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बाबा बागेश्वर के दरबार में इलाज या जान से खिलवाड़?

इन दिनों सुर्खियों में बने हुए धीरेंद्र शास्त्री का बागेश्वर दरबार विवादों में है, आरोप है कि यहां इलाज कराने आए कुछ लोगों ने अपनी जान गंवा दी।
Bageshwar Dham

उम्र 27 साल...डिग्री बीए...पता मध्यप्रदेश छतरपुर गढ़ागांव...नाम धीरेंद्र शास्त्री उर्फ बागेश्वर धाम महाराज।

वैसे तो देखने पर इनके पास भी एक ही नाक, दो कान, दो आंखें और मुंह हैं, यानी बिल्कुल आम इंसान के जैसे...लेकिन ये ख़ुद को किसी अवतार से कम नहीं समझते हैं।

कहने का मतलब ये है कि महाराज की शाखा में यूं तो बहुत से कामों का स्कोप है, लेकिन इन्होंने ‘डॉक्टरी’ का पेशा घोल कर पी लिया है। जिसके बाद ये ‘महाडॉक्टर’ बन चुके हैं, क्योंकि आम डॉक्टर तो महज़ दवाईयां देता है, मशीनों का इस्तेमाल करता है। लेकिन इनका अंदाज़ थोड़ा जुदा है।

ये क्या करते हैं?

एक कॉपी और कलम लिए रहते हैं...आप जैसे ही इनके सामने पहुंचेंगे, ये आपकी बीमारी तुरंत ‘डॉयग्नोज़’ कर लेंगे, और आपकी पीढ़ियों तक के नाम समेत आपकी बीमारी की पूरी रिपोर्ट कॉपी पर उतार देंगे।

फिर शुरु होगा ईलाज...दवाईयों से नहीं, भभूत और तथाकथित चमत्कार से।

अब आप इसे अंधविश्वास कहिए ये आपकी मर्ज़ी है, क्योंकि जिन्हें आप लोगों ने वोट दिया है, देश और समाज को संभालने की ज़िम्मेदारी दी है, वो ख़ुद ही इतना डरे हुए हैं, कि धाम में जाकर माथा टेक रहे हैं।

ख़ैर, नेताओं का तो क्या ही कहा जाए? लेकिन आरोप है कि धीरेंद्र शास्त्री की भ्रमित करने वाली महाडॉक्टरी मासूमों की मौत का कारण बन रही है।

ज़ाहिर है, जब किसी के घर में कोई गंभीर हालत में होगा, या उसे कोई बड़ी बीमारी होगी, तो वो किसी अच्छे अस्पताल में जाएगा और उसका इलाज कराएगा...लेकिन आज की तारीख़ में धीरेंद्र शास्त्री का नाम और उनके इलाज करने का तरीका लोगों के ज़हन में इस कदर बैठ गया है, कि वो अस्पताल जाने के बजाय इनके पास टोना-टोटका के लिए आते हैं। यही हुआ उस बच्ची के साथ भी जिसकी उम्र मह़ज़ 10 बरस की थी, और वो मिर्गी जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थी। धीरेंद्र शास्त्री के कथित आंडबर में भ्रमित परिवार जब राजस्थान के बाड़मेर से मध्यप्रदेश के छतरपुर बागेश्वर धाम पहुंचा, तो धीरेंद्र शास्त्री ने वही किया-बच्ची को भभूत दे दी, फिर कहने लगे कि इसे ले जाओ बच्ची शांत हो गई। जब बच्ची की आंखें नहीं खुलीं तो उसके परिजन आनन-फानन में उसे अस्पताल ले गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।

आरोप है कि इस बच्ची की ज़िदंगी के साथ खिलवाड़ की कहानी शुरु हुई थी डेढ़ साल पहले, जब ये परिवार धीरेंद्र शास्त्री के दरबार में बच्ची के ठीक होने की आस लिए आता रहा। इस कहानी का अंत हो गया रविवार यानी 12 फरवरी को। इसी दिन बच्ची की तबीयत बहुत ज़्यादा बिगड़ गई और भभूत-चमत्कार के इलाज में उसकी जान चली गई।

ये सिर्फ एक मामला नहीं है, उत्तर प्रदेश के फिरोज़ाबाद की एक महिला भी कथित तौर पर धीरेंद्र शास्त्री के चमत्कार से भ्रमित होकर अपनी जान गवां चुकी है। महिला किडनी की बीमारी से जूझ रही थी, और अपने पति के साथ अर्ज़ी लगाने धीरेंद्र शास्त्री के धाम पहुंची थी। वो धीरेंद्र शास्त्री के पास अर्ज़ी लगाने पहुंच ही पाती, कि लाइन में लगे-लगे ही उसकी मौत हो गई।

सोशल मीडिया पर यूज़र्स ने ये वीडियो शेयर की है, आप भी देखिए...

मृतक महिला के पति देवेंद्र सिंह बताते हैं कि वो 15 फरवरी को बागेश्वर धाम के दरबार में अपनी अर्ज़ी लगाने के लिए अपनी पत्नी नीलम देवी को साथ लेकर पहुंचे थे। नीलम ने सुबह पंडाल में खाना भी खाया था, लेकिन शाम होते-होते अचानक तबीयत बिगड़ गई, जिसके बाद नीलम देवी की मौत हो गई। पति देवेंद्र सिंह के मुताबिक, नीलम लंबे समय से किडनी की बीमारी से परेशान थी।

लेकिन यहां एक सवाल और है कि मौजूदा सरकार को या धीरेंद्र शास्त्री के चरणों में माथा टेकने वाले विपक्षी नेताओं को नत्मस्तक होने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है? क्या इन लोगों के मुताबिक देश में चल रहे अस्पतालों, और यहां तक कि कड़ी मेहनत के बाद चिकित्सा के पेशे में आने वाले डॉक्टरों का ज्ञान धीरेंद्र शास्त्री के आगे शून्य है?

जिस तरह से अंधविश्वास को बड़ा हथियार बनाकर विज्ञान को चुनौती देने की कोशिश की जा रही है, और इसमें कथित तौर पर लिप्त धीरेंद्र शास्त्री जिस तरह से लोगों के सामने चमत्कार करते हैं, इसके पीछे क्या तथ्य हो सकते हैं, इसे समझने के लिए हमने अखिल भारतीय जन विज्ञान आंदोलन के भूतपूर्व अध्यक्ष डी रघुनंदन से कुछ सवाल किए...

सवाल : विज्ञान के मुकाबले अंधविश्वास क्यों हावी हो रहा है?

जवाब : विज्ञान के मुकाबले अंधविश्वास बढ़ नहीं रहा है, बल्कि अंधविश्वास पहले से है और ये बहुत बड़ी हक़ीकत है, हालांकि इसके पीछे तर्क ढूंढना बहुत अजीब सी बात होगी। जब बात लोगों के इलाज की आती है, तो बीमार के आसपास उसके रिश्तेदार या कई लोग ऐसे होते हैं, जो उसे बाबा के पास जाने की सलाह देते हैं। कई जगहों पर, या लोगों के घरों के पास अस्पताल नहीं होते हैं, या होते हैं तो महंगे होते हैं। लेकिन इसके लिए विज्ञान को ज़िम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है।

सवाल : जिन नेताओं को लोगों ने वोट देकर अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना है, अगर वही ऐसे दरबारों में माथा टेकेंगे तो लोगों में और ज़्यादा अंधविश्वास नहीं बढ़ेगा?

जवाब : कोई नेता या मंत्री दोनों तरफ से काम करता है, ये नेता लोग सिर्फ भीड़ देखकर जाते हैं, ताकि जो श्रद्धा उस बाबा के लिए है, वो उसके प्रति ट्रांसफर हो सके। सिर्फ राजनीतिक लोग ही नहीं कुछ बुद्धिजीवियों के साथ बहुत से वैज्ञानिक लोग भी ऐसे हैं, जिनका बाबाओं और संतों के पीछे काफी सपोर्ट रहता है।

सवाल : धीरेंद्र शास्त्री जिस तरह से चमत्कार दिखाते हैं, या लोगों की परेशानियां कॉपी पर लिख देते हैं, या जो कुछ लोग दावा करते हैं कि वो ठीक हो रहे हैं, इसका अर्थ क्या है?

जवाब : ऐसा नहीं है कि ये केवल हिंदुस्तान में है, ये विदेशों में भी खूब होता है, जैसे : कोई नेत्रहीन होता है, तो उसे हाथ लगा देते हैं कि वो ठीक हो जाएगा। ऐसा ही एक संत कोरिया में था जिसके बहुत समर्थक थे।

रही बात लोगों के ठीक हो जाने की तो दरबार में पहुंचने से पहले लोग मानना शुरु कर देते हैं, कि वो ठीक हो जाएंगे, उनके अंदर एक सकारात्मक सोच पैदा हो जाती है, और फिर उनके सामने ऐसी चीज़ें रखी जाती हैं जो उनकी सोच से मिलती-जुलती हों। यही चमत्कार हो जाता है, और फरियादी 'कन्विंस' हो जाता है।

इन जवाबों से यही मालूम होता है, कि फरियादी के भीतर का डर उसे खींचकर बाबाओं तक ले जाता है और इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता, कि छोटे-छोटे गावों में, शहरों में सरकारी अस्पताल भी गिने-चुने हैं, जिनकी हालत ख़ुद ही वेंटिलेटर पर रहती है। बचते हैं प्राइवेट अस्पताल तो वहां हर कोई इलाज करवा नहीं सकता है। ऐसे में लोगों का डर ही है जो धीरेंद्र शास्त्री पर विश्वास करने के लिए लोगों को मजबूर करता है।

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