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तुर्की, रूस ने लीबिया युद्ध से फ़िलहाल अपने हाथ खींचे

अलग-अलग तरह के घटक, चाहे वे बड़े, मझोले, छोटे और बहुत छोटे ही क्यों न हो, सबने कुछ न कुछ फ़ायदा उठाने के लिए लीबिया के मामलों में अपनी-अपनी टांगें अड़ा दी हैं।
तुर्की, रूस ने लीबिया युद्ध से फ़िलहाल अपने हाथ खींचे
काहिरा में मिस्र की संसद ने 20 जुलाई, 2020 को सर्वसम्मति से विदेशों में युद्ध अभियानों पर भेजे जाने के लिए मिस्र के सैनिकों को अधिकृत किये जाने को लेकर मतदान किया 

जैसे ही भूमध्यसागर के आस-पास की हवा में यह बात गहराने लगी है कि लीबिया पर नियंत्रण को लेकर तुर्की और मिस्र के बीच एक सैन्य टकराव बढ़ता जा रहा है, वैसे ही रूसी उप विदेश मंत्री सेर्गेई वासिलीविच ने 21 जुलाई को अपने समकक्ष सेदत ओनल के साथ परामर्श के लिए अंकारा के लिए उड़ान भर दी। दोनों राजनयिकों के बीच विचार-विमर्श होने के बाद एक संयुक्त बयान सामने आया कि वे लीबिया युद्ध विराम और लीबिया के भीतर राजनीतिक वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए एक संयुक्त कार्यदल बनाने पर विचार करने को लेकर सहमत हो गये हैं।

इस घटनाक्रम को महज़ नियमित अंतराल पर मास्को और अंकारा के बीच बनते-बिगड़ते रिश्ते के तौर पर देखा जा सकता है। सीरिया की तरह, दो क्षेत्रीय शक्तियां उस देश के हाइब्रिड युद्ध (एक ऐसी सैन्य रणनीति,जिसमें पारंपरिक युद्ध को गुप्त संचालन और साइबर हमले जैसी रणनीति के साथ मिला दिया जाता है) में सक्रिय रूप से प्रतिद्वंद्वी लीबियाई गुटों का समर्थन कर रही हैं, और अब विश्व समुदाय की तरह वे भी यह विश्वास दिलाना चाहेंगे कि वे भी शांति के संरक्षक हो सकते हैं।

यह नवीनतम युद्धविराम किसी मक़सद को पूरा कर सकता है, लेकिन तब भी यह युद्धविराम तुर्की की सेना द्वारा समर्थित त्रिपोली में स्थापित सरकार के ख़िलाफ़ विपक्षी ताकतों के पक्ष में लीबिया में मिस्र के सीधे सैन्य हस्तक्षेप पर रोक लगाता है।

इस मामले में सच्चाई तो यही है कि न तो रूस और न ही मिस्र लीबिया में उस हाइब्रिड युद्ध से ज़्यादा कुछ भी नहीं चाहता, जो उनके लिए कम लागत पर संभव सीमाओं को आगे बढ़ाने की गुंज़ाइश बनाता है। राजनीतिक रूप से भी रूस और मिस्र किसी पक्ष के साथ मज़बूती से नहीं खड़े हैं, इस वजह से वे मज़बूत स्थिति में नहीं हैं, जबकि तुर्की कम से कम त्रिपोली में संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त सरकार का समर्थन कर रहा है। यह सीरिया से ठीक उल्टी स्थिति है। रूस और मिस्र का दखल नाजायज़ है,जबकि तुर्की ने सहायता पहुंचाने को लेकर त्रिपोली में सरकार के साथ औपचारिक सुरक्षा समझौता किया है।

पिछले हफ़्ते राष्ट्रपति ट्रम्प ने तुर्की और मिस्र के राष्ट्रपति अर्दोगन और अब्देल फतेह अल-सिसी से युद्ध विराम पर सलाह-मशविरे को लेकर बात की थी। ट्रम्प का इन दोनों ही ‘मज़बूत शख़्सियत’ के साथ अच्छी-ख़ासी घनिष्ठता है। इस समय लीबिया में किसी भी तरह की हिंसा का भड़कना ट्रम्प के लिए ठीक नहीं होगा,ख़ासकर तब,जब वह महामारी और चुनाव में फिर से चुने जाने को लेकर एक मुश्किल दौर का सामना कर रहे हैं और ऐसे में किसी भी तरह के अमेरिकी हस्तक्षेप की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

रूस मिस्र के साथ बहुत ही नज़दीकी सम्बन्ध बनाये हुए है, लेकिन रूस इस बात से भी सचेत है कि हालांकि मिस्र के पास इस क्षेत्र में सबसे मजबूत स्थायी सेना है,जो कि आधुनिक युद्ध नीति से सुसज्जित और प्रशिक्षित है और वही इस अरब क्षेत्र में तुर्की की घुसपैठ को रोक सकता है,लेकिन वह यह भी जानता है कि तुर्की एक नाटो शक्ति भी है, और दो क्षेत्रों के देशों के बीच इस तरह के टकराव में कोई भी उलझाव मॉस्को के मुख्य हितों को कहीं न कहीं प्रभावित ज़रूर करेगा।  

अब्देल फतेह अल-सिसी किसी भी दशा मे लीबिया में अपने सैनिकों को आदेश देने को लेकर किसी वास्तविक उत्साह के बिना भी असरदार ज़रूर दिखना चाहते हैं। अब्देल फतेह अल-सिसी के पास इस समय एक मज़बूत 'नेता' के तौर पर दिखने की ज़बरदस्त घरेलू मजबूरियां हैं, क्योंकि नील नदी पर बन रहे ग्रांड इथियोपियाई पुनर्जागरण डैम से मिस्रियों को अपनी जल जीवन रेखा को नुकसान पहुंचने का ख़तरा मंडरा रहा है। इसके अलावा, मिस्र की आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी अपनी समस्यायें भी हैं और अड़ियल लोगों की एक आबादी है,जो विदेशों में सैन्य अभियानों को नामंज़ूर करती है।

हालांकि यह कहा जा रहा है कि मिस्र की संसद ने सोमवार देर रात अब्देल फतेह अल-सिसी को विदेश में सशस्त्र बलों की तैनाती को मंज़ूरी देकर लीबिया में संभावित सैन्य हस्तक्षेप को हरी झंडी दे दी है। लेकिन,मिस्र सरकार द्वारा संचालित अल-अहराम ने रविवार को बताया कि संसद में इस मंज़ूरी का मक़सद अब्देल फतेह अल-सिसी को "तुर्की के हमले के ख़िलाफ़ पश्चिमी पड़ोसी की रक्षा में मदद करने को लेकर सैन्य रूप से हस्तक्षेप करना" है।

ऐसा कहकर अब्देल फतेह अल-सिसी महज़ युद्ध को नहीं भड़का रहे थे, बल्कि जब उन्होंने पिछले सप्ताह के आख़िर में कहा था कि वह तट पर स्थित सिर्ते के पूर्वी शहर और अल-जुफ्रा के नज़दीकी एयरबेस को "ख़तरे के निशान" के रूप में देखेंगे। सचमुच काहिरा में इस बात की गहन आशंकायें हैं कि इसकी कुछ हद तक खुली पश्चिमी सीमा पर तुर्की की मौजूदगी गंभीर सुरक्षा ख़तरा पैदा कर सकती है।

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मिस्र, यूएई और सऊदी अरब को इस बात का संदेह है कि अर्दोगन लीबिया में मुस्लिम ब्रदरहुड सरकार को बनवाने के लिए क़तर के लोगों की आर्थिक मदद के प्रति उदारता दिखा रहे हैं, जो अरब आंदोलन की चिंगारी को फिर से भड़का सकता है और इस्लामवाद को फिर से नयी मध्य पूर्व की विचारधारा के रूप में वापस ला सकता है। मिस्र के एक मशहूर राजनीतिक टिप्पणीकार और अरब आंदोलन और ब्रदर्स पर लिखने वाले लेखक ने इस सप्ताह लिखा है,"लीबिया में मौजूदा संकट मिस्र की सुरक्षा के लिए एक वजूद का संकट है, और इसे हल्के ढंग से नहीं लिया जा सकता है, जिस देश का मज़बूत समर्थन मिस्र की सेना को मिल रही है,आख़िरकार उसी के मज़बूत होने की आशंका है।”    

त्रिपोली में तुर्की समर्थित सरकारी बलों ने उन महत्वपूर्ण अल-जुफ्रा एयरबेस और सिर्ते को फिर से वापस पाने की क़सम खायी है, जिनके ज़रिये लीबिया के मुख्य तेल बंदरगाहों तक पहुंचा जा सकता है। दूसरी ओर, रूस ने कथित रूप से लड़ाकू विमानों और अतिरिक्त भाड़े के सैनिकों को सिर्ते और जुफ़्रा में रक्षा पंक्ति को मज़बूत करने लिए भेजना शुरू कर दिया है। इसी तरह ऐसी ख़बरें भी हैं कि रूसी समर्थन के साथ, सीरियाई राष्ट्रपति बशर असद ने भी कुछ 2,000 सीरियाई सैनिकों और भाड़े के सैनिकों को भेजा है, जबकि तुर्की ने लीबिया की सीमा रेखा तक 16,000 से अधिक सीरियाई विद्रोही लड़ाकों को भेजा है, जिनमें इस्लामिक स्टेट के 2500 तत्कालीन लड़ाके शामिल हैं।  

लीबिया की चारों तरफ़ भारी विरोधाभास बने हुए हैं। मंगलवार को अंकारा में जारी किये गये संयुक्त बयान के कुछ ही घंटों के भीतर अर्दोगन के शीर्ष सुरक्षा सलाहकार, इब्राहिम कलिन ने रॉयटर्स समाचार एजेंसी को बताया, "संघर्ष विराम स्थायी हो, इसके लिए जुफ़्रा और सिर्ते को (पूर्वी लीबिया के सरदार) हफ़्तेर की सेनाओं से ख़ाली कराया जाना चाहिए।" कलिन ने यह कहते हुए अब्देल फतेह अल-सिसी को चुनौती दी है कि लीबिया में किसी भी तरह से मिस्र की तैनाती इस लड़ाई को ख़त्म करने के प्रयासों में बाधा पैदा करेगी और काहिरा के लिए जोखिम भरा होगा। उन्होंने कहा,"मुझे विश्वास है कि यह मिस्र के लिए एक खतरनाक सैन्य अभियान होगा।"

ऐसा लगता है कि तुर्की ने ख़ुद को इस बात के लिए आश्वस्त कर रखा है कि उसे अमेरिका का मौन समर्थन हासिल है, इस संभावना को ताड़ते हुए कि उसकी तरफ़ से लीबिया में किया जाने वाला यह हस्तक्षेप रणनीतिक रूप से इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में रूसी प्रभाव की वापसी को रोकेगा, जो नाटो के पीछे का क्षेत्र है। पेंटागन और उसके अफ़्रीकी कमांड सेंटर का अनुमान है कि रूस सिर्ते में एक चौकी की स्थापना और लीबिया के संसाधनों तक अपनी भूमध्य प्रभाव और पहुंच का विस्तार करने के लिए स्थानीय वायुसैनिक और नौसैनिक बंदरगाहों का इस्तेमाल करना चाहता है।

कुल मिलाकर, विभिन्न प्रकार के घटक,चाहे वे बड़े, मझोले, छोटे और बहुत छोटे घटक ही क्यों न हो,सबके सब कुछ न कुछ फ़ायदा उठाने के लिए लीबिया के मामलों में अपनी टांगें घुसेड़ दी है। तुर्की सैन्य टुकड़ी, अमिराती और मिस्री हथियार, सऊदी के पैसे, और रूसी, सीरियाई, ट्यूनीशियाई, चाडियाई, सूडानी और यहां तक कि सोमालाई भाड़े के सैनिकों ने भी तेल से समृद्ध इस देश में ख़ुला ख़ूनी खेल को बढ़ावा दिया है। किसी भी हस्तक्षेपकर्ता को आसानी से लीबिया छोड़ने के लिए राज़ी नहीं किया जा सकेगा।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

Turkey, Russia Take Time Out in Libyan War

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