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तिरछी नज़र: अब बेरोज़गार नहीं रहेंगे, मंदिर तैयार है

ये बढ़ती कीमतें, ये बेकारी, लाचारी, भुखमरी, सब बेकार की बातें लगती हैं। शायद मंदिर वहीं बनने पर भूखे पेट भी भजन होने लगेगा।
Ram Mandir

इस बार रहने देते हैं यार! कल एक किताब के विमोचन में गया तो लौट कर यही मन था कि इस बार रहने देते हैं। इस सप्ताह अगर व्यंग्य न भी लिखें तो चलेगा। चार वर्ष से अधिक हो गए हर रविवार व्यंग्य लिखते हुए, व्यंग्य छपते हुए। इस बार नहीं लिखेंगे तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा। इस बार नहीं छपेंगे तो कौन मुसीबत आन पड़ेगी। 

कल एक किताब के विमोचन में गया था। वहां किसी ने कहा कि व्यंग्य लेखकों की तो आन पड़ी है। पूरे हफ्ते में एक नहीं, अनेक विषय मिल जाते हैं लिखने के लिए। पहले जैसी बात नहीं है कि विषय ढूंढते रहो, मिलेगा ही नहीं। झक मारकर उन्हीं घिसे पिटे विषयों पर लिखना पड़ेगा। पर अब हालात बदल गए हैं। सप्ताह में एक नहीं, अनेक विषय मिल जाते हैं, लिखने के लिए।

ठीक है। उन्होंने ठीक ही कहा। उनकी बात अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त है। आज की जमीन व्यंग्य लेखकों के लिए बहुत ही उर्वरक है। विषयों की कमी नहीं है। कई बार तो एक ही दिन में तीन चार विषय मिल जाते हैं व्यंग्य लेखन के लिए। सरकार जी ही दिन में दो तीन बातें ऐसी बोल देते हैं जिन पर आप व्यंग्य लिख सकते हैं। बाकी मंत्री संतरी भी हैं करने और बोलने के लिए। वैसे आप लिखें, न लिखें, वे बातें अपने आप में ही व्यंग्य होती हैं। अगर आप नहीं लिखेंगे तो भी वे तो व्यंग्य ही रहेंगी। न लिखने पर घाटा तो आपका ही होगा।

अब इस सप्ताह को ही लो। छोटे मोटे विषयों को छोड़ भी दो तो भी दो विषय तो ऐसे हैं ही जिन पर लिखे बिना रहा नहीं जा सकता है। एक तो उच्चतम न्यायालय का नोटबंदी पर फैसला। चलो उसे छोड़ भी दो, कि मरी लाश पर क्या लाठी बरसाना। कि सांप के गुजर जाने के बाद लकीर को क्या पीटना। तो एक जनवरी चौबीस तक मंदिर बनने को कैसे छोड़ोगे। अरे भाई! इन पर लिखना है तो अभी लिख दो। अन्यथा फिर कभी मौका नहीं मिलेगा इन पर लिखने का। अगले हफ्ते तक तो और बातें हो जाएंगी। नये विषय आ जाएंगे। इसी के लिए 'पृथ्वीराज रासो' में कवि ने कहा है, 'मत चूको चौहान'। इस बार चूक गए तो अगले हफ्ते इस बात पर बात करने का मौका नहीं मिलेगा। फिर तो नई बात पर बात करनी पड़ेगी।

अब मोटा भाई ने कहा है कि एक जनवरी चौबीस तक मंदिर जरूर बन जाएगा। भाई साहब, एक बात बताओ। अगर नहीं बना तो चुनाव कैसे जीतोगे। चुनाव चौबीस में ही तो हैं ना। कितने चुनावों में कहते रहोगे कि 'मंदिर वहीं बनाएंगे'। महंगाई, बेरोजगारी से ध्यान भटकाने के लिए इस बार तो यह कहना ही पड़ेगा कि 'मंदिर वहीं बनाया है'। अब मंदिर वहीं बनाएंगे से तो कई चुनाव लड़ लिए। पिछले तीस वर्षों से इसी बात पर चुनाव लड़े हैं सरकार जी की पार्टी ने। अब कुछ चुनाव तो मंदिर वहीं बनाया है पर भी लड़ेगी ना पार्टी। 

मंदिर वहीं बनाया है के जो लाभ हों सो हों पर वहीं को हटा भी दो तो मंदिर बनाने के कई लाभ हैं। पहला लाभ तो यही है कि मंदिर बनाने से लोगों में धार्मिकता बढ़ती है। लोग जितना धर्म की ओर जाते हैं, दुनियावी बातों से उनका ध्यान उतना हटता है। ये बढ़ती कीमतें, ये बेकारी, लाचारी, भुखमरी, सब बेकार की बातें लगती हैं। शायद मंदिर वहीं बनने पर भूखे पेट भी भजन होने लगेगा। बल्कि भजन ही भोजन बन जाएगा। और सरकार जी को अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त भोजन देने से बचना पड़े तो कितना अच्छा रहेगा। जो पैसा बचेगा वह मित्रों के काम तो आएगा।

मंदिर से बेरोजगारी भी कम होगी। मंदिर जितना बड़ा होगा, जितना भव्य होगा, जितना फेमस होगा भिखारी भी उतने ही अधिक होंगे। मतलब उतने अधिक लोगों को भिक्षाटन का रोजगार मिलेगा। भिखारी शब्द में वह बात कहां जो भिक्षाटन में है। भिक्षा मांगना हमारे यहां अच्छी बात मानी जाती है। कम से कम मजदूरी करने से तो अच्छा ही माना जाता है। भिक्षा मांगने वाला हमारे यहां सरकार जी बन सकता है, बना है। पर कोई मजदूर अभी तक सरकार जी नहीं बन पाया है। कबीर जी संत थे। अपने जीवन यापन के लिए भिक्षा नहीं मांगते थे, जुलाहागिरी करते थे। भिक्षा मांगने वालों को बुरा मानते थे, मरे समान मानते थे। 'मांगन गये सो मर रहे, मरै जु मांगन जाहि'। पर भिक्षा न देने वालों को उससे भी पहले मरा हुआ मानते थे। 'तिनते पहिले वे मरे, होत करत है नाहि'।

कबीर पंथी बुरा न मानें। कबीर जी तो दूरदर्शी थे। उन्हें पता था, पांच सौ साल पहले ही पता था कि देश में एक ऐसा राज आएगा जब भिक्षा मांगने को रोजगार का दर्जा दिया जाएगा। जगह जगह मंदिर खुलेंगे। सरकार जी और उनके मंत्री स्वयं मंदिर खुलने की तारीख बताएंगे। मंदिर खुलने पर उत्सव मनाए जाएंगे। कारखाने बंद किए जाएंगे और मंदिर खोले जाएंगे। मंदिर खुलने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। पुजारियों को और भिखारियों को रोजगार मिलेगा। लाखों करोड़ों लोग इस रोजगार में लगेंगे। हर वर्ष दो करोड़ रोजगार का लक्ष्य इसी तरह पूरा होगा। परन्तु अगर लोग भिक्षा देने से मना करेंगे तो यह रोजगार फलेगा फूलेगा कैसे? इसी लिए कबीर जी ने पांच सौ साल पहले ही यह कह दिया था।

भिखारियों का भी पद होगा। बड़े मंदिर के बाहर भिक्षा मांगने वाला, छोटे मंदिर के सामने भिक्षा मांगने वाले से बड़ा माना जाएगा। उनमें भी सेक्शन ऑफिसर से लेकर मुख्य सचिव तक के पद होंगे। जिले के प्रधान भिक्षुक होंगे। राज्य के प्रधान भिक्षुक होंगे। देश का प्रधान भिक्षुक भी होगा। पर सॉरी, फिलहाल वह पद खाली नहीं है।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

 

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