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तिरछी नज़र: आप तो नेहरू का नाम ही बदल दो जी

विदेश में भी नेहरू, सरकार जी का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। कोशिश तो की थी नेहरू का नाम बदलने की। आईटी सेल से करवाई थी, लेकिन अभी तक कामयाब नहीं हुई।
nehru

सरकार जी विदेश में हैं! सरकार जी अमेरिका में हैं, सरकार जी मिस्र में हैं....यह खबर है! कितने आश्चर्य की बात है। पहले तो खबर यह हुआ करती थी कि सरकार जी देश में हैं। परन्तु अब खबर यह होने लगी है कि सरकार जी विदेश में हैं। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है। सरकार जी पूरी कोशिश में हैं कि खबर यही बने कि सरकार जी देश में हैं।

खैर इस समय तो खबर यही है कि सरकार जी विदेश में हैं। लेकिन विदेश में भी नेहरू, सरकार जी का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। खबर बनाई गई कि सरकार जी का स्वागत तीन तीन अमेरिकी राष्ट्रपतियों (पूर्व और वर्तमान) ने किया है लेकिन खबर यह बन गई कि इससे पहले नेहरू और इंदिरा गांधी का स्वागत भी तीन तीन अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने किया था। सरकार जी को इंदिरा गांधी से तो कोई दिक्कत नहीं है पर यह बार बार नेहरू का नाम सरकार जी को परेशानी में डाल देता है। 

इंदिरा गांधी ठीक है। उनकी एमरजेंसी की याद दिला कर ही तो सरकार जी अपने कारनामों को ठीक ठहराते रहते हैं। पर यह नेहरू, यह सरकार जी से बर्दाश्त नहीं होता है। सरकार जी का स्वागत करती भीड़ की फोटो छापो तो नेहरू का स्वागत करती भीड़ की फोटो आ जाती है। और नेहरू के समय में तो स्वागत करती भीड़ में सारे अमेरिकी ही हैं। आज की तरह एनआरआई नहीं हैं कि 'मोदी-मोदी' नहीं बोलेंगे तो डर है कि कहीं पीआईओ कार्ड न छिन जाए।

भारत में तो सरकार जी नेहरू को ठिकाने लगा ही रहे हैं। जाने से पहले भी नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी का नाम बदल गए। सरकार जी जेएनयू की विश्वसनीयता पहले ही इतनी घटा चुके हैं कि वे लोग जिन्हें अपने टैक्स के पैसे से सरकार जी की रैलियों से तकलीफ नहीं है, उन्हें जेएनयू में मिलने वाली वाली शिक्षा पर अपने टैक्स का पैसा बर्बाद होता दिखने लगा है। रहा नेहरू के नाम पर स्टेडियम का नाम, तो वह तो अपने नाम पर कर ही लेंगे। अहमदाबाद में भी तो सरदार पटेल की जगह स्टेडियम अपने नाम कर ही चुके हैं।

चलो, देश में तो धीरे-धीरे सम्हाल ही लेंगे पर विदेश में कैसे सम्हालेंगे। क्या अमेरिका से कहेंगे कि अपने संग्रहालयों में से नेहरू की सारी तस्वीरें हटा दो। या फिर रूस से कहेंगे कि सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार का नाम बदल कर सोवियत लैंड प्रधानमंत्री पुरस्कार या फिर सोवियत लैंड मोदी पुरस्कार रख दो। सरकार जी कह तो दें पर जरा अजीब लगेगा ना।

हां तो, सरकार जी इन दिनों अमेरिका गए हुए थे। ये अमरीकी सरकार को मेहमान नवाजी की जरा सी भी समझ नहीं है। खाने में तो सरकार जी की पसंद का मेन्यू रखवा दिया पर सरकार जी की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी रखवा दी। अरे भई, पता नहीं है क्या कि सरकार जी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करते हैं। देश में पिछले नौ वर्षों में नहीं की है। क्या अब तुम अमेरिका में करवाओगे? और उस पर भी पत्रकारों को ऐसी आजादी कि जो मर्जी पूछ लें। बाइडेन भाई, तुम्हें पत्रकारों को कितनी आजादी देनी है, यह विश्व गुरु को ही सिखाना पड़ेगा।

और दूसरे ये बराक ओबामा हैं। अरे मित्र, दोस्ती निभानी आती है या नहीं। कोई शिकायत है तो अकेले में सुलटा लो। अब यह क्या कि सरेआम बोलने लगे। एक मैं हूं ना कि ओबामा ओबामा करते नहीं थकता हूं और एक तू है। जब दोस्ती-यारी थी तो ऐसी ही भाषा में बात करते थे ना। कहां गई वह दोस्ती, कहां गया वह याराना। अब तो तुम टांग खिंचाई भी करने लगे।

अब अमेरिका के बाद मिस्र जाना हुआ है। वहां भी नेहरू को झेलना पड़ेगा। सरकार जी और मैडबौली के गले मिलने की तस्वीरें छपेंगी तो लोग नेहरू और नासिर की दोस्ती याद करने लगेंगे। यह नेहरू कहीं पीछा नहीं छोड़ेगा भी या नहीं? इस नेहरू से पीछा छुड़ाने का एक ही तरीका है। कहां तक और किन किन जगहों के नाम बदलोगे? और विदेश में कैसे बदलोगे? सबसे अच्छा तो यह है कि नेहरू का ही नाम बदल दो।

कोशिश तो की थी नेहरू का नाम बदलने की। आईटी सेल से करवाई थी। वाट्सएप यूनिवर्सिटी ऑफ इंडिया पर की गई थी। नेहरू के दादा का नाम बदलने की कोशिश की थी। पहले दादा का नाम बदलेंगे, फिर पापा का नाम बदलेंगे और बाद में नेहरू का नाम बदलेंगे। यह तरीका लम्बा है। सरकार जी को सूट नहीं करता है। सरकार जी को तो फटाफट नाम बदल देना चाहिए था। दादा , पापा के चक्कर में न पड़ सीधे जवाहर लाल नेहरू का ही नाम बदल देना चाहिए था। ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी। एक बार नेहरू का नाम बदल गया‌ तो फिर सबका नाम नेहरू पर रहे, क्या दिक्कत है?

वैसे एक बात है जिसमें सरकार जी नेहरू से आगे हैं और सदा आगे ही रहेंगे। वह है कि नेहरू की सारी तस्वीरें, चाहिए वे राष्ट्रपति कैनेडी के साथ हों या फिर राष्ट्रपति नासिर के साथ, और या फिर भीड़ को हाथ हिलाने की रील हों, श्वेत और श्याम हैं। और हमारे सरकार जी की तो सारी की सारी रंगीन हैं, चाहे तस्वीरें हों या रीलें। अब नेहरू चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, सरकार जी से इस बात में तो पीछे ही रहेंगे।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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