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जंगलराज: प्रयागराज के गोहरी गांव में दलित परिवार के चार लोगों की नृशंस हत्या

दलित उत्पीड़न में यूपी, देश में अव्वल होता जा रहा है और इस सरकार में दलितों व कमजोरों को न्याय मिलना दूर की कौड़ी हो गया है। यदि प्रयागराज पुलिस ने दलित परिवार की शिकायत पर कार्रवाई की होती और सवर्ण दबंगों को संरक्षण न दिया होता, तो मासूम बच्चों समेत चार-चार जानें बचाई जा सकती थीं।
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गोहरी गांव में पीड़ितों की फरियाद सुनते पुलिस के उच्चाधिकारी

प्रयागराज के फाफामऊ में दलित परिवार के चार सदस्यों की जघन्य हत्या के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत एक बार फिर गरमा गई है। गोहरी नरसंहार के नाम से जाना जाने वाला यह हत्याकांड, देश भर में दलितों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा के इतिहास में एक स्याह पन्ने की तरह दर्ज हो गई है। मृतकों में फूलचंद (50), उनकी पत्नी मीनू (45), बेटा शिव (10) और 17 वर्षीय बेटी शामिल हैं। सभी की लाशें घर के अंदर खून से लथपथ मिलीं। सभी के शरीर पर धारदार हथियार के निशान थे। महिलाएं नग्न हालत में थी, जिसके चलते गैंगरेप की आशंका जाहिर की जा रही है। फाफामऊ थाना पुलिस ने सवर्ण जाति के 11 लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज करने के साथ ही आठ लोगों को गिरफ्तार कर लिया है।

प्रयागराज की गोहरी ग्राम सभा की करीब 14 हजार आबादी 18 मजरों में रहती है। पटेल बहुल इस गांव में दलितों के अलावा कुम्हार, भुजवा, मौर्य, ठाकुर जाति की आबादी है। पासी समुदाय के जिन चार लोगों की हत्याएं हुई हैं वह है गोहरी गांव का मजरा मोहनगंज। यहीं रहता था फूलचंद का परिवार। हत्या के बाद दो दिनों तक लाशें घर के अंदर सड़ती रहीं, किसी को भनक तक नहीं लगी। 25 नवंबर 2021 की सुबह गांव के ही संदीप कुमार उधर से गुजरे। फूलचंद के झोपड़ीनुमा घर दरवाजा खुला था। भीतर झांकने पर कोई नहीं दिखा। तब उन्होंने पड़ोस में रहने वाले फूलचंद के भाई किशन को सूचना दी, जो सीमा सुरक्षा बल में तैनात हैं। वह इन दिनों छुट्टी पर घर आए हैं।

किशन पासी घर के अंदर घुसे तो परिवार के चार लोगों की लाशें देख उनके होश उड़ गए। वह दहाड़ मारकर रोने-चीखने लगे। किशन के भाई और भाभी की खून से लथपथ लाश अलग-अलग चारपाइयों पर पड़ी थीं। भतीजे का शव जमीन पर था। भतीजी की लाश कमरे के अंदर थी। हत्यारों ने सभी को बेरहमी से काट डाला था। बेटी का शव निर्वस्त्र पाया गया था, वहीं मां के कपड़े भी अस्त-व्यस्त थे।

फूलचंद और उनके परिवार के लोगों के शवों की हालत उनकी दरिंदगी की दास्तां बयां करने के लिए काफी है। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि मौके पर जो हालात थे, आशंका है कि हत्यारों ने पहले बरामदे में सो रहे दंपति और उनके बेटे को मारा। फिर कमरे में सो रही किशोरी के साथ दरिंदगी की और बाद में उसका भी कत्ल कर दिया। कपड़े भी अस्त-व्यस्त थे। चारपाई के नीचे बेटे का शव जमीन पर पड़ा था। वहीं बरामदे से सटा कमरा है। इसमें बेटी का शव चारपाई पर निर्वस्त्र पड़ा था। मां-बेटी का शव निर्वस्त्र पाया गया था।

फूलचंद्र के घर से ठीक दाहिनी ओर पशु औषधालय है, जबकि बायीं ओर खाली प्लॉट पड़ा है। पीछे की ओर ईंट का भट्ठा है। पशु औषधालय की चारदिवारी इतनी है कि आराम से कोई भी इसे फांदकर घर में दाखिल हो सकता है। पुलिस भी मान रही है कि हत्यारों ने इसी रास्ते का प्रयोग किया होगा।

पुलिस की क्राइम ब्रांच ने गांव की एक महिला बबली के आलावा  आकाश, मनीष, रवि, रामगोपाल समेत 17 लोगों को हिरासत में लिया है। इन्हें जिले के अलग-अलग थानों में रखकर पूछताछ की जा रही है। इस मामले में नामजद कान्हा ठाकुर के दो दोस्तों को शांतिपुरम से उठाया गया है। फूलचंद के घर के पीछे ईंट भट्टे पर काम करने वाले कुछ लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है। एसटीएफ और पुलिस टीमें दुश्मनी वाले एंगल के साथ अन्य बिंदुओं पर भी काम कर रही हैं। हिरासत में लिए गए लोगों के मोबाइल की लोकेशन सर्च करने की कोशिश हो रही है कि वारदात के आसपास और उसके बाद उनके मोबाइल की लोकेशन क्या थी?

दबंगों को पुलिस का शह

मृतक फूलचंद के एक दूसरे भाई लालचंद ने 11 लोगों के खिलाफ नामजद तहरीर दी है। लालचंद कहते हैं, "हमारे भाई फूलचंद ने साल 2019 और 2021 में गांव के कई दबंगों के खिलाफ दलित एक्ट में मामला दर्ज कराया था, लेकिन उसमें कार्रवाई नहीं की गई। हमारी तरफ से दो मुकदमे दर्ज होने के बावजूद थाना पुलिस ने दबंगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे उनका दुस्साहस बढ़ता चला गया। हमारी शिकायतों को गंभीरता से लिया होता तो शायद इतनी जघन्य वारदात नहीं होती।"

वारदात के बाद बैकफुट पर आई फाफामऊ थाना पुलिस ने धारा 302, 376 डी, 147, दलित उत्पीड़न के तहत आकाश, बबली सिंह, अमित सिंह, रवि, मनीष, अभय, राजा, रंचू, कुलदीप, कान्हा ठाकुर, अशोक सिंह समेत 11 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है। रिपोर्ट में 16 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म की आशंका भी जताई गई है। घटना के बाद से गांव में जबर्दस्त तनाव है।

फूलचंद के भाई की पत्नी राधा ने खुलेआम आरोप लगाते हुए कहा, "उसके जेठ-जेठानी और उनके बच्चों की हत्या गांव के दबंगों ने कराया है। रास्ते की जमीन को लेकर उनका ठाकुर जाति के लोगों से विवाद चल रहा है। सामंतों ने कई बार उनके घरों में घुसकर मारपीट और हमले किए। मुकदमा दर्ज कराने की कोशिश की गई तो पुलिस ने हमारी बात सुनी ही नहीं। थाना पुलिस वाले मोहनगंज में आते थे तो सामंत परिवार की एक महिला के इशारे पर पुलिस उल्टे उनके खिलाफ एक्शन लेती थी।"

राधा का आरोप है, "जमीन के विवाद को लेकर 5 सितंबर 2019 व 21 सितंबर 2021 को मृतक के परिवार व भाइयों के साथ आरोपियों ने मारपीट की थी। जान से मारने की धमकी भी दी थी। इसकी एफआईआर फाफामऊ थाने में दर्ज है। फाफामऊ थाने की पुलिस द्वारा परिवार पर मुकदमे में सुलह के लिए दबाव बनाया जाता था। पुलिस दबंगों को बुलाकर कुर्सी देती है और हम लोगों को थाने से भगाती है। हमारा मजाक उड़ाती है। अगर समय रहते पुलिस दबंगों के खिलाफ कार्रवाई करती तो आज ये नौबत न आती। हमारे परिवार की जान बच जाती।"

इंस्पेक्टर व दो पुलिसकर्मी निलंबित

पीड़ित पक्ष का आरोप है कि एससी-एसटी कानून की धारा में दबंगों के खिलाफ पीड़ित परिवार की ओर से मुकदमा दर्ज कराने के बावजूद पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। उल्टे, दबंगों के इशारे पर पुलिस ने पीड़ित परिवार के खिलाफ ही छेड़खानी का मुकदमा लिख लिया, ताकि दलित परिवार को दबंगों से समझौते के लिए बाध्य किया जाए। इस मामले में फाफामऊ के इंस्पेक्टर फाफामऊ राम केवट पटेल और दो अन्य पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया है।

प्रयागराज परिक्षेत्र के डीआईजी सर्वश्रेष्ठ त्रिपाठी कहते हैं, "सामूहिक हत्या के मामले में कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया है। जमीन की रंजिश के अलावा कई अन्य बिंदुओं को भी ध्यान में रखकर जांच पड़ताल चल रही है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद ही रेप के बारे में स्थिति स्पष्ट हो सकेंगी।

सवालों से घिरी पुलिस का पक्ष रखते इलाहाबाद के डीआईजी

फूलचंद के लालचंद ने एलानिया तौर पर मोहनगंज के कुछ दबंगों पर इस ब्रूटल मर्डर का आरोप लगाया। जांच-पड़ताल के बाद पुलिस ने शवों को कब्जे में लेना चाहा तो लोगों ने विरोध कर दिया। घटना से आक्रोशित परिजनों और मौके पर मौजूद बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने करीब चार घंटे तक शवों को नहीं उठने दिया।

प्रयागराज के गोहरी गांव में रोते-बिलखते परिजन

आईजी राकेश सिंह और डीएम संजय खत्री के काफी समझाने पर शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। शुक्रवार की शाम पोस्टमार्टम के बाद मौके पर जुटी आक्रोशित भीड़ ने शवों को अंतिम संस्कार के लिए ले जाए जाने से मना कर दिया। इस दौरान पुलिस के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई। मौके पर पहुंचे अफसरों ने पीड़ितों को मुआवजा व शस्त्र लाइसेंस देने वादा किया। इसके बाद शवों को अंतिम संस्कार के लिए ले जाने दिया गया।

योगी से पूछा, यह कैसा रामराज है?

भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने प्रयागराज के फाफामऊ में सामूहिक दलित हत्याकांड को एक और नरसंहार बताते हुए घटना के लिए योगी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। माले ने कहा है कि मुख्यमंत्री योगी का यह कैसा ‘रामराज ’ , हां सवर्ण दबंगों के हौसले बुलंद हैं और दलित नरसंहार की छूट है। राज्य सचिव सुधाकर यादव कहा, " दलित मजदूर परिवार का दबंगों ने सफाया कर दिया। पति-पत्नी और दो बच्चों समेत चार लोगों की घर में सोते हुए हत्या हो गई। योगी राज में नरसंहार पर नरसंहार हो रहे हैं और केंद्र सरकार कानून-व्यवस्था पर मुख्यमंत्री की पीठ थपथपाने में जरा भी शर्मिंदगी महसूस नहीं कर रही है। लखीमपुर खीरी में पिछले ही महीने किसान नरसंहार हुआ, जिसमें भाजपा नेता के इशारे पर चार आंदोलनकारी किसान और एक पत्रकार कुचलकर मार दिए गए। उसके भी पहले सोनभद्र का उभ्भा आदिवासी नरसंहार (2019) हुआ, जिसमें अनुसूचित जनजाति समुदाय के 11 लोगों की भूमाफिया ने सामूहिक हत्या करवा दी। ताजा घटना में चार दलित मारे गए, फिर भी भाजपा कहती है कि यूपी में योगी के नेतृत्व में रामराज है। यह नरसंहार कांड योगी सरकार की कानून-व्यवस्था की पोल खोलती है।"

सुधाकर कहते हैं, "फाफामऊ हत्याकांड के शिकार परिवार के परिजनों के अनुसार गांव के दबंग उसे परेशान कर रहे थे और पुलिस दबंगों के साथ मिली हुई थी। दलित उत्पीड़न में यूपी, देश में अव्वल है और इस सरकार में दलितों व कमजोरों को न्याय मिलना दूर की कौड़ी है। यदि प्रयागराज पुलिस ने दलित परिवार की शिकायत पर कार्रवाई की होती और सवर्ण दबंगों को संरक्षण न दिया होता, तो मासूम बच्चों समेत चार-चार जानें बचाई जा सकती थीं। पुलिस की यह कार्यप्रणाली सीधे तौर पर दबंगई को संरक्षण देने का सटीक उदाहरण है। इसकी जवाबदेही लेते हुए योगी सरकार को इस्तीफा देना चाहिए।"

विपक्ष ने भी योगी सरकार को घेरा

दलित समुदाय के एक ही परिवार के चार लोगों के कत्ल की घटना के बाद विपक्षी दलों के नेताओं ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। शुक्रवार की शाम प्रियंका गांधी मौके पर पहुंची और पीड़ित परिवारों को ढांढस बंधाया। उन्होंने योगी सरकार को आड़े-हाथ लिया और कहा, " योगी सरकार में कानून व्यवस्था ध्वस्त है। यूपी में दलितों का दमन बढ़ गया है। जातीय उत्पीड़न चरम पर है। संविधान दिवस की पूर्व संध्या पर प्रयागराज में नरसंहार की घटना ने यह साबित कर दिया है कि यह राज्य अब दलित समुदाय के लिए कत्लागाह में तब्दील हो गया है।"

कांग्रेस के प्रदेश संगठन सचिव अनिल यादव ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, " हाथरस की घटना हो, आगरा में थाने में हत्या का मामला हो अथवा आजमगढ़ में बांसगांव के ग्राम प्रधान सत्यमेव की हत्या। सत्ता में बैठे लोगों ने थानों में जाति विशेष के ओहदे दे दिए हैं। सामंतों को भाजपा सरकार खुला संरक्षण दे रही है। जब यूपी के ज्यादातर डीएम-कप्तान से लेकर दरोगा तक एक ही जाति के लोग रहेंगे तो कार्रवाई कैसे होगी? प्रयागराज के गोरारी गांव में हत्या के मामले में जो लोग नामजद किए गए हैं वो सीएम योगी की जाति के लोग हैं। यह सुनियोजित हत्या का मामला लगता है, क्योंकि इस वारदात से पहले नामजद अभियुक्त पीड़ित परिवारों पर दो-तीन बार हमले कर चुके थे। योगी की जातिवादी पुलिस ने दलितों की गुहार नहीं सुनी।"  

बनारस के एक्टिविस्ट डा.लेनिन रघुवंशी कहते हैं, " विधानसभा चुनाव से पहले दलितों को दबाने के लिए सामंती ताकतें उन पर हमले कर रही हैं। हमें इस हत्या के पीछे सियासी कारण नजर आ रहा है। यूपी के गांवों में आजकल इस बात पर चर्चा ज्यादा होती है कि कौन, कितना तरक्की कर रहा है। यूपी पुलिस सामंतवाद से उबर नहीं पाई है। वह कभी भी वंचित तबके साथ खड़ी नहीं दिखती।"

डा.लेनिन बताते हैं, "मैंने एनसीआरबी के ताज़ा आंकड़ों का अध्ययन किया तो पाया कि भाजपा शासित प्रदेशों में दलितों के ख़िलाफ़ अपराध दूसरे प्रदेशों की तुलना में कहीं अधिक है। यहां सत्ता का दलित विरोधी रुख़ एकदम साफ़ है। पुलिस प्रशासन और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल दलितों और पिछड़ों की मदद की बजाय उन्हें विकास की यात्रा में पीछे धकेलने के लिए किया जा रहा है।"

गंगापार में हो चुकी हैं कई हत्याएं

पूर्वांचल में प्रयागराज का गंगापार इलाका अपराधियों और सामंतों का गढ़ माना जाता है। एक ही परिवार के चार लोगों की हत्या की घटना यहां कोई नई बात नहीं है। साल 2018 में होलागढ़ थाना क्षेत्र के बरई हरख गांव के शुकुलपुर मजरे में कुछ दिनों पहले विमलेश पांडेय और उनके बेटे-बेटी समेत चार लोगों की गला रेतकर हत्या कर दी गई थी।

साल 2018 को नवाबगंज थाना क्षेत्र के शहावपुर उर्फ पसियापुर गांव में सुशीला देवी व उनके दो बेटे सुनील व अनिल की नृशंस हत्या कर दी गई थी। सितंबर 2018 में ही सोरांव थाना क्षेत्र के बिगहियां गांव में सरकारी कर्मचारी कमलेश देवी, उसकी बेटी, दामाद प्रताप नरायण के साथ उसके नाती विराट की नृशंस हत्या की गई थी।

23 अप्रैल 2017 को नवाबगंज थाना क्षेत्र के शहावपुर गांव में मक्खन गुप्ता, उनकी पत्नी मीरा देवी, बेटी वंदना व निशा की सामूहिक हत्या कर दी गई  थी। मार्च 2017 में थरवई थाना क्षेत्र के पडि़ला महादेव मंदिर पर शिवरात्रि मेले के दौरान राजस्थान से आए एक दंपती और उसकी बेटी को जिंदा जलाकर मार डाला गया था। दंपती यहां अक्सर आकर मेले में गुब्बारा व खिलौने का सामान बेचते थे। कई महीने बाद पुलिस ने अभियुक्तों को गिरफ्तार किया।

(बनारस स्थित विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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