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तिरछी नज़र: महिला आरक्षण; जल्दी का काम शैतान का!

सरकार जी महिला आरक्षण लागू करेंगे जब जनगणना हो जाएगी। जब संसद की सीटों का परिसीमन हो जाएगा। ये कब होगा? हमें क्या पता। ये तो अभी सरकार जी को भी नहीं पता है।
women reservation

सरकार जी बहुत महान हैं। कितना कुछ देते हैं अपनी प्रजा को। अब देखो, महिलाओं को भी रिजर्वेशन दे दिया है। अरे भई, नौकरियों में नहीं, विधायिका में। लोकसभा और विधानसभाओं में। सरकार जी वास्तव में ही महिलाओं को बहुत कुछ देते हैं।

सरकार जी की सरकार जबसे बनी है, सरकार जी ने सभी को बहुत कुछ दिया है। सरकार जी बस देना ही देना जानते हैं। सरकार जी देने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। अब देखो, गरीबों को देना था, चाहे पांच किलो अनाज ही देना था, तो सरकार जी ने उन्हें गरीब ही रखा। पिछले तीन सालों में, जबसे यह मुफ्त अनाज बिकना शुरु हुआ है, गरीबों की संख्या कम नहीं हुई है। अस्सी करोड़ पर ही टिकी हुई है। अगर सरकार जी ने गरीबों की संख्या में कमी कर दी तो सरकार जी कम गरीबों को मुफ्त का अनाज बेच पाएंगे और सरकार जी को यह गवारा नहीं है।

ऐसे ही सरकार जी आजकल नियुक्ति पत्र दे रहे हैं। सरकार जी जो ये नियुक्ति पत्र दे रहे हैं, सरकार जी ने इसके लिए बहुत मेहनत की है। पूरे नौ वर्ष मेहनत की है। नौ वर्षों में मेहनत कर इतनी बेरोजगारी बढ़ाई है कि अब दसवें वर्ष वर्चुअल रोजगार मेले लगा अपने कर कमलों से कुछ हजारों को नियुक्ति पत्र दे पा रहे हैं। है ना कमाल की बात। अब आप स्वयं बताइये कि अगर हर वर्ष दो करोड़ लोगों को नौकरियां दी होतीं तो सरकार जी आज इस तरह से नौकरियां बांट पाते। 

अभी दो तीन सप्ताह पहले सरकार जी ने रसोई गैस के सिलेंडर की कीमत दो सौ रुपये कम कर प्रजा को सुख प्रदान किया। जनता हतप्रभ रह गई। कुछ लोगों को तो तब तक यकीन नहीं हुआ जब तक सिलेंडर वाले भईया ने उनसे दो सौ रुपये कम नहीं मांगे। वे कभी गैस के सिलेंडर को, कभी पर्ची को तो कभी सिलेंडर वाले भईया को गौर से देखने लगे। क्या गैस का सिलेंडर छोटा तो नहीं हो गया? क्या यह पर्ची दो तीन साल पुरानी तो नहीं है? क्या सिलेंडर वाले भईया वही हैं जो हर बार बढ़ी कीमत का सिलेंडर लाते रहे थे। कहीं हम सपना तो नहीं देख रहे? कहीं सरकार जी तो नहीं बदल गए? इतनी मेहनत से बनाई हमारी महंगी चीजें खरीदने की आदत को कहीं सरकार जी बदल तो नहीं देंगे? 

सरकार जी ने महिलाओं को भी खूब दिया है। एक वो दिन थे, 2012 के, निर्भया कांड के दिन। क्या जनता थी उस समय की। जनता‌ ने पूरा आंदोलन खड़ा कर दिया था और मीडिया ने भी पूरा साथ दिया था। अब तो चाहे उन्नाव हो जाए या हाथरस, और या फिर चाहे कठुआ हो जाए या मणिपुर, जनता और मीडिया इतने 'संवेदनशील' बना दिए गए हैं कि हाथ पर हाथ रखे बैठे रहते हैं। सोचते हैं कि हम कुछ नहीं कहेंगे, कुछ नहीं करेंगे। जो कुछ करना है, सरकार जी ही करेंगे। और सरकार जी हैं कि कुछ करते ही नहीं हैं। सरकार जी तो जो कुछ करते हैं, अगला चुनाव जीतने के लिए ही करते हैं।

सरकार जी ने महिलाओं को इज्जत बख्शने के लिए बहुत कुछ किया है। इस काम के लिए सोशल मीडिया पर एक ट्रोल आर्मी भी बनाई। अगुवाई करते हों या ना हों पर सरकार जी उसे फोलो जरुर करते हैं, उसका आदर करते हैं। वह ट्रोल आर्मी महिलाओं का खूब आदर करती है, उन्हें भरपूर गालियां देती है, बलात्कार की धमकियां तक देती है। फिर भी उसका कुछ नहीं बिगड़ता है। यह सब सरकार जी के कारण ही तो है।

सरकार जी तो महिलाओं की इतनी इज्जत करते हैं कि उनके कार्यकाल में बलात्कारियों को संस्कारी बताया जाता है, उनकी सजा माफ की जाती है, उनका नागरिक अभिनन्दन किया जाता है। यौन शोषण के खिलाफ आंदोलन पर बैठी खिलाड़ियों को लाठियां मार मार कर उठा दिया जाता है। आरोपी सांसद के खिलाफ, कानून तो अपना काम करेगा की आड़ में, सरकार जी कोई भी कार्रवाई नहीं करते हैं। खिलाड़ियों की इज्जत, महिलाओं की इज्जत, देश की इज्जत जाए भाड़ में, सांसद की सांसदी बची रहनी चाहिये, सरकार जी का यही मोटो है।

अब सरकार जी महिला आरक्षण कानून लाए हैं- नारी शक्ति वंदन अधिनियम विधेयक संसद के दोनों सदनों से पास हो गया है। सरकार जी ने देखो कितना बढ़प्पन दिखाया है। इसके विधेयक के नाम के आगे 'पीएम' मतलब प्रधानमंत्री नहीं लगाया है नहीं तो इसका नाम प्रधानमंत्री नारी शक्ति वंदन अधिनियम विधेयक भी हो सकता था। पर सरकार जी ने नहीं किया। पहली बार सरकार जी ने किसी के सम्मान के लिए अपने सम्मान को तिलांजली दी। पर रुको, ठहरो जरा, इस विधेयक के पास होने पर जो अभिनन्दन हो रहा रहा है जो वंदन हो रहा है, वह महिलाओं का नहीं, सरकार जी का ही हो रहा है।

सब्र करो, सब्र का फल मीठा होता है। ऐसा नहीं है कि विधेयक पारित हो गया है तो लागू भी हो जाएगा। आराम से लागू करेंगे, सोच समझ कर लागू करेंगे। सरकार जी जान चुके हैं, जल्दी का काम शैतान का का होता है। पहले नहीं पता था पर अब पता चल चुका है। अपने एक्सपीरिएंस से ही सीखा है। नोटबंदी से सीखा है, जीएसटी से सीखा है, लॉकडाउन से सीखा है, किसानों के कानून से सीखा है। सीखा है कि जल्दी का काम शैतान का है। तो सरकार जी अब इस कानून को जल्दी नहीं, सब्र से लागू करेंगे।

सरकार जी इसे लागू करेंगे पांच साल में, दस साल में या हो सकता है लागू ही न करें। जब जनगणना हो जाएगी उसके बाद लागू करेंगे। जब संसद की सीटों का परिसीमन हो जाएगा तब लागू करेंगे। ये कब होगा? हमें क्या पता। ये तो अभी सरकार जी को भी नहीं पता है। जल्दी क्या है। सरकार जी को समझ आ गया है, जल्दी का काम शैतान का। अब तुम भी समझ जाओ।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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