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यूपी: 'बीजेपी का पसमांदा तुष्टीकरण खोखली बातों से ज़्यादा कुछ नहीं'

मुस्लिम बुद्धिजीवियों का मानना है कि यह मुसलमानों को फ़िरक़ों में बांटने की एक और कोशिश है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : पीटीआई

लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पसमांदा (पिछड़े) मुसलमानों को केंद्र में रखकर आउटरीच प्रोग्राम की घोषणा के महीनों बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की उत्तर प्रदेश इकाई ने राज्य में आगामी शहरी चुनावों से पहले आक्रामक अभियान शुरू कर दिया है।

पसमांदा समुदाय के "सामाजिक-आर्थिक उत्थान" के लिए एक के बाद एक तीन सम्मेलन लखनऊ, बरेली, रामपुर और कानपुर में मुस्लिम आउटरीच प्रोग्राम के मद्देनज़र किए गए। योगी सरकार 2.0 के शीर्ष मंत्रियों की मौजूदगी वाले कम से कम आधा दर्जन ऐसे कार्यक्रम अगले महीने तक होने की संभावना है। ये कार्यक्रम ख़ासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होंगे जहां पसमांदा मुसलमानों की अच्छी ख़ासी आबादी है।

इन चर्चाओं के बीच कि भगवा पार्टी मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतार सकती है, वह भी ज़्यादातर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में। इन शहरी चुनावों में भाजपा चतुराई से मुसलमानों में सबसे पिछड़े लोगों का भरोसा जीतना चाहती है जो अपनी ज़िंदगी गुज़ारने के लिए निचले दर्जे का काम करते हैं और ये लोग उन लाभार्थियों में से हैं जिन्हें केंद्र और राज्य की "डबल इंजन" वाली भाजपा सरकार से विभिन्न योजनाओं का लाभ मिलता है।

अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री दानिश आजाद अंसारी जो योगी 2.0 सरकार का एकमात्र मुस्लिम चेहरा हैं उन्होंने कहा, "केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने अब तक बिना किसी भेदभाव के मुसलमानों के आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए काम किया है। राज्य की राजधानी में आयोजित पहले सम्मेलन के दौरान "उनकी भागीदारी सुनिश्चित करके" भाजपा अब मुसलमानों का राजनीतिक सशक्तिकरण चाहती है।"

उत्तर प्रदेश भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने कहा कि इस बार शहरी स्थानीय निकाय चुनाव में मज़बूत और भरोसेमंद मुस्लिम भाजपा कार्यकर्ताओं को टिकट दिया जाएगा।

उन्होंने कहा, "भाजपा सरकार पसमांदा मुसलमानों के लिए जितना कर सकती थी, कर चुकी है। अब उनसे कुछ लेना है।"

अली ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक आउटरीच प्रोग्राम के दौरान दावा किया, "सरकार ने यूपी में 4.5 करोड़ मुसलमानों को अपनी योजनाओं का लाभ दिया है, उन्हें मंत्री बनाया गया है, अल्पसंख्यक आयोग का प्रमुख, उर्दू अकादमी का अध्यक्ष, सरकार के विभिन्न आयोगों और मोर्चों में पसमांदा मुसलमानों को 80 प्रतिशत हिस्सा दिया है।"

पसमांदा मुस्लिम सभाओं में भाजपा नेताओं ने इस बात को उजागर किया कि समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने हमेशा मुसलमानों को "वोट बैंक" के रूप में इस्तेमाल किया और उन्हें उनका हक़ नहीं दिया।

भाजपा के शीर्ष नेताओं ने रामपुर और आजमगढ़ से मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में लोकसभा उपचुनावों में हाल की जीत की ओर इशारा करते हुए कहा कि स्थिति बदल रही है।

मुसलमानों को बांटने की कोशिश?

पार्टी की इन कोशिशों से संकेत मिलता है कि वह मुस्लिमों का दिल जीतना चाहती है, जिन्हें परंपरागत रूप से राज्य की सत्ता में अपने प्रतिद्वंद्वी दलों के वोट बैंक के रूप में माना जाता रहा है।

मुस्लिम बुद्धिजीवियों से न्यूज़क्लिक ने बात की। उनका मानना है कि यह मुसलमानों को फ़िरक़ों में बांटने की एक और कोशिश है।

एक दशक से अधिक समय से यूपी की राजनीति पर नज़र रखने वाले और द हिंदू के साथ काम कर चुके उमर रशीद ने न्यूज़क्लिक को बताया, "बीजेपी की पसमांदा मुस्लिम आउटरीच सामान्य रूप से मुसलमानों के प्रति बीजेपी के उसके अपने दृष्टिकोण का विरोध करती है क्योंकि पार्टी ने कमज़ोर अल्पसंख्यक समुदाय को प्रतिनिधित्व के मामले में न केवल हाशिए पर डाल दिया है बल्कि उनके विवाह, खान-पान, कपड़े, सुरक्षा और साथ ही इबादत को निशाना बनाने वाले दमनकारी क़ानूनों का सहारा लिया है। ऐसे माहौल में मुसलमानों के बीच एक दिखावटी राजनीतिक विभाजन करने के लिए भाजपा का आउटरीच प्रचार स्टंट के अलावा और कुछ नहीं लगता है जो विपक्ष को हतोत्साहित करेगा और उन्हें मुस्लिम के सवालों तक सीमित रखेगा जिससे भाजपा को हिंदू समाज के ध्रुवीकरण में मदद करेगा। यदि ओबीसी और दलित जातियों के कल्याण और उनके भविष्य को लेकर सवाल खड़ा होता है तो भाजपा विपक्षी दलों को निशाने पर लेने में सहज महसूस नहीं करेगी।"

उन्होंने आगे कहा, "हालांकि मुसलमानों में सामाजिक मतभेद हैं और उनकी जातियां हिंदू जाति व्यवस्था की तरह हैं। लेकिन जब राजनीति की बात आती है तो यह विभाजन उतना स्पष्ट नहीं है। जब सुरक्षा और स्वतंत्रता के महत्वपूर्ण सवालों की बात आती है तो पसमांदों में उच्च वर्गीय मुसलमानों के प्रति न के बराबर नाराज़गी है। पिछले चार दशकों में इसे हमेशा भाजपा और उसके हिंदुत्व एजेंडे पर चलाया गया है। मुसलमानों के सभी वर्गों और जातियों ने अक्सर बीजेपी के ख़िलाफ़ मतदान किया है ऐसे में नहीं लगता है कि भाजपा के नैरेटिव को मुस्लिम जनता के बीच कोई स्वीकार किया जाएगा। इस नैरेटिव को बल देने की उम्मीद में कुछ अवसरवादी मुस्लिम दलालों को सहारा देकर भाजपा मीडिया में एक बहस छेड़ सकती है। हालांकि, ग़रीब या अमीर, पसमांदा या अशरफ़ (उच्च वर्ग) मुसलमानों में भरोसा पैदा करना एक ऐसी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है जिसका सबसे अहम मुद्दा अल्पसंख्यकों और उनके संवैधानिक अधिकार का दमन करना है।"

राशिद सवाल करते हैं कि भाजपा आठ साल में एक बार भी पसमांदों तक क्यों नहीं पहुंची। 2018 की सामाजिक न्याय रिपोर्ट जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटे को तीन भागों में विभाजित करने की सिफारिश की गई है जो अभी भी धूल फांक रही है। इससे पसमांदा मुसलमानों को फ़ायदा होगा। तो बीजेपी को सब-कोटा लागू करने से क्या रोकता है?

मेरठ के एक वरिष्ठ पत्रकार नक्शाब ने न्यूज़क्लिक को बताया, "मुस्लिम एक समुदाय के रूप में ही पसमांदा हैं। सच्चर कमेटी के अनुसार, मुसलमान देश में सबसे अधिक प्रताड़ित समुदाय हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार वास्तव में मुसलमानों की स्थिति दलितों से भी बदतर है। सरकारी नौकरियों में मुसलमान लगभग एक या दो प्रतिशत है। वे सामाजिक कल्याण योजनाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। भाजपा द्वारा पसमांदा के बीच यह आउटरीच मुसलमानों को फ़िरक़ों में बांटने का एक प्रयास है और यह दर्शाएगा कि हिंदू की उच्च जातियों द्वारा दलितों से किए जा रहे व्यवहार की तरह पसमांदा मुस्लिम किस तरह अशरफ़ मुसलमानों द्वारा शोषण किए जा रहे हैं।"

जब यह सवाल किया गया कि क्या दलित मुसलमान इस आउटरीच से आकर्षित होंगे तो उन्होंने आगे कहा, "वही पार्टी गोरक्षा के नाम पर उन्हीं पसमांदा मुसलमानों पर मुक़दमा चला रही है और दूसरी ओर आप उसी समुदाय के कल्याण की बात कर रहे हैं। ये दोनों बातें एक साथ नहीं चल सकतीं।"

उन्होंने कहा कि बीजेपी अक्सर अपने नैरेटिव को आगे बढ़ाने और मीडिया में विपक्ष को पटरी से उतारने के लिए अजीबोग़रीब दावे करती है। इससे पहले, पार्टी ने ज़ोर देकर कहा था कि बुर्क़ा पहनने वाली मुस्लिम महिलाएं भी तीन तलाक़ के क़ानून और अन्य कल्याणकारी कार्यक्रमों के चलते भाजपा को वोट दे रही हैं। इस तरह के दावे मुस्लिम महिलाओं को कमज़ोर बना देते हैं और उन्हें एक परिपक्व के रूप में सोचने की क्षमता को कम कर देते हैं।

मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने भाजपा सरकार के रुख पर सवाल उठाया कि कथित पुलिस फायरिंग में 23 मुसलमान मारे गए थे जिनमें ज़्यादातर पसमांदा थे। उनकी पार्टी के नेताओं ने सीएए-एनआरसी जैसे अहम मुद्दों पर चुप्पी साध रखी थी। हिंसा के दौरान मारे गए पीड़ित आर्थिक रूप से कमज़ोर पृष्ठभूमि से थे और उनमें से ज़्यादातर दिहाड़ी मज़दूर थे। यहां तक कि राज्य भर में मॉब लिंचिंग, मुसलमानों के घरों पर बुलडोज़र चलाना और लोगों को पीटना अभी भी जारी है।

पसमांदा मुसलमान कौन हैं?

पसमांदा शब्द फ़ारसी से लिया गया है और इसका अर्थ है "पिछड़ा" या पीड़ित। उत्तर प्रदेश में मुसलमानों पसमांदा समाज के 85% से अधिक मतदाता हैं।

पसमांदा बहुमत में होने के बावजूद ये समूह सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है। इस समुदाय में दलित (अर्जल) और पिछड़े मुस्लिम (अजलाफ) लोग शामिल हैं। शेष 15% मुसलमानों को उच्च वर्ग या अशरफ़ माना जाता है।

पसमांदा मुसलमानों की जातियां आम तौर पर उनके पेशे से तय होती हैं। इसमें मलिक (तेली), मोमिन अंसार (जुलाहे), कुरैशी (कसाई), मंसूरी (रजाई और गद्दे बनाने वाले), इदरीसी (दर्जी), सैफ़ी (लोहार), सलमानी (नाई), घोसी (पशु व्यापारी), सैफ़ी (बढ़ई), राइन (सब्जी उत्पादक / विक्रेता) और हवारी (धोबी) जैसे 45 से अधिक समूह शामिल हैं।

अशरफ या उच्च वर्ग में शेख़, सैय्यद, तुर्क और पठान शामिल हैं।

पूर्व सांसद अली अनवर अंसारी भले ही 'पसमांदा' शब्द गढ़ने वाले पहले व्यक्ति न हों, लेकिन उन्हें इसका व्यापक रूप से इस्तेमाल करने का श्रेय दिया जाता है। 1998 में उन्होंने अखिल भारतीय पसमांदा मुस्लिम महाज (एआईपीएमएम) की स्थापना की थी जो एक ग़ैर-राजनीतिक संगठन है। यह शब्द ज़्यादातर उत्तर भारत- उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में मुसलमानों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है।

अली अनवर ने न्यूज़क्लिक से कहा, "बीजेपी को इस तरह की धोखाधड़ी और जालसाजी की आदत है। मुसलमानों के साथ उनका दुस्साहस पहले ही उजागर हो चुका है। वर्तमान सरकार की पूरी राजनीति मुस्लिम विरोधी है और अब वे पसमांदा मुसलमानों के लिए 'स्नेह' यात्रा की बात कर रहे हैं जो केवल जुमलेबाज़ी है। बीजेपी केवल बाबासाहब अंबेडकर का सम्मान करने का दिखावा करती है लेकिन उनकी विचारधारा का विरोध करती है। महात्मा गांधी के मामले में भी ऐसा ही है। पीएम मोदी विदेशी धरती पर गांधी की प्रशंसा करते हैं लेकिन उनके नेता और कार्यकर्ता उनके हत्यारे की प्रशंसा करते हैं और उन्हें माला पहनाते हैं। बीजेपी के पास कोई क़द्दावर नेता नहीं है इसलिए वे अपने भाषण में गांधी और अंबेडकर का जिक्र करते रहते हैं। पार्टी जब इस समुदाय के आर्थिक बहिष्कार की बात करती है, भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का आह्वान करती है और लव जिहाद के नाम पर मुसलमानों को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ती है, मीडिया की मदद से यूपीएससी जिहाद की बात करती है तो पसमांदा मुसलमानों को कैसे आकर्षित करेगी।"

पूर्व सांसद ने आगे कहा, 'बिलकिस बानो पसमांदा के घांची समुदाय से हैं, उसी समुदाय से पीएम मोदी आते हैं लेकिन आरोपियों के साथ क्या हुआ? मोदी की मदद से सभी को छोड़ दिया गया। तब उनका पसमांदा मुसलमानों से प्रेम कहां चला गया था?

विपक्ष पर निशाना साधते हुए उन्होंने आगे कहा कि सत्ताधारी दल अपने समर्थन के आधार को व्यापक बनाने के लिए नए तरीक़े तलाश रहा है, विपक्ष के लिए दांव लगाने की जगह कम होती जा रही है।

उन्होंने कहा, "पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और लालजी टंडन को शिया-सुन्नी करने से फ़ायदा हुआ और मोदी और योगी ऐसा ही करना चाहते हैं लेकिन ऐसा नहीं होगा। हालांकि, बीजेपी के डर से समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने पसमांदा मुसलमानों को एक तरफ छोड़कर और उनके मुद्दों पर चर्चा करते हुए धर्मनिरपेक्षता के बारे में बात करना बंद कर दिया। भाजपा यह दिखाना चाहती है कि वे पसमांदा समुदाय के लिए चिंतित हैं। मुस्लिम धार्मिक विद्वान और बुद्धिजीवी भी पसमांदा मुसलमानों के बीच भाजपा को थोड़ी जगह देने के लिए ज़िम्मेदार हैं क्योंकि वे कभी भी पसमांदा मुसलमानों के मुद्दों उस आधार पर कभी बात नहीं करते हैं जिसे मैंने बाबरी विध्वंस के बाद महसूस किया था और मैं अपनी तरफ से उन्हें एक संगठन में लाने का अपना काम कर रहा हूं।"

अली अनवर अंसारी ने जुलाई में हैदराबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दौरान 'पसमांदा' शब्द का इस्तेमाल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देते हुए एक खुला पत्र भी लिखा था। अनवर ने अपने पत्र में सवाल किया कि पिछड़े मुसलमान पहले चर्चा का हिस्सा क्यों नहीं थे और भाजपा ने अब 'स्नेह यात्रा' निकालने के बारे में क्यों सोचा।

अंसारी ने लिखा, "पसमांदा के बारे में बात करते हुए आपको सुनना एक सुखद आश्चर्य था लेकिन पसमांदा मुसलमान 'सम्मान' (समानता और सम्मान) चाहते हैं, न कि 'स्नेह'। शब्द 'स्नेह' का इस संदर्भ में ख़ास अर्थ है कि पसमांदा मुसलमानों को 'स्नेह' की आवश्यकता है जो बताता है कि वे निम्न वर्ग के हैं जिन्हें श्रेष्ठ लोगों से संरक्षण की आवश्यकता है।"

समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रवक्ता अब्दुल हफ़ीज़ गांधी ने भाजपा की आउटरीच पर टिप्पणी करते हुए न्यूज़क्लिक से कहा, "जो लोग पीछे छूट गए हैं, उनके बारे में बात की जानी चाहिए और उनके लिए कल्याणकारी नीतियां बनाई जानी चाहिए। बीजेपी के कथनी और करनी में फर्क है। यह साफ़ है कि पार्टी 2014, 2017, 2019 और 2022 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं दी और वे पसमांदा मुसलमानों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात कर रहे हैं।"

सपा प्रवक्ता ने सत्तारूढ़ भाजपा पर संविधान के अनुच्छेद 341 पर उसका अपना रुख न स्पष्ट करने का भी आरोप लगाया जो पसमांदा समुदाय को लाभ देने वाला था।

संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 यह निर्धारित करता है कि हिंदू धर्म, सिख धर्म या बौद्ध धर्म से अलग धर्म को मानने वाले किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है। मूल आदेश जिसके तहत केवल हिंदुओं को वर्गीकृत किया गया था और बाद में सिखों और बौद्धों को शामिल करने के लिए संशोधित किया गया था।

कांग्रेस नेता शाहनवाज़ आलम ने भी पसमांदा तबक़े के कुरैशी समुदाय की रोज़ी-रोटी का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के निर्वाचन क्षेत्र में बुनकरों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

UP: 'BJP's Pasmanda Appeasement is Nothing More Than Hollow Rhetoric'

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