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उत्तर प्रदेश : जेलों में बंद क़रीब दो दर्जन कश्मीरी हैं गंभीर बीमारियों का शिकार

जबसे 5 अगस्त 2019 को सरकार ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 की धारा को रद्द किया है, तबसे सैकड़ों कश्मीरी पीएसए के तहत देश की विभिन्न जेलों में हैं। इनमें से कई लोग ऐसे पाए गए हैं, जो गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं और उनकी हालत लगातार बिगड़ रही है।
jammu and kashmir
छवि का इस्तेमाल मात्र प्रतिनिधित्व हेतु 

श्रीनगर : सरकारी कारागारों के रिकॉर्ड के अनुसार कश्मीर से लाए गए कम से कम 23 लोगों को दिमागी स्वास्थ्य की बीमारियों सहित कई अन्य बीमारियों से जूझना पड़ रहा है। इन लोगों को अनुच्छेद 370 को ख़ारिज किये जाने के चलते सरकार की ओर से हिरासत में लिए जाने के बाद से उत्तर प्रदेश की विभिन्न जेलों में ठूंस दिया गया था।

कश्मीर घाटी से लाए गए इन 200 से अधिक बन्दियों में से 83 लोग आगरा की जेल में कैद किया गया है। आगरा की जेल में कैद इन लोगों में कम से कम आठ कैदी ऐसे पाए गए, जो गंभीर बीमारियों का सामना कर रहे थे। इनमें से जम्मू कश्मीर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मियाँ कय्यूम जिनकी उम्र 70 वर्ष है, की हालत मधुमेह और दिल की बीमारी के चलते वास्तव में बेहद खराब स्थिति में पहुँच गई थी।

व्यापर संघ के नेता मोहम्मद यासीन खान भी आगरा की जेल में बंद हैं, जिन्हें उच्च रक्तचाप, अस्थमा, प्रोस्टेट और पेट से संबंधित बीमारियों से जूझना पड़ रहा था। ऐसे तीन कैदी और हैं जिनके बारे में बताया गया है कि ये लोग उच्च रक्तचाप सम्बन्धी बीमारियों से पीड़ित थे, जबकि 22 वर्षीय इश्फाक हसन के बारे में बताया गया है कि उसे दौरे पड़ रहे हैं।

सैकड़ों अन्य कश्मीरियों की तरह ही क़यूम और यासीन, इन दोनों को भी पहले पहल सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण के कदम के चलते, जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य के दो टुकड़े कर इन्हें केंद्र शासित राज्य में तब्दील करने के कदम को देखते हुए, एहतियातन हिरासत में लिया गया था, लेकिन बाद में इन दोनों के ऊपर विवादास्पद सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) की धारा थोप दी गई थी।

इसी प्रकार सरकार ने राज्य के तत्कालीन पूर्व मुख्यमंत्रियों - फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सहित दर्जनों नेताओं को हिरासत ले रखा है। इन तीनों नेताओं की पीएसए के तहत कैद में रखे जाने की स्थिति जारी है, बाकि पहले पहल आरंभ के छह महीने से अधिक समय तक इन्हें भी कानून और व्यवस्था के हालात को काबू में रखने के उपायों का बहाना बनाकर नजरबंद रखा गया था।

इससे पहले फरवरी के पूर्वार्ध में जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने आगरा की जेल में बंद क़यूम की "कानून व्यवस्था निवारक उपायों के तहत गिरफ्तारी" को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। याचिका को ख़ारिज करने के तर्क में कहा गया था कि “सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए” उनकी गिरफ्तारी को बरकरार रखना जरुरी है।

इलाहाबाद के पास स्थित नैनी केंद्रीय कारागार में बंद कुल 19 बंदियों में से कम से कम पांच कैदियों के बिगड़ते स्वास्थ्य संबंधी सूचनाएं प्राप्त हुई हैं। ग़ुलाम कादिर लोन जो बहत्तर साल के बूढ़े हैं, वे कोरोनरी धमनी जैसी हृदय सम्बंधी रोग और क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित थे। कश्मीर से लाए गए एक अन्य 20 वर्षीय कैदी जुबैर अहमद लावे बुरी तरह से ब्रोंकाइटिस की तकलीफ से पीड़ित हैं, जबकि 29 वर्षीय मुदासिर अहमद का एक महीने पहले हेपेटाइटिस का इलाज कराया गया था।

शारीरिक बीमारियों के अलावा भी जेल के रिकॉर्ड में उल्लेख किया गया है कि अंबेडकर नगर की जेल में बंद दो कैदी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों से जूझ रहे हैं, जिसमें मानसिक विकार और अत्यधिक बैचेनी के होने का पता चला है, जबकि वाराणसी की केन्द्रीय कारागार में बंद एक अन्य कैदी को मानसिक रूप से विक्षिप्त करार दिया गया है।

बरेली की ज़िला जेल में कश्मीर से लाए गए 16 अन्य बंदियों के साथ एक 63 वर्षीय व्यक्ति मधुमेह रोग से पीड़ित व्यक्ति भी हैं, जो इंसुलिन पर निर्भर होने के साथ ही उच्च रक्तचाप की बीमारी के भी शिकार पाए गए थे।

इससे पहले दिसंबर के महीने में इलाहाबाद की जेल में बंद 65 वर्षीय गुलाम मोहम्मद भट की पीएसए के तहत नजरबंदी की सजा भुगतने के दौरान मौत हो गई थी। भट को जमात-ए-इस्लामी का एक कार्यकर्ता होने के नाते गिरफ्तार किया गया था, यह वह संगठन है जिसे पिछले साल फरवरी में प्रतिबंधित कर दिया गया था। उनकी मौत के दो दिन बाद जाकर उनका शव उत्तरी कश्मीर के हंदवाड़ा के उनके कुलंगम गाँव में उनके परिवार के पास पहुँच सका था।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Close to Two Dozen Kashmiri Inmates Lodged in U.P. Jails Suffer Serious Health Issues

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