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टमाटर खाने की नहीं, सजाने की चीज़ हो गए हैं!

टमाटर और गोभी ही नहीं, बाकी सारी सब्जियां भी इसी कतार में हैं कि कब वे‌ इतनी महंगी हो जाएं कि खाने नहीं, सजाने के काम आएं।
Tomatoes
Photo : PTI

सुना है, टमाटर महंगे हो गए हैं। वैसे अभी सुना ही है, खुद भुगत कर पक्का नहीं किया है। जब ऐसा कुछ सुन लेता हूं तो उसे पक्का करने की, सब्जी वाले से पूछकर उसको पुख्ता करने की इच्छा ही नहीं होती है। जब तक बात सुनी-सुनाई रहती है तब तक उम्मीद रहती है कि यह अफवाह है। एक बार पुख्ता हो जाने पर हिम्मत जवाब दे जाती है।

हिम्मत बंधी रहे, हिम्मत बनी रहे, इसलिए किन्हीं भी खबरों पर विश्वास नहीं होता है। आजकल तो फेक न्यूज का जमाना है और कोई भी फेक न्यूज दिखा रहा होता है, बता रहा होता है। वाट्सएप यूनिवर्सिटी की बात तो छोड़ो, अखबार और टीवी चैनल भी फेक न्यूज चला रहे होते हैं। लगता है, जमाना ही गोयबल्स का है। वैसे सुना है कि सरकार जी फेक न्यूज के खिलाफ एक कानून लाने वाले हैं, एक सरकारी एजेंसी खोलने वाले हैं। यह तो वही बात हुई, सौ चूहे खा कर बिल्ली हज़ को चली। वैसे यह बिल्ली चूहे खाना हज़ के बाद भी नहीं छोड़ेगी। 

परन्तु जल्दी ही पता चल गया कि टमाटर का महंगा होना फेक न्यूज नहीं है। टमाटर का महंगा होना तब पुख्ता हो गया जब देखा कि श्रीमती जी की पसंदीदा आलू टमाटर की सब्जी में से टमाटर लगभग गायब ही है। मैं तो यह कल्पना कर के ही घबरा जाता हूं कि यदि टमाटर के साथ साथ आलू भी महंगे हो गए तो! तो आलू टमाटर की सब्जी में पानी ही पानी होगा। नमक में छुका पानी। अधिकतर मसाले तो पहले से ही महंगे हैं। पिछले कुछ सालों से चलती सरकार को देख कर कुछ भी नामुमकिन नहीं लगता है। सब्जी की बजाय नमक में छुका पानी भी मुमकिन है।

टमाटर महंगे हो गए हैं और बहुत ही महंगे हो गए हैं यह तब भी पता चला जब मैं गुप्ता जी के घर किसी काम से गया। वहां उनके ड्राइंग रुम की सेंटर टेबल पर एक खूबसूरत से बर्तन में लाल लाल टमाटर सजे हुए थे। बर्तन तो महंगा था ही, उसमें सजी चीज भी महंगी ही होगी। मैं समझ गया कि ये टमाटर भी महंगे ही हैं। टमाटर महंगे हो गए हैं, यह इस बात की दूसरी निशानी थी। सरकार जी ने टमाटर को खाने की चीज की बजाय सजाने की चीज बना दिया है। 

सजाने की बात से ध्यान आया हम कुछ भी सजाने लगते हैं। घर के बाहर पौधे लगाने वाली जमीन को पक्का करवा कर, कंक्रीट का जंगल बना, बाहर के पेड़ पौधों को बर्बाद कर, बाहर की हरियाली समाप्त कर, घर के अंदर पौधे लगाते हैं। बड़े बड़े पेड़ों को काट कर, जंगलों को नष्ट कर, घर के अंदर बोनसाई सजाते हैं। अब ये बोनसाई ही हमारा पर्यावरण सुधारेंगे, हमें ऑक्सीजन देंगे। 

और उस दिन तो गजब ही हो गया जब ऑफिस में लंच टाइम में वर्मा आवाज देते हुए बोला, 'शर्मा, अपना लंच बाक्स लेकर इधर आ जा। आज मैं आलू के परांठे के साथ टमाटर की चटनी लाया हूं'। मैं समझ गया वह मुझे चिड़ा रहा है। मैं आमतौर पर टमाटर और प्याज की चटनी लाता था। वह हमारे घर में बनती भी बहुत ही अच्छी थी और सभी चटखारे ले कर खाते थे। अब काफी दिनों से नहीं बनी थी। उसकी टेबल पर जा कर देखा तो उसके लंच बाक्स के सब्जी वाले खाने में बहुत सारी टमाटो सॉस रखी थी। टमाटो सॉस भी अपना नाम टमाटर की चटनी सुन फूली नहीं समा रही थी।

अब टमाटर के साथ गोभी का फूल भी बहुत महंगा हो गया है। वह भी सजावट के काम आ सकता है। वैसे भी वह तो फूल है ही। टमाटर और गोभी ही नहीं, बाकी सारी सब्जियां भी इसी कतार में हैं कि कब वे‌ इतनी महंगी हो जाएं कि खाने नहीं, सजाने के काम आएं। अब किसी के स्वागत में‌ फूलों का गुच्छा नहीं, फलों की टोकरी नहीं, सब्जियों की टोकरी भी दी जा सकती है।

खैर टमाटर बहुत दिन महंगा नहीं‌ रहेगा। मंत्री जी ने अभी तक यह नहीं कहा है कि वे तो टमाटर खाती ही नहीं हैं‌। उम्मीद है, मंत्री महोदया के घर में टमाटर आता ही होगा और वे टमाटर खाती भी होंगी। इसलिए टमाटर जल्द ही सस्ता हो जाएगा और जनता भी उसे सजाने नहीं, खाने लगेगी। पेट्रोल अभी तक इसीलिए महंगा है क्योंकि मंत्री जी को अपनी कार में पेट्रोल डीजल नहीं डलवाना पड़ता है। मंत्री जी की कार में तो तेल सरकार डलवाती है और जनता के पैसे से डलवाती है।

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