तीन गणतंत्र दिवस होने वाले ही हैं।

आज तक भले ही गणतंत्र दिवस एक है, लेकिन स्वतंत्रता दिवस के लिए तो अनगिनत दिवस घोषित हो ही चुके हैं। यह बात अलग है कि सरकार जी भी अभी तक उन स्वतंत्रता दिवसों को नहीं मनाते हैं। सरकार जी तो आज भी पंद्रह अगस्त को ही लालकिले की प्राचीर पर झंडा फहराते हैं। वहाँ से भाषण देते हैं। वहीं से जनता को जुमले सुनाते हैं और वहीं से विपक्ष को गरियाते हैं। यही नहीं, वहीं से अपने मुँह मियां मिट्ठू भी बनते हैं।

कितने दुर्भाग्य की बात है कि सन् 1947 से 2014 तक हम एक ही स्वतंत्रता दिवस मनाते रहे। एक ही आजादी के गीत गाते रहे। उसी आजादी के जो हमें अंग्रेजों से मिली थी। जो हमें गाँधी, नेहरू, सरदार पटेल, सुभाष चंद्र बोस, भगतसिंह, आज़ाद, बिरसा मुंडा और न जाने कितने देशभक्तों ने दिलाई थी। पर सरकार जी के लोगों को लगा कि जब इतना विकास हो रहा है। अनेक वायदे किये जा रहे हैं, अनेक बहाने बनाये जा रहे हैं तो स्वतंत्रता दिवस एक कैसे हो सकता है। स्वतंत्रता दिवस भी तो अनेक होने चाहियें। 

तो शुरू हुई नए नए स्वतंत्रता दिवसों की बात। नई आजादी की बात। बताया गया कि असली आजादी तो 2014 में मिली है। वह आजादी जिसके लिए भगतसिंह, आज़ाद, बिरसा मुंडा जैसे अनेक शहीद हुए, वह आजादी तो नकली थी। जिसके लिए गाँधी, नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद और अन्य लाखों जेल गए, वह आजादी नकली थी। जिसके लिए सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिन्द फौज बनाई, वह आजादी आजादी नहीं थी। असली आजादी तो वह है जो हमारे सरकार जी ने हमें 2014 में दिलवाई है।

और अब 2014 से 2025 तक असली आजादी हमें इतनी बार मिल चुकी है कि गिनना भी असंभव है। स्वतंत्रता दिवस तो इतने सारे हो चुके हैं कि गिनना शुरू करें तो गिनती ही भूल जाएं। दो चार तो अभी बैठे ठाले ही याद आ जायेंगे। छब्बीस मई 2014 को तो एक आजादी मिली थी ही, एक आजादी उस दिन मिली थी जिस दिन जीएसटी लागू हुआ था। उस दिन को तो स्वयं सरकार जी ने आजादी का दिन घोषित किया था। ठीक 14-15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि की तरह संसद के सेंट्रल हॉल में जश्न मनाया गया था। तारीख याद नहीं आ रही? भूल गए ना। गूगल सर्च कर लेना। इस दिन भी तो स्वतंत्रता दिवस मनाना है।

अब एक और आजादी का दिन घोषित हो गया है। एक नया स्वतंत्रता दिवस आन पड़ा है। वह दिन जिस दिन अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर का उद्धघाटन हुआ था।

अरे घोंचू, पिटवाएगा क्या? उद्धघाटन तो सड़क का होता है, पुल और रेल का होता है। मंदिर में तो प्राण प्रतिष्ठा होती है। तो राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का वह दिन, बाइस जनवरी भी एक नया स्वतंत्रता दिवस है।

ये सारे स्वतंत्रता दिवस इसलिए घोषित किये जा रहे हैं जिससे कि सरकार जी और उनके खानदान का, अरे भाई उस खानदान का नहीं, उस वाले खानदान का, जिसने अंग्रेजों का साथ दिया, देशभक्तों के खिलाफ गवाही दी, देश की आजादी में योगदान बताया जा सके। सरकार जी का देश की आजादी में योगदान बताया जा सके। देश की जनता को समझाया जा सके कि जिस भगतसिंह और आज़ाद को तुम पूजते हो, उन्होंने तो एक बार आजादी दिलवाई थी, सरकार जी तो अनेक बार आज़ादी दिलवा चुके हैं। गाँधी, नेहरू और सरदार पटेल ने तो झूठी आजादी दिलवाई थी, लीज पर दिलवाई थी। पर सरकार जी तो परमानेंट आजादी दिलवा रहे हैं। कितने महान हैं सरकार जी।

सरकार जी और महान बन जाते यदि चुनाव में सरकार जी को चार सौ सीट मिल जातीं। सरकार जी नया गणतंत्र दिवस भी घोषित कर देते। नहीं, नहीं, कोई नई संविधान सभा गठित नहीं करनी पड़ती। कोई नया संविधान भी नहीं बनाना पड़ता। हिन्दू राष्ट्र का संविधान तो सदियों से बना पड़ा है। बस उसे लागू करना पड़ता। और तब हम छब्बीस जनवरी को नहीं, किसी और दिन गणतंत्र दिवस मना रहे होते।

लेकिन अभी तो हम छब्बीस जनवरी को ही गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। तो सभी भाईयों, बन्धुओं, सभी मित्रों और सभी देशवासियों को, अभी तो इसी एकमात्र गणतंत्र दिवस की बधाइयाँ। हमारा गणतंत्र दिवस यही रहे और संविधान भी यही रहे, इन्हीं शुभकामनाओं सहित। तो मित्रों, आइये अभी तो यही गणतंत्र दिवस मनाएं।

( इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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