ट्रांस फैट: ‘वसा’ परिवार की काली भेड़
फ्रांसिस बेकन ने लिखा था, फैट्स (वसा) किताबों के ही समान होते हैं... ‘कुछ किताबें स्वाद के लिए होती हैं, जबकि कुछ को निगलना होता है, वहीं कुछ ऐसी भी होती हैं जिन्हें चबाया और पचाया तक जाता है। ’
हम न ही वसा से परहेज कर सकते हैं और न ही हमें ऐसा करना चाहिये क्योंकि एक संतुलित आहार के लिए यह एक महत्वपूर्ण अव्यव है। हालांकि वसा के बारे में एक आम धारणा यह बनी हुई है कि हृदय के मामले में ये काफी नुकसानदेह साबित होते हैं और ये शरीर में कोलेस्ट्रॉल के लेवल को बढ़ाते हैं। लेकिन सभी प्रकार के फैट्स नुकसानदेह हैं, ऐसा नहीं है और कुछ को तो चबाया और पचाया भी जा सकता है। हमारे खान-पान में स्वस्थ वसा का होना आवश्यक है, प्रश्न यह है कि हम कैसे अस्वास्थ्यकर वसा के स्थान पर सेहतमंद वसा का चुनाव करें और अपने आहार में कैसे उन्हें नियमित तौर पर शामिल किया जा सके।
कितने प्रकार के फैट्स पाए जाते हैं?
हालांकि वसा के बारे में आम धारणा यह बनी हुई है कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, लेकिन हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि हमारे शरीर के लिए वसा बेहद आवश्यक है क्योंकि यह ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत है और मस्तिष्क के विकास में भी इसका योगदान रहता है। हमारी कोशिकाओं की झिल्ली और नसों के इर्द गिर्द आवरण निर्मित करने में इसकी जरूरत पड़ती है। यह मांसपेशियों की गति और रक्त के थक्के को भी बढाने में सहायक है। दीर्घकालीन स्वास्थ्य के लिहाज से कुछ फैट्स दूसरों की तुलना में बेहतर साबित होते हैं। इसमें मोनोअनसैचुरेटेड और पॉलीअनसेचुरेटेड फैट्स स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं, जैसे कि जैतून और मूंगफली का तेल। इसके साथ ही सैचुरेटेड फैट्स के रूप में दूध, पनीर, चिकन और खट्टा क्रीम को ले सकते हैं। जबकि कुछ फैट्स हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं जैसे कि औद्योगिक तौर पर उत्पादित ट्रांस फैट्स के तौर पर माइक्रोवेव पॉपकॉर्न, कुकीज़, नकली मक्खन और वनस्पति घी इत्यादि।
हालाँकि इनमें से जितने भी प्रकार के फैट्स हैं जिन्हें हम खाने के तौर पर इस्तेमाल में लाते हैं, वे सभी हमारे कोलेस्ट्रॉल के लेवल को प्रभावित करते हैं। हाल-फिलहाल यह सुझाव फैशन में चल रहा है कि हमारे कुल आहार में फैट्स से प्राप्त कैलोरी 30% से अधिक नहीं होनी चाहिये।
हमारे द्वारा ग्रहण किये जाने वाले फैट्स में से अधिकतर वसा को अनसैचुरेटेड होना चाहिये, जो कि काफी हद तक वेजिटेबल फैट्स से प्राप्त हो सकते हैं। सैचुरेटेड फैट्स जो कि आमतौर पर जानवरों की वसा से सम्बद्ध हैं, हमारे कोलेस्ट्रॉल के लेवल पर काफी ख़राब असर डालने वाले पाए गए हैं।
अगला नंबर ट्रांस फैट्स का है। जहाँ तक सवाल प्राकृतिक तौर पर पाए जाने वाले ट्रांस फैट्स को लेकर है जो कि बेहद कम मात्रा में कुछ विशिष्ट पशु उत्पादों और दूध में पाए जाते हैं, को नुकसानदेह नहीं माना जाता है। लेकिन औद्योगिक तौर पर कृत्रिम तरीके से उत्पादित ट्रांसफैट्स अपनेआप में सबसे खराब किस्म के फैट्स हैं जिन्हें हर हाल में अपने भोजन से हमेशा-हमेशा के लिए हमें मिटा देना चाहिये। यही वो फैट्स हैं जो 'वसा' समूह को ‘पोषक तत्वों के खलनायक' के बतौर पेश कराते हैं। इन्हें वनस्पति तेल में हाइड्रोजन को मिलाकर तैयार किया जाता है, जिनसे इन उत्पादों की मियाद में इजाफा हो जाता है, और इस प्रकार खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) में बढ़ोत्तरी की स्थिति पैदा होने लगती है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल) में कमी आने लगती है।
ज्यादातर ये ट्रांस फैट्स वनस्पती तेल, मार्जरीन, बेकरी शोर्टेनिंग और पके और तले हुए खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं। ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट 2020 के अनुसार “प्रसंस्कृत खाद्य सामग्री, विशेष तौर पर अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ’ जैसे कि नमकीन स्नैक्स, प्रसंस्कृत माँस, चीनीयुक्त-मीठे पेय पदार्थ, कन्फेक्शनरी, आइसक्रीम जैसे जमाये गए डेसर्ट, नाश्ते में प्रयुक्त किये जाने वाले प्रसंस्कृत अनाज और डेयरी उत्पाद आज दुनियाभर में कई आहारों में महत्वपूर्ण हिस्से के तौर पर शामिल हैं। आज ये हर जगह सर्वसुलभ हैं, सस्ते दरों पर इनकी व्यापक पैमाने पर मार्केटिंग की जाती है। अक्सर इस प्रकार के खाद्य पदार्थों में चीनी, ट्रांस फैट्स और नमक की मात्रा काफी अधिक होती है, जबकि फाइबर और पोषक तत्वों की सघनता कम से कम होती है।"
ट्रांस फैट्स को क्यों काली भेड़ का नाम दिया गया है?
हाइड्रोजनीकृत फैट्स अपने स्वरूप में तरल वनस्पति तेल है, जिन्हें क्रीमी स्वरूप दिया जाता है जब इसके निर्माता अनसैचुरेटेड वसा में से कुछ को "हाइड्रोजनीकरण" नामक प्रक्रिया के माध्यम से सैचुरेटेड फैट्स में तब्दील करते हैं, तो इसके नतीजे में ट्रांस फैट्स उत्पन्न होने शुरू हो जाते हैं।
ट्रांस फैट्स मुख्य तौर पर जानवरों की वसा से बने मक्खन और वनस्पति केक में पाए गए थे। अब जैसा कि खाद्य पदार्थों के निर्माण में शामिल कंपनियों को अपने खाद्य पदार्थों में जबसे ट्रांस फैट्स के इस्तेमाल से तथाकथित 'लाभ' नजर आने लगा है तबसे ये फैट्स कुकीज़ से लेकर पेस्ट्री तक और सोन पापड़ी से लेकर समोसे तक, या कहें कि हर चीज में नजर आने लगे हैं।
खाद्य पदार्थों में ट्रांस-फैट का सेवन हृदय रोगों (सीवीडी) और गैर-संचारी रोगों या एनसीडी के लिए बेहद खतरनाक कारक के रूप में है। एनसीडी सभी उम्र के लोगों और सभी देशों के लोगों को प्रभावित कर रहा है, लेकिन ऐसे देश जो आर्थिक तौर पर गरीब अथवा मध्यम आय वाले हैं, वहाँ इन रोगों की भरमार है। अस्वास्थ्यकर भोजन की वजह से उच्च रक्तचाप, रक्त शर्करा, लिपिड और मोटापे जैसे रोगों में बढ़ोतरी होती है, और ये सभी मेटाबोलिक तौर पर गंभीर जोखिम के कारक हैं। रक्त में यदि LDL की मात्रा- ‘खराब कोलेस्ट्रॉल’ बढने लगता है तो ऐसे में हृदय रोग का खतरा बढ़ने लगता है।
ट्रांस फैट्स के सेवन से मोटापा, वजन में इजाफा और मधुमेह का खतरा भी बढ़ता चला जाता है। एनसीडी से होने वाले खतरों को विशेष रूप से दर्शाने के लिए ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट 2020 के कुछ तथ्यों को यहाँ पर पेश करना प्रासंगिक होगा:
- दुनिया की एक तिहाई आबादी आज अधिक वजन या मोटापे की शिकार है
- ·अल्प-पोषण का संबंध अधिक वजनी होने, मोटापे एवम अन्य आहार संबंधी गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के साथ इसका सह-अस्तित्व होता है।
- अधिक वजनी होना और मोटापे का रोग करीब-करीब सभी देशों में बेहद तेजी से फ़ैल रहा है, और इसमें कमी होने के कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं।
- सस्ते और तैयार प्रोसेस्ड भोजन के लिए सघन तौर पर मार्केटिंग के चलते इनकी उपलब्धतता भी उच्च-मध्य एवम निम्न-मध्यम आय वाले देशों में तेजी से बढ़ रही है।
- 2016 की डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में जितनी मौतें हो रही हैं उन सभी में एनसीडी की वजह से होने वाली मौतों का हिस्सा 63% होने का अनुमान है। भारत के अंदर मृत्यु दर में अपना योगदान देने वाले एनसीडी रोगों में हृदय सम्बंधी रोग, श्वशन संबंधी रोग, कैंसर और मधुमेह जैसे रोग प्रमुख हैं।
इसलिए यदि आप अच्छी खासी मात्रा में ट्रांस फैट्स का उपभोग कर रहे हैं तो यह आपके वजन को बढाने में सहायक सिद्ध हो रहा है और आपके लिए टाइप 2 मधुमेह का खतरा भी बढ़ सकता है। वैश्विक स्तर पर मधुमेह से 42.21 करोड़ (8.5%) वयस्क प्रभावित हैं, जिसमें (21.78 करोड़, 9.0%) के साथ पुरुषों की संख्या, महिलाओं (20.44 करोड़, 7.9%) की तुलना में कहीं अधिक प्रभावित हैं। ऐसे अध्ययन भी हैं जो स्तन के कैंसर, पेट के कैंसर और विभिन्न एलर्जी के लिए ट्रांस फैट्स की उच्च खपत के बीच के सम्बंधों को जोड़ते हैं।
इस संबंध में भारत में ट्रांस फैट्स मुक्त स्टेटस हासिल करने सम्बंधी प्रयास चल रहे हैं, जिसमें FSSAI की ड्राफ्ट अधिसूचना के अनुसार 01 जनवरी, 2021 से ट्रांस फैट्स और तेलों की तय सीमा वजन से तीन प्रतिशत से अधिक नहीं रखने का आह्वान किया गया है, और जिसे 01 जनवरी, 2022 से वजन से दो प्रतिशत की तय सीमा तक बनाए रखने के अनुरूप है।
दिल्ली स्थित एनजीओ कंज्यूमर वायस, जो कि भारत में ट्रांस फैट्स को खत्म किये जाने सम्बंधी आन्दोलन की अग्रणी भूमिका में है के सीओओ अशीम सान्याल का कहना है कि “उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ट्रांस-फैट को भारतीय भोजन से जल्द से जल्द समाप्त कर देना चाहिए। ट्रांस-फैट्स के खिलाफ दुनिया भर में हलचल बढ़नी शुरू हो चुकी है। इसलिए हम 2021 तक भारतीय भोजन को ट्रांस-फैटी एसिड से मुक्त बनाने के लिए FSSAI से तत्काल इस सम्बन्ध में अधिसूचना जारी किये जाने की मांग कर रहे हैं।”
इसी तरह रिजाल्व टू सेव लाइव्स स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक सरकारों के साथ मिलकर काम कर रहा है ताकि कृत्रिम ट्रांस फैट्स से होने वाली पहुँच को कम से कम किया जा सके और बेहतर स्वास्थ्यकर विकल्पों की उपलब्धता को बढ़ाया जा सके। इस लक्ष्य को अनिवार्य लेबलिंग लिमिट और प्रतिबंधों के माध्यम से हासिल किया जा सकता है।
स्वास्थ्यकर विकल्प क्या हैं
मोनोअनसैचुरेटेड वसा में एकल कार्बन-टू-कार्बन डबल बॉन्ड पाया जाता है। इस ढांचे की वजह से कमरे के तापमान पर भी मोनोअनसैचुरेटेड फैट्स तरल अवस्था में बने रहते हैं। जैतून के तेल, बादाम और बीज में मोनोअनसैचुरेटेड फैट्स प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। मोनोअनसैचुरेटेड फैट्स की तुलना में पॉलीअनसेचुरेटेड फैट्स कहीं अधिक ठोस होते हैं लेकिन सैचुरेटेड फैट्स की तुलना में कम होते हैं। इसकी वजह से पॉलीअनसेचुरेटेड फैट्स भी कमरे के तापमान में तरल अवस्था में बने रहते हैं। लेकिन कुछ मामलों में पॉली अनसैचुरेटेड फैट्स से सावधान रहने की आवश्यकता है क्योंकि जल्द ही इसमें खराब गंध आ सकती है।
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