Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

विक्रम और बेताल: कहानी राजा ‘सरकार जी’ की

अपने व्यंग्य स्तंभ तिरछी नज़र में इस बार डॉ. द्रोण विक्रम-बेताल के बहाने ‘सरकार जी’ और मणिुपर के बारे में सवाल पूछ रहे हैं। 
satire
कार्टून सतीश आचार्य। साभार : ट्विटर 

आधी रात का समय था। अमावस्या की रात थी और श्मशान भूमि में घनघोर अंधेरा छाया हुआ था। कहीं दूर से सियारों की 'हुआं हुआं' की आवाजें आ रहीं थीं। ऐसे में ही राजा विक्रमादित्य एक बार फिर पेड़ पर ऊपर चढ़े और वृक्ष की शाखा पर लटके बेताल को शाखा से उतार कर अपने कंधे पर लाद लिया।

विक्रमादित्य जब बेताल को अपने कंधे पर लाद कर चलने लगे तो बेताल ने कहा "राजा, तुम बहुत ही ढीठ हो। तुम ऐसे नहीं मानोगे। ये कठिन रास्ता आराम से कट जाए, इसलिए मैं तुम्हें जम्बूद्वीप के भारत खण्ड के राजा ‘सरकार जी’ की एक और कथा सुनाता हूं। लेकिन राजा, अगर तुमने बीच में मौन भंग किया तो मैं वापस चला जाऊंगा"।

बेताल ने कथा शुरू की— "बात पुरानी है। जम्बू द्वीप के भारत खण्ड में ‘सरकार जी’ नाम का एक राजा हुआ रहता था। उस राजा को अपना नाम इतिहास में दर्ज करवाने का बहुत शौक था। वैसे तो राजा था तो नाम इतिहास में अपने आप ही दर्ज हो जाना था। लेकिन उस राजा को‌ अपना नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों‌ में चाहिये था। असलियत में इतिहास में नाम तो प्रजा का दर्ज होना मुश्किल होता है। राजा का नाम तो इतिहास में बिना कुछ किए दिए ही दर्ज हो जाता है।

उस राजा के राज में पूरे भारत वर्ष में बहुत खुशहाली थी। प्रजा बहुत अधिक समृद्ध थी। इतनी समृद्धि थी कि आधे से अधिक प्रजा सरकार जी द्वारा, सरकार जी की तस्वीर छपे थैलों में, मुफ्त में दिए गए, गले सड़े, कीड़े पड़े राशन पर ही गुजारा कर रही थी। और इस सबके बावजूद देश भुखमरी में विश्व में बहुत ऊंचे स्थान पर था। 

राजा सरकार जी के राज के समय खुशहाली का आलम यह था कि हर हाथ को रोजगार मिल चुका था। राजा सरकार जी स्वयं अपने हाथों से रोजगार पत्र थमाया करते थे। और जिन्हें रोजगार नहीं मिला था उन्हें भी यह रोजगार मिला हुआ था कि वे अपने लिए रोजगार तलाशें। बहुत लोगों की उम्र रोजगार को तलाशने के रोजगार में ही गुजर जाती थी। और फिर वे अन्य किसी रोजगार को पाने के योग्य नहीं रहते थे।

राजा सरकार जी बहुत ही व्यस्त रहते थे। उनकी व्यस्तता इतनी अधिक थी कि पूरे देश में किसी को भी यह नहीं पता था कि सरकार जी कब सोते हैं और कब जागते हैं। उन्हें सोते हुए किसी ने भी नहीं देखा था और जागते हुए भी किसी ने नहीं देखा था। हां, अगर सिर्फ आंखें खुली होने का मतलब ही जागना हो तो वे आम तौर पर जागते हुए ही पाए जाते थे। 

सरकार जी का अधिकतर समय उद्धघाटन करने में ही बीतता था। फिर भी बहुत सारी नालियां इसीलिए सूखी पड़ी थीं क्योंकि सरकार जी को उन नालियों के उद्धघाटन का समय नहीं मिला था। इसी तरह बहुत सारी पगडंडियां भी इसीलिए पथिकों को तरस रही थीं क्योंकि उनका उद्धघाटन नहीं हुआ था। महाराजधिराज सरकार जी भी क्या करते, उन्हें  अपनी व्यस्तता के कारण समय ही नहीं मिलता था।

ऐसा नहीं है कि सरकार जी को काम इतने सारे थे कि उन्हें उद्धघाटन करने का समय नहीं मिल पाता था। असलियत तो यह थी कि राजा सरकार जी जब तब अन्य राजाओं की मेहमाननवाज़ी स्वीकार करते रहते थे इसलिये उन्हें अन्य कार्यों के लिए समय नहीं मिल पाता था। दूसरी बात यह भी थी कि उनके नवरत्नों में कोई भी रत्न इस काबिल तक नहीं था कि नए चलने वाले रथों को भी हरी झंडी दिखा सके। सारा का सारा काम राजा सरकार जी को ही करना पड़ता था।

जैसा कि सब राजाओं में होता है, राजा सरकार जी में एक अवगुण भी था। इतने गुणी राजा में अवगुण कहां से आ गया, यह आश्चर्य की बात थी। लेकिन कई बार गुणी लोगों में भी अवगुण होते हैं, यही विधि का विधान है। उस राजा में अवगुण यह था कि वह परले दर्जे का सत्यवादी था। उस समय उसकी सत्यवादिता की कहानियां सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कहानियों से भी अधिक प्रसिद्ध थीं और अधिक पढ़ी सुनी जाती थीं। उसकी सत्यवादिता की कहानियों में उसके विवाह और गुरुकुल में हुई पढ़ाई की कहानियां अधिक प्रचलित थीं। लोग उन्हें लुत्फ ले ले कर सुनते सुनाते थे। जो भी चोर-डाकू, लुच्चा-लफंगा राजा सरकार जी की कसम खा कर न्यायालय में झूठ भी बोल देता था, उसे छोड़ दिया जाता था। बाकी लोग जमानत के लिए भी तरसते थे। 

इतने गुणी महाराजाधिराज सरकार जी के होते हुए, ऐसे सरकार जी के होते हुए जिनका डंका पूरे ब्रह्मांड में गूंज रहा था, और जिनकी वजह से पूरे सौर मंडल में शांति छाई हुई थी, उनके अधीन एक छोटी सी रियासत में एक दिक्कत आन पड़ी। वहां के दो समुदाय आपस में भिड़ पड़े। जो महाभारत में भी नहीं हुआ था, वहां वह भी हुआ। लोग तो मारे ही गए, महिलाओं का चीर हरण भी हुआ। महाभारत से ज्यादा यह हुआ कि महिलाओं की नग्न परेड भी हुई और सामूहिक बलात्कार भी। और यह दिनों नहीं, हफ्तों नहीं, महीनों चलता रहा"। 

कहानी समाप्त कर बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा, "राजा, यद्यपि यह प्रश्न कठिन है पर मुझे विश्वास है कि तुम इस प्रश्न का उत्तर अवश्य दे सकते हो। तो राजन बताओ कि राजा सरकार जी ने इतने दंगा फसाद, इतनी हत्याओं और बलात्कार आदि की घटनाओं के बावजूद कुछ क्यों नहीं बोला? उस रियासत के सूबेदार को बर्खास्त क्यों नहीं किया? यदि तुमने समझते हुए भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो मैं तुम्हारे सिर के टुकड़े टुकड़े कर दूंगा"।

राजा विक्रमादित्य ने सोच कर उत्तर दिया, "बेताल, इस प्रश्न का उत्तर कठिन अवश्य है पर असंभव नहीं। अवश्य ही राजा सरकार जी को अपना भूतकाल याद आ रहा होगा। भूतकाल में जब वे भी किसी रियासत के सूबेदार रहे होंगे, तब उन्होंने अपनी रियासत में हुई इसी तरह की घटनाओं को लेकर न तो बोला होगा और न ही इस्तीफा दिया होगा। और न ही उस समय के राजा ने उन्हें बर्खास्त किया होगा। भूतकाल में हुई घटनाओं से ही हमारी सोच बनती है और आचरण निर्धारित होता है। इसीलिए राजा सरकार जी उस रियासत की घटनाओं पर चुप रहे, न सूबेदार से इस्तीफा मांगा और न ही उसे बर्खास्त किया"।

इतना सुनते ही, बेताल ने कहा "राजा, तुम वास्तव में ही बहुत बुद्धिमान हो। तुमने सरकार जी की कहानी पूरी तल्लीनता से सुनी और गुनी है। तुमने बिल्कुल ठीक उत्तर दिया है। लेकिन तुमने बोल कर मौन भंग कर दिया इसलिए मैं वापस जा रहा हूं"। और बेताल उड़ कर वापस वृक्ष की शाखा पर लटक गया।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest