महिला आरक्षण विधेयक को राज्यसभा से मिली मंजूरी

नयी दिल्ली: देश की राजनीति पर व्यापक असर डालने की क्षमता वाले उस 128वें संविधान संशोधन विधेयक को बृहस्पतिवार को संसद की मंजूरी मिल गई जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। लोकसभा में यह विधेयक बुधवार को ही पारित हो चुका है।
राज्यसभा ने ‘संविधान (128वां संशोधन) विधेयक, 2023’ को करीब 10 घंटे की चर्चा के बाद सर्वसम्मति से अपनी स्वीकृति दी।
विधेयक के पक्ष में 214 सदस्यों ने मतदान किया जबकि इसके विरोध में एक भी मत नहीं पड़ा। विधेयक के पारित होने के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सदन में मौजूद थे।
VIDEO | Rajya Sabha passes 'Nari Shakti Vandan Adhiniyam' (Women’s Reservation Bill) unanimously. 214 MPs vote in favour of the bill. #WomenReservationBill2023 pic.twitter.com/nF59adVN75
— Press Trust of India (@PTI_News) September 21, 2023
इस विधेयक के पारित होने के साथ ही राज्यसभा का विशेष सत्र अपने निर्धारित कार्यक्रम से एक दिन पहले ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया।
सभापति जगदीप धनखड़ ने उच्च सदन में महिला आरक्षण से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक पारित होने के बाद बैठक को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने की घोषणा की।
विशेष सत्र का प्रारंभ 18 सितंबर को हुआ था और इसका समापन 22 सितंबर को होना था।
महिलाओं के लिए लोकसभा व विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण सुनिश्चित करने वाले इस विधेयक पर राज्यसभा में हुई चर्चा में 72 सदस्यों ने भाग लिया। सदन ने विपक्ष द्वारा पेश किए गए विभिन्न संशोधनों को ध्वनिमत से खारिज कर दिया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की है कि महिला आरक्षण संबंधी यह विधेयक कानून बनने पर ‘नारीशक्ति वंदन अधिनियम’ के नाम से जाना जाएगा।
विधेयक में फिलहाल 15 साल के लिए महिला आरक्षण का प्रावधान किया गया है और संसद को इसे बढ़ाने का अधिकार होगा।
चर्चा के अंत में प्रधानमंत्री मोदी ने इस विधेयक को देश की नारी शक्ति को नयी ऊर्जा देने वाला करार देते हुए कहा कि इससे महिलाएं राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए नेतृत्व के साथ आगे आएंगी।
उन्होंने इस विधेयक का समर्थन करने के लिए सभी सदस्यों का ‘हृदय से अभिनंदन और हृदय से आभार व्यक्त’ किया। उन्होंने कहा कि यह जो भावना पैदा हुई है यह देश के जन जन में एक आत्मविश्वास पैदा करेगी। उन्होंने कहा कि सभी सांसदों एवं सभी दलों ने एक बहुत बड़ी भूमिका निभायी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि नारी शक्ति को सम्मान एक विधेयक पारित होने से मिल रहा है, ऐसी बात नहीं है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के प्रति सभी राजनीतिक दलों की सकारात्मक सोच, देश की नारी शक्ति को एक नयी ऊर्जा देने वाला है।
विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कानून एवं विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने पूरे सदन द्वारा विधेयक का समर्थन किए जाने पर आभार व्यक्त किया।
उन्होंने नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तथा कुछ विपक्षी सदस्यों द्वारा इस विधेयक के कानून बनने के बाद महिला आरक्षण को लागू करने की तिथि के बारे में पूछे जाने का जिक्र करते हुए कहा कि इस प्रकार की आशंका व्यक्त करना व्यर्थ है क्योंकि ‘मोदी हैं तो मुमकिन है।’
मेघवाल के जवाब के दौरान ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सदन में आए।
मेघवाल ने विधेयक में ओबीसी को आरक्षण नहीं दिये जाने के विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे की आपत्ति का जिक्र करते हुए कहा कि कांग्रेस का ओबीसी प्रेम राजनीति के कारण जागा है।
महिला आरक्षण से पहले दो अनिवार्य शर्ते रख दी गई हैं,
census और उसके बाद delimitation ...
सवाल यह है कि महिला आरक्षण को census और delimitation से जोड़ने की क्या ज़रूरत थी?
जब हम पंचायतों में और नगर निकायों में आरक्षण दे सकतें हैं, तो इसके लिए census की क्या ज़रुरत?
हमारी मांग… pic.twitter.com/MbYNPnrFs6— Mallikarjun Kharge (@kharge) September 21, 2023
उन्होंने कहा कि डॉ. भीमराव आंबेडकर ने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफे के जो कारण बताये थे, उनमें एक कारण अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग गठित नहीं किया जाना था।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार ने तो ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा तक नहीं दिया था जो काम बाद में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने किया था
इससे पहले, मेघवाल ने उच्च सदन में विधेयक को चर्चा के लिए पेश पेश करते हुए कहा कि यह विधेयक महिला सशक्तिकरण से संबंधित विधेयक है और इसके कानून बन जाने के बाद 543 सदस्यों वाली लोकसभा में महिला सदस्यों की मौजूदा संख्या (82) से बढ़कर 181 हो जाएगी। इसके पारित होने के बाद विधानसभाओं में भी महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित हो जाएंगी।
उन्होंने कहा कि इस विधेयक को लागू करने के लिए जनगणना और परिसीमन की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि जैसे ही यह विधेयक पारित होगा तो फिर परिसीमन का काम निर्वाचन आयोग करेगा।
विधेयक पर चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस ने इसे सत्तारूढ़ भाजपा का ‘चुनावी एजेंडा’ और ‘झुनझुना’ करार दिया और मांग की कि इस प्रस्तावित कानून को जनगणना एवं परिसीमन के पहले ही लागू किया जाना चाहिए।
विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, ‘‘मैं इस विधेयक का मेरी कांग्रेस पार्टी और ‘इंडिया’ गठबंधन की ओर से दिल से समर्थन करता हूं।’’
उन्होंने सभापति जगदीप धनखड़ से कहा, ‘‘चार सितंबर को आपने जयपुर में कहा कि संसद और विधानसभाओं में जल्द ही महिलाओं को उनका प्रतिनिधित्व मिलेगा... तब मुझे लगा कि यह विधेयक आ रहा है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर दो दिन पहली ही इसका पता चला।’’
उन्होंने कहा कि यह विधेयक नारी शक्ति के लिए है, इसलिए वह इसका पुरजोर समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि इस विधेयक का खंड पांच कहता है कि आरक्षण तभी लागू होगा जब परिसीमन और जनगणना होगी। उन्होंने कहा कि भाजपा ने पहले भी कई ऐसे वायदे किए जो बाद में चुनावी ‘जुमला’ साबित हुए। उन्होंने कहा कि कहीं यह भी कोई चुनावी ‘जुमला’ न साबित हो जाए।
कांग्रेस सदस्य केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह सरकार 2014 में ही सत्ता में आ गई थी और उसने महिला आरक्षण लागू करने का वादा भी किया था। उन्होंने सवाल किया कि सरकार को इतने समय तक यह विधेयक लाने से किसने रोका। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि सरकार क्या नए संसद भवन के बनने की प्रतीक्षा कर रही थी या कोई इसमें वास्तु से जुड़ा मुद्दा था।
कांग्रेस सदस्य रंजीत रंजन ने विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए सवाल किया कि इस विधेयक के लिए संसद के विशेष सत्र की क्या जरूरत थी? उन्होंने कहा कि सरकार का मकसद इस विधेयक के जरिए भी सुर्खियां बटोरना है। उन्होंने इस विधेयक को चुनावी एजेंडा करार देते हुए कहा कि क्या सरकार इसके जरिए ‘‘झुनझुना’’ (बच्चों का एक खिलौना) दिखा रही है।
चर्चा में भाग लेते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष जे पी नड्डा ने कहा कि महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार ने जो रास्ता चुना है, वह सबसे छोटा और सही रास्ता है।
विपक्षी दलों द्वारा इस विधेयक को अभी ही लागू किए जाने की मांग का उल्लेख करते हुए नड्डा ने कहा कि कुछ संवैधानिक व्यवस्थाएं होती हैं और सरकारों को संवैधानिक तरीके से काम करना होता है।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मनोज झा ने महिला आरक्षण विधेयक को प्रवर समिति में भेजे जाने की मांग करते हुए कहा कि इस विधेयक के माध्यम से अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए।
आम आदमी पार्टी (आप) के संदीप पाठक ने इस विधेयक को संसद में पेश किए जाने के तरीके पर आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया कि सरकार की नीयत प्रस्तावित कानून को लागू करने की नहीं बल्कि सिर्फ श्रेय लेने की है। उन्होंने लोकसभा और विधानसभाओं में महिला आरक्षण आगामी लोकसभा चुनाव से ही लागू करने की मांग की।
महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने के लिए 1996 के बाद से यह सातवां प्रयास था। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में 2008 में महिला आरक्षण के प्रावधान वाला विधेयक पेश किया गया जिसे 2010 में राज्यसभा में पारित कर दिया गया। किंतु राजनीतिक मतभेदों के कारण यह लोकसभा में पारित नहीं हो पाया था। बाद में 15वीं लोकसभा भंग होने के कारण वह विधेयक निष्प्रभावी हो गया।
वर्तमान में भारत के 95 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में लगभग आधी महिलाएं हैं, लेकिन संसद में महिला सदस्यों की संख्या केवल 15 प्रतिशत है जबकि विधानसभाओं में यह आंकड़ा 10 प्रतिशत है।
महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण संसद के ऊपरी सदन और राज्य विधान परिषदों में लागू नहीं होगा।
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)
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