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अपने आख़िरी पड़ाव में ट्रम्प की विदेश नीति  

इस समय ट्रम्प का साथ काफी हद तक पुतिन तक ही रह गया है, हालांकि, इन दोनों के बीच 16 जुलाई, 2018 को हेलसिंकी में केवल एक औपचारिक शिखर सम्मेलन हुआ था, जिसकी याद वह असामान्य तरीक़े से बार-बार दिलाते रहते हैं।
अपने आख़िरी पड़ाव में ट्रम्प की विदेश नीति  
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (बायें) और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (दायें) 16 जुलाई, 2018 को हेलसिंकी शिखर सम्मेलन के बाद हाथ मिलाते हुए।

एक समय ऐसा भी था,जब राष्ट्रपति ट्रम्प की व्यक्तिगत कूटनीति एक ऐसी बहुआयामी परिघटना की तरह दिखती थी, जिसमें दूर-दूर तक अनेक सूत्र मौजूद थे। उनकी मुलाक़ातें शिंजो आबे और किम जोंग-उन से लेकर शी चिनपिंग और नरेंद्र मोदी तक, मोहम्मद बिन सलमान और रेसेप अर्दोगन से लेकर व्लादिमीर पुतिन और एंजेला मर्केल जैसे विभिन्न राजनेताओं के साथ होती थीं। लेकिन,जैसे-जैसे समय बीतता गया, उनकी यह मंडली छोटी होती गयी और व्यक्तिगत कूटनीति का दायरा पूरी तरह सिमटता चला गया,क्योंकि कोविड-19 महामारी का प्रकोप फ़ैलता गया और अमेरिका सहित तमाम देश अपने-अपने अंदरूनी मामलों में उलझते चले गये।

इस समय बहुत हद तक ट्रम्प का पुतिन का साथ ही रह गया है, हालांकि उनके बीच 16 जुलाई, 2018 को हेलसिंकी में सिर्फ़ एक औपचारिक शिखर सम्मेलन हुआ था,जिसे लेकर वह एक ग़ैर-मामूली तरीक़े से बार-बार याद दिलाते रहते हैं। चल रही महामारी के बीच ट्रम्प और पुतिन ने 30 मार्च से लेकर अबतक कम से कम सात बार फ़ोन पर बातचीत की है। 23 जुलाई को ट्रम्प ने पुतिन के साथ फिर से बात की। उन्होंने इस वर्ष किसी भी दूसरे विदेशी राजनेता से इतनी बात नहीं की है। लेकिन, इस बातचीत का विरोधाभास यह है कि ट्रम्प व्यापारिक सम्बन्धों को तलाश करने वाले नेता के तौर पर जाने जाते रहे हैं, लेकिन अमेरिका और रूस के बीच बहुत कम व्यापार गतिविधियां चल रही हैं।

फोन पर हुई पुतिन-ट्रम्प के बीच की इस बातचीत को क्रेमलिन अक्सर 'रचनात्मक और ठोस' बातचीत के तौर पर पेश करता है, हालांकि यह एक अलग बात है कि हम शायद ही कोई ठोस नतीजा देख पाते हैं। दोनों नेताओं ने माहौल बनाने की कोशिश ज़रूर की है, लेकिन रिश्ते बनाने में नाकाम रहे हैं। मॉस्को कार्नेगी स्थित प्रमुख चिंतक और लेखक, दिमित्री ट्रैनिन ने कल हुई पुतिन-ट्रम्प की बातचीत के बाद ट्वीट किया कि वे ‘वास्तविक रूस-अमेरिका सम्बन्धों से जुड़े बिना किसी समानांतर ब्रह्मांड के रूप में दिखायी देते हैं। यह एक अजीब बात है।'

दरअसल, क्रेमलिन के प्रवक्ता,दिमित्री पेसकोव ने एक पखवाड़े पहले ही कहा था कि रूसी-अमेरिकी रिश्ते ने अपने आधार बिंदु को छू लिया है। लेकिन, तब से लेकर अबतक ट्रम्प और पुतिन ने एक दूसरे से दो बार बात की है !

कल हुई बातचीत के बाद, क्रेमलिन ने अपने बयान में कहा  है कि दोनों राजनेताओं ने एक बार फिर से हथियारों के नियंत्रण और रणनीतिक स्थिरता के साथ-साथ न्यू स्ट्रेटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी (जिसका फ़रवरी तक नवीनीकरण होना है) पर बातचीत की है। वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के शिखर सम्मेलन को आयोजित करने की ‘रूस की व्यापक महत्व वाली पहल’ पर सहमत हुए हैं।

स्ट्रेटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी (START) के नवीनीकरण में रूस की गहरी दिलचस्पी जगजाहिर है। इस मुद्दे पर अमेरिका में एक अद्भुत द्विपक्षीय आम सहमति है, जिस सहमति का इस्तेमाल इस समझौते को नवीनीकृत करने को लेकर एक कार्यकारी आदेश ट्रम्प आसानी से जारी कर सकते थे। लेकिन, ट्रम्प ने इसे रोके रखा और अब वे चाहते हैं कि इस समझौते के सिरे से नवीनीकरण के लिए पुतिन अमेरिका आयें और समझौते को किसी भव्य समारोह में बदल दिया जाय। ट्रंप सितंबर में आयोजित होने वाले P5 की शिखर बैठक को पुतिन की इस यात्रा से जोड़ते हुए दिख रहे हैं।

ट्रम्प अप्रत्याशित रूप से नवंबर चुनाव से पहले विदेश नीति के मोर्चे पर अपनी उपलब्धि दिखाने को लेकर उत्सुक हैं। लेकिन, उनके सामने दुर्गम बाधायें हैं। रूस को अमेरिका में एक बहुत ही ज़हरीले विषय के रूप में देखा जाता है और क्रेमलिन नेता द्वारा इस दौरे को 'अकेले' करने की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों को मारने के लिए कथित रूप से रूस की तरफ़ से पैसे दिये जाने के नवीनतम विवाद को लेकर अमेरिका में क्रेमलिन को बहुत ही बुरी नज़रों से देखा जाता है।

इसके अलावा, ब्रिटिश सरकार,जिसने चीन के साथ अपने सम्बन्धों को कम करने की ट्रम्प की इच्छा के अनुरूप ढाल लिया है, वह इसके बदले वाशिंगटन से यह उम्मीद करेगी कि अमेरिका, रूस को इससे बाहर रखे। वास्तव में ब्रिटेन की सरकार ने हाल ही में ब्रिटिश राजनीति में रूस के हस्तक्षेप पर एक डोज़ियर (कालाचिट्ठा खोलने वाली एक ब्योरेवार फ़ाइल) जारी किया है।

इसके अलावा, जब वाशिंगटन और बीजिंग के बीच लगातार वाद-विवाद बढ़ते जा रहे हों, ऐसे में अमेरिकी ज़मीन पर P5 शिखर सम्मेलन आयोजित करने का यह कोई उपयुक्त समय नहीं है। सवाल तो यह भी है कि ट्रम्प के फिर से चुनाव जीतने की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को कोशिश क्यों करनी चाहिए ?

क्रेमलिन के बयान में कहा गया है कि पुतिन और ट्रम्प ने 'ईरानी परमाणु कार्यक्रम' पर भी बातचीत की है। इसमें कहा गया है, "दोनों पक्षों ने क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक परमाणु अप्रसार व्यवस्था को बनाये रखने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।" इससे एक इस बात का एक मौन इशारा तो मिलता ही दिखता  है कि वाशिंगटन जेसीपीओए (2015 ईरान परमाणु सौदा, जो एक ओबामा की विरासत है) को ख़त्म करने के लिए कोई भी अप्रत्याशित चाल नहीं चलेगा, लेकिन इसके बदले अमेरिका रूस से उम्मीद करेगा कि अक्टूबर में संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध के समाप्त होने के बाद भी रूस ईरान को उन्नत हथियार की आपूर्ति में संयम बरतने की कोशिश करे ताकि ‘क्षेत्रीय स्थिरता’ बनी रहे।

अतीत में भी अमेरिकी और इजरायल के अनुरोध पर मॉस्को, ईरान को हथियार देने से परहेज करता रहा था। दिलचस्प बात है कि मॉस्को हाल फिलहाल से अपने और तेहरान के बीच कुछ दूरी बनाये हुए है। हालांकि ईरान के विदेश मंत्री ने दोनों देशों के बीच ‘व्यापक रणनीतिक साझेदारी’ समझौते तक पहुंचने के लिए मंगलवार, 21 जुलाई को मॉस्को में पुतिन के साथ एक घंटे तक फ़ोन पर बातचीत का दावा किया है, लेकिन इस पर क्रेमलिन चुप्पी साधे हुआ है।

इस बीच क्रेमलिन से जुड़े प्रमुख विशेषज्ञ समूह,वल्दाई क्लब ने बुधवार को (ज़रीफ के मॉस्को जाने के बाद) एक टिप्पणी में दोनों देशों के बीच प्रमुख मुद्दों पर मतभेदों को उजागर किया। स्ट्रेटेजिक मेवरिक्स: रसिया एण्ड ईरान इन ए पोस्ट-कोविड मिडल ईस्ट नामक शीर्षक नामक इस टिप्पणी में कहा गया है:

“मॉस्को ने सीरियाई संघर्ष में तेहरान के साथ एक सामरिक गठबंधन बनाये रखा है... अक्सर ऐसा नहीं होता है कि मॉस्को और तेहरान के बीच मतभेद को विशेषज्ञ समुदाय के बाहर ज़िक़्र किया जाता हो। लेकिन, राजनेताओं के लिए महत्वपूर्ण बात यह होती है कि इन मतभेदों को पड़ोसी क्षेत्रों या समस्याग्रस्त क्षेत्रों पर फैलने से रोकें, उन्हें ख़ुद ही सहयोग की उस भावना को ध्वस्त करने दें जो दोनों देशों ने हाल के वर्षों में बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है.. सीरियाई सुरक्षा प्रणाली में सुधार शायद इस द्विपक्षीय एजेंडे पर सबसे कठिन विषयों में से एक है, लेकिन कोई शक नहीं कि यह महत्वपूर्ण महत्व वाले विषयों में से एक विषय है।”

मॉस्को क्षेत्रीय परिदृश्य के उस विकल्प पर भी विचार कर रहा है, जहां राष्ट्रपति पद के डेमोक्रेटिक उम्मीदवार,जो बिडेन नवंबर के चुनाव में जीत जाते हैं और व्हाइट हाउस में ट्रम्प की जगह ले लेते हैं, और उसके बाद जेसीपीओए को पुनर्जीवित करने के लिए वे आगे बढ़ते हैं, और तेहरान के साथ सीधे-सीधे जुड़ जाते हैं।

ऐसे में ईरान के आस-पास की स्थिति में आमूल-चूल बदलाव आ सकता है और बिडेन के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान पश्चिम देशों से ईरान के जुड़ाव को भी खारिज नहीं किया जा सकता है, जिससे बेशक पूर्वी भूमध्यसागरीय और लेवेंट में रूस बुरी तरह से अलग-थलग हो जायेगा। इस सम्बन्ध में मॉस्को के ख़ुद का पूर्वानुमान कहीं ज़्यादा तीखा है,क्योंकि बिडेन ‘बदले में यक़ीन करने वाले रूस’ पर एक कठोर रुख़ भी अपना सकते हैं।

यक़ीनन, चूंकि ट्रम्प का पहला कार्यकाल पूरा होने ही वाला है, क्रेमलिन को इस बात को लेकर हताशा महसूस हो रही है कि वह अमेरिका-रूस रिश्तों को नुकसान से बचाने के लिए कुछ नहीं कर सका। ट्रम्प पर पूरा दांव लगा देने वाला क्रेमलिन का हर अनुमान उल्टा निकला, क्योंकि मॉस्को अमेरिका में ट्रम्प-विरोधी ताक़तों के लिए ग़ुस्सा निकालने वाला एक विषय बन गया है। ज़ाहिर है, ट्रम्प ने अमेरिका-रूस रिश्तों को एक सकारात्मक गति देने के लिए कड़ी मेहनत की है। लेकिन, वक़्त हाथ से निकल चुका है।

ट्रम्प की दिक़्क़त ही यही थी कि उनके पास एक ‘बड़ी सोच’ की कमी थी और अगर उनके पास ऐसा कोई विचार था भी, तो उनके आस-पास कोई सशक्त टीम नहीं थी और ख़ुद अपने प्रशासनिक अफ़सरों को आदेश देने और अपने निर्देशों और आकांक्षाओं को पूरा करने को लेकर उनमें किसी तरह की दृढ़ता और अनुशासन की कमी थी। एक ख़्यातिप्राप्त कामायाब व्यापारी के लिए प्रमुख कैबिनेट पदों पर बैठाये जाने की उनकी पसंद बहुत डरावनी थी।

विडंबना यही है कि नवंबर में अपने दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ने के लिए तैयार ट्रम्प के लिए समकालीन विश्व राजनीति में पुतिन और शी उनके लिए सबसे सहयोगी और सहायक हो सकते थे। लेकिन,उनके प्रशासन के अधिकारियों ने चीन और रूस,दोनों के साथ अमेरिका के रिश्तों को इतना गंभीर नुकसान पहुंचा दिया है कि यह अब एक ज्वलंत मुद्दा बन गया है।

चीन के साथ अमेरिकी रिश्ते के बिगड़ने के मामले में ट्रम्प ख़ुद ही उलझ गये हैं। बल्कि, चीन की तुलना में रुस को लेकर ज़्यादा असहाय लग रहे हैं,क्योंकि उनके आलोचकों ने रूस को दुश्मन देश के रूप में पेश  करने की कोशिश की है। जहां तक पुतिन का सवाल है, तो वह ट्रम्प के साथ सहानुभूति रखते हैं, लेकिन ट्रंप की जो मौजूदा बदहाली है, उसमें उनकी मदद नहीं करने पाने की उनकी बेबसी साफ़-साफ़ दिखती है। बहरहाल, नवंबर में होने वाले अमेरिकी चुनाव में ट्रम्प की जीत अब भी मॉस्को की सबसे अच्छी उम्मीद बनी हुई है।

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Trump Foreign Policy Enters Lame Duck Period

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