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यूपी: 69 हज़ार शिक्षक भर्ती से लेकर फ़र्ज़ी नियुक्ति तक, कितनी ख़ामियां हैं शिक्षा व्यवस्था में?

बेहतर शिक्षा, सुरक्षा और रोज़गार के वादे के साथ 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार फिलहाल शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार और धांधलिंयों से जूझ रही है। एक ओर 69 हज़ार शिक्षक भर्ती का मामला पिछले दो सालों से अधर में लटका हुआ है, तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश में फ़र्ज़ी नाम-पता और डिग्री पर पैसे लेकर शिक्षकों की नियुक्ति का बहुत बड़ा गोरखधंधा चल रहा है।
69 हज़ार शिक्षक भर्ती से लेकर फ़र्ज़ी नियुक्ति तक
Image courtesy: Amar Ujala

“69 हज़ार शिक्षक भर्ती घोटाला उत्तर प्रदेश का व्यापमं घोटाला है। इस मामले में गड़बड़ी के तथ्य सामान्य नहीं हैं। डायरियों में स्टूडेंट्स के नाम, पैसे का लेनदेन, परीक्षा केंद्रों में बड़ी हेरफेर, इन गड़बड़ियों में रैकेट का शामिल होना ये सब दर्शाता है कि इसके तार काफी जगहों पर जुड़े हैं…।”

ये ट्वीट कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का है। प्रियंका आगे अपने ट्वीट में ये भी लिखती हैं कि मेहनत करने वाले युवाओं के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। सरकार अगर न्याय नहीं दे सकी तो इसका जवाब आंदोलन से दिया जाएगा। उधर समाजवादी पार्टी ने भी महामारी के बाद प्रदेश सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने की बात कही है।

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बेहतर शिक्षा, सुरक्षा और रोज़गार के वादे के साथ 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार फिलहाल शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार और धांधलिंयों से जूझ रही है। एक ओर 69 हज़ार शिक्षक भर्ती का मामला पिछले दो सालों से अधर में लटका हुआ है, तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश में फ़र्ज़ी नाम-पता और डिग्री पर पैसे लेकर शिक्षकों की नियुक्ति का बहुत बड़ा गोरखधंधा चल रहा है।

क्या है 69 हज़ार शिक्षक भर्ती मामला?

उत्तर प्रदेश का 69 हज़ार शिक्षक भर्ती मामला, बीते कई महीनों से कभी प्रोटेस्ट तो कभी हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के चलते की सुर्खियों में रहा है। मंगलवार, 9 जून को सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों की अपील पर सुनवाई करते हुए 69000 पदों में से 37,339 पदों को होल्ड करने का आदेश दे दिया है। इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से रिपोर्ट भी मांगी है कि शिक्षामित्रों के कितने अभ्यर्थियों ने आरक्षित वर्ग की 40 और सामान्य वर्ग के 45 फीसदी के कटऑफ पर परीक्षा पास की है। कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 14 जुलाई 2020 की तारीख तय की है।

कैसे शुरू हुआ विवाद?

साल 2018 के दिसंबर महीने में उत्तर प्रदेश की मौजूदा योगी आदित्यनाथ सरकार ने सरकारी प्राइमरी स्कूलों में 69 हज़ार सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए वैकेंसी निकाली थी। जिसके लिए 6 जनवरी 2019 को करीब चार लाख अभ्यार्थियों ने लिखित परीक्षा दी। लेकिन परीक्षा के ठीक एक दिन बाद ही सरकार की तरफ से कट ऑफ मार्क्स का मानक तय किया गया, जिसे लेकर बवाल शुरू हो गया।

अभ्यार्थियों के अनुसार इस बार परीक्षा में जनरल कैंडिडेट के लिए 65 प्रतिशत और रिजर्व्ड कैंडिडेट के लिए 60 प्रतिशत कट ऑफ तय किया गया। जोकि पिछली भर्ती से अधिक है। उनका कहना है कि इससे पहले 68,500 पदों के लिए हुई भर्ती परीक्षा में आरक्षित वर्ग के लिए 40 और सामान्य वर्ग के 45 प्रतिशत का कट ऑफ तय किया गया था, जिसे इस बार सरकार ने बिना किसी जानकारी के बढ़ा दिया है।

हालांकि सरकार के इस फैसले से बीएड-बीटीसी वाले अभ्यार्थी संतुष्ट थे लेकिन शिक्षामित्रों ने कोर्ट का रूख कर लिया।

शिक्षामित्र ने कट ऑफ का विरोध किया

इस मामले में शिक्षामित्र अभ्यार्थियों ने नई कट ऑफ का विरोध करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जिसके बाद 11 जनवरी, 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने योगी सरकार के ख़िलाफ़ फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने शिक्षक भर्ती की कट ऑफ को सामान्य वर्ग के लिए 45 और आरक्षित वर्ग के लिए 40 फीसदी तय कर दिया।

सिंगल बेंच फैसले के ख़िलाफ़ अपील

22 मई, 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के सिंगल बेंच के 40-45 कट ऑफ के ऑर्डर के खिलाफ योगी सरकार ने डिविजन बेंच में अपील की। बीएड और बीटीसी वाले कैंडिडेट्स ने भी सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ अपील दायर कर दी।

हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर 22 मई से 19 सितंबर 2019 तक सात बार सुनवाई हुई। इस बीच एक भी बार यूपी सरकार के महाधिवक्ता हाईकोर्ट नहीं आए। इसे लेकर हाईकोर्ट ने योगी सरकार को फटकार भी लगाई। कोर्ट में महाधिवक्ता को बुलाने की मांग करते हुए अभ्यर्थियों ने लखनऊ में धरना भी दिया। इस दौरान छात्रों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जिसे लेकर काफी सवाल खड़े हुए थे।

योगी सरकार की जीत

3 मार्च, 2020 को हाईकोर्ट में जस्टिस पंकज कुमार जायसवाल और जस्टिस करुणेश सिंह पवार की बेंच ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया। आखिरकार 6 मई, 2020 को फैसला आया जिसमें हाईकोर्ट ने योगी सरकार को राहत देते हुए सरकार द्वारा तय किए गए कट ऑफ नंबर पर ही भर्ती कराने का आदेश दिया साथ ही राज्य सरकार को भर्ती की प्रक्रिया पूरी करने के लिए तीन महीने का समय भी दिया।

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इसके बाद योगी सरकार ने भर्ती प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए काउंसलिंग शुरू कराई। कुछ अभ्यर्थी चार प्रश्नों को गलत बताते हुए फिर कोर्ट चले गए। अब कोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाते हुए 12 जुलाई को सुनवाई की तारीख तय की है।

हाईकोर्ट के फैसले से जहां बीएड-बीटीसी कैंडिडेट खुश थे तो वहीं शिक्षामित्रों ने असंतोष जाहिर किया है। हाईकोर्ट के फैसले से असंतुष्ट शिक्षामित्रों ने इस फैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी। फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में है।  

शिक्षक भर्ती मामले की गड़बड़ियां

पूरे विवाद के दौरान शिक्षक भर्ती मामले में कई आपत्तियां भी देखने को मिलीं। जैसे कभी पहले ही पेपर आउट होने का मामला सामने आया तो कभी चयनित अभ्यार्थियों में ओवरलैपिंग की बात उठी। यहां तक की लिखित परीक्षा में पूछे गए कई सवालों को ही आउट ऑफ कोर्स बता दिया गया। तो वहीं अब 150 में से 143 अंक अर्जित करके सबको चौंकाने वाले टॉपर की गिरफ़्तारी की कहानी भी चर्चा में है।

इस परीक्षा के एक अभ्यार्थी सुशील सिंह ने बताया, “6 जनवरी 2019 को लिखित परीक्षा होनी थी लेकिन उससे एक दिन पहले ही पेपर आउट हो गया। यूट्यूब-व्हाट्सएप पर ऑन्सर के वायरल होने का दावा भी किया गया। इसके बाद धांधली रिजल्ट के समय भी देखने को मिली। रिजर्व्ड कैटेगरी की छूट और अन्य रियायतें लेने वाले कैंडिडेट को जनरल कैटेगरी में समायोजित कर दिया गया।”

एक अन्य अभ्यार्थी आरती यादव कहती हैं, “कुल 150 सवालों में से तीन सवालों को परीक्षा नियामक प्राधिकरण ने आउट ऑफ कोर्स माना और उनके मार्क्स सभी को बांट दिए गए। लेकिन अभी और भी कई सवालों पर आपत्ति उठी थी, उसका मामला भी कोर्ट में है। इसके अलावा जो लोग अभी नौकरी कर रहे हैं, मतलब पहले वाली भर्ती में सेलेक्ट हो चुके हैं। उन्होंने भी इस भर्ती में अप्लाई किया है ताकि उन्हें अपने गृह जनपद में तैनाती मिल जाए। अगर ऐसे लोग बार-बार अप्लाई करेंगे तो नए लोगों को कैसे मौका मिलेगा?”

एसटीएफ को सौंपी गई जांच

बता दें कि शिक्षक परीक्षा में फ़र्ज़ीवाड़े मामले में यूपी एसटीएफ और प्रयागराज पुलिस ने छापेमारी कर 8 नकल माफियाओं को गिरफ़्तार किया है। अब एसटीएफ संदिग्ध सेंटरों, परीक्षा में शामिल संदिग्ध अभ्यर्थियों व अन्य आरोपों की जांच करेगी। जांच में दोषी पाए गए अभ्यर्थियों को डिबार कर भर्ती प्रकिया से बाहर किया जाएगा।

एक ही नाम से कई स्कूलों को लगा चूना

प्रदेश में शिक्षा विभाग की खांमियों से जुड़ा दूसरा वाकिया 25 जिलों में एक साथ नौकरी करने के मामले में सुर्खियों में आई कथित अनामिका शुक्ला से जुड़ा हुआ है। इस मामले में भी मंगलवार, 9 जून को एक बड़ा खुलासा हुआ। दरअसल जिस अनामिका शुक्ला की डिग्री पर 25 जगह नौकरी की बात सामने आ रही थी, वो अनामिका शुक्ला असल में बेरोजगार हैं, यानी कहीं नौकरी नहीं करती हैं।

गोंडा के बेसिक शिक्षा अधिकारी डॉ. इन्द्रजीत प्रजापति के समक्ष पेश होकर मंगलवार को असली अनामिका शुक्ला ने इस बात की पुष्टि भी की है।

क्या है पूरा मामला?

बेसिक शिक्षा विभाग के तहत संचालित कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में काम करने वाले शिक्षकों का इसी साल डाटाबेस तैयार किया जा रहा था। डाटाबेस में इस बात का खुलासा हुआ कि अनामिका शुक्ला नाम की महिला को प्रदेश के 25 अलग-अलग स्कूलों में नौकरी पर रखा गया है और हर जगह से उसके खाते में तनख़्वाह जा रही है।

कई ज़िलों में फ़र्ज़ी नियुक्तियां

अनामिका शुक्ला की व्यक्तिगत जानकारियां लगभग एक ही थीं जो अमेठी, आंबेडकरनगर, रायबरेली, प्रयागराज, अलीगढ़, कासगंज सहित 25 ज़िलों में शिक्षिका के तौर पर पंजीकृत थी। हर ज़िले में उसके नाम से बैंक खाता भी खोला गया था जहाँ 25 हज़ार रुपये प्रतिमाह वेतन जाता था। यह सिलसिला बीते 20 महीनों से चल रहा था।

इस मामले में गिरफ़्तारी शनिवार, 6 जून को कासगंज में हुई, जहाँ कथित अनामिका शुक्ला नाम की शिक्षिका बेसिक शिक्षा अधिकारी के दफ़्तर में खुद ही त्यागपत्र देने आ गयी। पुलिस ने जब उसे पकड़ा तो पूछताछ में पहले उसने नाम अनामिका सिंह बताया। बाद में उसका नाम प्रिया जाटव होने की बात सामने आई।

जाँच टीम को शक है कि एक रैकेट के तहत ये सब हुआ है, जिसने एक अनामिका शुक्ला के दस्तावेज़ के आधार पर उसी नाम से अलग-अलग ज़िलों में लोगों को नौकरियाँ दिलवायीं और उनसे पैसे लिए हैं।

असली अनामिका का क्या कहना है?

अनामिका का कहना है कि उसने नौकरी के लिए 2017 में आवेदन ज़रूर किया था पर व्यक्तिगत परेशानी के कारण उसने कहीं नौकरी नहीं की। बीएसए के सामने अनामिका ने कहा कि इस मामले में पकड़ी गई युवती ने उसके शैक्षिक अभिलेखों का गलत इस्तेमाल किया और अलग-अलग जगहों पर नौकरी हासिल कर ली। इस चौंकाने वाले खुलासे के बाद पूरी रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है।

शैक्षिक अभिलेखों का फ़र्ज़ी ढंग से इस्तेमाल

अंबेडकरनगर के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी डॉ. इन्द्रजीत प्रजापति ने बताया, अनामिका का कहना है कि कि उसके शैक्षिक अभिलेखों का फ़र्ज़ी ढंग से इस्तेमाल किया गया। उसने शपथ पत्र में लिखा है कि मीडिया में मामला देखा तो मंगलवार को सच्चाई अवगत कराने के लिए यहां आई।

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में इसके तार बीजेपी के एक बाहुबली सांसद से भी जुड़े बताए गए। कहा जा रहा है कि बीजेपी सांसद के गोंडा, बलरामपुर, बहराइच और फैजाबाद के शिक्षण संस्थानों में ग्रेजुएट, पीएचडी, लॉ, एमबीए, बीएड व हर तरह की डिग्री दी जाती है। आरोप है कि ऐसे ही महाविद्यालय रघुकुल विद्यापीठ में गिरफ़्तार लड़की को नौकरी देने के नाम पर डील हुई और उसे अनामिका शुक्ला बना नियुक्ति पत्र दिया गया।

विपक्ष का पक्ष

इस मामले में कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा है कि यूपी सरकार को अनामिका शुक्ला के घर जाकर माफ़ी मांगनी चाहिए और उन्हें मानहानि का मुआवजा दिया जाना चाहिए। प्रियंका गांधी ने अनामिका के लिए सरकारी नौकरी की मांग करते हुए कहा कि यूपी सरकार उनके परिवार को सुरक्षा भी दे। अनामिका शुक्ला को पता भी नहीं था उसके नाम पर ये चल रहा है। यूपी सरकार और उनके शिक्षा विभाग की नाक के नीचे चल रही लूट की व्यवस्था ने एक साधारण महिला को अपना शिकार बनाया। ये चौपट राज की हद है। उन्होंने अनामिका शुक्ला को न्याय देने की मांग की है।

फ़र्ज़ी दस्तावेजों पर नौकरी करने वाले बर्ख़ास्त शिक्षकों से वसूली का नोटिस  

उधर बेसिक शिक्षा विभाग ने फ़र्ज़ी दस्तावेजों के सहारे नौकरी करने पर बर्खास्त किये गये श्रावस्ती और बहराइच के दस शिक्षकों से दो करोड़ 32 लाख रूपये वसूली का नोटिस भेजा है।

इस संबंध में श्रावस्ती जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी ओंमकार राणा ने बुधवार, 10 जून को पीटीआई-भाषा  को बताया कि पिछले वर्ष विभाग में फ़र्ज़ी अभिलेखों व अभिलेखों में हेराफेरी कर प्रधान अध्यापक व सहायक अध्यापक की नौकरी करते आधा दर्जन लोग पकड़े गये थे। उन्होंने कहा कि जांच में प्रमाण-पत्र फ़र्ज़ी मिलने पर नौकरी कर रहे इन शिक्षकों को बर्खास्त कर इनके विरुद्ध मुकदमे दर्ज हुए थे। उन्होंने बताया कि बहराइच के अजीत शुक्ल टीईटी फेल थे। इन्होंने किसी अन्य अभ्यर्थी का टीईटी पास प्रमाण-पत्र लगाकर नौकरी हासिल कर ली थी। विभाग ने उन्हें बर्खास्त कर इनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया था। शुक्ल को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, अभी वो ज़मानत पर हैं।

उनके मुताबिक संतकबीर नगर के शोभनाथ, गोरखपुर के राजीव उपाध्याय तथा बलरामपुर के कन्हैया सिंह दूसरे लोगों के प्रमाण-पत्र लगाकर नौकरी कर रहे थे। बीएसए ने बताया कि एटा के मनोज कुमार व फीरोजाबाद के राजकुमार ने अंक-पत्र में हेराफेरी कर नौकरी पाई थी। इन पांचों को बर्ख़ास्त कर मुकदमा दर्ज कराया गया था। अभी तक ये पांचों फरार हैं। पुलिस इन्हें तलाश रही है।

बीएसए ने बताया कि श्रावस्ती के छह बर्खास्त शिक्षकों द्वारा वेतन, भत्ता व अन्य मदों में आहरित किए गये एक करोड़ 37 लाख 21 हज़ार 245 रूपये की वसूली के लिये नोटिस जारी किया गया है। उन्होंने कहा कि 20 जून तक रकम जमा नहीं होने पर राजस्व वसूली की तरह कानूनी कार्रवाई होगी।

बहराइच व प्रदेश के अन्य जिलों में भी इस तरह के मामले पकड़ में आए थे।

बहराइच के बीएसए दिनेश कुमार यादव ने बुधवार को बताया कि 2018 में यहां के चार शिक्षकों कुलदीप कुमार, शिशुपाल, मनीष यादव व प्रेम पाल को फ़र्ज़ी अभिलेखों पर नौकरी करते पकड़े जाने पर एसआईटी की जांच के बाद बर्खास्त किया गया था। इनके विरुद्ध मुकदमे दर्ज हुए थे। साथ ही इनके द्वारा वेतन, भत्ते व अन्य मदों में आहरित 95 लाख रुपये की वसूली के लिये चारों को नोटिस दिये गये हैं।

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